प्रख्यात तुर्की उपन्यासकार एवं नोबेल पुरस्कार विजेता ओरहान पामुक का जन्म 1952 ई. में तुर्की में हुआ। उन्होंने अब तक सात उपन्यास लिखे हैं, जिनमें द ह्वाइट कैसल, द ब्लैक बुक, माइ नेम इज रेड, स्नो आदि शामिल हैं। उनका हर उपन्यास अपने कथ्य और शिल्प में एक दूसरे से भिन्न है। तुर्की में वे सबसे अधिक पढ़े जानेवाले लेखक हैं। पामुक पर विलियम फाकनर, वर्जीनिया वुल्फ, नाबोकोव, पू्रस्त, बोर्गेस आदि लेखकों का प्रभाव है। उनका सम्पूर्ण लेखन इम्प्रेशनिस्टिक है जो जबरदस्त सम्मोहन पैदा करता है। यहां हम ओरहान पामुक से एंजेल गुरिया – क्विंटाना द्वारा लिया गया इंटरव्यू प्रकाशित कर रहे हैं, जो ‘पेरिस रिव्यू’ के लिए मई 2004 एवं अप्रैल 2005 में लिया गया। पामुक से क्विंटाना की यह बातचीत दो किस्तों में लंदन की एक होटल में तथा पत्राचार के माध्यम से हुई। इंटरव्यू मूल अंगे्रजी में है, जिसका हिन्दी अनुवाद सुबोध कुमार ने किया है।
मैं प्रायः
हतोत्साहित महसूस करता हूं, क्योंकि
निर्विवाद-निरर्थक प्रश्नों का मैं मूढ़तापूर्ण उत्तर देता हूं। यह दरअसल तुर्की में
उतना ही होता है जितना कि अंग्रेजी में। मैं खराब तुर्की बोलता हूं और अटपटे वाक्य
बुदबुदाता हूं। तुर्की में मेरी पुस्तकों की अपेक्षा मेरे इंटरव्यू के कारण मेरी
ज्यादा आलोचना हुई है। पालेमिसिस्ट्स और स्तंभकार वहां उपन्यास नहीं पढ़ते हैं।
यूरोप और संयुक्त
राज्य अमेरिका में आपकी पुस्तकों का प्रायः जोरदार स्वागत हुआ है मगर तुर्की में
आपकी पुस्तकों का कैसा स्वागत होता है?
अब अच्छे समय बीत
गये हैं। जब मैं अपनी शुरूआती पुस्तकें प्रकाशित करा रहा था, तब लेखकों की
पूर्ववर्ती पीढ़ी समाप्तप्राय थी, चूंकि मैं एक युवा लेखक था
इसलिए मेरा स्वागत हुआ।
जब आप ‘पूर्ववर्ती पीढ़ी’
कहते हैं, तब आपके जेहन में कौन लेखक होते हैं?
वैसे लेखक जो
सामाजिक दायित्व महसूस करते थे, वे लेखक जो महसूस करते थे कि साहित्य
नैतिकता और राजनीति की सेवा करता है। वे निपट यथार्थवादी थे, प्रयोग नहीं करते थे। बहुत से गरीब मुल्कों के लेखकों की तरह वे राष्ट्र
सेवा में अपनी प्रतिभा नष्ट करते थे। मैं उनकी तरह नहीं होना चाहता था। क्योंकि
अपनी युवावस्था में भी मैंने फाकनर, वर्जीनिया वुल्फ,
प्रुस्त को पढ़ा था-मैंने स्टीनबेक और गोर्की के सामाजिक-यथार्थवादी
माडेल की कभी आकांक्षा नहीं की थी। साठवें और सत्तरवें दशक में प्रकाशित साहित्य
पुराना पड़ रहा था। इसीलिए नयी पीढ़ी के एक लेखक के रूप में मेरा स्वागत हुआ। नब्बे
के मध्य के बाद जब मेरी पुस्तकें पर्याप्त संख्या में बिकने लगीं, जिनकी तुर्की में किसी ने कल्पना नहीं की थी, तब
मेरा तुर्की प्रेस और बुद्धिजीवियों के साथ अच्छे दिन खत्म हो गये। तब से मेरी
पुस्तकों के कथ्य के बजाय प्रचार और बिक्री को लेकर अधिकांशतः प्रतिक्रियास्वरूप
आलोचनात्मक स्वागत हुआ। दुर्भाग्यवश, अब मैं अपनी राजनीतिक
टिप्पणियों के लिए कुख्यात हूं जिनमें से अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय साक्षात्कारों से
लिये जाते हैं और कुछ तुर्की राष्ट्रवादी पत्रकारों द्वारा मुझे निर्लज्जतापूर्वक
ज्यादा अतिवादी और राजनीतिक रूप से मूढ़ प्रस्तुत किया जाता है।
अच्छा तो आपकी
लोकप्रियता के प्रति ईष्र्यालु प्रतिक्रिया है?
मेरा पक्का अभिमत
है कि यह एक तरह का मेरी बिक्रियों और राजनैतिक टिप्पणियों के लिए दंड है, मगर मैं लगातार
यह कहना नहीं चाहता, क्योंकि इससे मैं रक्षात्मक प्रतीत होता
हूं। संभव है, मैं सम्पूर्ण तस्वीर को गलत ढंग से चित्रित कर
रहा होऊँ।
आप कहां (किस जगह)
लिखते हैं?
मेरा हमेशा से
मानना है कि जिस जगह आप सोते हैं या जिसे आप अपने पार्टनर (संगी) के साथ शेयर करते
हैं वह लिखने की जगह से भिन्न होनी चाहिये। घरेलू चीजें किसी न किसी तरह कल्पना को
नष्ट कर देती है। वे मेरे अन्दर के राक्षस को मार देती है। घरेलू, रोजमर्रा की
रूटीन दूसरी दुनिया की चाहना पैदा करती है, जिसकी कल्पना को
जांचने-परखने व व्याख्यायित करने की आवश्यकता होती है, कुम्हला
जाती है। इसलिए वर्षों से काम करने के लिए मेरे पास एक दफ्तर या घर से अलग एक
छोटी-सी जगह थी। मेरे पास हमेशा भिन्न फ्लैट्स थे। मगर एक बार जब मेरी पूर्व पत्नी
संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही थी तब मैंने
आधा सत्र उनके साथ बिताया। हमलोग विवाहित छात्रों के एक अपार्टमेंट में रह रहे थे
और हमारे पास कोई जगह नहीं थी, इसीलिए मुझे एक ही जगह सोना
और लिखना पड़ता था। चारो ओर पारिवारिक माहौल था। इसने मुझे अस्त-व्यस्त कर दिया।
मैं सुबह अपनी पत्नी से विदा लिया करता हूं जैसे कोई काम पर जाने के लिए विदा लेता
है। मैं घर छोड़ देता हूं, कुछ ब्लाक्स पैदल चलता हूं,
और उस व्यक्ति की तरह आता हूं जैसे कोई दफ्तर आता है। दस साल पहले
बास्कोरस से ऊपर पुराने शहर के दृश्य को प्रस्तुत करनेवाला मैंने एक फ्लैट लिया।
यह संभवतः इस्तांबुल के सबसे अच्छे दृश्यों में से एक है। यह मेरे घर से पच्चीस
मिनट की पैदल दूरी पर है। यह किताबों से भरा है। मैं वहां रोज अमूमन दस घंटे
बिताता हूं।
प्रतिदिन दस घंटे?
हां, मैं घनघोर परिश्रमी
हूं। मैं इसका आनन्द उठाता हूं। लोग कहते हैं कि मैं महत्वाकांक्षी हूं, और हो सकता है कि उसमें सच्चाई भी हो, मगर मुझे अपने
काम से प्यार है। मैं अपने डेस्क पर बैठने का आनन्द उसी तरह लेता हूं जैसे अपने
खिलौनों से खेलता हुआ कोई बच्चा। यह निश्चय ही काम है, पर यह
ठिठोली है और खेल भी।
‘स्नो’ के कथावाचक का नाम भी ओरहान है और खुद को क्लर्क बतलाता है, जो प्रतिदिन एक निश्चित समय पर बैठता है। क्या लेखन के लिए आप वैसा ही
अनुशासन बरतते हैं?
मैं कवि के बरक्स
उपन्यासकार की लिपिकीय प्रकृति को रेखांकित कर रहा था जिनकी तुर्की में बहुत
प्रतिष्ठा परम्परा है। कवि होना लोकप्रिय और सम्माननीय होने जैसा है। अधिकांश
आटोमन सुल्तान और राजनेता कवि थे। मगर उस रूप में नहीं जैसा आज हमलोग कवियों को
समझते हैं। सैंकड़ों वर्षों से यह खुद को बुद्धिजीवी के रूप में स्थापित करने का एक
जरिया था। इनमें से अधिकांश अपनी कविताओं को पांडुलिपियों में संकलित करते थे
जिन्हें ‘दीवान’
कहा जाता था। दरअसल, आटोमन कोर्ट कविता को ‘दीवान कविता’ कहा जाता है। आधे आटोमन राजनेताओं ने ‘दीवानों’ की रचना की। बहुत से नियमों और
रीति-रिवाजों के साथ यह लेखन का एक परिष्कृत और शिक्षित माध्यम था। बहुत रूढ़ और
बहुत ही आवृतिमूलक। तुर्की में पाश्चात्य विचारों के आने के पश्चात इस रिक्थ
(विरासत) से कवि के एक व्यक्ति के रूप में रोमानी और आधुनिक विचार जुड़ गये जो
सच्चाई के लिए तड़पते हैं। इसने कवि की प्रतिष्ठा को अतिरिक्त बल दिया। दूसरी तरफ,
एक उपन्यासकार मूलतः एक ऐसा व्यक्ति होता है जो चींटी की तरह
आहिस्ता-आहिस्ता अपने धैर्य के साथ दूरी तय करता है। दरअसल, एक
उपन्यासकार अपनी राक्षसी और रोमानी दृष्टि से हमें प्रभावित नहीं करता, बल्कि अपने धैर्य से।
क्या आपने कभी
कविता लिखी है?
