सोमवार, 2 जुलाई 2012
क्या "यह" पटना रंगमंच है ?
9 टिप्पणियां:
राष्ट्रीय नाट्य विधालय नयी दिल्ली में इस बार बिहार और उतर प्रदेश से एक भी स्टुडेंट का चयन नहीं हुआ ..इसको लेकर बिहार में काफी हो हल्ला मचा है .वरिष्ट रंगकर्मी से लेकर नए लोग भी इस बहस को गर्म करने में लगे है .आपको बताता चलू की बिहार से जितने N .S D में लोग गए उतना किसी स्टेट से नहीं गए ...और मुझे नहीं लगता की राष्ट्रीय नाट्य विधालय में ऐसा कोई प्रावधान है की प्रत्येक स्टेट का आरक्षण है ..और अगर व्यवहारिक होकर सोचे तो बंगाल और महाराष्ट्र में नाटक सबसे ज्यादा समृद्ध और विकाशशील रहा है ..वहा से कितने nsd गए हमारे अनुपात में... ये समझाने की बात है ..ये बंगाल और महाराष्ट्र के साथ अन्याय नहीं है ..जैसे बिहार में आजकल मुख्यमंत्री नितीश कुमार हर बात में केंद्र की तरफ भीख माँगते अधिकार जताते है ..उसी पोलटिक्स की शुरुआत बिहार रंगमंच में हो रही है ...आज के दौर में बिहार में काम करने वाले रंगकर्मियों से पुछा जाये की आपकी सक्रियता क्या है ..तो जवाव होगा मै एक्टिविस्ट हूँ ...मै देश दुनिया की बहसे कर सकता हूँ ..रतन थियम को नाटक करना नहीं आता ..उन्होंने भारतीय रंगमंच को स्वाहा कर दिया ...nsd वालो ने रंगमंच को बर्बाद कर दिया ...फिर भी ये साथी राष्ट्रीय नाट्य विधालय में प्रवेश चाहते है ..इस बार जितने लोग nsd के final में गए थे शायद ही एकाध को छोड़ कर किसी को भी गंभीर रंगमंच से वास्ता रहा हो ...मै आपको कुछ पुराने छात्रों के बारे में बता दू की पुन्ज्प्रकाश ...रंधीर ....मानवेन्द्र ....और स्वय मै nsd जाने के पहले ग्रुप और कई बहुमूल्य नाटको का मंचन कर के गए थे ...मै उन स्टुडेंट से ही सवाल करता हूँ जो अभी nsd चयन के लिए गए थे ..उन्होंने वहा क्या किया ...आपस में ही उलझे थे ...कोई पागलपन का शिकार था कोई मदहोशी का ...
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अब कुनाल जी ...... मसाज पार्लर में तब्दील हो चुका है एन.एस.डी.- कुणाल...क्या कुनाल जी बताएँगे की इन लोगो को (इस बार के nsd के लिए गए बिहारी स्टुडेंट ] को लेकर एक नाटक करेंगे और दर्शको के बीच जाये .,फिर बात करे.. कुनाल जी रावन को मारने के लिए भी राम चाहिए बन्दर नहीं ..... बाबा कारंथ .....रतन थियम ..बंसी कॉल ...एम् के रैना ...प्रसन्ना .....राम गोपाल बजाज ...संजय उपाध्याय .....बहरुल इस्लाम .....अमितेश ग्रोवर .....अभिलाष पिल्लै .... भानु भारती ....देवेन्द्र राज अंकुर ...अनुराधा कपूर .....रोबिन दास .....मोहन महिर्षि ...रूद्र दीप चक्रवर्ती .शांतनु बोस.....ऐसे अनेक नाम है जो भारतीय रंगमंच की सुन्दरता बढ़ाते है .... इन्ही के कामो को देखकर भारतीय रंगमंच में लोग जन्म लेते है ...
इस बार फर्स्ट चयन प्रक्रिया में बिहार के nsd स्नातक आसिफ अली ने कहा स्टुडेंट बिहार से इतने कमजोर आयेंगे ये मै सोच नहीं सकता था ..
