रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

एक बार बेताला तो सुन सकती हूं, मगर बेसुरा नहीं : लता मंगेशकर

विषाद, प्रेम और विरह, पीड़ा और आनंद को आत्मीय और मर्मस्पर्शी स्वर देने वाली लता मंगेशकर की उपस्थिति एक किंवदंती की तरह रही है. सुर-साम्राज्ञी, संगीत की देवी, सरस्वती-पुत्री, गानसरस्वती जैसे प्रतीक उनकी शख्सियत के आगे अदने ही लगते हैं. युवा कवि एवं संस्कृतिकर्मी यतीन्द्र मिश्र से भारतरत्न सुश्री लता मंगेशकर की बातचीत के अंश

आपके लिए सरस्वती की क्या परिभाषा है?

(हंसते हुए) बड़ा मुश्किल सवाल है. हम लोग इस तरह मानते हैं कि गाने की देवी हैं वे. इसके अलावा उनके बारे में मैं कुछ बोल नहीं सकूंगी, क्योंकि वे तो देवी हैं, साक्षात ज्ञान की मूर्ति. मैं हमेशा उनसे यही कामना करती हंू कि जो तुमने दिया है मुझे, वह ऐसे ही रखो, उसमें कभी कमी आए और अगर कमी हो, तो फिर मैं रहूं.

कौन-कौन से राग हैं, जो आपके दिल के करीब हैं?

मुझे दो राग बहुत अच्छे लगते हैं भूपाली और मालकौंस. मैंने अपने गुरू जी उस्ताद अमान अली खां भेंडी बाजारवाले से भूपाली की यह बंदिश सीखी थी, जो आज भी मुझे बेहद प्रिय है. (गाकर बताती हैं) ‘अब मान ले री प्यारी.’ मुझे भूपाली इसलिए भी बहुत पसंद है क्योंकि हमारे यहां सुबह की शुरुआत जब होती है, तब भूपाली में ही अकसर भजन वगैरह गाये जाते हैं. मैं बचपन से पिता जी के द्वारा और घर-परिवार में भजन के समय भूपाली सुनती रही हूं, शायद इसी कारण यह राग मेरे दिल के बहुत करीब है. बहुत बाद में मैंने हृदयनाथ के संगीत निर्देशन मेंचला वाही देसके लिए भूपाली में हीसांवरे रंग राचीगाया था.

आपनेभाभी की चूडि़यांफिल्म में भी भूपाली का बहुत सुंदर रूपज्योति कलश छलकेगीत में दर्शाया है.

आप सही कह रहे हैं. मेरे अपने गाए हुए गीतों मेंज्योति कलश छलकेमुझे बहुत प्रिय है. यह गीत भी उसी तरह बनाया और फिल्म में दिखाया गया है जिसकी चर्चा मैंने अभी आपसे की. हमारे यहां सुबह घरों में पानी डाला जाता है, रंगोली सजाते हैं और तुलसी के पास जल देते हुए भजन गाते हैं. इसेसड़ाकहते हैं. ‘ज्योति कलश छलकेमें यही सड़ा करना दिखाया गया है. चूंकि इस फिल्म के संगीत निर्देशक भी सुधीर फड़के जैसे खांटी मराठी संगीतकार थे, इसलिए उन्हें महाराष्ट्र की इस परंपरा का बहुत अच्छे ढंग से ज्ञान था, जो गीत में भी उतर सका.

आपनेराग रंगफिल्म में यमन की एक प्रचलित बंदिश को बहुत सुंदर ढंग से गाया है, ‘ये री आली पिया बिनइस पद को गाते हुए कैसा लगा?

(हंसती हैं) आपकोराग रंगकी वह बंदिश याद है. रोशन साहब ने बहुत अच्छे ढंग से इसे कंपोज कराया था. रागों के लिहाज से यदि आप पूछते हैं, तो एक बात बहुत सच्चे मन से कहना चाहूंगी कि लगभग सभी राग मुझे कहीं कहीं बेहद अच्छे लगते हैं. किसी खास राग को लेकर कभी कोई परेशानी हुई हो, या मुझे कम पसंद आता हो ऐसा मुझे कभी नहीं लगा. मुझे यमन, जयजयवंती, मधुवंती, बहार, मल्हार और बहुतेरे राग पसंद हैं. मैंने रागों पर इतने गाने गाए हैं कि अभी तुरंत यह याद कर पाना थोड़ा मुश्किल लगता है कि कौन-से गाने फिल्मों से चुनकर याद करूं. हां, ‘सीमाफिल्म में जयजयवंती की बंदिशमनमोहना बड़े झूठेमुझे बहुत अच्छी लगती है. इसके अलावा अनिल विश्वास के निर्देशन मेंसौतेला भाईमें मेरा गाया हुआ ठुमरी और दादरे के अंदाज का गानाजा मैं तोसे नाहीं बोलूंभी मुझे शास्त्रीय ढंग के गीतों में महत्वपूर्ण लगता है.