मुझसे अक्सर यह
पूछा जाता है। जब मैं अठारह साल का था तब मैंने कविता लिखी और तुर्की में कुछ
कविताएं प्रकाशित करायी, पर
फिर छोड़ दिया। मैंने महसूस किया कि कवि एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसके माध्यम से
ईश्वर बोलता है। आपको कविता से आविष्ट होना पड़ता है। मैंने कविता में हाथ आजमाया,
मगर कुछ समय बाद मैंने महसूस किया कि ईश्वर मुझसे संलाप नहीं कर रहा
है। इससे मैं दुखी हुआ और तब मैंने कल्पना करने की कोशिश की कि यदि ईश्वर से बोल
रहे होते तो वे क्या बोल रहे होते? मैं घोर परिश्रम से
आहिस्ता-आहिस्ता लिखने लगा, और इसे चित्रित करने का प्रयास
करता रहा। वह गद्य लेखन है, कथा लेखन। सो मैंने कलर्क की तरह
काम किया। कुछ दूसरे लेखक इस तरह की अभिव्यक्ति को एक तरह का अपमान समझते हैं।
परन्तु, मैं इसे स्वीकार करता हूं। मैं एक कलर्क की तरह काम
करता हूं।
क्या आप मानते हैं
कि आपके लिए गद्य लेखन समय के साथ सहज हो गया है?
दुर्भाग्यवश
नहीं। कभी-कभी मैं महसूस करता हूं कि मेरे पात्र को कमरे में प्रवेश करना चाहिए और
मैं अभी भी नहीं जानता कि उसे कैसे प्रवेश कराऊँ। मुझमें ज्यादा आत्मविश्वास हो
सकता है, मगर
जो कभी-कभी सहायक नहीं हो सकता है क्योंकि तब आप प्रयोग नहीं कर रहे हैं, आप ठीक वही लिखते हैं जो कलम की नोंक पर आता है। विगत तीस वर्षों से मैं
कथा (उपन्यास) लिख रहा हूं, इसीलिए मुझे समझना चाहिए कि
मैंने थोड़ा विकास किया है और फिर भी कभी-कभी मैं फंस जाता हूं। एक पात्र कमरे में
प्रवेश नहीं कर सकता, और मैं नहीं जानता कि क्या करूँ। तीस
साल बाद। अभी भी! मेरे लिए सोचने का अहम पहलू पुस्तक का अध्यायों में विभाजन है।
उपन्यास लिखते समय यदि मैं सम्पूर्ण कथावस्तु पूर्व से जानता हूं-और अधिकांश समय
मैं जनता हूं-हाँ मैं इसे अध्यायों में विभक्त कर देता हूं और प्रत्येक अध्याय में
मैं क्या लिखूंगा इसके ब्योरों के बारे में सोचता हूं। यह जरूरी नहीं कि मैं पहले
अध्याय से शुरू करूं और सभी अध्यायों को क्रमबद्ध लिखूं। जब मेरा दिमाग अवरूद्ध हो
जाता है और जो मेरे लिए सामान्य है, तब मेरी कल्पना जिस दिशा
में ले जाती है मैं उसी को लिखना जारी रखता हूं। मैं पहले से पांचवें अध्याय तक
लिख सकता हूं, तब यदि मैं इनका आनन्द नहीं उठा पा रहा हूं तो
पन्द्रहवें पर छलांग लगा देता हूं और वहां से लिखना जारी रखता हूं।
क्या आपका यह मतलब
है कि सम्पूर्ण पुस्तक की रूपरेखा आप पहले ही तय कर लेते हैं?
सब कुछ। उदाहरण
के लिए डल छंउम पोत्मक को लिया जा सकता
है। इसमें बहुत पात्र हैं, और
मैंने प्रत्येक पात्र के लिए अध्यायों की कुछ निश्चित संख्या मुकर्रर कर दी थी। तब
मैं इसे लिख रहा था, तब मैं किन्हीं पात्रों में से एक होना
जारी रखना चाहता था। इसीलिए जब मैंने उसके अध्यायों में से एक को लिखना समाप्त
किया, संभवतः अध्याय सात, तब मैंने
ग्यारहवें अध्याय पर छलांग लगायी, जो पुनः उसी का था। मुझे वो
होना पसंद था। एक पात्र से दूसरे पर ‘स्किप’ करना हताशाजनक हो सकता है। मगर आखिरी अध्याय मैं हमेशा अंत में लिखता हूं।
यह तय है कि मैं खुद को सताता हूं, स्वयं से पूछता हूं कि
समापन क्या होना चाहिए। मैं समापन को (आखिरी अध्याय को) सिर्फ एक बार में पूरा कर
सकता हूं। समापन से पूर्व, आखिरी अध्याय की ओर बढ़ते हुए,
मैं ठहरता हूं और शुरू के अध्यायों में से अधिकांश को फिर से लिखता
हूं।
जब आप काम कर रहे
होते हैं तब क्या आपके पास कभी कोई पाठक होता है?
मैं जिसके साथ
अपना जीवन ‘शेयर’
करता हूं उसे हमेशा अपनी रचना सुनाता हूं। मैं हमेशा उस व्यक्ति के
प्रति कृतज्ञ होता हूं। यदि वह कहता है, मुझे और दिखाओ,
या ‘आज तुमने जो लिखा है उसे दिखाओ।’ यह सिर्फ हल्का-सा अनिवार्य दबाव ही नहीं बनाता है, बल्कि
यह माता या पिता के आपकी पीठ थपथपाने जैसा है, ‘बहुत अच्छा।’
ऐसा भी व्यक्ति होता है जो प्रायः कहता है ‘सॉरी,
मैं इसे नहीं खरीदता।’ जो अच्छा है। मैं इस
रस्म को पसंद करता हूं। मुझे हमेशा टामस मान की याद आती है, जो
मेरे ‘रोड मॉडल’ में से एक है। वे
सम्पूर्ण परिवार को, जिनमें छह बच्चे और उनकी पत्नी होतीं,
इकट्ठा कर लिया करते। वे अपने सम्पूर्ण परिवार को पढ़कर सुनाया करते।
मैं इसे पसंद करता हूं कि ‘डैडी’ कहानी
कह रहे हैं।
जब आप युवा थे तब
आप पेंटर बनना चाहते थे। कब पेंटिंग के आपके प्यार ने लेखन के प्यार का रास्ता
प्रशस्त किया?
बाईस साल की उम्र
में। सात साल की उम्र में मैं पेंटर बनना चाहता था और मेरे परिवार ने इसे स्वीकार
कर लिया था। वे सभी सोचते थे कि मैं एक प्रसिद्ध पेंटर बनूंगा। मगर तब मेरे दिमाग
में कुछ घटित हुआ-मैंने महसूस किया कि कोई स्क्रू ढीला है-और मैंने पेंटिंग करनी
बंद कर दी और तुरंत अपना पहला उपन्यास लिखने लगा।
कोई स्क्रू ढीला हो
गया?
ऐसा करने के
कारणों को मैं स्पष्ट नहीं कर सकता। हाल ही मैंने ‘इस्तांबुल’ नाम
की एक पुस्तक प्रकाशित की। इसका आधा हिस्सा आत्मकथा है और शेष आधा इस्तांबुल के
बारे में आलेख या वस्तुतः एक बच्चे का इस्तांबुल के बारे में स्वप्न है- एक बच्चे
की निगाह से देखा गया इस्तांबुल। यह बिंबों और परिदृश्यों और शहर की ‘केमेस्ट्री’ के बारे में सोच का सम्मिश्रण है,
और उस शहर के बारे में बच्चे की अवधारणा और उस बच्चे की आत्मकथा है।
पुस्तक की आखिरी पंक्ति है-‘मैं कलाकार बनना नहीं चाहता।
मैंने कहा-‘मैं लेखक बनना चाहता हूं। और अलबत्ता, इसकी व्याख्या नहीं की जाती है, तथापि सम्पूर्ण
पुस्तक पढ़ने से कुछ स्पष्ट हो सकता है।
क्या इस निर्णय से
आपका परिवार खुश था?
मेरी माँ घबरा
गयी। मेरे पिता किंचित ज्यादा समझदार थे। क्योंकि अपनी युवावस्था में वे कवि बनना
चाहते थे और टंसमतल का तुर्की में अनुवाद भी किया था। मगर जब उच्चवर्गीय समाज ने
जिससे वे आते थे, उनका
मजाक उड़ाया, तब उन्होंने कविता लिखना छोड़ दिया।
आपके परिवार ने
आपका चित्रकार बनना स्वीकार कर लिया, परन्तु उपन्यासकार बनना नहीं?
बिल्कुल, क्योंकि वे
सोचते नहीं थे कि मैं पूर्णकालिक चित्रकार बनूंगा। मेरी पारिवारिक परम्परा सिविल
इंजीनियरिंग की थी। मेरे दादा सिविल इंजीनियर थे, जिन्होंने
रोड के निर्माण से पर्याप्त पैसे कमाये थे। मेरे चाचा और पिता ने पैसे गंवाये,
परन्तु उन सबने उसी इंजीनियरिंग स्कूल, इस्तांबुल
टेक्निकल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। मुझसे उम्मीद की गयी कि मैं वहीं जाऊं और
मैंने कहा-ठीक है, मैं वहीं दाखिला हूंगा। मगर चूंकि परिवार
में मैं कलाकार था, सो विचार था कि मुझे आर्किटेक्ट बनना
चाहिए। यह हर एक के लिए संतोषजनक हल मालूम पड़ता था। इसीलिए मैंने उस विश्वविद्यालय
में दाखिला लिया। परन्तु, आर्किटेक्टचरल स्कूल के मध्य में
मैंने अकस्मात पेंटिंग छोड़ दी और उपन्यास लिखने लगा।
जब आपने छोड़ने का
निर्णय लिया तब क्या आपके दिमाग में आपका पहला उपन्यास था? आपके छोड़ने का
क्या यही कारण है?
