रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

भारतीयता की खोज : प्रसन्ना

प्रख्यात निर्देशक प्रसन्ना उन चन्द निर्देशकों में से है जिन्होंने महानगरों की चमक से दूर अपनी कला को अपने समुदाय औरग्रामीण अंचल में निखारा हैरंगमंच के लिये सार्वजनिक मंचो सेनिरंतर आवाज उठाने वाले सबसे मुखर निर्देशक प्रसन्ना एक छोटे सेगांव हेग्गुडु (कर्नाटकमें  औरतों के साथ एक चरखा केंद्र चलाते हैं.यह एक सहयोगी संगठन है और ग्राम रोजगार का एक अनुठा माडलहैदेश भर में नाटक करने के साथ वे चरखा केंद्र के कार्यकर्ताओं केसाथ भी नाटक करते हैंरा.ना.विके स्नातक प्रसन्ना कन्नड भाषा केनाटककार और कवि भी हैं
तुगलकलाल घास पर नीले घोड़ेआचार्यतारतुफ़उत्तररामचरितसीमापार इत्यादि इनके द्वारा निर्देशितप्रमुख प्रस्तुतियां हैंहेग्गुडु यात्रा के क्रम में इनके निवास परजोअमटेकोप्पा गांव में हैमुलाकात हुईरंगमंच और जीवन दोनों मेंसादगी बरतने और जीने में यकीन रखने वाले प्रसन्ना से हुए वार्ता कायह अंश जो ‘स्पेस’ से संबंधित है. यह  आलेख नटरंग में प्रकाशित है . अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में हालिये दिये गये उनके व्याख्यान को  सुनने के बाद इस लेख की याद आई. मंडली के पाठकों के लिए यह आलेख अमितेश कुमार के ब्लॉग रंगविमर्श से साभार.
1.
हम स्पेस को कैसे समझते हैंपश्चिम कैसे समझता है स्पेस कोऔर भारतीय रंगमंच किस तरह समझता है स्पेस कोस्पेस की भारतीय समझ बहुत ही गत्यात्मक हैभारतीय रंगमंच का स्पेस बहुत आंतरिक हैंहम जो भी स्पेस देना चाहते हैंवह अभिनेता के अंदर देते हैंमतलब वो पात्र बड़ा है तो उसको हम बड़ा बना लेते हैंपात्र छोटा है तो छोटा बना लेते हैंउदाहरणके तौर पर भारतीय चित्रकला को लीजिये मिनियेचर चित्रकला या मधुबनी चित्रकला,  मधुबनी चित्रकला में अगर रावण है तोउसे बड़ा बनाया जायेगाअगर छोटा चरित्र है तो वह सच में छोटा होगातो वास्तव में स्पेस चरित्र के भीतर बुना होता हैउसवज़ह से हमें रंगमंचीय स्पेस की समस्या हुई ही नहींयक्षगान के लिये प्रदर्शन स्पेस कितना चाहिये.  नौ फुट और नौ फुट काएक छोटा सा प्लेटफ़ार्म लगा दियाकभी कभी नौ फुट और नौ फुट भी नहीं होता हैछः फ़ूट भी हो सकता हैउसी में वह स्वर्गनरक सब बना लेते हैंऔर जो दृश्य लाना है वह चरित्र पर लाते हैंआप किसी भी क्षेत्र से किसी एक लोक चरित्र को ले लीजिये.वे इतने भव्य और रंगीन होते हैंसाज सज्जावेष भूषा सभी तरह सेलेकिन जब सेट की तरफ़ देखते हैं वो इतना टूटा फ़ूटाहोता हैवह लकड़ी का होता हैवह इतना खराब लगता हैलेकिन लोगो को खराब नहीं लगता है क्योंकि एक बार चरित्र कोदेखा तो उसमें वह घुस जाते हैंतो यह हमारी अवधारणा हैपश्चिम में इसके उलट अवधारणा हैपश्चिम में स्पेस या बाहरीस्पेस बहुत महत्त्वपूर्ण है और वे धीरे धीरे ग्रीक रंगमंच जिसमें विशाल खुला रंगमंच था से धीरे धीरे वे भीतर की तरफ़ आये हैं,प्रेक्षागृह में आये हैंलेकिन प्रेक्षागृह में आते हुए भी उन्हें भौतिक स्पेस की जरूरत हुई जिन्हें सेट के रूप में परिवर्तित कियागयास्पेस को चरित्र को केवल कवर ही नहीं करना हैमतलब कि पश्चिम में स्पेस केवल पैर रखने की जगह नहीं हैपैर रखनेके नीचे की जगहबगल में जगहऊपर का जगह,  सब जगहउन्हें सबको परिभाषित करना पड़ालेकिन हमें ऐसा करने कीजरूरत नहीं हैहमें पैर रखने के लिये एक छोटा सा जगह चाहियेबस हो गयाइन सभी चीजों को मैं समझता हूं कि हबीबसमझते थे और इसे सामने लाने की कोशिश करता थेउदाहरण के तौर पर चरनदास चोर को ले लीजियेचरनदास चोर ऐसानाटक है है जिसमें बहुत सारे दृश्य हैंबहुत सारे स्पेस हैं और यह छलांग लगाते जाता हैछलांग लगाते हुए के जगह से दूसरेजगह फिर तीसरे जग जाता है वह नाटकमगर मंच का स्पेस तो वहीं रहता है कहीं नहीं जातातो वास्तव में यह आंतरिकस्पेस होता है जो गतिशील होता है.

