पटना में समस्त संस्कृतिकर्मियों द्वारा वितरित किया जा रहा पर्चा.
बिहार
संगीत नाटक अकादमी में व्याप्त भ्रष्टाचार व अराजकता के खिलाफ़ 31 जुलाई 2013 ( प्रेमचंद जयंती ) को 10 बजे दिन में
प्रेमचंद रंगशाला चलो !
मित्रों,
रंगकर्मियों –
संस्कृतिकर्मियों की अगुआई में वर्षों तक चलाए गए संघर्ष की बदौलत प्रेमचंद
रंगशाला को सीआरपीएफ के कब्ज़े से मुक्त
कराया गया | बाद में इसका जीर्णोद्धार हुआ तथा स्वयं मुख्यमंत्री ने इस राजकीय
रंगशाला का उदघाटन किया | रंगकर्मियों को उम्मीद थी कि प्रेमचंद रंगशाला के
नवनिर्माण से संस्कृतिकर्म को गति मिलेगी | लेकिन हुआ क्या ? बेहद अफ़सोस व शर्म की
बात है कि ‘सुशासन’ के राज में घोषित की गई ‘राजकीय रंगशाला’ आज अश्लीलता की
संस्कृति का केन्द्र बनने की ओर अग्रसर है | संस्कृतिकर्मियों के लिए बनी इस
रंगशाला को यहाँ के प्रशासकों ने सिर्फ़ मुनाफ़े हेतू दवा इत्यादि बेचनेवाली
व्यावसायिक कंपनी के लिए खोल दिया है | ( हाल में ऐसी ही एक कंपनी के कार्यक्रम
में सरेआम अश्लीलता का प्रदर्शन हुआ | ) जबकि संस्कृतिकर्मियों के लिए रंगशाला बुक
कराना एक बेहद मुश्किल काम बना दिया गया है |
विदित है कि प्रेमचंद
रंगशाला भवन में ही बिहार संगीत नाटक अकादमी का कार्यालय भी है | अकादमी की
प्रभारी सचिव विभा सिन्हा के आदेश से उपयुक्त करवाईयां बे-रोक-टोक चल रही हैं |
संस्कृतिकर्मियों ने जब-जब उनसे शिकायत करनी चाही, उन्होंने अपना तानाशाहपूर्ण
रवैया दिखाया | संक्षेप में, संस्कृतिकर्मियों को प्रेमचंद रंगशाला से दूर करने की
साजिश साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है | याद रहे, ‘फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी भवन’ को साहित्यकारों – संस्कृतिकर्मियों से छीनकर इस
हुकूमत ने मैनेजरी की पढ़ाई के हवाले कर दिया है | बहरहाल, हमारा मानना है कि बिहार संगीत नाटक अकादमी घोर अराजकता व
भ्रष्टाचार का शिकार बन चुका है तथा इसके पुनर्गठन की तत्काल आवश्यकता है |
दोस्तों, पिछले कई
दिनों से यहाँ के रंगकर्मी – संस्कृतिकर्मी उपरोक्त अराजकता व भ्रष्टाचार के खिलाफ़
लगातार आन्दोलनरत हैं | लेकिन, फिलहाल अनेक मंत्रालयों समेत कला-संस्कृति से जुड़े
विभाग भी अपने हाथ में रखनेवाले माननीय मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए
हैं | यहाँ तक कि विभाग के सचिव चंचल कुमार ने भी आंदोलनकारियों से मिलाने की जहमत
नहीं उठाई | सरकार की तरफ़ से कोई भी सकारात्मक प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है |
लिहाज़ा, हम तमाम संस्कृतिकर्मी अपने इस आंदोलन को और बड़े दायरे में ले जाने के लिए
बाध्य हैं | इसलिये हम, आप तमाम जागरूक
नागरिकों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों, संस्कृतिकर्मियों से अपील
करते हैं कि सत्ता की तरफ़ से अप-संस्कृति को बढ़ावा दिए जाने तथा ख़ास तौर पर
रंगकर्म-संस्कृतिकर्म की मर्यादा पर हमले के खिलाफ़ ‘प्रेमचंद जयंती’ (31 जुलाई) को ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में प्रेमचंद रंगशाला पहुंचें | पटना
समेत राज्य के अन्य हिस्सों से अनेक नाट्य व सांस्कृतिक दल उस दिन वहाँ अपने
नाटकों-गीतों अदि का प्रदर्शन तथा अपनी मांगों के समर्थन में प्रतिरोध का स्वर
बुलंद करेंगें |
हमारी मांगें
बिहार संगीत नाटक अकादमी की
सचिव विभा सिन्हा को बर्खास्त करो !
प्रेमचंद रंगशाला के संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित करो !
बिहार संगीत नाटक अकादमी का
पुनर्गठन किया जाये और इसके संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाये !
बिहार संगीत नाटक अकादमी का
संविधान बनाने में रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की सक्रिय भूमिका हो !
निवेदक
– समस्त संस्कृतिकर्मी.
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