जहां तक मुझे
स्मरण है, मैं
उपन्यासकार बनना चाहता था यह जानने से पहले कि मुझे क्या लिखना है। दरअसल, जब मैंने लिखना शुरू किया तब मैंने दो या तीन गलत शुरूआत की। मेरे पास अभी
भी वे नोटबुक हैं। मगर छह महीने के बाद मैंने बृहत उपन्यास शुरू किया जो अंततः Cevdet
Bey and His sons के रूप में प्रकाशित हुआ।
वह अंग्रेजी में
अनुदित नहीं हुआ है।
यह Forsyte saga या Buddenbrooks
की तरह पूर्णतः एक पारिवारिक कथा है। जैसे ही मैंने इसे पूरा किया
कि इतना अनाधुनिक एक 19वीं सदी का उपन्यास लिखने का मुझे
पश्चाताप होने लगा। मुझे इसे लिखने का अफसोस हुआ क्योंकि, 25 या 26 साल के आसपास, मैं स्वयं
इस विचार से संचालित होने लगा कि मुझे आधुनिक लेखक होना चाहिए। जब मैं तीस का था,
तब अंततः उपन्यास प्रकाशित हुआ, तब तक मेरा
लेखन ज्यादा प्रायोगिक हो चुका था।
जब आप यह कहते हैं
कि आप ज्यादा आधुनिक, प्रायोगिक होना चाहते थे, तब क्या आपके दिमाग में कोई मॉडल था?
उस समय टाल्सटाय, दोस्तोएव्स्की,
स्टेंथल या टामस मान मेरे लिए महान लेखक नहीं थे। वर्जीनिया वुल्फ
और फाकनर मेरे हीरो थे। अब उस सूची में मैं प्रूस्त और नाबोकोव को भी शामिल करना
चाहूंगा।
The New Life की
पहली ही पंक्ति है, ‘एक दिन मैंने एक पुस्तक पढ़ी और मेरा
सम्पूर्ण जीवन बदल गया।’ क्या किसी पुस्तक का आप पर इतना
गहरा प्रभाव पड़ा है?
The sound and the Fury मेरे लिए अति महत्वपूर्ण था जब मैं इक्कीस या बाईस साल का था। मैंने
पेंगुइन संस्करण की एक प्रति खरीदी। मेरी खराब अंग्रेजी की वजह से इसे समझना कठिन
था मगर उस पुस्तक का तुर्की में एक अद्भुत अनुवाद छपा था, इसलिए
मैंने तुर्की और अंग्रेजी को मेज पर साथ-साथ रखा और एक का आधा पैराग्राफ पढ़ता और
फिर दूसरे का। उस पुस्तक ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला। उस पुस्तक का स्वर ही
अवशिष्ट संपत्ति था जिसे मैंने विकसित किया। मैं शीघ्र ही उत्तम पुरुष एक वचन में
लिखने लगा। अन्य पुरुष में लिखने की अपेक्षा जब मैं किसी का प्रतिरूप धारण कर लिख
रहा होता हूं तब अधिकांश समय मैं सुखद महसूस करता हूं।
आपका कहना है कि
पहला उपन्यास प्रकाशित कराने में आपको वर्षों लग गये?
20-25 की उम्र
में मेरी कोई साहित्यिक मैत्री नहीं थी। दरअसल इस्तांबुल में मैं किसी साहित्यिक
मंडली से जुड़ा हुआ नहीं था, सो पहली पुस्तक को प्रकाशित
कराने का एक ही रास्ता था कि उसे तुर्की में अप्रकाशित पांडुलिपियों की साहित्यिक
प्रतियोगिता के हवाले कर दिया जाये। मैंने वही किया और पुरस्कार जीता। उसे एक बड़े,
अच्छे प्रकाशक के द्वारा प्रकाशित होना था। उन दिनों तुर्की की
अर्थव्यवस्था भी खराब स्थिति में थी। उनलोगों ने कहा, ठीक है,
हमलोग तुम्हें एक ‘कान्ट्रैक्ट’ देंगे, मगर उन्होंने उपन्यास के प्रकाशन में देरी
की।
क्या आपका दूसरा
उपन्यास अधिक सहजतापूर्वक शीघ्र प्रकाशित हुआ?
दूसरी पुस्तक
राजनीतिक पुस्तक थी। प्रोपगैंडा नहीं। मैं इसे तब से लिख रहा था जब पहली के आने की
प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने उसे लिखने में कोई ढाई साल परिश्रम किया था। अकस्मात्
एक रात सैनिकों ने बलात् तख्ता पलट दिया। यह 1980 में घटित हुआ। अगले ही दिन पहली
पुस्तक ज्ीम ब्मअकमज ठमल के संभावित प्रकाशक ने कहा कि वे इसे प्रकाशित नहीं करने
जा रहे हैं, जबकि हमारे पास अनुबंध था। तब मैंने महसूस किया
कि अपनी दूसरी पुस्तक-राजनीतिक पुस्तक-यदि मैं अभी पूरा भी करूं तो इसे आगे पांच
या छह वर्षों तक प्रकाशित नहीं करा पाऊंगा, क्योंकि सेना
इसकी इजाजत नहीं देगी। इसीलिए मेरे विचार निम्नांकित रूप में आये: बाईस साल की
उम्र में मैंने सोचा कि मैं उपन्यासकार बनने जा रहा हूं और सात वर्षों तक इस
उम्मीद में लिखता रहा कि तुर्की में कुछ प्रकाशित करा पाऊँगा… और कुछ नहीं करा पाया। अब मैं लगभग तीस का हो चला और किसी चीज के प्रकाशित
होने की कोई संभावना नहीं है। मेरे पास अभी भी उस असमाप्य राजनीतिक उपन्यास के ढाई
सौ पृष्ठ मेरे एक ड्रावर में पड़े हैं। सैनिकों के तख्ता पलट के तुरंत बाद मैंने
तीसरी पुस्तक-वह पुस्तक जिसका आपने उल्लेख किया, ज्ीम ैपसमदज
भ्वनेमए शुरू कर दी क्योंकि मैं अवसादग्रस्त नहीं होना चाहता था। यही कारण है कि
मैं 1982 से उस पुस्तक पर काम करता रहा, जब अंततः मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। ब्मअकमज का अच्छा स्वागत हुआ,
जिसका अर्थ था कि मैं उस पुस्तक को प्रकाशित करा पाऊँगा जिसे मैं तब
लिख रहा था। सो मैंने तीसरी किताब लिखी जो प्रकाशित होनेवाली दूसरी थी।
सैन्य शासन में किस
चीज ने आपके उपन्यास को अप्रकाश्य बनाया?
उसके पात्र
उच्चवर्गीय माक्र्सवादी थे। उनके माता और पिता ‘समर’ रिजाट्स
चले जाते हैं, जिससे उनके पास बड़े समृद्ध घर हैं और जहां वे
लोग माक्र्सवादी होने का लुत्फ उठाते हैं वे आपस में झगड़ते हैं और एक-दूसरे से
ईष्र्या करते हैं तथा प्रधानमंत्री को उड़ाने की रूपरेखा तैयार करते हैं।
ढोंगी क्रांतिकारी
मंडलियां?
उच्चवर्गीय
फैशनपरस्त युवक, जिनकी
धनाढ्य लोगों-सी आदतें होती हैं, अति सुधारवादी होने का ढोंग
करते हैं। मगर उस संबंध में मैं कोई नैतिक फैसला नहीं करने जा रहा था, बल्कि मैं एक तरह से अपने युवा होने का आनन्द उठा रहा था। प्रधानमंत्री पर
बम फेंकने का विचार ही पुस्तक को प्रतिबंधित करने के लिए काफी था। इसीलिए मैंने
इसे पूरा नहीं किया। और जब आप किताबें लिखते हैं तब आप परिवर्तित हो जाते हैं। आप
पुनः उस ‘पर्सोना’ को ग्रहण नहीं कर
सकते हैं। पहले की तरह आप जारी नहीं रख सकते। प्रत्येक पुस्तक जो एक लेखक लिखता है,
उसके विकास की अवधि का प्रतिनिधित्व करती है। किसी लेखक के उपन्यास
उनकी चेतना के विकास के मील के पत्थरों में देखे जा सकते हैं। इसीलिए आप वापस नहीं
लौट सकते हैं। यदि एक बार कथा का लचीलापन नष्ट हो जाता है, तो
आप दुबारा उसे आगे नहीं बढ़ा सकते हैं।
जब आप विचार के साथ
प्रयोग कर रहे हैं, तब
आप उपन्यासों की शैली का चयन कैसे करते हैं? क्या आप पहला ही
वाक्य बिंब से शुरू करते हैं?