आजकल स्पेस के बहुत से प्रयोग हो रहें हैंलेकिन किस संबंध पर हो रहे हैंये जो प्रयोग है वह बाकी स्पेस को अधिक महत्वदेते जा रहा हैउस वज़ह से अभिनेता छोटा होता जा रहा हैअभिनेता छोटा होता जाता हैउसका इमेज जो वीडियो से पकड़कर फ़ेंका जा रहा है वह इतना बड़ा हो जाता हैतो वस्तुतः यह बहुत निर्णायक है भारतीय रंगमंच के लिये और यह अभिनेताको अपने में समाहित करता चला जा रहा हैभारतीय रंगमंच में और कहीं के रंगमंच में यह अभिनेता होता है जो महत्त्वपूर्णहोता हैसेट नहींस्पेस नहींअगर स्पेस रखना है तो वह चरित्र के भीतर होना चाहिये चरित्र के बाहर नहींतो मैं इन प्रयोगो सेबिलकुल सहमत नहीं हूंफिलहाल.
2.
मैं भी अपनापन ढुंढ रहा हूंमैं भी भारतीयता को खोज रहा हूंउदाहरण के लिये स्पेस की जो बात चल रही है उसमें मैं स्पेस कोइतना सरल कर रहा हूं क्योंकि मुझे मालुम है कि अगर बहुत सादा नहीं करुंगा तो वह नाटक हेग्गुडु में या बिहार के किसी छोटेसे गांव में हो ही नहीं सकताइसलिये स्पेस का लचीलापन सौंदर्यपरक और सामाजिक समस्या दोनों हैभारतीय रंगमंचलचीला क्यों है क्योंकि भारत में दर्शक हर जगह हैहम विश्व के सघन जनसंख्या वाला देश हैंऔर जनसंख्या की सघनता केकारण और रंगमंच की अत्यधिक लोकप्रियता के कारण आप जहां भी जाइये आपको चार हजार पांच हजार लोग मिल जाते हैं.नाटक देखने के लियेआप सिर्फ़ कमानी में बैठ कर नाटक करते जाओ तो कमानी में वहीं घिसे पिटे लोग आयेंगे और वह भीबहुत बोर हो जायेंगे वो भी कितना नाटक देख सकते हैं आप एक छोटे से गांव में जा कर क्यों नहीं करते जहां चार हजार लोगआपके नाटक को देखेंगे बहुत रूचि के साथ.  मेरे बहुत से काम का उद्देश्य इन लोगो तक पहूंचना हैयह एक बात है और दूसरीबात यह है कि मैं यह समझना चाहता हूं कि समकालीन अभिनय में अभिनय की भारतीय शैली क्या हैभारतीय अभिनयशैली को हम केवल नाटयशास्त्र के हिसाब से देखना चाहते हैंनहींआज के नट में भी ,आज के अभिनेता में भी भारतीयता है.आज का  ठेठ भारतीय समकालीन अभिनेता युरोप के ठेठ समकालीन अभिनेता से भिन्न हैतो यह भिन्नता क्या हैवह क्योंअलग हैवह कैसे अलग हैवह कैसे अपने अंगो को अधिक लचिलेपन के साथ गति देता हैवह कैसे अधिक लचिलेपन केसाथ गा लेता हैतो बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिनके साथ मैं प्रयोग करने की कोशिश कर रहा हूंमेरा विचार यह है कि मैं ऐसाभारतीय रंगमंच विकसित करना चाहता हूं जो ना केवल कालिदास और भास को बल्कि वह समान आसानी और समानभारतीयता के साथ समकालीन नाटको को भी कर सके.
