नाटकों की श्रृंखला में मंडली के पाठकों के लिए पेश है रामजी यादव
लिखित नाटक “फिर से चुनाव आया ।” इसे उपलब्ध कराया है रायगढ़ इप्टा की अपर्णा ने ।
यदि आप किसी रूप में नाटक का उपयोग करते हैं तो लेखक को ज़रूर सूचित करें । रामजी
यादव से संपर्क करने के लिए यहाँ क्लिक करें । - मॉडरेटर मंडली.
दृश्य एक
(दो बच्चे कोरस गा रहे हैं)
आई है याद जनता फिर से चुनाव आया
निकले हैं घर से नेता फिर से चुनाव आया
बीते बरस में जिनकी सुध ही न ले सके थे
फुसला रहे हैं उनको फिर से चुनाव आया ।
वे मांगते हैं माफी जनता की अदालत में
इतना हो गोया काफी जनता की अदालत में
फिर से मुझे जिता दो मैं हाथ जोड़ता हूँ
करते हैं इतने वादे फिर से चुनाव आया
जनता ठगी हुई सी खो करके यह भरोसा
भरमा रही है पाकर बोतल और कुछ समोसा
फिर से वह बेच देगी मत अपने सेंत में ही
खरीदार चल पड़े हैं फिर से चुनाव आया
बीते बरस यूं इकसठ चौदह चुनाव आए
जनता वहीं पड़ी है नेता जहां में छाए
नेता को काजू किशमिश जनता को सड़े गेहूं
सपने बुने हैं जाली फिर से चुनाव आया
दृश्य दो
(एक नेता अपने दो गुर्गों के साथ मंच पर
आता है । एक गुर्गा नेता के सर पर छाता लगाए है और दूसरा हाथ में रजिस्टर लिए हुये
है । नेता झुक-झुक कर सबका अभिवादन करता है ।पार्श्व में चार-पाँच मजदूर किसान
दिखते हैं जो कुतूहल और उदासीनता के साथ उन सबको देखते हैं ।)
नेता : भाइयो और बहनों , आप सबको मेरा प्रणाम ।
जैसा कि आप जानते हैं कि हमने पाँच साल में आपके जिले में विकास की गंगा बहा दी है
। जिस जिले में बैलगाड़ी तक नहीं चलती थी वहाँ अब हवाई जहाज़ चलने लगा है । क्या
कहते हैं , अब आपका जिला सीधे राजधानी से जुड़ गया है । हमने
इतने विकास कराये हैं इतने विकास कराये हैं कि हमारा रजिस्टर भर गया है । क्या
कहते है , पढ़िये ज़रा लालचंद जी !
गुर्गा : जी सर । (रजिस्टर पढ़ता है) भाइयो
और बहनो । जैसा कि नेता जी ने कहा कि आपके जिले में विकास की गंगा बह रही है । इस
जिले में नेताजी हेलीपैड बनवाए हैं । और सीधे अब बाहर से लोग आयेंगे । सबसे ज़रूरी
बात है कि अब इस जिले में निवेशक आएंगे । अरे निवेशक नहीं जानते । अरे भाई
इनवेस्टर । वही जो पैसा लगाते हैं । जब यहाँ पैसा लगाने वाले लोग आयेंगे तो किसका
लाभ होगा ? आपका । आपको रोजगार मिलेगा । आप बहुत अच्छा रुपया कमाएंगे । तो नेताजी ने
इसीलिए हेलीपैड बनवाए हैं कि देश-विदेश से लोग यहाँ आयें और यहाँ विकास का समुंदर
लहराये ।
और सुनिए , नेताजी ने यहाँ एक गेस्ट हाउस भी
बनवाया । पूछिए क्यों ? अरे भाई निवेशक लोग आके आपके घर तो
जाएँगे नहीं । इसलिए ऐसा नौ सितारा गेस्ट हाउस बनवाया कि दुनिया देखती रहे । एकदम
चकाचक ।
और सुनिए , नेताजी ने पाँच साल पहले ही पुलिया बनवाने का जिम्मा लिया था और आप जानते
हैं कि वह पूरी होने जा रही है । सड़क भी पक्की कराएंगे । और नेता जी ने कुछ और सोच
रखा है आपके लिए । अभी देखिये --
(नेता एक मोबाइल निकालकर दिखाता है । )
नेता : यह मेरी ओर से आप सबको तुच्छ भेंट है ।
अगर आप पक्का करिए कि आप मुझे अपनी सेवा का एक मौका दे रहे हैं तो हर एक के हाथ
में यह होगा । दुनिया मुट्ठी में । इसमें फेसबुक भी है और गेम है । और क्या है कि
बहुत सी फिल्में हैं । जितना चाहो देखो । अगर किसी बच्चे ने ठीक से मेहनत न की हो
तो भी नो टेंशन । इसे टच करो और सारे सवाल का जवाब हाज़िर ।
हर घर के लिए एक एक भेंट । बस आप वोट पक्का कीजिये कि मुझे सेवा का एक
मौका और मिले ।
(भीड़ में से एक आदमी)
आदमी – नेताजी , एक शंका है । बिजुली
तो गाँव मा है नाहीं । ई चारज कैसे होगा ?
