आज पटना में चल रहे
रंगकर्मियों-कलाकारों के आन्दोलन को 10 दिन होने को आए। अब जाकर कुछ वरिष्ठों और कनिष्ठों की नींद
खुली है और फेसबुक पर आंदोलनरत साथियों और उनके हितैषियों को नसीहत और आईना दिखाने
अवतरित हुए हैं। महाभारत में एक पात्र है युयुत्सु का, जो सत्य के पक्ष में अपने ही लोगों पर बाण चलने को अभिशप्त है
आज मुझे कुछ कुछ वैसा ही आभास हो रहा है। पर जैसा कि मैं पहले ही लिख चूका हूँ मैं
उन लोगों में से नहीं हूँ कि 'बिगाड़ के डर से ईमान की बात न करूँ'. सो अपनी बात जरूर रखूँगा - मेरे अपने इसे पढ़कर नाराज होते हैं
तो उन्हें पूरा हक है, जैसा कि मुझे अपनी बात रखने का हक
है। मैंने पहले भी कुछ मुद्दे फेसबुक पर उठाये थे लेकिन तब सब मुंह पर चादर डालकर
सोये थे या इस उम्मीद में थे कि अपनी चुप्पी से इस आन्दोलन को अपनी मौत मर जाने
दें - लेकिन अफ़सोस की दस दिन होने पर भी आन्दोलन बंद नहीं हुआ अतः मजबूरन शायद
उन्हें मुंह खोलना पड़ रहा हो- कौन जाने?
अब आइये आन्दोलन की मांगों पर गौर
करते हैं -
संगीत नाटक अकादमी की सचिव विभा
सिन्हा को बर्खास्त करो ! प्रेमचंद रंगशाला के संचालन पर रंगकर्मियों की निगरानी
हो। बिहार संगीत नाटक अकादमी का पुनर्गठन और इसके संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित हो। बिहार संगीत नाटक अकादमी
का संविधान बनाने में रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की सक्रिय भूमिका हो।
1. संगीत नाटक अकादमी की सचिव विभा सिन्हा को बर्खास्त करो !
मेरा पहला सवाल है उन लोगों से जो
इस आन्दोलन की हवा निकलना चाहते हैं - क्या वे विभा सिन्हा को ईमानदार मानकर
इसका विरोध कर रहे हैं? दूसरा सवाल उनसे जो अपने आप को
प्रगतिशील और वामपंथी मानकर इस आन्दोलन का विरोध कर रहे हैं - क्या विभा सिन्हा उनके लिए कोई प्रगतिशील और वामपंथी व्यक्ति
हैं जिनपर सवाल उठाना या बर्खास्तगी की मांग करना वामपंथ पर हमला करने की तरह लिया
जा रहा है? माजरा क्या है यह तो वही बतायेंगे।
2. प्रेमचंद रंगशाला के संचालन पर रंगकर्मियों की निगरानी हो.
प्रेमचंद रंगशाला में जब विभा
सिन्हा जैसे अधिकारियों के होने से अश्लील डांस का आयोजन किया जा रहा हो, वैसे में उसका नियंत्रण रंगकर्मियों के हाथों में सौंपने की
मांग कहाँ से गलत है? और कहाँ से गैर-प्रगतिशील मांग है?
3. बिहार संगीत नाटक अकादमी का पुनर्गठन और इसके संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित हो
जो संगठन अपने आप में गैर कानूनी
हो। जिसका निबंधन तक न हो। और जहाँ भयानक अनिमियात्तायें बरती जा रही हों। मनमाफिक
वेतन उठाया जा रहा हो। मनमाने खर्च और कार्यक्रम दिए और दिलाये जा रहे हों, उसके पुनर्गठन की मांग कहाँ से गैर-प्रगतिशील मांग है?
4. बिहार संगीत नाटक अकादमी का संविधान बनाने में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की सक्रिय भूमिका हो
बिहार संगीत नाटक अकादेमी के
पुनर्गठन होने की सूरत में उसके संविधान बनाने में अगर रंगकर्मियों को शामिल करने
की मांग कहाँ से गैर-प्रगतिशील है?
