इसी 7 मार्च 2012 को, ऐन होली के दिन, हिन्दी फिल्मों के पुराने संगीत-निर्देशक श्री रवि 86 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हो गए. उनका पूरा नाम था रविशंकर शर्मा. 3 मार्च 1926 को उनका जन्म हुआ था.
रवि का फिल्मी कैरियर उस कठिन दौर में चरम पर था, जब एक से एक धुरंधर और प्रतिभाशाली संगीत-निर्देशक अपनी चमत्कारी रचनाओं से हिन्दी फिल्म संगीत को मालामाल बना रहा था. नौशाद, सी.रामचंद्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, वसंत देसाई, एस.एन.त्रिपाठी, मदन मोहन, रोशन, हंसराज बहल, जयदेव, खय्याम, सलिल चौधरी, कल्याणजी आनंदजी जैसे संगीतकारों की अद्भुत रचनात्मकता के बीच उस वक़्त किसी भी संगीतकार के लिए अपनी जगह खोज लेना आसान काम नहीं था. फिर रवि को तो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसी नई जोड़ी की विस्फोटक प्रतिभा से भी दो-चार होना पड़ रहा था. राहुल देव बर्मन भी नए किस्म के संगीत के साथ आ गए थे. लेकिन रवि जी लगे रहे और सरल-सहज मैलोडी-प्रधान धुनों के सहारे अपनी जगह बनाने में. उन्होंने ज़बरदस्त कामयाबी हासिल की. फिल्म ख़ानदान, काजल, वक्त, हमराज़, निकाह जैसी अनगिनत फिल्मों के ज़रिये सीधा-सच्चा और भावना-प्रधान संगीत देकर आम श्रोता के हृदय को पकड़ने में उन्हें गज़ब की सफलता मिली
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चार-पाँच बरस पहले की बात होगी. जयपुर में एक अखिल भारतीय संगीत-प्रतियोगिता के एक निर्णायक के रूप में मुझे भी बुलाया गया था. जब मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि पीनाझ मसानी और रवि जी भी वहाँ निर्णायकों में मौजूद हैं. तब उनसे काफ़ी बात करने का मौक़ा मुझे मिला. रवि जी को इस बात का बहुत अफ़सोस था कि हेमंत कुमार के संगीत से सजी फ़िल्म 'नागिन' में जो बीन प्रसिद्ध हुई है, उसके लिए सब लोग कल्याणजी भाई का ही नाम लेते हैं कि उन्होंने उसे क्ले-वोंयलिन पर बजाया था. जबकि हकीक़त यह है कि उसे कल्याणजी भाई के साथ रवि जी ने भी हारमोनियम पर साथ-साथ बजाया था. सबूत के तौर पर उन्होंने सबके सामने मंच पर उसे बजा कर भी दिखाया.
रवि जी की ढेरों अच्छी धुनों में से एक धुन आज तक लाजवाब बनी हुई है. वह है 1960 की फ़िल्म 'घूँघट' का लता मंगेशकर का गाया गीत 'लागे न मोरा जिया..' दादरा ताल में इसकी स्थाई में बोल-बाँट और बोल-तान का लयकारी में झूलता हुआ कुछ ऐसा प्रयोग हुआ है कि सुनकर दंग रह जाना पड़ता है. लता के अलावा कोई और इस जटिलता को इतने सहज और संवेदनशील ढंग से अदा भी नहीं कर सकता था. इस गीत से लेकर फ़िल्म 'हमराज़' के महेंद्र कपूर के गाए गीत 'हे, नीले गगन के तले..' की एकदम सरल धुन को देखकर सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि रवि जी की सांगीतिक रचनात्मकता का दायरा कितना व्यापक रहा है.
डा. मुकेश गर्ग |
डॉ. मुकेश गर्ग - M.A., M.Lit., Ph.D.(Hindi); M.A.(Music). Musicologist
& Music Critic; Editor 'Sangeet' (75 year old Hindi monthly); Interdisciplinary Research Work on Aesthetics
of Literature and Music. Composed
music for several TV Serials, Telefilm 'Gulaabari' and Hindi Feature Film
'Jamuna Kinare' (1984). Founder Director 'Sangeet Sankalp' ( an All
India Organisation dedicated to lesser known but fantastic performers of Indian
classical music having 109 branches in 18 States all over India) Awards : Acharya Abhinavgupta
Samman 2010 (New Delhi); Gandharv Sangeet Samman 2007 (Ghaziabad); Sangeet
Maneeshi Samman 2007 (New Delhi); Achaarya Brihaspati Sangeet Seva Samman 2006
(Chandigarh); Swar-Siddhi Award 2005 (New Delhi); Kalayogi 2004 (Sirsa);
Ramdayal Dhanopya Alankaran 2004 (Jabalpur); Swar Sadhna Ratna 2002 (Mumbai); Best Music Critic Award 2002 (New Delhi); Lichchhavi
Sangeet Sevi Samman 2002 (Muzaffarpur); Sangeet Shiromani 1976 (Bikaner)
Associate
Professor, Dept. of Hindi, University of Delhi (on the Post of 'Braj- Bhasha
Specialist') Presently on
Deputation at ICCR and posted as Visiting Professor & Head, Hindi Chair,
Azerbaijan University of Languages at Baku - Azerbaijan (Old USSR) : since
October 2010
पुंज जी,
जवाब देंहटाएंइस फोटो में रवि जी के साथ मैं यानी मुकेश गर्ग नहीं ठाणे के शहनाई-वादक श्री शैलेश भागवत हैं. कृपया सुधारने का कष्ट करें.
पूरे लेख में छोटे उ की मात्रा कहीं नहीं दिखाई दे रही, इससे पढ़ने और समझने में पाठकों को ज़रूर दिक्कत हो रही होगी. शायद कोई तकनीकी समस्या है.
मुकेश गर्ग