नेता : बुड़बक , कर दिये न चिरकुटई की बात । अरे हम लाऊँगा न बिजली ।
अभी बातचीत चल रही है । पक्का वादा है । पूरे जिले को जगर-मगर कर दूँगा । बस आप
वोट पक्का करिए ।
कई लोग : सचमुच बुड़बक हो जी । अरे पहले दुनिया
में मुट्ठी में करो पागल । फिर बिजली भी खरीद लेना ।
(नेता और उसके गुर्गे जैसे आए थे वैसे ही
चले जाते हैं ।)
दृश्य तीन
(बच्चे कोरस गाते हैं ।)
कोरस : फाँके हैं झूठे वादे फिर से चुनाव आया
कुत्सित हैं फिर इरादे
फिर से चुनाव आया
लालच दिखाकर लूटें
लोगों की भावनाएं
ठग हैं ये कितने सादे
फिर से चुनाव आया
सबके गले को रेते है
बेरहम महंगाई
उनका चले घर कैसे जिनकी
नहीं कमाई
पसरा अभाव एकदम बनकर के
है जमाई
हर एक कारोबारी बनकर के
अब कसाई
लूटे है
मिल्कियत जो जनता ने है जुटाई
झूठा दिखाके सपना उल्लू
करें हैं सीधा
देने को फिर भुलावा फिर
से चुनाव आया
करने को फिर छलावा फिर
से चुनाव आया
अब खोलो आँख यारो फिर
से चुनाव आया ।
दृश्य –चार
(अपने दो गुर्गों के साथ अपोजीशन पार्टी
का नेता मंच पर आता है । वह फूल-मालाओं से लदा है । दोनों गुर्गे उसके समर्थन में
नारे लगा रहे हैं ।)
गुर्गे – जीतेगा भाई जीतेगा
मुन्ना भइया जीतेगा
देश का नेता कैसा हो
मुन्ना भइया जैसा हो
भ्रष्टाचार मुर्दाबाद
मुन्ना भइया जिंदाबाद
आधी रोटी खाएँगे
मुन्ना को ही लाएँगे
जीतेगा भाई जीतेगा
मुन्ना भइया जीतेगा ।
(दोनों नाचने लगते हैं फिर एक गुर्गा हाथ
के इशारे से शांत रहने की अपील करते हुये।)
गुर्गा : प्रिय देवियों और सज्जनों ! आपके बीच
पिछले बीस साल से सेवा कर रहे आदरणीय मुन्ना भइया आए हैं । आप जानते हैं कि इससे
पहले मुन्ना भइया के आदरणीय पिताजी और उनसे भी पहले परम आदरणीय दादा जी आपकी सेवा
कर चुके हैं । आपकी खुशी के लिए बता दूँ कि मुन्ना भइया के चिरंजीव राजकुमार भी
अमरीका से पढ़ कर आ गए हैं । अगर आपने इस बार मुन्ना भइया को मौका दिया तो ज़रूर
अगली बार राजकुमार आपकी सेवा करेंगे । क्योंकि मुन्ना भइया जीतते ही यहाँ के सारे
ठेके चिरंजीव राजकुमार को दिलवाएँगे जो आपके लिए रोजगार देंगे और आपका जीवन खुशहाल
हो जाएगा। अब आदरणीय मुन्ना भइया से मैं निवेदन करता हूँ कि वे आपसे कुछ कहें ---
नेता : हमारे प्यारे जनता जनार्दन ! आप सबके पाँव
छूकर मैं आशीर्वाद लेने आया हूँ । अगर आपने मुझे आशीर्वाद दिया तो मैं समझूँगा जीत
मेरी ही होगी । क्योंकि समझदार लोग कहते हैं कि जनता-जनार्दन के आशीर्वाद में बहुत
ताकत होती है । मैं वादा करता हूँ कि आपके लिए इस जिले में सड़कों का जाल बिछा
दूँगा । आपको उन फर्जी नेताओं से छुटकारा दिला दूँगा जो वादा तो बहुत करते हैं
लेकिन निभाने के बदले राजधानी में डेरा डालते हैं ।
आपने देखा कि इस जिले की नदी पर जो पुल दस साल पहले शुरू हुआ वह आज तक
वहीं का वहीं है लेकिन करोड़ों रुपये का सीमेंट ,सरिया नेताजी के पेट में चले गए । तोंद देखी है उनकी ? मुझे दुख होता है कि हमारी जनता को खाने को अन्न नहीं और नेता सीमेंट
सरिया खा जाय । बहुत दुख होता है । (रोने लगता है । फिर आँसू पोछकर) लेकिन
मैं वादा करता हूँ कि आपके जीवन में खुशहाली लाकर रहूँगा।
(तालियाँ और नारे)
मुन्ना भइया ज़िंदाबाद
जिंदाबाद जिंदाबाद
जीतेगा भाई जीतेगा
मुन्ना भइया जीतेगा
(सबको शांत कराते हुये नेता)
नेता: (एक पुस्तकनुमा चीज दिखाते हुये)
देखिये इसे देखिये । यह क्या है ? (दोनों गुर्गे देखते हैं ।)
गुर्गा : इसे कहते हैं लैपटॉप । अगर मुन्ना भइया
जीते तो हर घर में एक लैपटॉप होगा । तो देवियों और सज्जनों अब देर किस बात की है ।
जीत पक्की कीजिये और बोलिए मुन्ना भइया की ! जय !!