कोई तयशुदा
फार्मूला नहीं है। मगर मैं अपना नियम बनाता हूं कि दो उपन्यास मुझे एक ही शैली में
नहीं लिखना है। मैं हर चीज बदलने का प्रयास करता हूं। यही कारण है कि मेरे बहुत से
पाठक मुझसे कहते हैं, मैंने
आपके इस उपन्यास को पसंद किया, यह शर्मनाक है कि आपने दूसरे
उपन्यासों को वैसा नहीं लिखा या मैं आपके उपन्यासों में से एक का आनन्द कभी नहीं
उठा पाया जब तक कि आपने अमुक उपन्यास नहीं लिखा-The Black Book के संदर्भ में मुझे यह विशेषकर सुनने को मिला है। वस्तुतः मैं यह सुनना
नापसंद करता हूं। यह मनोरंजन है और चुनौती भी, रूप और शैली
और भाषा और मनोभाव (मनोदशा) और ‘पर्सोना’ के साथ प्रयोग करना, प्रत्येक पुस्तक के बारे में
अलग तरह से सोचना। किसी पुस्तक की विषयवस्तु मेरे पास विभिन्न स्रोतों से आती है।
उदाहरणस्वरूप My Name is Red को लें, मैं
दरअसल पेंटर बनने की अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में लिखना चाहता था। मैंने गलत
ढंग से शुरू किया। मैं एक पेंटर पर केन्द्रित विनिबंधात्मक लिखने लगा। तब मैंने उस
पेंटर को अनेक पेंटरों में परिवर्तित कर दिया जो एक शिल्पकला में काम करते हैं।
दृष्टिकोण बदल गया, क्योंकि अब दूसरे पेंटर थे जो बातें कर
रहे थे। शुरू में मैं समकालीन पेंटर के बारे में लिखने की सोच रहा था, तब मैंने सोचा कि यह तुर्की पेंटर ज्यादा संजात हो सकता है, पश्चिम से ज्यादा प्रभावित, सो लघु चित्रकारों के
बारे में लिखने के लिए मैं अतीत में गया। इस तरह मैंने अपना विषय तलाशा। कुछ विषय
निश्चित फार्मूलाबद्ध खोजों या कहानी कहने के रचना कौशल को अनिवार्य बनाते हैं। कभी-कभी
उदारहणस्वरूप, आपने अभी-अभी कुछ देखा है, या कुछ पढ़ा है या मूवी देखी है, या अखबार का लेख पढ़ा
है और तब आप सोचते हैं मैं टमाटर या कुत्ता या पेड़ को बोलते हुए चित्रित करूंगा,
एक बार जब आप किसी विचार को ग्रहण कर लेते हैं तब आप उपन्यास में
सामंजस्य बिठाने के बारे में सोचना जारी रखते हैं। तब आप महसूस करते हैं कि अद्भुत,
इससे पहले किसी ने ऐसा नहीं किया है।
निष्कर्षतः मैं चीजों के बारे
में वर्षों से सोचता रहता हूं। मेरे पास जब विचार होते हैं तब मैं उन्हें अपने
घनिष्ठ दोस्तों से कहता हूं। मैं संभावित उपन्यासों के लिए बहुत से नोटबुक्स रखता
हूं। कभी-कभी मैं उन्हें नहीं लिखता हूं, परन्तु यदि मैं एक नोटबुक खोलता हूं
और इसके लिए नोट्स लेना शुरू करता हूं तब इसकी संभावना प्रबल हो जाती है कि उस
उपन्यास को लिखूं। इसीलिए जब मैं एक उपन्यास को पूरा कर रहा होता हूं तब मेरा दिल
इन योजनाओं में से एक पर टिक सकता है और एक को पूरा करने के दो महीने बाद ही मैं
दूसरा लिखना शुरू कर देता हूं।
बहुत से उपन्यासकार
जिस रचना पर काम कर रहे होते हैं उस पर कभी चर्चा नहीं करते। क्या आप उसे गोपनीय
बनाये रखते हैं?
मैं कहानी की कभी
चर्चा नहीं करता। औपचारिक अवसरों पर जब लोग पूछते हैं कि मैं क्या लिख रहा हूं तब
मेरे पास एक वाक्य का रटा-रटाया उत्तर होता है। मैं एक उपन्यास लिख रहा हूं जो
वर्तमान तुर्की पर केन्द्रित होगा। मैं बहुत कम लोगों के समक्ष खुलासा करता हूं और
वह भी तब जब मुझे विश्वास होता है कि वे मुझे आघात नहीं पहुंचायेंगे। मैं क्या
करता हूं यह चालाकी भरी युक्तियों में बात की जाती है। परिणामस्वरूप मैं बादल से
बोलवाने जा रहा हूं। मुझे यह देखना अच्छा लगता है कि लोग उन पर कैसी प्रतिक्रिया
व्यक्त करते हैं। जब मैं ‘इस्तांबुल’
लिख रहा था तब मैंने यह बहुत किया। मेरा दिमाग उस नन्हें शरारती
बच्चे की तरह है, जो अपने पिता को यह दिखाने की चेष्टा करता
है कि वह कितना चालाक है।
‘गिमिक’ शब्द नकारात्मक अर्थ देता है।
आप ‘गिमिक’ से शुरू करते हैं, मगर यदि आप इसके साहित्यिक और
नैतिक गांभीर्य में विश्वास करते हैं तो अंत में यह गंभीर साहित्यिक अन्वेषण में
रूपांतरित हो जाता है। यह एक साहित्यिक बयान बन जाता है।
आलोचक प्रायः आपके
उपन्यासों की आलोचना उत्तर-आधुनिक के रूप में करते हैं-यद्यपि मुझे प्रतीत होता है
कि आप अपनी कहानी कहने की कला मूल रूप से पारंपरिक स्रोतों से ग्रहण करते हैं।
उदाहरणस्वरूप आप The Thousand and
One Nights और पूर्वी परम्परा के दूसरे क्लैसिक टेक्सट्स को उद्धृत
करते हैं।
उसकी शुरूआत The Black bookसे हुई। यद्यपि मैं पहले ही बोर्गेस और कैलविनो को पढ़ चुका था। 1985 में अपनी पत्नी के साथ मैं संयुक्त राज्य अमेरिका गया और वहां मेरा सामना अमेरिकी संस्कृति की प्रसिद्धि और समृद्धि से हुई। मध्य पूर्व से आये एक तुर्क के रूप में, जो स्वयं को एक लेखक के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा था। उससे मैंने खुद को अभित्रस्त महसूस किया। इसीलिए मैं लौटा, वापस अपनी ‘जड़ों’ की ओर गया। मैंने अनुभव किया कि मेरी पीढ़ी को आधुनिक राष्ट्रीय साहित्य का संधान करना है।
Borges और Calvino ने मुझे मुक्ति दी। परम्परागत इस्लामिक साहित्य का अर्थ इतना प्रतिक्रियावादी, इतना राजनीतिक था और अनुदारवादियों द्वारा वह इतने पुराने और मूढ़तापूर्ण ढंग से उपयोग में लाया गया था कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं उस सामग्री का कोई उपयोग कर सकूंगा। मगर एक बार जब में संयुक्त राज्य अमेरिका में था, मैंने अनुभव किया कि Calvino या Borges के अंदाज में मैं उस सामग्री तक जा सकता हूं। मुझे इस्लामिक साहित्य के धार्मिक और साहित्यिक अर्थों के बीच एक ठोस विभाजन करते हुए शुरू करना था जिससे कि मैं खेलों, ‘गिमिक्स’ की इसकी संपदा और नीति कथाओं को सहजता से अनुकूल बना सकूं। तुर्की के पास उम्दा किस्म का सजावटी साहित्य की परिष्कृत परम्परा थी। मगर तब सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध लेखकों ने हमारे साहित्य को इसकी नवाचार विषयवस्तु से रिक्त कर दिया था। बहुत सी रूपक कथाएं हैं जो चीन, भारत, परसिया की विभिन्न मौखिक कहानी कहने की परम्पराओं में खुद को दुहराती है। मैंने उन्हें उपयोग में लाने और समकालीन इस्तांबुल में फिट करने का निर्णय किया। यह एक प्रयोग है-Didaist Colleqe की तरह हर चीज को एक साथ रखने का; The Black Book में यह गुण है। कभी-कभी इन सारे स्रोतों को एक साथ मिला दिया जाता है और कुछ नया निकल आता है। इसीलिए इस्तांबुल में मैंने इन सभी पुनर्लिखित कहानियों को सेट किया, एक जासूसी कथानक को जोड़ा, और The Black Book निकल आयी। मगर इसके मूल में अमेरिकी संस्कृति का पूरा सामथ्र्य और मेरी गम्भीर प्रयोगवादी लेखक बनने की चाह थी। मैं तुर्की की समस्याओं के बारे में सामाजिक कमेंट्री नहीं लिख सकता था-मैं उनसे आतंकित था। इसीलिए मुझे कुछ अलग करने का प्रयास करना था।
क्या साहित्य के
जरिये सामाजिक कमेंट्री में कभी आपकी अभिरूचि रही है?
नहीं।
उपन्यासकारों की पूर्ववर्ती पीढ़ी के खासकर अस्सी के दशक में, प्रति मैं
प्रतिक्रिया प्रकट कर रहा था। यह सब मैं पूरे सम्मान के साथ करता हूं, मगर उनकी विषयवस्तु बहुत संकीर्ण और संकुचित थी।
हमलोग The Black Book से
पीछे चलें। The White Castle लिखने की प्रेरणा आपको कहां से
मिली? यह पहली पुस्तक है जहां आप एक कथानक को उपयोग में लाते
हैं जो आपके शेष सभी उपन्यासों में बार-बार घटित होता है-प्रतिरूपन। आप क्यों
सोचते हैं कि किसी भी व्यक्ति का रूप धारण करने का यह विचार आपके उपन्यास में
प्रायः सफलीभूत होगा?