ऐसे लोग इस मूवमेंट को हवा देने में लगे है जो खुद चूका हुआ माने जा चुके है ......अगर nsd इतनी बुरी है तो वहा जाना क्यों चाहते हो ...ये है सुभाष कुमार का फेसबुक स्टेटस
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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की विशेषताओं को यथार्थ करता प्रवीण कुमार गुंजन
हमने हमेशा रंगकर्मियों से सुना था कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय कलाकार नहीं दलाल पैदा करता है तो हमेशा लगता था कि ये कुछ ज्यादा बोला जा रहा है लेकिन आज जब प्रवीण कुमार गुंजन का बौखलाया हुआ एन.एस.डी के बचाव में वक्तव्य देखा तो लगा कि नहीं लोग सही बोलते हैं कि एन.एस.डी अधिकांश दलाल ही पैदा करता है.
वरिष्ठ कलाकारों का ऐसा मानना है कि अपने प्रदेश से काट देना भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की खूबियों में से एक है और इस बात को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रवीण कुमार गुंजन साबित करने पर तुले हुए है. शायद इसी वजह से उन्होंने वर्तमान बिहार रंगमंच से एन.एस.डी के मेंस परीक्षा में जाने वालोंको को पागलों और मदहोश कह कर संबोधित किया है. फेसबुक पर उनका ये status बताता है की उनके अन्दर अपने प्रदेश और अपने लोगो के प्रति कितनी कुंठा है.
वर्तमान बिहारी रंगकर्मियो को पागल कह कर वो योग्यता की बात कर रहे है जबकि अगर वो अपने इतिहास को देखे तो उनका नाम भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नामांकन के समय merit लिस्ट में नहीं था उनका नाम waiting लिस्ट में था.बेचारा एक लड़्का पागल हो गया तो आप चले गये.भला हो उस पागल का जिसके कारण आप जैसे दूसरे पागल को एन.एस.डी में जगह मिल गयी. अगर उनके इतिहास के एक और पन्ने को उलटे तो कभी वो हबीब तनवीर को जैसे को बड़े रंगकर्मी हमेशा गाली देते दिखते रहते थे दूसरो को अयोग्य, पागल कहने वाले व्यक्ति की ये है योग्ता?कोई पागल ही हबीब जैसे महान रंगक्र्मी को गाली दे सकता है और क्यों क्योंकि वो नाट्क में सामाजिक सरोकार की,समाज को बेहतर बनाने कि बात करते थे जिस्से आप्को चिढ़ थी कि नाटक का सिर्फ़ मनोरंजन करना काम है.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में इस बार बिहार एक भी कलाकार कर नामांकन न होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है ,लेकिन वहां के administrator द्वारा कह कर (घोषित या अघोषित ) कि बिहार से nsd में एक भी कलाकार को नहीं लिया जायेगा, ये बहुत बुरी बात है.और उससे भी ज्यादा बुरी बात ये है कि गुंजन जी और गुंजन जी जैसे लोग nsd की वकालत कर रहे है. ये लोग nsd की चाटुकारी इस कदर करते है कि एक प्रतिबद्ध रंगकर्मी शशि भूषण की मौत nsd की लापरवाहियों की वजह से हो जाने के बावजूद भी nsd के खिलाफ इनके मुह से एक शब्द नहीं फूटे लेकिन पटना के रंगक्र्मियों पर हमला करना हुअ तो देखिये.अच्छा है एन.एस.डी की खूब दलाली करिये देखते हैं इसके लिये भले ही ना अपने मरे साथियो की लाश से क्यों न गुजरना पड़े. दूसरो को अयोग्य कहने वाले अपने ही साथी कि मौत पर सौदेवाजी करना क्या यही है तुम्हारी योग्यता?