यह उन बड़े लोगों की कृपा है कि मेरे बारे में ऐसा सोचते थे. वरना मेरा उनकी गायिकी के आगे वजूद क्या?अगर कभी आपको केएल सहगल के साथ गाने का अवसर मिलता, तो उनका कौन-सा युगल गीत उनके साथ गाने के लिए चुनतीं और उनका कौन-सा एकल गीत आप स्वयं गाना चाहतीं?

मुझे सहगल साहब के ढेरों गाने पसंद रहे हैं. आज भी उन्हें सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मैंने जब अपने समय के बड़े संगीतकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक रिकॉर्ड तैयार किया था, तब उनके बहुत सारे गाने चुनकर गाए थे. उसमें मुझेसो जा राजकुमारी’, (जिंदगी), ‘मैं क्या जानूं क्या जादू है’ (जिंदगी) औरनैनहीन को राह दिखा प्रभु’ (भक्त सूरदास) जैसे तीन गीत बेहद अच्छे और सहगल साहब के संदर्भ में महत्वपूर्ण लगते थे. ये तीनों गाने आज भी उतने ही नये और ताजे लगते हैं. इसके अलावाबालम आय बसो मोरे मन में’ (देवदास), ‘दो नैना मतवारे तिहारे हम पर जुलुम करें’ (मेरी बहन), ‘दुख के अब दिन बीतत नाहीं’ (देवदास) औरसप्त सुरन तीन ग्राम गाओ सब गुणीजन (तानसेन) भी अत्यंत प्रिय हैं. सप्त सुरन... लक्षण गीत है और शुद्ध रूप से राग आधारित है, इसलिए भी यह मुझे काफी पसंद है.

अगर एक गाना चुनना हो, तो वह कौन-सा होगा?

पंकज मलिक जी के संगीत निर्देशन में संभवतः धरतीमाता फिल्म में उनका गाया हुआअब मैं काह करूं कित जाऊं’.

यदि कोई ऐसा मौका आपके सामने होता कि अपने गाए गीतों में से किसी को नूरजहां की आवाज में सुन सकतीं, तो ऐसे में कौन-सा गीत आप उनसे सुनना पसंद करतीं?

दिले नादां’. मुझे ख़य्याम साहब की बहुत मधुर धुन के कारण भी यह गीत अच्छा लगता है. नूरजहां जी की आवाज में इसे सुनना अवश्य पसंद करती. एक बात आपको बताऊं, एक बार मैं और वे दोनों लंदन में थे. मैं उनसे मिलने उनके घर पर गई हुई थी. जब वे मुझे बाद में दरवाजे तक छोड़ने आईं, तो मुझसे बोलींबेटा! मुझे दिले नादां सुना दो.’ तब मैंने जल्दी में ही लिफ्ट में गाने का मुखड़ा और एक अंतरा गाया. वे बहुत खुश हो गईं और मुझसे बोलीं, ‘बेहद सुंदर गाया तुमने. जीती रहो, अल्लाह तुमको लंबी उम्र दे.’

यदि आप इतनी महत्त्वपूर्ण पार्श्वगायिका होतीं, तो किस शास्त्रीय गायक या गायिका की तरह बनना चाहतीं?

उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब की तरह.

कोई खास वजह? उनके साथ का कोई आत्मीय संस्मरण, जो आप बताना चाहें?