यह तो हुई मांगों के आधार पर बात, अब आते हैं अंदरूनी मुद्दों पर जो उन्हें इन मांगों से ज्यादा
परेशान कर रहा होगा -
1. उनकी चिंता है की यह आन्दोलन बीजेपी द्वारा प्रायोजित है-
भाई साहब कोई तथ्य है आपके पास या
सिर्फ राजनितिक उल्टी कर रहे हैं। तथ्य है तो प्रस्तुत कीजिये। और वैसे भी आन्दोलन
का नेतृत्व आन्दोलन में घुसकर लिया जाता है बाहर से नज़ारा देखकर नहीं, आप मूवमेंट में शामिल होते तो आप भी इसके लीडरशिप में होते पर
आप तो बांसुरी बजा रहे हो। है न?
दूसरी बात यह कि आप विभाग की
बदनामी से, सरकार की बदनामी से डर क्यूँ रहे
हो। कहीं जनता दल यूनाइटेड ने बिहार में क्रांति तो नहीं कर दी या अब वही आपके लिए
कम्युनिस्ट पार्टी है? या कल्चर डिपार्टमेंट क्रन्तिकारी
हो गया है? डिपार्टमेंट आपके सहयोग से राज्य
में क्रांति करने में लगा है और हम जैसे लोग उसे क्रांति करने से रोक रहे हैं?
2 दूसरी चिंता कि आन्दोलन में शामिल लोग खुद भ्रष्ट और दलाल लोग
हैं -
भाई मेरे इसका मतलब तो यह हुआ कि
बिहार में संस्कृति मंत्रालय में
i या तो बहुत ईमानदारी से काम हो रहा है इसलिए भ्रष्ट और दलाल
टाइप लोग जानबूझकर इसे बदनाम करने में लगे हैं। आपकी बात मान भी लूं तो एक तरह से
ये भ्रष्ट और दलाल टाइप लोग विभा सिन्हा और संजय सिंह जैसे भ्रष्ट लोगों को विभाग
से अलग करने की मांग करके तो आपका ही भला कर रहे हैं। अगर आप इन्हें क्रन्तिकारी
और योग्य और इमानदार मानते हों तो आप ही जानें, हम तो मानने से रहे।
ii या तो यह की विभाग में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है की भ्रष्ट और दलाल टाइप लोग भी आज़िज आ चुके हैं। अगर ऐसा है तो इससे बुरी
बात क्या होगी?
3 ऐसा यह लोग इसलिए कर रहे हैं क्यूंकि इन्हें ग्रांट नहीं मिला -
तो इसमें गलत क्या है भाई मेरे? सही बात तो यही है कि मजदूर भी अपने वेज की लड़ाई लड़ता है, किसान अपने हक की। अब रंगकर्मी ग्रांट की लड़ाई ही लड़ेंगे। आपको
लगता है की सच में जिन्हें ग्रांट नहीं दिया गया वो इसके काबिल नहीं थे। आप मानते
होंगे, मैं नहीं मान सकता।
इसका मतलब तो यह भी बनता है कि आप
इसलिए विरोध नहीं कर रहे कि आपको ग्रांट और लाभ मिल रहे हैं। है की नहीं?
4 यह लोग व्यक्तिगत दुर्भावना से ग्रस्त हैं और व्यक्ति पर हमला
कर रहे हैं -
अब भाई मेरे इतना तो आपको भी पता
होगा की डिपार्टमेंट अपने आप चलता नहीं। उसे कोई व्यक्ति ही चलाता है। तो ज़ाहिर सी
बात है जो लोग डिपार्टमेंट में बड़े पद पर होंगे उनसे ही मांग की जाएगी। जिम्मेदारी
भी उन्ही की बनती है। तो उन पर सवाल उठने लाजिमी हैं। ऐसे में चाहिए की जल्द से
जल्द वे अपना काम करें। अगर वही रोड़ा अटकाने लगें तब तो हमें भी दिक्कत होगी।
5 क्रांति करने का ठेका तो हमारे पास है -
भाई साहब इस भ्रम में न रहें।
जनता किसी को क्रांति करने का ठेका नहीं देती। और क्रांति करने के लिए किसी का
क्रांतिकारी इतिहास होना जरूरी नहीं होता। हम जिस जनता के लिए लड़ रहे होते हैं वो
भी कोई दूध की धूली नहीं होती। जातिवाद, धार्मिक उन्माद और पता नहीं कैसे कैसे दुर्गुणों से लैस होती
है इसका मतलब यह नहीं होता की हम उनकी लड़ाई छोड़ दें। आप अगर 100 प्रतिशत शुद्ध लोगों के साथ मिलकर
संघर्ष करना चाहते हैं तो ऐसे ही किनारे पर खड़े होकर टीका-टिपण्णी करते रहिये, छींटे तो आपके ऊपर भी पड़ेंगे ही।
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