यह नितांत ही
निजी मामला है। मेरा एक घोर प्रतियोगी भाई है जो मुझसे सिर्फ अठारह महीने बड़ा है।
एक तरह से वह मेरा पिता था-दरअसल, मेरा Freudian पिता
कह सकते हैं। यह वही था जो मेरा परिवर्तित ‘अहं’ बना, प्राधिकार का प्रतिनिधित्व। दूसरी तरफ हमलोगों
में प्रतियोगिता भी थी और भाईचारे की मैत्री भी। यह बहुत जटिल संबंध था। मैंने
इस्तांबुल में इस पर विस्तार से लिखा। मैं एक ‘टिपिकल’
तुर्की लड़का था। फुटबाॅल में अच्छा था और सभी तरह के खेलों और
प्रतियोगिताओं के प्रति उत्साही भी था। वह स्कूल मे काफी सफल था। मुझसे तो अच्छा
था ही। मैं उसके प्रति ईष्र्यालु था और वह मेरे प्रति। वह विवेकी और जिम्मेवार
व्यक्ति था, हमारे गुरुजन ऐसा ही संबोधित करते। जब मैं खेलों
पर ध्यान देता, तब वह कायदे-कानूनों पर। हमलोग हर समय
प्रतियोगिता करते रहते। मैं उसके जैसा होने की कल्पना करना। इसने एक माॅडेल को
जन्म दिया। ईष्र्या, द्वेष-ये सब मेरे लिए मर्मस्पर्शी तथ्य
थे। मैं हमेशा चिंतित रहता हूं कि मेरे भाई के सामथ्र्य ने या उसकी सफलता ने मुझे
किस हद तक प्रभावित किया होगा। यह मेरी आत्मा का अभिन्न हिस्सा है। चूंकि मैं उसे
समझता हूं इसलिए मैं उन भावनाओं और अपने बीच दूरी बनाये रखता हूं। मैं जानता हूं
कि वे बुरी चीजें हैं, इसलिए मुझसे एक सभ्य व्यक्ति की उनसे
संघर्ष करने की संकल्प शक्ति है। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं ईष्र्या का शिकार हूं
मगर यह तंत्रिका तंत्रों का सगुफन है जिनसे मैं हर समय निबटने का प्रयास करता हूं
और वस्तुतः अंत में यह मेरी सभी कहानियों की विषयवस्तु बनता है। उदाहरणस्वरूप The
White Castle में, Sadomasochistic संबंध
जो दो मुख्य पात्रों में देखने को मिलता है वह वस्तुतः मेरा मेरे भाई के साथ संबंध
पर आधारित है। दूसरी तरफ प्रतिरूपन का यह तथ्य भुरभुरेपन में प्रतिबिंबित होता है
जिसे तुर्की महसूस करता है तब जब उसका पश्चिमी संस्कृति से सामना हुआ। The
White Castle लिखने के पश्चात मैंने महसूस किया कि ईष्र्या-किसी
दूसरे से प्रभावित होने की चिंता-तुर्की की स्थिति से मेल खाती है जब यह पश्चिम की
ओर देखता है। पश्चिमी होने की आकांक्षा और तब पर्याप्त प्रामाणिक नहीं हो पाने के
दोष का मढ़ा जाना, यूरोप की आत्मा को आत्मसात करने का प्रयास
और तब नक्काल होने का बोध होना, आप इसे समझ सकते हैं। इस
मनोभाव के आरोह-अवरोह प्रतियोगी भाइयों के बीच के संबंध का संस्मरण है।
क्या आपको विश्वास
है कि तुर्की के पूर्वी और पश्चिमी आवेग के बीच का लगातार संघर्ष कभी शांतिपूर्वक
हल हो पायेगा?
मैं आशावादी हूं।
तुर्की को दो आत्माओं के होने को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए, जो दो भिन्न संस्कृतियों
से संबंध रखते हैं, जिनकी दो अलग आत्माएं हैं।
स्कीत्जोफ्रेनिया आपको बुद्धिमान बनाता है। आप यथार्थ से संबंध खो देते हैं-चूंकि
मैं एक रचनाकार हूं, इसीलिए मैं वैसी बुरी चीज नहीं
सोचता-मगर आपको अपने स्कीत्जोफ्रेनिया को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। यदि आप एक
हिस्से को लेकर अत्यधिक चिंतित होते हैं कि दूसरे की हत्या कर रहे है, तब आपके पास सिर्फ एक आत्मा बची रह जायेगी। यह रोग से ज्यादा घातक है। यह
मेरी थ्योरी है। मैं इसे तुर्की राजनीति में तुर्की राजनीतिज्ञों के बीच प्रचारित
करने की चेष्टा करता हूं, जो मांग करते हैं कि तुर्की की एक
स्थिर आत्मा होनी चाहिए-कि यह या तो पूर्वी हो, या पश्चिमी
या राष्ट्रवादी। मैं उस एकात्म दृष्टिकोण के प्रति आलोचनात्मक हूं। मेरा उस एकात्म
दृष्टिकोण के प्रति आलोचनात्मक रूख है।
यह तुर्की में कैसे
स्वीकार किया जाता है?
जितना ज्यादा
लोकतांत्रिक, उदार
तुर्की का विचार स्थापित होता है, उतनी ही ज्यादा मेरी सोच
स्वीकार्य होती है। सिर्फ इसी स्वप्न के साथ तुर्की यूरोपियाई संघ (यूरोपियन
यूनियन) में शामिल हो सकता है। यह राष्ट्रवादिता के विरुद्ध लड़ाई का एक रास्ता है,
यूएस की वाग्मिता का उनके विरुद्ध लड़ाई का एक रास्ता भी।
और फिर भी ‘इस्तांबुल’ में शहर का आप जिस तरह से अतिरंजनापूर्ण वर्णन करते हैं इससे आॅटोमन साम्राज्य के नष्ट होने से आप दुखी मालूम पड़ते हैं।
और फिर भी ‘इस्तांबुल’ में शहर का आप जिस तरह से अतिरंजनापूर्ण वर्णन करते हैं इससे आॅटोमन साम्राज्य के नष्ट होने से आप दुखी मालूम पड़ते हैं।
आटोमन साम्राज्य
के नष्ट होने से मैं दुखी नहीं हूं। मैं पाश्चात्यवादी हूं। मुझे प्रसन्नता है कि
पश्चिमीकरण शुरू हो गया। मैं सिर्फ उस सीमित दायरे का विरोध कर रहा हूं जिस तरह से
शासक वर्ग (एलिट) ने-दोनों नौकरशाही और नवधनाढ्यों ने-पश्चिमीकरण को ग्रहण किया
था। दरअसल राष्ट्रीय संस्कृति, जो अपने प्रतीकों, रीति-रिवाजों
में समृद्ध है, को सृजित करने का उनमें आत्मविश्वास का अभाव
दिखा। उन्होंने इस्तांबुल संस्कृति को विकसित करने का प्रयास नहीं किया, जो पूर्व और पश्चिम का संश्लेषण होती, उन्होंने
पश्चिमी और पूर्वी चीजों को सिर्फ एक साथ रख दिया। वस्तुतः एक समृद्ध स्थानीय
आॅटोमन संस्कृति थी। परन्तु जो आहिस्ता-आहिस्ता लुप्त हो रही थी। जो उन्हें करना
था, और जो संभवतः वे नहीं कर सके वह था स्थानीय समृद्ध
संस्कृति की खोज, जो प्राचीन पूर्व और वर्तमान पश्चिम का
सम्मिलन होती-नकल नहीं। मैं अपनी पुस्तकों में यही (इसी तरह की चीज) करने की कोशिश
करता हूं। संभवतः नयी पीढ़ियां यह करेंगी, और यूरोपियाई संघ
में प्रवेश का अर्थ तुर्की पहचान को समाप्त करना नहीं होगा। बल्कि इसे पल्लवित
करना होगा और हमें अधिक आजादी और आत्मविश्वास देना होगा कि हम एक नयी तुर्की
संस्कृति का अन्वेषण कर सकें। पश्चिम का अंधानुकरण और या पुरानी मृत आॅटोमन संस्कृति
की अंधी नकल (समस्या का) हल नहीं है। आपको इन चीजों के सहारे कुछ करना है और उनमें
से किसी एक को लेकर अत्यधिक चिंता नहीं करनी चाहिए।
फिर भी ‘इस्तांबुल’
में आप विदेशी नजर की अपने शहर पर शिनाख्त करते प्रतीत होते हैं।
मगर मैं इसकी भी
व्याख्या करता हूं कि क्यों एक पश्चिमी सोच में ढला तुर्की बुद्धिजीवी पाश्चात्य
दृष्टिकोण से तादात्मय स्थापित कर सकता है-दरअसल तुर्की का निर्माण पश्चिम के साथ
एकीकरण का एक सिलसिला है। यह द्विभाजन हमेशा मौजूद है और पूर्वी आक्रोश को भी आप
आसानी से पहचान सकते हैं। हर व्यक्ति कभी-कभी पश्चिमी और कभी-कभी पूर्वी वस्तुतः
दोनों का स्थायी समुच्चय है। मैं एडवर्ड साईद के Orientalism के विचार को पसंद करता हूं,
पर चूंकि तुर्की कभी कालोनी रहा नहीं, इसलिए
तुर्की से रोमानीपन तुर्कों के लिए कभी समस्या नहीं रहा। पश्चिमी ने तुर्कों को उस
तरह अपमानित नहीं किया जिस तरह अरबों और भारतीयों को। इस्तांबुल सिर्फ दो वर्षों
के लिए पराजित हुआ और शत्रुओं की नौकाएं उसी तरह पड़ी मिली जिस तरह वे आयी, इसीलिए देश की आत्मा पर इसने कोई गहरा धब्बा नहीं छोड़ा। असल में, आटोमन साम्राज्य का नष्ट होना गहरा आघात था, मगर
मुझे दुख नहीं है। मुझमें यह भावना नहीं है कि पश्चिमी लोग मुझे अपमानजनक नजर से
देखते हैं। यद्यपि लोकतंत्र की स्थापना के बाद एक किस्म की आशंका थी क्योंकि
तुर्की पश्चिमी होना चाहते थे मगर वे बहुत दूर तक जा नहीं सके, जिसने सांस्कृतिक हीनग्रंथि की भावना पैदा की जिसका हमें उल्लेख करना पड़ता
है और जिसे मैं प्रायः करता हूं। दूसरी तरफ, धब्बे दूसरे
देशों की तरह गहरे नहीं थे। जो दो सौ वर्षों तक गुलाम रहे। तुर्क पश्चिमी शक्तियों
द्वारा कभी रौंदे नहीं गये। तुर्कों ने जो दमन झेला वह स्वयं द्वारा आरोपित था।
हमलोगों ने अपने इतिहास को मिटा दिया क्योंकि यह व्यावहारिक था। उस दमन में एक
भुरभुरापन का भाव है। मगर स्वयं द्वारा तुर्की के पश्चिमीकरण ने विलगाव को भी जन्म
दिया। भारतीयों ने अपने दमनकारियों को आमने-सामने देखा। तुर्क अजीब तरह से
पाश्चात्य दुनिया से अलग किये गये। जबकि वे उनसे प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। यहां तक
कि 1950 और 1060 के दशकों में अब कोई
विदेशी इस्तांबुल हिल्टन पर ठहरने के लिए आते थे तब यह सभी अखबारों की खबर हुआ
करता था।
क्या आप समझते हैं
कि एक धर्मग्रंथ-संग्रह हो या उसका भी अस्तित्व होना चाहिए? हमने पश्चिमी
धर्मग्रंथ-संग्रह के बारे में सुना है; मगर गैर-पश्चिमी
धर्मग्रंथ-संग्रह के बारे में आपकी क्या राय है?