खास बात बस इतनी है कि वे बहुत बड़े और महान गायक थे. हर चीज को इतनी खूबसूरती से गाते थे कि बस उसका सुनना अच्छा लगता था. आज भी उतना ही अच्छा लगता है. उनकी गाई हुई ठुमरियों में जैसे जादू था. एक वाकया याद आता है. सन 1962 में कलकत्ता में एक प्रोग्राम था, जिसमें मुझे भी गाना था और वहां खां साहब पहले से ही आए हुए थे. उन्हें भी उसी कार्यक्रम में गाना था. हम लोग जब कार्यक्रम के हॉल की तरफ अंदर गए तो देखा, वहां विंग में खां साहब बैठे थे. बंगाल की गायिका संध्या मुखर्जी भी मौजूद थीं. उन्होंने जब मुझे देखा तो बोलेआओ बेटा, गाओ मेरे साथ.’ मैं सकपकाई और थोड़ा संकोच में कहामुझे बहुत डर लगता है, मैं आपके बराबर कैसे गा सकती हूं?’ तब वे बोले, ‘अरे, इसमें डरने की क्या बात है? मुझे पता है तुम मेरे साथ गा सकती हो. आओ बैठो और मेरे साथ गाओ.’ वे अपने हाथ में स्वरमंडल छेड़ रहे थे और इशारे से मुझे और संध्या को बुलाने लगे. मैंने फिर इसरार से कहा, ‘खां साहब मैं इतनी बदतमीज नहीं हूं कि आपके बराबर बैठकर गाऊं. मुझे लगता है कि मुझे आपको सुनना चाहिए कि आपके साथ मिलकर गाना.’ हालांकि संध्या उनके बगल में डरकर बैठ गई और थोड़ी देर साथ गाती रही. बात यह नहीं है कि मैं उनके साथ गा नहीं सकती थी. मुझे आज भी लगता है कि वे बड़े लोग थे और हम लोगों को उनका पूरा आदर करते हुए कभी भी बराबरी से बैठकर गाना नहीं चाहिए था. जब वे मुंबई में रहते थे, तो मैं उनके घर अकसर चली जाती थी. उनका बहुत लाड़ मुझे मिला है.

आपके बारे में सबसे मुकम्मल और ऐतिहासिक बात तो उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब ने ही कही थी किकमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती.’

(हंसती हैं) यह उन बड़े लोगों की कृपा है कि मेरे बारे में ऐसा सोचते थे. वरना मेरा उनकी गायिकी के आगे वजूद क्या? मुझे ऐसे बड़े लोगों का प्यार और आशीर्वाद मिला है और समय-समय पर सराही या टोकी गई हूं, इसे अपना सबसे बड़ा धन मानती हूं.

आपको उनकी कौन-सी ठुमरी भाती है?

कई हैं. ‘आए बालमखासकर याद आती है. एक देस राग में बहुत अद्भुत ढंग से उन्होंने गाया थापैंया परूं तोरे श्याम’. उसका असर आज तक महसूस करती हूं.

गांधी जी को आपने कभी देखा है?

देखा तो नहीं, कई मर्तबा सुना जरूर है. मुझे याद पड़ता है कि चालीस के दशक में मुंबई में शिवाजी पार्क और चौपाटी पर उन्हें जनसभा को संबोधित करते हुए सुना था. इस बात का मलाल भी है मन में कहीं कि मैं व्यक्तिगत रूप से उनसे मिल सकी.

गांधी जी की जब हत्या हुई तब उस समय के बारे में आपकी क्या स्मृति है? उस समय कैसा लगा था?

मुझे अच्छी तरह याद है, उस दिन गोरेगांव में फिल्मिस्तान स्टूडियो मेंशहनाईफिल्म की सिल्वर जुबली पार्टी हो रही थी. वैसे मैं इस तरह के फंक्शन में कम जाती थी, मगर उस दिन वहां मौजूद थी. मुझे याद पड़ता है कि वहां कई लोग आए थे, जिनमें फिल्मिस्तान के मालिक राय बहादुर चुन्नीलाल जी भी मौजूद थे, जो मशहूर संगीतकार मदन मोहन के पिता थे. कार्यक्रम समाप्त भी नहीं हुआ था, जब मैं वहां से निकलकर लोकल ट्रेन में सफर के लिए स्टेशन आई. तब मैंने देखा कि स्टेशन पर जल्दी ही अंधेरा हो गया था, लोग भाग रहे थे इधर-उधर. पूरे स्टेशन और बाहर तक अफरातफरी का माहौल था, लोग चिल्ला रहे थे गांधी जी की हत्या हो गई. मुझे बहुत बुरा लगा, थोड़ा डर भी. मैं चुपचाप जब घर आई, तो बहुत रोई. मन बहुत उदास हो आया था, उस समय यह बहुत गहरे सदमे की स्थिति थी. एकबारगी लगा कि जैसे अपने भीतर ही कुछ एकदम से खत्म हो गया है. मन बुझ गया था. मेरी मां जितना मुझे समझाती थीं, उतना ही रोना आता था. गांधी जी की हत्या से उबरने में भी काफी दिन लगे. आज भी जब वह दिन याद आता है, तो सारा का सारा मंजर दिमाग में बहुत साफ ढंग से घूम जाता है.