और तो और बल्कि लोगो के बीच कई तरह का भ्रम और डर फैला रहे थे कि nsd का विरोध मत करो वरना बिहार से किसी का भी nsd में नामांकन नहीं होगा.एन.एस.डी में नामांकन कैसे होता है ये सब लोग जानते हैं अध्कांश लोग परवी और संपर्क के आशार पर जाते हैं किसी से भी पूछिये पटना में वो बता देगा अरे उसका तो एन.एस.डी में अमुक आदमी के परवी पर हुआ.अरे एन.एस.डी का कोई पैमाना है? कोई सिस्टम है कि किस आधार पर होता ह है?कभी एन.एस.डी के लोगो< ने अपने संस्थान की काली और गिरी हुई कारगुजारियों पर उंगली उठाया है ?कभी नहीं लेकिन अपने ही साथियो पर हमला करना हो,उसको कलंकित करना हो तो देखिये गुंजन जी कैसे आगे हो गये?जिनका एन.एस.डी की नंगी धांधली और नाईसाफ़ी के कारण नहीं हुआ वैसे लोगों को पागल और अयोग्य करार दे रहे हैं?हां याद आया आपका नाम भी तो सब पगला ही कह्ता है.कई बार कालिसाद में लोगों को हम सुने हैं कि अरे गंजन कहां है? तो कौन गुंजन? अरे उ पगलवा गुंजन…?ये आपकी तो स्थिति है खुद पागल है और दुसरों को पागल कहते हैं.मुझे तो शर्म आती गंजन जैसे लोगों पर कि खुलेआम अपने शहर के रंगकर्मियों पर हमला करके एन.एस.डी की वकालत कर रहे हैं शर्मनाक!ये बिजेंद्र टांक ने पोस्ट क्या था
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इस बात का दुःख है की इस बार रा न वि में किसी भी बिहारी छात्र का चयन नहीं हुआ पर इसके लिए जो हाय तौबा मचा है, वो समझ के परे है !इस बहस मे कुछ भी समझ नहीं परता की लोग रा न वि में चयन न होने का बिरोध कर रहे हैं या रा न वि के पाठ्यकर्म का बिरोध | दोनों ही स्थितियों में मुझे यह उचित प्रतीत नहीं होता| अगर लोग रा न वि में चयन न होने का बिरोध कर रहे हैं, तो शायद वो भूल गए है की मेरी जानकारी में बिहार ही एक ऐसा प्रदेश है जहा से एक सत्र में बिहार से ६ छात्रों का चयन हुआ | क्या उस समय देश के अन्य प्रदेशो के साथ अन्याय नहीं हुआ था ? उस समय हमारे मित्रो की नैतिकता कहाँ गयी थी ? अब मैं अपनी दूसरी बात पे आता हूँ | अगर हमारे मित्रगन ये कहते है की रा न वि का समाज से सरोकार ख़त्म हो गया या वो जिमनास्ट करने वाले लेबर पैदा कर रही है तो बिहार के रंगकर्मीयों में रा न वि जाने की होड़ क्यों मची हैं ? अगर अगले सत्र में बिहार से एक भी छात्र का आवेदन नहीं जाता हैं तब ये माना जा सकता हैं की हमारा रंगमंच एकजुट हैं और रा न वि के क्रियाकलाप गलत हैं |ये रंजीत कुमार का पोस्ट है
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एकदम सही बोले हैं सुभाष भैया.गुंजन जी तो हद कर दिये हैं जिन लोगों क नहीं हुआ क्या वे लोग पागल और मदहोश थे?ये तो अजीब बात है.क्या मेन परीक्षा में पहुंचने वाले बुल्ल्य भैया,जयप्र्काश भैया, राजू भैया,आशुतोष अभिग्य इन लोगों को तो हम जानते हैं और कोई भी पागल और मदहोश खोने वाला नहीं है.अभी हम्लोग जयप्रकाश भैया के साथ “शंबुक्वध” नाटक किये जिसको कि राकेश भैया डायरेक्ट किये थे उसमे तो बहुत अच्छःआ काम था.राहू भैया के साथ भी हम काम किये हैं इस सब क्लो पागल और मदहोश बोल रहे हैं गुंजन जी.अरे? क्या हुआ हो गया है उनको?इ अल बल काहे बोल रहे हैं वो?
