नवनीत कुमार की रिपोर्ट
गत दिनों सूर्यकान्त
त्रिपाठी लिखित, ज़िकरुर रहमान और अफ़सा अंजुम द्वारा अनूदित एवं प्रख्यात रंग निर्देशक
त्रिपुरारी शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक दारा की प्रभावशाली प्रस्तुति मेघदूत- 3( संगीत नाटक
अकादमी ) सभागार नई दिल्ली में संपन्न हुई.
दारा अपने पिता शाहजहाँ की तरफदारी करता है लेकिन
वह किसी भी तरीके से किसी भी धर्म को ठेस नहीं पहुचाना चाहता. वह हज़रत सरमद से
प्रभावित होकर कई ग्रंथों, उपनिषदों का फारसी में अनुवाद भी करता है. दारा की
दार्शनिकता औरंगजेब को कही से सांगत नहीं लगता. वह अपने रणकौशल और बहादुरी के लिए
जाना जाता है और वह दक्कन पर आक्रमण की योजना बनाता है पर दारा और शाहजहाँ उसे ऐसा
करने से मना कर देते हैं. औरंगजेब अपने साथियों के मदद से अपने पिता शाहजहाँ और
दारा को बंदी बना लेता है. दूसरी तरफ दोनों बहनें जहांआरा और रौशनआरा अपने लाभ के
लिए भाइयों के साथ रहती हैं. अंत में औरंगजेब दारा का सर कलम करवा देता है और सरमद
की भी जिनगी छीन लेता है.
नाटक में मंच की सजावट बहुत सरल एवं कुशल थी.
मंच पर सहिद्दुर्र रहमान (दारा), अशोक धवन (शाहजहाँ), अमित सिंह ( ओरंजेब), देबसिश मंडल (हज़रत
सरमद), अरुणा शेट्टी (जहांआरा), कुसुम हैदर (रौशनारा), सदानंद पाटिल (मीर यक्षतुर), हैप्पी (जनाब-ए –
चतुर), रौनक खान (मीर जुलमा), कुमार वैभव (राजा जय सिंह), अनहद ईमान (सिफिर शिको )
आदि अभिनेता के अभिनय से सुसज्जित इस नाटक को मंच पार्श्व से टीकम जोशी (संगीत संचालन),
अशोक सागर भगत (प्रकाश परिकल्पना), यशपाल शर्मा (स्टेज), आम्बा सान्याल (वस्त्र
परिकल्पना) एवं राजेश सिंह और टीकम जोशी ( सह-निर्देशक) आदि ने सहयोग किया.
मंच पर ही बाक्स में पानी की व्यवस्था करके उसको
यमुना नदी का एक दृश्य बनाया गया जो बहुत आकर्षक था. जनाब-ए-चतुर प्रतीक रूप में
कुछ पुतलों को अपने साथ रखा और उसी के माध्यम से कहानी को गति दिया. मीर यक्षतुर
अपने एक ऊंट का मालिक और वफादार है और यही वफ़ादारी वह अंत तक दारा के साथ निभाता
है. प्रकाश की सुन्दर व्यवस्था नाटक में चार चंद लगा देती है. अगली प्रस्तुति
सोमवार, 6 मई 2013 को शाम 7:30 बजे मेघदूत सभागार (संगीत नाटक अकादमी) में होगा.
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