मां जितना समझातीं, उतना ही रोना आता था. गांधी जी की हत्या से उबरने में काफी दिन लग गए.

आपको आजादी का दिन कैसा लगा था? क्या वह आम दिनों से कुछ अलग था?

15 अगस्त, 1947 बहुत अच्छी तरह से याद है. हम लोग घर पर ही थे, मगर शाम को पूरे परिवार के साथ बाहर घूमने निकले. जगह-जगह रोशनी और पटाखों का इंतजाम था. हम देर तक उसे देखते रहे और मुंबई की सड़कों पर घूमते रहे. जहां तक मुझे याद है, थोड़ी देर के लिए ट्रकों पर बैठकर भी हम लोग मुंबई में आजादी का नजारा ले रहे थे. बहुत सारे ट्रकों पर लोग झुंड के झुंड बैठकर खुशियां मनाते -जा रहे थे. घर में उत्सव जैसा माहौल था. मेरी मां ने उस दिन कुछ मीठा बनाया था, जिसे हम सभी ने खुशी में मिल-बांटकर खाया. मैं प्रसन्न थी और आज भी ईश्वर का धन्यवाद देती हूं कि अपने देश की आजादी के दिन को देखने के लिए इतिहास में कहीं मैं भी मौजूद थी.

आजादी के समय मिली खुशियों के बरक्स बाद में विभाजन का दंश भी आपने देखा होगा. उसे किस तरह याद करती हैं?

वह दर्द तो हर एक भारतवासी का रहा है. मुझे विभाजन की तकलीफ है, क्योंकि अधिकांश बड़े फनकार और संगीतकार भी उससे प्रभावित हुए और एकाएक मुंबई फिल्म इंडस्ट्री को छोड़कर पाकिस्तान चले गए. उसमेंखजांचीफिल्म के निर्माता दलसुख पंचोली, संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर साहब और गायिका नूरजहां जी की विशेष कमी खलती है. गुलाम हैदर साहब मुझे बहुत मानते थे, उनके संगीत निर्देशन में मैंने कई गाने गाए. उनका जाना मुझे खराब लगा था. विभाजन की त्रासदी को दोनों ओर के लोगों ने जिस तरह भोगा और झेला है, उसको सोचकर आज भी अच्छा नहीं लगता. मुंबई से भी कई लोग गए और वापस मुंबई लौट आए. कुछ नये लोग भी आए. उन दिनों ऐसा लगता था कि भले ही पार्टीशन हो गया है, मगर हम कलाकारों के मन में तो कोई फांस किसी पाकिस्तान के कलाकार या नागरिक के लिए नहीं है, कभी आई भी नहीं, उसके साथ यह भी था कि कभी डर भी नहीं लगा. हमेशा यह लगता था कि सब अपने हैं, और अपनों से कैसा पराया जैसा सोचना.

जीवन का सबसे आत्मीय और मार्मिक क्षण आपके लिए क्या रहा?

कई दफा जब हम लोग स्टेज पर गाते हैं और ऑडियंस में बैठे हुए तमाम लोग बहुत सहज और नेचुरल ढंग से सराहते हैं, तब वही क्षण हमारे लिए बहुत अहम और बड़ा होता है. वही शायद मेरे लिए सबसे मार्मिक क्षण भी है.

दुनिया लता मंगेशकर की दीवानी है, स्वयं लता जी मिस्र की गायिका उम कुलसुम की. कुलसुम की गायिकी में ऐसा क्या है जो आपको इतना प्रभावित करता है?