एक तो पहले से जब पी.टी परीक्षा में इन लोगों क हुआ तभी ये इ बात हवा में चल रहा था कि इस बार किसी का नहीं हो क्योंकि सरकार से शशि भैया की मौत के बारे में जो लेटर चला गया है उससे एन.एस.डी का लोग बैखलाया हुआ है. इस बात पर उस समय कोई भरोसा नहीं किया था लेकिन बाद में तो यही सच निकला. इ कितना गलत बात है कि गुंजन जी को एन.एस.डी के इस गलत बात पर बोलना चाहिये था तो उ सब को पागल और होश खोने वला बता रहे हैं.सुभाष भैया हम न जानते थे गुण्जन जी के बारे में कि ऐसे थे. आजकल एन.एस.डी का विरोध करने पर सब लोग कहने लगता है कि भाषा ठीक रखना चाहिये लेकिन अपने परीक्षा में जाने वाले पटना के लड़कों को कोई अल-बल(पागल,मदहोश) बोलता है तो उसको कोई नहीं कहता है कि आप ठीक से बोलिये. ये तो हद है. इ दो सरेआम दोमुंहापन है..सच्च्मुच ये एन.एस.डी वाले लोग खतम होते हैं.एन.एस.डी वाला लोग शशि के परिवार के साथ जो गलत व्यवहार किया उसके बारे क्या?उस पर कुछ बोलते नहीं देखे लोगों को जो पटना के लोगों को तमीज सिखा रहे हैं.सुभाष भैया एक्दम ठीक किये.और बहुत बात भी पता चला.अजीब है बोलना चाहिये गुंजन जी को आम(एन.एस.डी के गलत बात पर) पर त बोल रहे हैं इमली(पटना के रंग्कर्मी सब पर) पर.एक तो ऐसे ही सब लोग दुखी है कि उनके साथ अन्याय हुआ है और गुंजन जी इ सब बोल के जले पर नमक छिड़्क रहे हैं.ऐसे न कीजिये गुंजन जी.ये अभिषेक नन्दन ने लिखा है
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अपनी टिप्पणी में जिस भाषा का प्रयोग हमारे अग्रज मित्र सुभाष कर रहें हैं, ये कहीं से भी एक रंगकर्मी होने के नाते उनको शोभा नहीं देता। आलोचना होनी चाहिए, विरोध भी होना चाहिए n.s.d का और अगर @ Pravin Kumar Gunjan गलत हैं तो उनका भी पर जिस तरह से भाषाई छिछालेदर सुभाष कर रहें है ये अनैतिक है। हम इसका विरोध करतें हैं।रंजीत कुमार लिखतें हैं
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आप पहले ये बताइये कि क्या जो लोग इस बार एन.एस.डी की परीक्षा देने गये थे वे सब पागल थे?मदहोश थे? क्या जेपी भैया,बुल्लु जी,आशुतोष अभिग्य,राजू भैया क्या ये लोग पागल हैं?गुंजन जी के इस बात पर आपको क्या कहना है?पाह्ले उस बात पर बोलिये फ़िर कुछ और शोभा देगा.अचानक देख रहा हूं कि एन.एस.डी जैसे दलाल संस्था का नया,नया शुभ्चिंतक हो रहे हैंकितना खराब बात बोले गुंजन जी उस बात पर न बोल के जो लोग सही बात उठा रहा है उसी पर कमेंट कर रहे हैं?ये प्रवीन गुंजन ने लिखा है
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aap ki sanskriti aur vichar aise hi ho sakte hai ..mamla ko vyaktigat bana kar jhutha aarop lagane ke liye thanks ..isi pagal ke sath aapne life ke sabse ache natak kiye hoge .mai aapko bhul gaya tha wahi subhash hai na aap jo KUNTITH AUR JATIYE COMPLEX me hamesha dube rahte the ..are aap bhul gaye.. anish aur atul bhumihaar hai ..aapko bata du ki mujhe sabit karna nahi ..again thanks
