tag:blogger.com,1999:blog-2387326605625783556.post7232598689858134115..comments2024-03-18T13:03:43.107+05:30Comments on मंडली: थियेटर करने का एक सामाजिक कारण होना चाहिएPunj Prakashhttp://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2387326605625783556.post-14095492414022644732011-11-27T09:26:37.306+05:302011-11-27T09:26:37.306+05:30nsd ka beekendrikaran to hona hi chahiy.ppp k aadh...nsd ka beekendrikaran to hona hi chahiy.ppp k aadhar per harek rajy mai nsd ka wing khulna chahiy.ak gyan bardhak sambaad k liy anishjii abm aap k blog ko badhae.<br />diwakar ghosh<br />bhagalpur<br />bihardiwakar ghoshhttps://www.blogger.com/profile/07006097453543790881noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2387326605625783556.post-7750767419318049722011-11-26T18:16:37.890+05:302011-11-26T18:16:37.890+05:30WE NEED MORE INSTITUTIONS LIKE NSD.NSD SELECTS ONL...WE NEED MORE INSTITUTIONS LIKE NSD.NSD SELECTS ONLY 26 STUDENTS PER YEAR.ARE THERE ONLY 26 TALENTS IN THIS ONE BILLION COUNTRY? -<br />_VIVEK[PRANGAN,PATNA]VIVEK KUMAR(PRANGAN)https://www.blogger.com/profile/13368202178754557417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2387326605625783556.post-68216363079812080802011-11-26T11:32:02.255+05:302011-11-26T11:32:02.255+05:30प्रसन्ना का यह साक्षात्कार कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे ...प्रसन्ना का यह साक्षात्कार कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाता है, लेकिन शुरू में ही प्रसन्ना यह कह कर कि दिल्ली का कोई अपना थियेटर आडियंस नहीं है, अपने पूर्वाग्रह साफ कर देते हैं। शायद वे नहीं जानते कि पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में दिल्ली में नाटक का एक बड़ा दर्शक-वर्ग तैयार हो चुका है और आज एक बड़ा दर्शक-वर्ग टिकट लेकर नाटक देखता है। दूसरी बात यह कि अगर दिल्ली अफ़सरों, राजनेताओं का शहर है तो उसके लिए यह दर्शक वर्ग क्या कर सकता है। देश की राजधानी होने के नाते यह तो दिल्ली की मजबूरी है कि वह अफ़सरों और राजनेताओं की एक बड़ी फौज को पाल रही है।<br />उनकी इस बात से मैं अक्षरश: सहमत हूँ कि राष्ट्रीय नाट्य-विद्यालय का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। दिल्ली में उपलब्ध सुविधाएँ ही यहाँ फ़िल्म या रंग-महोत्त्सवों अधिक सफल बना देती है। और उन्हों ने रंगकर्मियों की एकजुटता की जो बात कही है, वह भी सही है लेकिन क्षमा करेंगे कि अनेक रंगकर्मी बहुत ही क्षुद्र मानसिकता के शिकार हैं। विरोध और असहमति विचारधारा या किन्हीं मूल्यों को लेकर हो तो बात समझ में आती है, लेकिन बहुत छोटे-छोटे स्वर्थों ने अनेक रंगकर्मियों को एक कदर जकड़ा हुआ है कि वे अपने छोटे छोटे दायरों से बाहर नहीं निकलते। फ़िर भी वैचारिक स्तर पर एकजुटता के प्रयास जारी रहने चाहिएँ। ऐसी एकजुटता अपेक्षाकृत अधिक दीर्घजीवी होती है। यहाँ प्रश्न और भी बहुत हैं, जो फ़िर कभी।प्रताप सहगलhttps://www.blogger.com/profile/01594354557600428528noreply@blogger.com