एक समय था, जब मैं उम कुलसुम को बेहद पसंद करती थी. उनकी आवाज बुलंद थी और जिस तरह के गीत उन्होंने गाए हैं, वे मुझे कुछ दूसरे ढंग के, बहुत मौलिक लगते थे. शायद इसीलिए उम कुलसुम को सुनना मेरी पसंद की गायकी में शुमार था. उनके अलावा लेबनीज की फैरूज भी मुझे अच्छी लगती थीं. उनकी आवाज कुछ अलग दमखम लिए हुए थोड़ी भारी-सी थी. शंकर जयकिशन साहब द्वारा कंपोज किया गयाआवाराफिल्म का गीतघर आया मेरा परदेसीउम कुलसुम के एक प्रचलित गीतअला बलाड एल महबूबकी धुन पर रचा गया था, जिसे उन्होंने 1936 में प्रदर्शित मिस्र की फिल्मवीदादसे लिया था. मुझेघर आया मेरा परदेसीगाते हुए अलग किस्म का आनंद आया. जब मुझे पता लगा कि यह असल में कुलसुम की धुन पर आधारित है तो मैंने बाद में ढूंढ़कर उनके ढेरों ऐसे मधुर गीतों को बहुत ध्यान से सुना. एक महत्वपूर्ण बात इसी संदर्भ में यह भी याद आती है कि अब्दुल वहाब नाम से एक बहुत सम्मानित संगीत निर्देशक मिस्र में हुए, जिनकी ढेरों धुनों का भारत में फिल्म संगीत में इस्तेमाल हुआ. खुद मैंने उनकी एक प्रचलित धुन पर नौशाद साहब द्वारा बनाया हुआउड़नखटोलाफिल्म का गीतमेरा सलाम ले जा दिल का पयाम ले जागाया था.

मुझे एक मजेदार बात यह ध्यान में आती है कि मैंने विदेशों में भ्रमण के दौरान यह पाया है कि हमारे भारतीय फिल्म संगीत की बहुत लोकप्रियता वहां रही है. उसका शायद एक प्रमुख कारण यह भी रहा होगा कि विदेशी लोग हमारे फिल्म संगीत पर इसलिए उत्साह से प्रतिक्रिया जताते हैं कि उन्हें लगता है कि जिन धुनों पर हम अपना हिंदी गीत गा रहे हैं, वह कहीं उनका गाना ही है, जिसे हम अपनी भाषा में गा रहे हैं. (हंसती हैं)

खाली समय में अपना गाया हुआ कौन-सा गाना सुनना पसंद करती हैं?

जब अकेले होती हूं, तब मीरा के भजन सुनना अच्छा लगता है. मैंनेचला वाही देसके गानों को बहुत तन्मयता से डूबकर गाया था. आज भी मुझेसांवरे रंग राचीऔरउड़ जा रे कागाभाते हैं. इन्हीं गीतों को सुनकर खाली वक्त गुजारती हूं.

जितने संगीतकारों के साथ आपने गाया है, उनमें वे कौन लोग रहे हैं, जिनकी जटिल धुनों पर कुछ मेहनत करते हुए आपको आनंद आया?

मेरे लिए जटिल गाने मदन मोहन, सलिल चौधरी और सज्जाद हुसैन बनाते थे. सज्जाद साहब की धुन पर दिलरुबा नजरें मिला’ (रुस्तम सोहराब) जैसा गाना मेरे लिए मेहनत भरा था. मगर उतना ही पसंद का भी. सलिल चौधरी बहुत काबिल म्यूजिक डायरेक्टर थे. उनके निर्देशन में गाते वक्त गायक को ही मालूम हो सकता था कि दरअसल वह क्या गाने जा रहा है. इनके अलावा हृदयनाथ ने भी मेरे लिए कुछ जटिल धुनों पर अच्छे गाने तैयार किए, जिनमेंहरिश्चंद्र तारामतीकारिमझिम झिमिवाऔरलेकिनकासुनियो जी अरज म्हारीकाफी मुश्किल गीत थे.

संगीत के अतिरिक्त साहित्य के प्रति कैसा लगाव रहा है? कौन-सा साहित्य ऐसा है, जो रुचिकर लगता है?

