युवा रंग समीक्षक अमितेश
कुमार ने वर्ष अपने अनुभव से 2013 की उल्लेखनीय नाट्य प्रस्तुतियों का ज़िक्र
करते हुए एक लिस्ट बनाई है. भारतीय रंगमंच का दायरा बहुत विशाल है. इस विशालता में
व्यक्तिगत अनुभव की एक सीमा हो सकती है. अमितेश इस लिस्ट के साथ टिप्पणी करते हुए लिखते हैं - "उस वक्त मैं नई
दिल्ली रेलवे स्टेशन पर औरंगाबाद जाने वाली सचखंड एक्सप्रेस का इंतजार कर रहा था
जब नम्रता जी का फोन आया...वो इस साल रंगमंच में हो रहे उल्लेखनीय परिवर्तन के
बारे में जानना चाह रही थीं जो आउटलुक के वार्षिकांक में छपता. एक दिन का समय मिला
सोचने के लिये, जो मैंने उसी शाम में सोच लिया था. अगले दिन फोन पर ही, अभी मैं ट्रेन में ही
था, मैंने उन्हें बताया
कि भारतीय रंगमंच को बदलने वाली गतिविधियां दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में नहीं बेगूसराय, पटना, त्रिशुर और असम के
सुदूरवर्ती इलाके में घट रही हैं. और ये इलाके अन्य इलाकों के साथ इस प्रक्रिया के
हिस्सेदार है. जिन चार रंगकर्मियों का मैंने नाम लिया उनमे से तीन को इस वर्ष
संगीत नाटक अकादमी का बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार मिला है. इनमें से प्रवीन
गुंजन ने अपनी प्रस्तुति 'समझौता' से ख्याति के साथ साथ पुरस्कार भी जीता है, पवित्र राभा बौनों के
साथ रंगमंच कर रहे हैं. 'किना काओ' उनकी बेहतरीन प्रस्तुति है,
शंकर जापान और केरल के प्रदर्शन कलाओं के मेल से नई रंग भाषा गढ़
रहें हैं उन्होंने इब्सन के नाटकों को भी शब्दहीन करने का एक दुस्साहसी प्रयोग तक
कर डाला है. चौथा नाम रणधीर कुमार का है जिनकी ताजा प्रस्तुति 'जहाजी' धीरे धीरे देश के
विभिन्न रंग केंद्रों तक पहूंच रही,
इसे आगामी भारंगम में देखा जा सकता है. वैसे ये चारों नाम और
इनकी प्रस्तुतियां उस परिवर्तन का हिस्सा है जो व्यापक तौर पर भारतीय रंगमंच पर
घटित हो रहा है. ये प्रतीकात्मक उदाहरण हैं. निश्चित है कुछ दिनों में हाशिया कहे
जाने वाले इन क्षेत्रों के दबाव से केंद्र के रंगमंच का स्वरूप बदलेगा, इसके लिये बहुत से
रंगकर्मी प्रयत्नशील हैं."
निम्न लिंक पर जाके लिस्ट देखा जा सकता है - http://www.outlookindia.com/article.aspx?288999
अमितेश कुमार से संपर्क करने के लिए यहाँ क्लिक करें.
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