 मैं चिंतनशील अभिनेताप्रग्यावान अभिनेता जैसी श्रेणियों में विश्वास ही नहीं करतासभी अभिनेता प्रग्यावान होते हैं औरउन्हें चिंतनशील और तेज बनाने के लिये प्रशिक्षित किया जाता हैअभिनेता की बौद्धिकता एक बुद्धिजीवि की बौद्धिकता कीतरह नहीं होती है अभिनेता की बुद्धिमता उसकी वह क्षमता है जिससे वह दूसरे अभिनेता के साथ संवाद करता हैअपने विचारव्यक्त करता हैउनके विचारों का साझा करता हैजहां से यह आता हैउदाहरण के लिये जैसे मैं अपने चरखा की औरतों  केसाथ का काम कर रहा हूंपिछले साल मैंने उनके साथ एक प्रस्तुति की थीएक मात्र अंतर यह था कि मुझे उनके साथ अधिकसमय लगना पड़ा क्योंकि वह पुरे तरह से अप्रशिक्षित अभिनेता थे लेकिन अंत में यह बेहद ताजा कर देने वाला अनुभव रहा.
3.
भुमंडलीकरणतकनीकइत्यादि चीजों से बहुत परेशान था तब मैंने मैं अनुभव किया कि मैं अपने आप को दुखी कर रहा हूंतोमैंने इन चीजों को अलविदा कहा और सोचा कि मैं वहीं करूंगा जो मैं करना चाहता हूंमसलन मैंने रहने के उस तरिके को चुनाजो मेरे हिसाब से रहने का सबसे सही तरिका थामैंने उन बहुत सारी जगहों पर अभिनेताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया है जो जगह मैंने चुनीछोटे शहरों मेंउन लोगों के बीच जिनकी इसमें रूचि थी बजाय की नये केन्द्र स्थापितकरने केऔर मैं इसमें खुश हुंहाल ही में मैं भारतेंदु नाट्य अकादमीलखनऊ में एक कार्यशाला करके आया हूंयह बहुत हीमजेदार अनुभव था.  जैसे कर्नाटक में मैं छोटे शहरों में जाता हूं और अभिनेताओं के साथ काम करता हूंऔर मैं खुश है यह बहुत ही जरूरी हैतो वैश्वीकरण से सर लड़ाने की बजायक्योंकि वैश्वीकरण कल जाने वाला नहीं हैलेकिन मैं तो कल चलाजाऊंगामेरे पास बस आज हैऔर मैं अपने आज को थोड़ा उपयोगी ढंग से और प्रसन्नतापुर्वक उपयोग करना चाहता हूंतोमैंने सोचा की जीने का बेहतर तरिका है कि सकारात्मक सोच के साथ रहिये बजाय इसके कि नकारात्मक सोच केतो नाटक करना चाहते हो तो बहुत छोटा भी हो तो कर लोनहीं कर पाओगे तो छोड़ दो कुछ और कर लोमसलन चरखा के साथ जोकाम हो रहा हैबहुत छोटे पैमाने पर हमने इसे सफ़लतापूर्वक बनाया है और खुशी सेबिना किसी विदेशी या फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन केफ़ंड केवहां पर कुछ औरते काम करती हैं और अपना काम करके पैसा कमाते हैं और लाभ लेते हैंउस पैसे से ही हम थोड़ाबहुत कुछ कर लेते है तो हम खुश हैंमैं नहीं सोचता कि आप इसके परे जा सकते हैं.
 सत्तर के दशक में हम रंगमंच में क्रांति करना बहुत जरूरी समझते थेहम क्रांतिकारी रंगमंच की तरफ़ गयेआजरंगमंचकरना ही क्रांतिकारी कदम हैजो भी नाटक करिये उसमें विचार और अनुभव सब  जाता हैउत्तररामचरित में भी वह घुसकर  जाता हैतो आज रंगमंच करना जरूरी हो गया है.  इसका मतलब यह है कि अपनी मातृभाषा में रंगमंच करना जरूरीहैअपने समुदाय में रंगमंच करना जरूरी हैऔर अपने समुदाय से संबंध स्थापित करना जरूरी हो गया हैआप अगर ऐसाकरें तो आप का रंगमंच क्रांतिकारी हो जायेगा तब आपको इसमें क्रांतिकारीता डालने की जरूरत नहीं रहेगीउसी क्षण जबआप तय करते हैं कि आप बिहार के किसी छोटे से कोने में एक हिन्दी नाटक करेंगेआप चुनौती ले चुके होते हैं.

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