हां, दूसरा
धर्मग्रंथ-संग्रह है। इसकी खोज की जानी चाहिए, इसे विकसित
किया जाना चाहिए, शेयर किया जाना चाहिए, इसकी समालोचना की जानी चाहिए और तब इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। फिलवक्त
तथाकथित पूर्वी धर्मग्रंथ-संग्रह नष्टप्राय है। महान धर्मग्रंथ सभी जगह हैं मगर
उन्हें एक जगह संकलित करने की इच्छाशक्ति का अभाव है। फारसी क्लैसिक्स से लेकर
भारतीय, चीनी और जापानी टेक्ट्स है। इनका आलोचनात्मक ढंग से
मूल्यांकन किया जाना चाहिए। फिलहाल ये विदेशी विद्वानों के हाथों में है। वहीं
वितरण और संचार का केन्द्र है।
उपन्यास नितांत ही
पश्चिमी सांस्कृतिक विधा है। क्या पूर्वी परम्परा में भी इसकी कोई जगह है?
आधुनिक उपन्यास, महाकाव्य से
भिन्न, नितांत ही गैर-पूर्वी विधा है। क्योंकि उपन्यासकार एक
ऐसा व्यक्ति होता है जिसका सरोकार किसी समुदाय से नहीं होता, जो समुदाय की बुनियादी प्रवृतियों को ‘शेयर’ नहीं करता, और जो भिन्न संस्कृति के साथ सोचता और
न्याय करता है बनिस्बत उसके जिसका वह रोजमर्रा के जीवन में अनुभव प्राप्त करता है।
यदि एक बार उसकी चेतना जिस समूह का वह हिस्सा होता है उससे भिन्न होती है तो वह
बाहरी व्यक्ति हो जाता है, निपट अकेला। उसके टेक्सट की
समृद्धि बाह्य व्यक्ति की voyeuristic दृष्टि से आती है। एक
बार जब दुनिया को उस तरह से देखने की आदत पड़ जाती है और उसके बारे में इस विधा में
लिखने लगते हैं, तब आपकी आकांक्षा समुदाय से विगलित होने की
होती है। यही वह माॅडल है जिसके बारे में मैं Snow में सोचता
रहा।
Snow आपकी अब तक
की प्रकाशित कृतियों में सबसे ज्यादा राजनीतिक है। आपने इसे कैसे ग्रहण किया?
1990 के मध्य में
जब मुझे प्रसिद्धि मिलने लगी, उन्हीं दिनों तब कुर्दिश
गुरिल्लाओं के विरुद्ध युद्ध जोरों पर था, तब पुराने वाम
लेखकों और नये आधुनिक उदारवादी चाहते थे कि मैं उनकी मदद करूं और आवेदनों पर
हस्ताक्षर करूं-दरअसल वे मेरी पुस्तकों से भिन्न मुझसे राजनीतिक काम करने को कहने
लगे।
शीघ्र ही सत्ता (तंत्र) ने चारित्रिक हनन का अभियान चलाकर ‘काउंटर अटैक’ किया। वे लोग मुझे विभिन्न नामों से बुलाने लगे। मुझे बहुत गुस्सा आया। क्षण भर बाद आश्चर्य में पड़ गया, कितना अच्छा होता यदि मैं एक राजनीतिक उपन्यास लिखता जिससे मैं अपने निजी आध्यात्मिक संभ्रमो का अन्वेषण करता-एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार से आया हुआ और उनलोगों के प्रति जिम्मेवारी का भाव जिनका राजनतिक प्रतिनिधित्व नहीं हो? मैं उपन्यास की कला में विश्वास करता था। यह कितना अजीब है कि वह आपको बाहरी व्यक्ति बना देता है। तब मैंने खुद से कहा, मैं राजनीतिक उपन्यास लिखूंगा। My Name is Red को पूरा करते ही मैंने इसे लिखना शुरू कर दिया।
शीघ्र ही सत्ता (तंत्र) ने चारित्रिक हनन का अभियान चलाकर ‘काउंटर अटैक’ किया। वे लोग मुझे विभिन्न नामों से बुलाने लगे। मुझे बहुत गुस्सा आया। क्षण भर बाद आश्चर्य में पड़ गया, कितना अच्छा होता यदि मैं एक राजनीतिक उपन्यास लिखता जिससे मैं अपने निजी आध्यात्मिक संभ्रमो का अन्वेषण करता-एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार से आया हुआ और उनलोगों के प्रति जिम्मेवारी का भाव जिनका राजनतिक प्रतिनिधित्व नहीं हो? मैं उपन्यास की कला में विश्वास करता था। यह कितना अजीब है कि वह आपको बाहरी व्यक्ति बना देता है। तब मैंने खुद से कहा, मैं राजनीतिक उपन्यास लिखूंगा। My Name is Red को पूरा करते ही मैंने इसे लिखना शुरू कर दिया।
आपने इसे कार्स
जैसे छोटे शहरों में क्यों चित्रित किया?
यह तुर्की के
सबसे बड़े सर्द शहरों में है और सबसे गरीब भी। आठवें दशक के शुरू में बड़े अखबारों
में से एक का सम्पूर्ण मुख पृष्ठ कार्स की गरीबी से रंगा था। किसी ने आकलन किया था
कि आप पूरे शहर को लगभग एक मिलियन डालर में खरीद सकते हैं। राजनीतिक स्थिति भी
विकट थी जब मैंने वहां जाने का निर्णय किया। शहर का आस-पड़ोस कुर्दों से भरा है, मगर केन्द्र
में कुर्द, अजरबैजानी, तुर्क और सभी
तरह के लोगों का जमघट है। वहां रूसी और जर्मन भी मिल जायेंगे। वहां शिया और सुन्नी
के धार्मिक विभेद भी हैं। कुर्दिश गुरिल्लाओं के खिलाफ लड़ाई इतनी भयावह थी कि एक
सैलानी के रूप में वहां जाना असंभव था। मैं जानता था कि मैं वहां एक उपन्यासकार के
रूप में सामान्यतया नहीं जा सकता, इसीलिए मैंने अखबार के एक
संपादक से उस क्षेत्र में जाने के लिए ‘प्रेस पास’ के लिए कहा जिनके मैं सम्पर्क में था। वे काफी प्रभावशाली हैं, सो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शहर के मेयर और पुलिस प्रधान को बुलाया और
उन्हें बतलाया कि मैं आ रहा हूं। वहां पहुंचते ही मैं मेयर से मिला और पुलिस
प्रधान से हाथ मिलाया जिससे कि पुलिस मुझे गली से उठा न ले। दरअसल, कुछ पुलिसवाले जो नहीं जानते थे कि मैं वहां हूं, मुझे
उठा लेते और ले जाते, संभवतः मुझे पीड़ा पहुंचाने के उद्देश्य
से। तुरंत ही मैं मेयर का, पुलिस प्रधान का नाम लेता कि मैं
उन्हें जानता हूं…. मैं वस्तुतः उनके लिए एक संदिग्ध व्यक्ति
था। हालांकि सैद्धांतिक रूप से तुर्की एक आजाद मुल्क है, मगर
लगभग 1999 तक विदेशी संदेह की नजर से देखे जाते थे। उम्मीद
है कि स्थितियां आज ज्यादा सहज है।
पुस्तक में वर्णित अधिकांश लोग
और स्थान वास्तविक है। उदाहरण के लिए स्थानीय समाचार-पत्र, जिसकी 252
प्रतियां बिकती है, वास्तविक है। मैं कार्स
कैमरा और वीडियो रिकार्डर के साथ गया था। मैं हर चीज का फिल्मांकन कर रहा था और तब
वापस इस्तांबुल जाता और इसे अपने दोस्तों को दिखलाता। हर कोई सोचता कि मैं थोड़ा
खिसक गया हूं। दूसरी बहुत-सी चीजें थीं जो वस्तुतः घटित हुई। मसलन लघु समाचार पत्र
के सम्पादक और ‘का’ का वार्तालाप,
जिसका मैं वर्णन करता हूं। सम्पादक ‘का’
से कहते हैं कि पिछले दिन उसने क्या किया, इस
पर ‘का’ पूछता है कि उन्हें कैसे मालूम
पड़ा, और वह रहस्योद्घाटन करते हैं कि वह पुलिस की
वाकी-टाकियां सुनता रहा है और पुलिस लगातार ‘का’ का पीछा करती रही है। वह सच है और वे लोग मेरा भी पीछा कर रहे हैं।
स्थानीय ‘एंकर’ मुझे टीवी पर ले गये और
कहा, हमारे प्रसिद्ध लेखक राष्ट्रीय समाचार-पत्र के लिए एक
आलेख लिख रहे हैं-वह एक महत्वपूर्ण चीज थी। नगरपालिका के चुनाव नजदीक थे, इसलिए कार्स के लोगों ने मेरा जोरदार स्वागत किया। वे सभी राष्ट्रीय
समाचार पत्र से कुछ कहना चाहते थे, कि सरकार को मालूम होना
चाहिए कि वे कितने गरीब हैं। वे नहीं जानते थे कि मैं यह सब एक उपन्यास में शामिल
करने जा रहा हूं। वे सोचते थे कि मैं उन्हें एक आर्टिकल में शामिल करने जा रहा
हूं। मुझे स्वीकार करना चाहिए, यह सनक थी और मेरी निर्ममता
भी। चार साल बीत गये। मैं वहां इधर-उधर घूमता-भटकता रहा। वहां कॉफी की एक छोटी-सी
दुकान थी जहां मैं अक्सर लिखता और कुछ नोट किया करता। मेरा एक फोटोग्राफर दोस्त है
जिसे मैंने साथ चलने का आग्रह किया था-क्योंकि जब बर्फ गिरती है तब कार्स एक
सुन्दर स्थल होता है, उसने उस छोटी-सी काॅफी दुकान में संयोग
से लोगों की गुप्त बातचीत सुनी। जब मैं कुछ नोट कर रहा था, तब
वे लोग आपस में बातचीत कर रहे थे और कह रहे थे कि वह किस तरह की आर्टिकल लिख रहा
है? तीन साल हो गये हैं। एक उपन्यास लिखने के लिए इतना समय
पर्याप्त है। उन्होंने मुझे पकड़ लिया था।
पुस्तक के बारे में
कैसी प्रतिक्रिया थी?