are aap hi hai na pichale 2 saal mere piche padhe rahe ki hydrabaad me aakar ek natak karwa de ..mujh pagal se hi karwana chahte the ...anish se match fix ho gaya kya ...par woh to bhumihaar hai subhash babu ..ha ha ..ha ha
एनएसडी हमारे ‘सिस्टम’ का ही एक अंग है और यह शुष्क पूँजीवादी रुझान और कई विरोधाभासों का शिकार है | नतीजतन यह कला प्रशिक्षण संस्थान, एक कलावादी और रूपवादी नाट्य ‘मॉडल’ के केंद्र के रूप में परिवर्तित होता जारहा या होगया है | किन्तु फिर भी इसे ‘मसाज पार्लर’ कहना अनुचित है, कुंठित मानसिकता का परिचायक है |
भारतीय उप-महाद्वीप के रंगमंच के क्षेत्र में एनएसडी के साकारात्मक योगदान को कम करके नहीं आँका जासकता | आवश्यकता है आज उसकी भूमिका की वस्तुनिष्ठ समीक्षा की जाए |
मुझे स्वर्गीय नेमिचन्द्र जैन के साथ जन-नाट्य की समस्या पर नब्बे के दशक में हुई मुसलसल बहस की याद आरही है | नेमिजी ‘इप्टा’ के प्रारंभिक दौर के संगठनकर्ता थे, किन्तु तब वे उससे अलग होगये थे और उसकी आलोचना किया करते थे | उन्होंने तब कहा था ” इप्टा या पीपुल्स थियेटर से जुड़े नाट्यकर्मियों को ‘क्या करना है’, यह तो पता होता है; किन्तु ‘कैसे करना है’, यह नहीं पता होता | ” दरअसल वे थियेटर में ‘फॉर्म’, ‘क्राफ्ट’ और ‘डिजाइन’ के महत्त्व को रेखांकित करना चाहते थे | उनकी बात एक हद तक प्रासंगिक भी थीं, परन्तु ‘थियेटर सिर्फ ‘फॉर्म’, ‘क्राफ्ट’ या ‘डिजाइन’ नहीं है | अगर पारम्परिक शब्दावली का प्रयोग करें तो, यह (डिजाइन) रंगमंच के केन्द्रीय तत्त्व ‘अभिनय’ का एक अंग ‘आहार्य’ मात्र है | फॉर्म या रूप के प्रति आक्रामक आग्रह का सबसे बड़ा जो नुकसान हुआ है वह है – अभिनेता का महत्त्वहीन होते जाना | ऐसे दौर में, रंगमंच रूपवाद से कैसे बच सकता है |
हर नाट्य-रचना कथ्य के अनुसार ही अपना रूप या फॉर्म चुनती है और यही दर्शकों की रंगमंच की ज़रुरत के अनुसार, उनकी नाट्य-भाषा में, उनकी आशाओं-आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने में सक्षम भी होती है |
अब जहाँ तक मित्रों द्वारा उठाए गए प्रश्नों का सवाल है – मैंने जहाँ अपनी टिपण्णी का अंत किया है वहीं से अपनी बात शुरू करता हूँ – ” हर नाट्य-रचना कथ्य के अनुसार ही अपना रूप या फॉर्म चुनती है और यही दर्शकों की रंगमंच की ज़रुरत के अनुसार, उनकी नाट्य-भाषा में, उनकी आशाओं-आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने में सक्षम भी होती है ” – क्या यह स्पष्ट नहीं है कि ये पंक्तियाँ एनएसडी, जिसे मैंने ‘पूँजीवादी रुझान और कई विरोधाभासों का शिकार, कलावादी-रूपवादी नाट्य केन्द्र’ के रूप में रेखांकित किया है, के लिए हैं और यह भी कि एनएसडी, दर्शकों की नाट्य-भाषा में, उनकी आशाओं-आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कर पाने में सक्षम नहीं है ? अब इसे एनएसडी के प्रति मेरे ‘नर्म रुख’ के रूप में देखा जाए, तो इसका मैं क्या जवाब दूँ ?
