पटना के आंदोलनरत रंगकर्मियों की सभी मांगें तुरंत मानी जाएं
Ø बिहार संगीत नाटक अकादमी और कला संस्कृति विभाग में
व्याप्त भ्रष्टाचार, अराजकता, अपसंस्कृति और सामंती अफसरशाही के खिलाफ विगत 16 दिनों से पटना
के संस्कृतिकर्मी सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। वे संस्कृति और रंगमंच के प्रति
सरकार के नकारात्मक और विरोधी रवैये में बदलाव की मांग कर रहे हैं, पर सरकार और उसकी अकादमी
ने अब तक अड़ियल रुख अपना रखा है। दिल्ली में रहने वाले और देश के विभिन्न हिस्सों
के हम संस्कृतिकर्मी और रंगकर्मी बिहार सरकार और उसके अकादमी की इस निर्लज्ज
हठधर्मिता की कठोरतम शब्दों में भर्त्सना करते हैं और उन्हें आगाह करना चाहते हैं कि
वे रंगकर्मियों के इस आंदोलन को सीमित या कमजोर समझने की गलती न करें।
Ø पटना और समूचे बिहार का रंगमंच आज विसंगतियों, विडंबनाओं, अभावों और अंतहीन सरकारी
उपेक्षा की गिरफ्त में दम तोड़ता नजर आ रहा है। रंगकर्मियों के पास न तो
पूर्वाभ्यास की कोई जगह है, न प्रस्तुति के लिए उपयुक्त रंगशालाएं। नाट्यकला के प्रशिक्षण
की कोई व्यवस्था न होने से हजारों प्रतिभाएं महानगरों की ओर पलायन कर रही हैं जहां
बड़े पैमाने पर उनकी संभावनाओं का शोषण हो रहा है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे
प्रतिष्ठित संस्थान से प्रशिक्षण लेने के बाद मुंबई का रुख करने की बजाय यदि कोई
रंगकर्मी बिहार में रह कर काम करना चाहे तो उसे प्रोत्साहित करने की बात तो दूर, हर तरह से अपमानित और
प्रताड़ित ही किया जाता है। प्रदेश में आज तक कोई व्यावसायिक रंगमंडली तक बनाने की
आवश्यकता नहीं महसूस की गई है, ताकि प्रतिभावान रंगकर्मियों के लिए आजीविका के साथ रंगकर्म
करने की कोई व्यवस्था हो सके। इससे सिद्ध होता है कि प्रदेश की सरकार को न तो कला
संस्कृति से कोई खास लगाव है, न उनकी कोई समझ है।
Ø पटना के गौरवशाली प्रेमचंद रंगशाला की दुरवस्था, उस पर सरकार की निरंकुश
अफसरशाही का कसता शिकंजा, हिन्दी भवन जैसी सांस्कृतिक धरोहर को मुनाफा कमाने वाले उपक्रम
में बदलने या कि तमाम सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों से संस्कृतिकर्मियों को दूर रखने और
बेदखल करने की सरकार की प्रवृत्ति इस धारणा को पुष्ट करती है कि राज्य का नेतृत्व
संस्कृति और कलाकर्म के प्रति नितांत असंवेदनशील है। उसका ध्यान करोड़ों खर्च कर
बिहार उत्सव का तमाशा करने और इसके माध्यम से व्यक्तिगत-राजनैतिक लाभ लेने तक ही
सीमित है। ऐसा नेतृत्व बिहार की सांस्कृतिक अस्मिता की हिफाजत भला क्या करेगा?
Ø पटना के रंगकर्मियों ने इस तथ्य का उद्घाटन करके
संस्कृति जगत को सकते में डाल दिया है कि बिहार संगीत नाटक अकादमी मूलतः एक फर्जी
संस्था है, जो न तो वैधानिक रूप से पंजीकृत है और न ही उसका कोई संविधान
मौजूद है। राज्य की समस्त सांस्कृतिक योजनाओं के क्रियान्वयन, सांस्कृतिक मद की राशियों
के आवंटन, अनुदान तथा पुरस्कारों के निर्धारण आदि जैसे महत्वपूर्ण
कार्यों को अंजाम देने वाली इस एजेंसी के बारे में यदि यह तथ्य सही है तो संस्कृति
के क्षेत्र में देश में इतने बड़े गोरखधंधे और भ्रष्टाचार की दूसरी कोई मिसाल नहीं
हो सकती। आश्चर्य है कि सरकार ने अब तक इस आरोप का खंडन तक नहीं किया है। अकादमी
की प्रभारी सचिव विभा सिन्हा की नियुक्ति, सोच और व्यवहार पर सवाल उठाते हुए रंगकर्मी लगातार
उनकी बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं, पर सरकार इस मामले में भी चुप है।
Ø सवाल
उठना जायज है कि बिहार संगीत नाटक अकादमी आखिर किस आधार पर सरकारी पैसों के वितरण
से लेकर सांस्कृतिक संस्थानों का संचालन करती रही है?
उसके अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति किस प्रक्रिया के तहत होती है?
सरकार के कला संस्कृति विभाग और अकादमी के पास क्या कोई ऐसी सांस्कृतिक नीति मौजूद
है जिसके आधार पर यह तय किया जाता है कि किसे अनुदान दिया जाना है,
किसे पुरस्कृत करना है या कि सांस्कृतिक संस्थानों और रंगशालाओं का प्रबंधन किस
प्रकार करना है? यदि
ऐसी कोई नीति मौजूद होती तो यह असंभव था कि प्रेमचंद रंगशाला में दवा बेचने वाली
कंपनी भौंडे नृत्य का आयोजन करे और उसमें अकादमी के सम्मानित सदस्य ठुमके लगाएं!
आखिर बिहार संगीत नाटक अकादमी किन मूल्यों के प्रसार और संरक्षण में लिप्त है?
कला संस्कृति विभाग मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने पास रखा है,
तो क्या वे ऐसे कृत्यों की जवाबदेही लेने से बच सकते हैं?
Ø पटना
के आंदोलनरत रंगकर्मियों ने सरकार के समक्ष मुख्य रूप से जो चार मांगें रखी हैं,
वे इस प्रकार हैं-
- बिहार संगीत नाटक अकादमी की प्रभारी
सचिव विभा सिन्हा को अविलंब बर्खास्त किया जाए।
- बिहार संगीत नाटक अकादमी के पुनर्गठन
की घोषणा करते हुए उस पर लगे आरोपों एवं उसके अब तक के क्रियाकलापों की
स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए। अकादमी के संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
- बिहार संगीत नाटक अकादमी का संविधान
बनाने में रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की सक्रिय भागीदारी हो और
- प्रेमचंद रंगशाला के संचालन में
रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
दिल्ली
और देश के विभिन्न हिस्सों के हम रंगकर्मी-संस्कृतिकर्मी उपरोक्त मांगों का समर्थन
करते हुए इस आंदोलन के साथ एकजुट हैं। बिहार सरकार और उसके कला संस्कृति विभाग ने
यदि तत्परता का परिचय देते हुए अविलंब इस आंदोलन की सभी मांगों को नहीं माना तो हम
इस आंदोलन को तेज करने के साथ-साथ देश के बाकी हिस्सों में ले जाने के लिए
कृतसंकल्प हैं।
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