तुर्की में
अनुदारवादी-राजनीतिक इस्लामवादी और धर्मनिरपेक्षतावादी दोनों अस्त-व्यस्त हो गये।
इसलिए नहीं कि वे पुस्तक को प्रतिबंधित करना चाहते थे या मुझे आघात पहुंचाना चाहते
थे, मगर
वे लोग परेशान थे और उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रों में इस बाबत लिखा।
धर्मनिरपेक्षतावादी घबरा गये क्योंकि मैंने लिखा कि तुर्की में उग्र सुधारवादी
धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ है कि आपको लोकतांत्रिक भी होना पड़ेगा। मगर तुर्की ने
धर्मनिरपेक्षतावादियों की शक्ति सेना से आती है, जो तुर्की
के लोकतंत्र और उदारता की संस्कृति को विनष्ट करती है। यदि एक बार आपकी राजनीतिक
संस्कृति में इतनी ज्यादा संलिप्तता हो जाती है, तो लोग अपना
आत्मविश्वास खो देते हैं और वे सभी समस्याओं के समाधान के लिए सेना पर निर्भर हो
जाते हैं। लोग प्रायः कहते हैं, देश और अर्थव्यवस्था गडमड हो
गये हैं। इसकी सफाई के लिए हमें सेना को बुलाना चाहिए। मगर जैसे ही उन्होंने सफाई
की, उसके साथ ही उन्होंने उदारता की संस्कृति को भी नष्ट कर
दिया। बहुत-से संदिग्धों को यंत्रणा दी गयी, हजारों की तादाद
में लोग जेल भेजे गये। यह नए सैन्य शासन का रास्ता प्रशस्त करता है। लगभग हर दस
वर्षों में एक बार सैनिकों द्वारा तख्तापलट होता था। इसीलिए मैं
धर्मनिरपेक्षतावादियों के प्रति आलोचनात्मक था। उन्हें इस्लामपरस्तों को मनुष्य के
रूप में चित्रित करना भी नागवार गुजरा। राजनीतिक इस्लामपरस्त अस्त-व्यस्त थे।
क्योंकि मैंने एक इस्लामवादी को विवाह से पूर्व यौन संबंध का आनन्द लेते हुए
चित्रित किया। यह कितनी सामान्य बात थी। इस्लामापरस्त हमेशा मेरे प्रति शंकालु थे
क्योंकि मैं उनकी संस्कृति से नहीं आता हूं और चूंकि मेरी भाषा, मेरे व्यवहार और यहां तक कि मेरे पाश्चात्य हावभाव विशेष सुविधाप्राप्त
व्यक्ति के हैं। उनके पास प्रतिनिधित्व की अपनी समस्याएं हैं और कहते हैं, वे हमारे बारे में कैसे लिख सकते हैं? वे नहीं समझते
हैं। उपन्यास के कई हिस्सों में मैंने इसे भी शामिल किया। उन सबने मेरी किताब पढ़ी।
वे क्रोधित हुए होंगे, परन्तु यह बढ़ते हुए उदारतावादी
दृष्टिकोणों का प्रतीक है। उन्होंने मुझे और मेरी पुस्तक को उसी रूप में स्वीकार
किया जैसे वे हैं। कार्स के लोगों की प्रतिक्रिया भी विभाजित थी। कुछ ने कहा,
हां, वह ऐसा ही है। आरमेनियनों की चर्चा से
दूसरे, प्रायः तुर्की राष्ट्रवादी, घबराये
हुए थे। उदाहरणस्वरूप, उस टीवी एंकर ने मेरी पुस्तक को एक
काले बैग में रखा और उसे मेरे पास डाक से भेज दिया और एक संवाददाता सम्मेलन में
कहा कि मैं आरमेनियन का प्रचार कर रहा हूं-जो निहायत अनर्गल है-हमारी एक ऐसी
संकीर्ण, राष्ट्रवादी संस्कृति है।
क्या (सलमान)
रूश्दी की पुस्तकों की तरह कभी इस पुस्तक को प्रसिद्धि मिली?
नहीं, बिल्कुल नहीं।
यह आतंकित कर देने
की हद तक ठंडी व निराशाजनक पुस्तक है। सम्पूर्ण उपन्यास में सिर्फ एक ही व्यक्ति, जो सबों की
सुनता है-‘का’-अंत में, हर एक के द्वारा तिरस्कृत होता है।
तुर्की में एक
उपन्यासकार के रूप में मैं अपनी अवस्थिति नाटकीय बनाता रह सकता हूं। हालांकि, वह जानता है कि
वह तिरस्कृत होता है, मगर हर एक से संवाद कायम कर वह आनंदित
होता है। उसमें सघन उत्तरजीविता है। ‘का’ उपेक्षित होता है क्योंकि वे उसे पश्चिमी जासूस समझते हैं। यह वस्तुतः कुछ
वैसा ही है जैसा अनेकों बार मेरे बारे में कहा गया है। जहां तक उपन्यास के ठंडेपन
की बात है तो मैं उससे सहमत हूं। मगर उससे निकलने का रास्ता हास्य-विनोद है। जब
लोग मुझे कहते हैं कि यह रूखा है, तब मैं उनसे पूछता हूं,
क्या यह मजाकिया नहीं है? मैं समझता हूं कि
इसमें ढेर सारा हास्य-विनोद है। कम से कम मेरा अभिप्राय वही था।
उपन्यास के प्रति
आपकी प्रतिबद्धता ने आपको कठिनाई में डाला है। ऐसी संभावना है कि आगे भी यह
मुश्किल में डालेगा। इसका अर्थ भावात्मक रिश्तों का टूटना है। दरअसल यह बहुत बड़ी
कीमत है।
हां, मगर यह अद्भुत
है। जब मैं यात्रा नहीं करता हूं और अपनी मेज पर अकेला नहीं होता हूं, क्षण भर बाद मैं अवसादग्रस्त हो जाता हूं। जब मैं कमरे में अकेला होता हूं
और अन्वेषण कर रहा होता हूं तब मैं प्रसन्न रहता हूं। कला या शिल्प के प्रति
प्रतिबद्धता से ज्यादा जिसके प्रति मैं समर्पित हूं, कमरे
में अकेला होने के प्रति प्रतिबद्ध होना है। मैं इस अनुष्ठान को जारी रखता हूं इस
विश्वास के साथ कि मैं अभी जो कर रहा हूं वह एक दिन प्रकाशित होगा। यह दरअसल अपने
दिवास्वप्न को वैध ठहराना है। असल में, अच्छे कागज और
फाउन्टेनपेन के साथ मेज पर मुझे अकेलापन की आवश्यकता होती है जैसे कुछ लोगों को
स्वास्थ्य के लिए टिकिया की। मैं इन अनुष्ठानों के प्रति प्रतिबद्ध हूं।
तब, आप किसके लिए
लिख रहे हैं?
