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सोमवार, 28 नवंबर 2011

20वीं सदी का आखिरी महान बुद्धिजीवी



विनोद भारद्वाज



पश्चिम के अनेक बुद्धिजीवी और  संस्कृतिकर्मी 80-90 की उम्र तक सक्रिय रहे हैं, पर मुझे याद नहीं आ रहा है कि किसी ने सौ की उम्र सचमुच पार कर ली हो। अक्सर ऐसी खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि जापान के फलां बुजुर्ग व्यक्ति ने अपना 110वां जन्मदिन मनाया, लेकिन कोई महान नाम सौ के आंकड़े को आसानी से पार नहीं कर पाता है। 



पिछले दिनों महान फ्रांसीसी मानवशास्त्री क्लोद लेवी स्त्रोस का सौ साल की उम्र में निधन इस जादुई आंकड़े को पार करने की खबर भी थी। दरअसल, वह 101वें जन्मदिन के नजदीक ही थे। नवंबर 1908 में ब्रसेल्स (बेल्जियम) के फ्रांसीसी यहूदी परिवार में जन्मे लेवी स्त्रोस को ठीक ही आधुनिक समय का आखिरी महान बुद्धिजीवी कहा गया है। एक मानवशास्त्री ने लेवी स्त्रोस के बारे में कहा है कि वह थे तो सोशल एंथ्रोपॉलजिस्ट, पर उनके भीतर एक कवि की आत्मा थी। 60 और 70 के दशक में स्त्रोस के विचार दुनिया भर के बुद्धिजीवियों में लोकप्रिय थे। फ्रांस में 50 और 60 के दशक में अस्तित्ववादी विचारधारा फैशन में थी। 



जां पॉल सार्त्र और आल्बेयर कामू सरीखे लेखक इस विचारधारा से जुड़े थे, पर लेवी स्त्रोस के विचारों ने संरचनावाद (स्ट्रक्चरलिज्म) को जन्म दिया। लेवी स्त्रोस सार्त्र के विचारों से सहमत नहीं थे। सार्त्र के अस्तित्ववादी दर्शन में यह विचार प्रमुख था कि कोई भी व्यक्ति जो कुछ चाहता है, वह करने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन स्त्रोस का कहना था कि यह स्वतंत्रता अक्सर व्यक्ति के अपने नियंत्रण में नहीं होती। व्यक्ति जो कहता और करता है, उस पर संस्कृति और भाषा के अनेक दबाव होते हैं। आधुनिक जीवन में हमें यह सवाल सताता रहता है कि क्या लोग अपने 'एक्शन' के लिए जिम्मेवार हैं। संरचनावाद के मूल में यह धारणा थी कि किसी चीज को जानने और जांचने के लिए उसे उस सिस्टम में रखना होगा, जो उसे परिभाषित करता है। स्त्रोस के विचारों के सामने आने के बाद फ्रांस में देरिदा, मिशेल फुको सरीखे महान पोस्ट-स्ट्रक्चरलिस्ट विचारक सामने आए। खुद स्त्रोस कहते थे कि मेरी तीन 'मिस्ट्रेसेस' हैं - मार्क्सवाद, मनोविश्लेषण (साइकोएनालिसिस) और जियॉलजी। 



द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस में बुद्धिजीवियों की दुनिया बहुत ताकतवर थी। सार्त्र, कामू, सिमो द बोवार, लेवी स्त्रोस आदि नाम अपने विचारों के अलावा जीवनशैली के कारण भी चर्चा में रहते थे - खासतौर पर अस्तित्ववादी लेखक और विचारक के रूप में। अस्तित्ववादी विचारकों ने लेखकों के समाज के प्रति कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) की बात की थी। हालांकि फ्रांस में इस सवाल पर भी तीखी बहसें हुई थीं कि कमिटमेंट का मतलब बुद्धिजीवियों का अपने पेशे से विश्वासघात भी है। कामू की एक कार दुर्घटना में असमय मृत्यु हो गई थी, पर उनका 'आउटसाइडर' 60 के दशक में अनेक प्रमुख हिंदी लेखकों को भी प्रेरित-आंदोलित करता रहा। सार्त्र को जब साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था तो उन्होंने यह कहकर उसे रिजेक्ट कर दिया था कि मेरे लिए आलू के बोरे और नोबेल पुरस्कार में कोई खास फर्क नहीं है। 



आधुनिक समय के अनेक मानवशास्त्री आदिवासी समाज में लंबे वक्त तक उनके बीच रहकर अध्ययन करते रहे हैं। कइयों ने तो आदिवासी स्त्रियों से विवाह भी कर लिए, पर लेवी स्त्रोस इस तरीके में विश्वास नहीं करते थे। 30 के दशक में उन्होंने ब्राजील के अमेजन के बीहड़ जंगलों में जाकर आदिवासी जीवनशैली, विचारों, समझ आदि का अध्ययन किया था। अमेजन के अद्भुत रेनफॉरेस्ट की यात्रा का आत्मकथा शैली में लेवी स्त्रोस ने 'त्रिस्तेस ट्रॉपिक्स' किताब में ब्यौरा दिया है। इस किताब को 20वीं शताब्दी की महान किताबों में से एक माना जाता है। स्त्रोस की किताब 'द सैवेज माइंड' भी एक बहुचर्चित कृति है, जिसमें आदिवासी समाज के बारे में यह साबित किया गया है कि वह पश्चिम की विकसित संस्कृति से पिछड़ा हुआ नहीं है।

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