मैंने किताबें बहुत पढ़ी हैं. पर मैं आपको कैसे बताऊं कि पसंद मेरी बहुत अलग-अलग है. सबसे ज्यादा दिल के करीब शरतचंद्र का साहित्य लगता है. उनका श्रीकांत और देवदास उपन्यास मैंने कई बार पढ़ा है, मगर सबसे ज्यादा उत्कृष्ट मैं उनके उपन्यास विप्रदास को मानती हूं. प्रेमचंद बाबू की किताबें भी पसंद हैं. मराठी का अधिकांश साहित्य पढ़ा है, जिसमें भजन और अभंग पद मुझे भाते हैं. उसमें भी ज्ञानेश्वरी सबसे ज्यादा अच्छा लगता है, हालांकि उसकी जुबान कम समझ में आती है. वह थोड़ी जटिल मराठी में है, बावजूद इसके मुझे बेहद पसंद है और इसीलिए मैंने उसे गाया भी है. हिंदी का भक्ति साहित्य, खासकर मीराबाई, सूरदास और कबीर मुझे बेहद सुंदर लगते हैं. तुलसीदास भी पसंद हैं. और सबसे ज्यादा मुझे गालिब, मीर, जौक और दाग की शायरी अच्छी लगती है. मैं इन बड़े शायरों को अकसर पढ़ती रहती हूं.

फिल्मों में भी मुझे कुछ लोगों का काम साहित्य के स्तर का लगता है, जिसमें साहिर लुधियानवी और मज़रूह सुलतानपुरी की नज्में बेहद प्रिय हैं. इसके अलावा शकील बदायूंनी और हसरत जयपुरी की भी शायरी अच्छी लगती है. एक बात मुझे बहुत आकर्षित करती है कि शैलेंद्र जी हिंदी के बहुत बेहतर कवि थे और उसी के साथ उर्दू में भी बहुत सुंदर लिखते थे. इसी तरह साहिर साहब और मज़रूह सुलतानपुरी उर्दू के बड़े शायर रहे, मगर हिंदी में भी गीत लिखते वक्त उन्होंने कमाल की कलम चलाई है. यह चीज मुझे खास तौर से भाती है. मज़रूह साहब से तो मेरा पारिवारिक रिश्ता और दोस्ताना था, वे जितने बड़े शायर थे, उससे भी ज्यादा बड़े इंसान थे. आजकल गुलजार साहब हैं, जिनकी शायरी और कविता बहुत शानदार है. इसमें कोई शक नहीं कि पुराने समय से लेकर आज तक वे उतनी ही कमाल की शायरी करते रहे हैं.

एक अपनी पसंद का नाम आप भूल रही हैं, पं नरेंद्र शर्मा.

आप सही कह रहे हैं. मेरे ध्यान से उतर गया था. वे हिंदी के उत्कृष्ट कवि थे. मुझे बेटी मानते थे और मैं उनकी बेटियों की तरह ही उनके घर में आती-जाती थी. मेरा आत्मीय रिश्ता उनसे जीवन भर निभा. मैंने उनके बहुत सारे फिल्मी और गैरफिल्मी गीत गाए हैं. मुझे सबसे ज्यादा उनका लिखासुबहफिल्म का प्रार्थना गीततुम आशा विश्वास हमारे रामापसंद है. इसी के साथ मुझेसत्यम् शिवम् सुन्दरम्का टाइटिल सांग व्यक्तिगत तौर पर प्रिय रहा है. ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्के साथ की एक घटना है कि जब राज कपूर यह फिल्म बना रहे थे, तब वे पं नरेंद्र शर्मा के पास गए और उनसे कहा, ‘पंडित जी मैंसत्यम शिवम सुन्दरमनाम से एक फिल्म बना रहा हूं, जिसमें मुझे एक ऐसा गीत चाहिए जिसमें एक साथ ही सत्य, शिव और सुंदर का अर्थ तथा परिभाषा मिल सके.’ तब उस फिल्म का शीर्षक गीत पंडित जी ने लिखा, जिसे मैंने गाया है. आज भी इस गीत को मेरा गाने का मन करता है.

आपने सैकड़ों फिल्मों के लिए तकरीबन हजारों अप्रतिम गाने गाए हैं. अगर आपसे उनमें से कुछ एक फिल्मों को चुनने को कहा जाये, तो वे कौन-सी फिल्में होंगी जिनके गीत सबसे ज्यादा याद रखने लायक आपको आज भी लगते हैं?