जीवन जैसे-जैसे
छोटा होता जाता है, आप
स्वयं से कई सवाल प्रायः करते हैं। मैंने सात उपन्यास लिखे हैं। मृत्यु से पूर्व
में सात उपन्यास और लिखना पसंद करूंगा। मगर तब जीवन छोटा है। इससे ज्यादा आनंदित
करने का क्या अर्थ है। कभी-कभी मुझे स्वयं को ज्यादा विवश करना पड़ता है। मैं यह
नहीं कर रहा हूं? इन सबका क्या अर्थ है? पहला, जैसा कि मैंने कहा-कमरे में अकेला होना एक
प्रवृत्ति है। दूसरा, मुझमें लगभग एक बच्चों जैसे
प्रतियोगिता चलती रहती है जो पुनः एक अच्छी पुस्तक लिखने का प्रयास करती है। दो सौ
साल पहले लिखी गयी बहुत कम पुस्तकों को हमलोग पढ़ते हैं। चीजें इतनी तेजी से बदल
रही है कि आज की किताबें संभवतः एक सौ साल में भुला दी जायेंगी। बहुत कम पढ़ी
जायेंगी। संभवतः आज लिखी गयी पांच किताबें ही दो सौ सालों तक जीवित रह पायेंगी।
क्या मैं आश्वस्त हूं कि मैं उनमें से एक लिख रहा हूं? मगर
क्या लेखन का वही अर्थ है? दो सौ साल बाद पढ़े जाने के बारे
में मुझे क्यों चिन्ता होनी चाहिए? क्या मुझे अधिक दिनों तक
जीवित रहने के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए? क्या मुझे
सांत्वना की आवश्यकता है कि मैं भविष्य में पढ़ा जाउंगा। मैं दरअसल इन सारी चीजों के
बारे में सोचता हूं और लिखना जारी रखता हूं। मैं नहीं जानता कि क्यों। मगर मैं छोड़
नहीं सकता। यह विश्वास कि आपकी पुस्तकों का भविष्य में प्रभाव पड़ेगा सिर्फ यही
सांत्वना है जो आपको इस जीवन में सुख देती है।
तुर्की में आप ‘बेस्ट-सेलिंग’
लेखक (सबसे ज्यादा बिकनेवाले लेखक) हैं, मगर
तुर्की के मुकाबले विदेशों में आपकी किताबें ज्यादा बिकती हैं। आपकी पुस्तकें
चालीस भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं। क्या अब आप जब लिखते हैं तब व्यापक वैश्विक
पाठक वर्ग के बारे में सोचते हैं? क्या अब आप भिन्न पाठक के
लिए लिखते हैं?
मुझे पता है कि
मेरा पाठक सिर्फ राष्ट्रीय ही नहीं है। परन्तु, जब मैंने लिखना शुरू किया, तब भी मैं पाठकों के एक बड़े वर्ग तक पहुंचता रहा। मेरे पिता अपने कुछ
तुर्की दोस्तों के पीठ पीछे कहा करते थे कि वे लोग ‘सिर्फ
राष्ट्रीय पाठक को संबोधित कर रहे हैं।’ किसी का अपने पाठक
के बारे में जानना कि वह राष्ट्रीय है या अंतर्राष्ट्रीय एक समस्या है। अब मैं इस
समस्या की अनदेखी नहीं कर सकता। मेरी आखिरी दो किताबों के पाठक पूरी दुनिया में
औसतन पचास लाख से ज्यादा हैं। मैं उनके अस्तित्व को नकार नहीं सकता। मगर मैं
उन्हें संतुष्ट करने के लिए कभी नहीं लिखता। मुझे विश्वास है कि मेरे पाठकों को
इसकी समझ है। आरंभ से मैंने अपना कर्तव्य बना लिया है कि जब कभी मुझे पाठक की
आकांक्षाओं का बोध होगा मैं लिखना छोड़ दूंगा। यहां तक कि मेरे वाक्य-विन्यास,
जिन्हें मैं पाठक के लिए कुछ नया करने के लिए तैयार करता हूं और तब
मैं उसे चकित करता हूं। संभवतः यही कारण है कि मैं लम्बे-लंबे वाक्य पसंद करता
हूं।
अधिकांश गैर तुर्की
पाठकों के लिए, आपके
लेखन (की मौलिकता) को अपने तुर्की परिदृश्य में बहुत कुछ करना पड़ा है। मगर आप अपनी
कृति को तुर्की संदर्भ में कैसे अलग करेंगे?
एक समस्या है
जिसे Harold
bloom ने ‘प्रभाव की चिंता’ कहा। जब मैं युवा था, तब अन्य लेखकों की तरह यह
समस्या मेरे लिए भी थी। अपने तीसवें साल के शुरू में मैं लगातार सोचता रहा कि मुझे
टाल्स्टाय या टामस मान से अत्यधिक प्रभावित होना चाहिए-मैंने अपने पहले उपन्यास के
लिए भद्र, अभिजातवर्गी गद्य लिखने का निर्णय किया। यद्यपि
मैं अपने शिल्प में मौलिक नहीं हो सकता था, यूरोप से इतनी
दूर दुनिया के इस हिस्से में मैं यह काम कर रहा था-या कम से कम उस समय ऐसा प्रतीत
हुआ-और एक भिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक माहौल में मैं एक भिन्न पाठक वर्ग को
आकर्षित कर रहा था। यह मुझे मौलिकता प्रदान करेगा, यद्यपि यह
सस्ते में अर्जित था। मगर यह कठिन काम है, चूंकि ऐसे शिल्प
अनुदित नहीं होते हैं या आसानी से सफर नहीं करते हैं। मौलिकता का फार्मूला बहुत
सामान्य है-दो चीजों को एक साथ मिला दीजिए या रख दीजिए जो पहले एक साथ नहीं थी। ‘इस्तांबुल’ को देखिये, जो शहर
के बारे में एक लेख है और यह भी है कि किस तरह कुछ विदेशी लेखकों ने-Flaubert, Nerval, Gautier ने- शहर को
देखा-परखा और तुर्की लेखकों के एक गु्रप को उनके विचारों ने प्रभावित किया। इस लेख
के साथ इस्तांबुल के रोमानी लैंडस्केप की खोज से वह आत्मकथा बन गया। इससे पहले
किसी ने यह नहीं किया था। आप जोखिम उठायें और आप कुछ नयी चीज लेकर आयेंगे। मैंने ‘इस्तांबुल’ को एक मौलिक पुस्तक बनाने की चेष्टा की।
मैं नहीं जनता कि क्या यह सफल होता है। The black book भी
वैसी ही थी।
‘इस्तांबुल’
से ऐसा प्रतीत होता है कि आप हमेशा एकाकी रहें। आधुनिक तुर्की में
एक लेखक के रूप में आप निश्चय ही अकेले हैं। आप पले-बढ़ें और एक ऐसी दुनिया में
रहना जारी रखते हैं जिससे आप पृथक हैं।
यद्यपि मेरा
पालन-पोषण एक बड़े परिवार में हुआ और मुझे समाज की सेवा करना सिखाया गया, बाद में मैंने
पृथक होने की मानसिक प्रेरणा ग्रहण की। मुझमें स्वयं को विनष्ट करने का एक पक्ष
विन्यस्त हैं? और उन्माद के क्षणों में और क्रोध के पलों में
मैं कुछ ऐसा करता हूं जो मुझे समुदाय की सुखद संगति से अलग कर देते हैं। जीवन के
प्रारंभिक दौर में मैंने महसूस किया कि समुदाय मेरी कल्पना को विनष्ट करता है।
कल्पना को पल्लवित करने के लिए मुझे अकेलेपन की पीड़ा की आवश्यकता है और तब मैं
प्रसन्न होता हूं। मगर एक तुर्क होने के नाते, क्षण भर बाद
मुझे समाज की सांत्वनाभरी कोमलता की आवश्यकता होती है, जिसे
मैं नष्ट कर चुका होता हूं। ‘इस्तांबुल’ ने मेरी मां के साथ मेरे संबंध को समाप्त कर दिया। अब हमलोग एक दूसरे से
बिल्कुल नहीं मिलते हैं और मुश्किल से ही मैं अपने भाई से मिलता हूं। मेरी हाल की
टिप्पणियों की वजह से तुर्की लोगों के साथ मेरा संबंध भी कठिन है।
तब आप (स्वयं को)
कैसा तुर्की होना पसंद करते हैं?
पहला, मैं एक पैदाईशी
तुर्क हूं। मैं इससे प्रसन्न हूं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मैं तुर्की के रूप में
ज्यादा लिया जाता हूं जितना कि मैं वस्तुतः स्वयं को पाता हूं। जब प्रूस्त प्यार
के बारे में लिखते हैं, तब वे इस रूप में लिए जाते हैं जैसे
कोई वैश्विक प्यार के बारे में बात कर रहा हो। खासकर, शुरूआती
दौर में जब मैंने प्यार के बारे में लिखा, लोग कहते होंगे कि
मैं तुर्की प्यार के बारे में लिख रहा हूं। जब मेरी रचना अनुदित होने लगी, तब तुर्क इससे गौरवान्वित होंते। वे लोग मुझे अपना होने का दावा करते। मैं
उनके लिए ज्यादा तुर्क था। एक बार जब आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो जाते
हैं, आपका तुर्कीपन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित किया
जाता है, तब आपका तुर्कीपन तुर्कों द्वारा स्वयं चित्रित
किया जाता है, जो आपको वापस मांगते हैं। आपका राष्ट्रीय
पहचान का बोध कुछ ऐसी शक्ल अख्तियार करता है जिसका दूसरे लोग बेजा इस्तेमाल करते
हैं। यह दरअसल दूसरे लोगों द्वारा लादा जाता है। अब वे लोग मेरी कला की अपेक्षा
तुर्की के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के बारे में ज्यादा चिंतित होते हैं। इससे
मेरे देश में अधिक से अधिक समस्याएं उत्पन्न होती है। ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो
मेरी किताबें नहीं पढ़ते, परन्तु लोकप्रिय अखबार के माध्यम से
वे जो कुछ पढ़ते हैं, उस पर चिंता प्रकट करते हैं कि मैं
तुर्की के बारे में बाहरी दुनिया से क्या कहता हूं। साहित्य अच्छे और बुरे,
राक्षसों और देवदूतों के संगम से बनता है, मगर
वे लोग मेरे राक्षसों के बारे में ज्यादा चिंतित होते हैं।
नई धारा से साभार।
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