एनएसडी ही नहीं लगभग हर सत्ता-संपोषित संस्थान, अपने मूल-उद्देश्य के प्रति लापरवाह है या विरोधाभास का शिकार है | यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि जिस राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को नाट्य-कला के प्रशिक्षण के उद्देश्य से स्थापित किया गया; वह रंगमंच के लिए नहीं, बल्कि सिनेमा और टीवी के लिए मानव-संसाधन जुटाने के केन्द्र के रूप में काम कर रहा है | क्या यह भी सच नहीं है कि एनएसडी में प्रवेश के इच्छुक अधिकांश रंगकर्मी, अंततः सिनेमा में जाने की सीढ़ी के रूप में ही एनएसडी का उपयोग करना चाहते हैं ? ठीक वैसे ही, जैसे आईआईटी या मेडिकल स्नातक, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में प्रवेश के लिए इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं | किन्तु दोष केवल युवकों का नहीं है, बल्कि यह पूरे ‘सिस्टम’ के विरोधाभास का परिचायक है |
जहाँ तक एनएसडी के वर्चस्व की बात है, तो इसे क्षेत्रीय स्तर पर नाट्य विद्यालय की स्थापना से निरस्त किया जा सकता है | बिहार में एक उच्च-स्तरीय नाट्य प्रशिक्षण केन्द्र की ज़रूरत से क्या हम इनकार कर सकते हैं ? आईसीसीआर (भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्) की राज्य शाखा पटना में खुल रही है | क्या एनएसडी को बिहार सहित कुछ अन्य राज्यों में अपनी इकाई नहीं शुरू करनी चाहिए ?
रा.ना.वि. की आलोचना से इतर एक कार्य मुख्य है कि इन सालों में बिहार के रंगमंच पर कितना महत्त्वपुर्ण काम हुआ? क्या बढ़िया रंगमंच के लिये हम रा.ना.वि. का मूंह जोहते रहेंगे! भारतीय रंगमंच पर आज जो प्रतिभाशाली निर्देशक उभर रहें हैं, जो प्रतिबद्धता से सक्रिय हैं उनमें अधिकांश रा.ना.वि. से नहीं है. मोहित ताकलकर, शंकर, अतुल कुमार, मानव कौल, सुनील शानबाग इत्यादि को देखिये इनमें से कोई रा.ना.वि. से नहीं हि लेकिन हां इनमें से कोई बिहार से भी नहीं है.
बिहार के रंगमंच के स्तर को बढ़ाने की जिम्मेवारी क्या बिहार के रंगकर्मियों की नहीं है? क्या रा.ना.वि को अप्रासंगिक मानकर राज्य के रंगमंचीय विधाओं के सरंक्षण , संवर्द्धन और प्रशिक्षण की जिम्मेवारी राज्य सरकरा की नहीं है? हमने कितनी बार राज्य सरकार पर दबाव बनाया है.
आलोचना का एक प्रकार है सर्जना..लफ़्फ़ाज आलोचना खुद को हास्यास्पद बना देती है.
कोई भी व्यक्ति किसी के प्रति अपशब्द का प्रयोग करता है तो यकीन जानिए की वह उससे उतना ही दुखी है। यह दुख ज़रूरी नहीं की वैयक्तिक हो। कुणाल के शब्द ओछी मानसिकता के नही, बल्कि खेद और दुख के परिचायक है। नाटक के साथ यह हो रहा है कि उसे अपने ही लोगों का समर्थन नाही मिल पाता है। परवेज़ ज़ी ने बहुत अच्छी बात उठाई है कि एनएसडी के अवदान को नकारा नाही^ जा सकता। नकार कोई नाही^ रहा है। हर कोई आज की स्थिति को लेकर अपनी बात रख रहा है। नाटक के कैथी और प्रयोग की दिशा को ध्यान में रखकर नाटक किए जा रहे हैं। यह स्वागत योगी है। नाटक पहले भी जीवित था, आज भी है और कल भी रहेगा। लेकिन हमें संयम बरतना होगा और यूं ही किसी को दाखिल खारिज नाही करना होगा, जैसा के आजकल कुछ स्वनयमधानी लोग रंगकर्म के नाम पर कर रहे हैं।
परनिंदा के परनाले बहा दिए जातें हैं, बातचीत की तीसरी और अंतिम कोटि हीं सबसे अच्छी होती है. मैं परवेज़ दा की बातों से पुरी तरह सहमत हुं। मुझे लगता है हमारे कुछ प्रगतिशील मित्रों को व्यक्तिगत टिप्पणी से बचते हुए, उनकी सटिक टिप्पणी फिर से पढ़नी चाहिए।