बहुत सारी फिल्में हैं, जिनको याद रखना चाहूंगी. कई फिल्मों के गाने तो अकसर मन में बने रहते हैं. फिर भी आप पूछ रहे हैं, तो मैं ऐसी फिल्मों मेंमधुमती’, ‘मुगले आज़मऔरपाकीज़ाका नाम लेना चाहूंगी. हां, एक फिल्म और है, जो मुझे बहुत पसंद हैजहांआरा’. इसके गाने बहुत अच्छे थे, मगर फिल्म नहीं चली. कमाल अमरोही कीमहलफिल्म तो हमेशा से मुझे प्रिय रही. इसके सारे गाने, जो दूसरों ने भी गाए मुझे आज भी अच्छे लगते हैं. इस फिल्म के मेरे तीनों गीतआएगा आने वाला’, ‘मुश्किल है बहुत मुश्किल चाहत का भुला देनाऔरदिल ने फिर याद कियातो हमेशा से ही मेरे पसंदीदा रहे.

बेसुरा और बेताला गाना सुनकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है?

(हंसते हुए) मैं आपको सच्ची बात बताऊं, एक बार बेताला तो सुन सकती हूं, मगर बेसुरा नहीं सुन सकती. बेसुरा गाना जैसे मुझे ईश्वर को नाराज करने जैसा लगता है. अगर कभी बेसुरे गायन के चक्कर में पड़ती हूं, तो बहुत पीड़ा होती है, गुस्सा भी आता है.

आशा भोंसले द्वारा गाए हुए किस गाने पर आप रश्क करती हैं, जो आप अपने संगीत करियर में खु़द गाना चाहतीं?

आशा के ढेरों ऐसे गाने हैं जो कमाल के हैं. मुझे कई गाने उसके ऐसे लगते हैं जिन्हें बार-बार सुनने का मन होता है. कई सारे गाने तो एकाएक याद नहीं कर पा रही हूं, मगरमेरे सनमकाये है रेशमी जु़ल्फों का अंधेरा’, ‘दिल ही तो हैकानिगाहें मिलाने को जी चाहता है’, ‘हावड़ा ब्रिज काआइए मेहरबानऔरउमराव जानकादिल चीज क्या है..’ जैसे गाने तो भूलते ही नहीं. एक गाने का जिक्र अवश्य करना चाहूंगी, जिसे आरडी बर्मन ने कंपोज किया था. वहतीसरी मंजिलफिल्म में रफी साहब के साथ गाया हुआ वेस्टर्न आर्केस्ट्रेशन परआजा आजा मैं हूं प्यार तेराहै. मैं बेहिचक बहुत खुशी से स्वीकारना चाहती हूं कि आशा ने जिस सुंदरता और लोच से इस गाने को गाया है, वह शायद मैं कभी भी उस तरह गा पाती.

आपके संगीत का अगर इम्तिहान होना तय हो, तो परीक्षक किसे चुनना पसंद करेंगी?

जो चीज मैं गाती हूं, उसके लिए तो किसी गायक को ही लूंगी. मैं हमेशा यही समझती हूं जब भी फिल्म के लिए गाती हूं, माइक के सामने होती हूं, प्राइवेट रिकॉर्डिंग्स में या मंच और कंसर्ट में मेरा गाना हो रहा होता है, वही मेरा एग्जाम है. अगर सुनने के बाद लोगों ने कहा कि बहुत अच्छा गाया, तो लगता है कि मैं पास हो गयी. यह हर बार होता है और हर बार यही लगता है कि मेरा इम्तिहान हो रहा है, जिसमें मुझे पास होना है. लोग तो बीए, एमए करते हुए डिग्री लेकर स्वतंत्र हो जाते हैं, मगर हमारे लिए तो हर प्रोग्राम और हर रिकॉर्डिंग में पास या फेल होने की डिग्री जारी होती है.

एक कलाकार के लिए उसका सबसे बड़ा सत्य क्या होता है?

अगर कोई सच्चा कलाकार है, तो वह अपनी कला से प्यार करे, ज्यादा से ज्यादा रियाज करे और अपनी कला के मूल्यों के प्रति बड़े से बड़ा बलिदान देने से पीछे हटे. यही शायद सबसे बड़ी सच्चाई होगी, जिसको एक गुणवंत कलाकार के अंदर होना चाहिए.

क्या आपको कभी एकांत में ईश्वर मिला है?

मुझे गाना मिला है, वही मेरा ईश्वर भी है

तहलका से साभार

1 टिप्पणी:


  1. मैं, पंडित नरेंद्र शर्मा जी की पुत्री - लावण्या हूँ।
    पूज्य आदरणीया दीदी का साक्षात्कार बढ़िया लगा।
    - लावण्या दीपक शाह

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