(नारे लगाते और शोर मचाते सभी चले जाते हैं ।)
दृश्य –पाँच
( चार-पाँच जनता एक जगह इकट्ठा है । उनमें
बातचीत हो रही है।)
एक : आए हैं जीतने !
दूसरा : (हँसते हुये) और वादे तो पहले
भी बहुत हुये हैं एक भी पूरा हुआ ।
तीसरा:
अरे यार
आम खाओ । पेड़ पर क्या बहस करते हो । ले लो
फोन भी ले लो और लैपटॉप भी लो ।
चौथा : लेकिन पिछली बार सबको टी वी देने का
वादा करके केवल मुखिया को दिया । हमको तो एक बोतल और पचास रुपया ही दिया ।
पाँचवाँ : और देखो , हम तो जब वोट डालने गए तो
आ गई पुलिस और सबको दौड़ाकर मारा । नेता जी कहे कि तुम हमको कहाँ जिताए । कुछ दिया
भी नहीं ।
एक : देखो यही सब होता है । लेकिन तुम लोग
क्यों परेशान हो । भागते भूत की लंगोटी क्यों छोडते हो ।
दृश्य छः
(मंच पर दोनों कोरस गाने वाले आते हैं ।)
पहला : भाई , लंगोटी के चक्कर में तुम लोगों ने लोकतन्त्र के
सेवकों को भी भूत बना दिया है । अब भूत तो भागेगा ही ।
दूसरा: अगर तुम सब इनकी लंगोटी नोचने की बजाय
इन्हें घेरते तो क्या ये वैसे ही भागते । अगर उनके कामों की जांच-परख करते तो क्या
ये इतने झूठे वादे करते । इन्होंने तुम्हारी नब्ज़ पहचान ली जबकि तुमको उनकी नब्ज़
पहचाननी थी ।
पहला : आज भी तुम अपने लालच को इतना बड़ा बना
लेते हो कि भूल ही जाते हो तुम उन्हें और मजबूत और झूठा होने का मौका देते हो ।
दूसरा: तुमने उनके हाथ में ताकत दी और अपने को
कमजोर कर बैठे ।
पहला : तुम आज भी अपनी ताकत नहीं जानते कि अगर
चाहो तो झूठे और लबार नेताओं के खिलाफ खड़े हो सकते हो ।
दूसरा : भई अगर संविधान को जानोगे तभी तो अपनी
ताकत पहचानोगे । क्योंकि संविधान में तो जनता ही शासक है । और शासक अगर छोटे-छोटे
लालच का शिकार हो जाएगा तो देश में खुशहाली तो कोई भी नहीं ला सकता ।
(दोनों गाते हैं )
कोरस : पहचानो खुद को अब तो फिर से चुनाव आया ।
क्या है तुम्हारी ताकत
इसको ज़रा सा समझो
सब आ रहे हैं तुमसे
पाने को जीत अपनी
बुद्धि जरा चलाओ फिर से
चुनाव आया ।
मत बेचो चुक्कड़ों पर
ताकत असीम अपनी
पूछो सवाल उनसे जो आ रहे
हैं तुम तक
जो खा हैं पुलिया जो खा
गए चारा
बेचा है सारा जंगल और
ज़ोर से डकारा
जनता को क्या दिया है
जनपद में क्या किया है
कितनी थीं योजनाएँ उनका
भी क्या हुआ है
कितना मिला था पैसा और
खर्च हुआ कैसा
एक एक पाई देखो एक हिसाब
लेकर
पाओ अगर गलत तो मुंह पर
लगा दो कालिख
आए हैं ऊंट नीचे पूछो
पहाड़ बनकर
मौका यही है अच्छा फिर से
चुनाव आया
मतदाता बनो सच्चा फिर से
चुनाव आया !
समाप्त
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें