रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

गुरुवार, 9 मई 2013

जेएनयू में 'मां' नाटक का मंचन


maa                                             भाषा कल्चरल विंग और स्पीका ढोल ने मिलकर गोर्की द्वारा रचित उपन्यास 'मां' का नाट्य मंचन किया। जब भारत में चारों ओर स्त्रियों को लेकर के लोगों के मन में एक अजीब-सी ऊहापोह देखने को मिल रही है तभी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र रमेंद्र चक्रवर्ती ने गोर्की के फेमस उपन्यास 'मां' को नाटक के रूप में पेश करने की हिम्मत जुटाई। उपन्यास में गोर्की का मजदूर एक ऐसा आदमी है जिसका सरोकार सिर्फ अपने देश से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से है। रमेंद्र चक्रवर्ती का यह नाटक ऐसी स्त्री चेतना को लेकर है जहां भारत देश गावों में बसता है। देशभर की स्त्रियों को एक साथ पिरोने का काम इस नाटक में किया गया है।
रूस में 'मां' नॉवेल पहली बार 1907 में प्रकाशित हुआ। 20वीं शताब्दी के साथ ही मजदूर ने इतिहास के रंगमंच पर मुख्य चरित्र के रूप में प्रवेश किया। एक ऐसे चरित्र के रूप में जो दृढ़संकल्प होकर हर मामले को अपने हाथों में ले रहा था और अपनी जरूरतों के मुताबिक घटनाओं को गढ़ रहा था। मैक्सिम गोर्की ने इसी मजदूर कि जीवनी लिखी और इसके प्रशंसा में गीत गए गए।
जब हमने रमेंद्र चक्रवर्ती से इस नाटक के मंचन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि कला जनता को एकजुट करने का एक साधन है। इसीलिए उन्होंने फेमस रूसी उपन्यास 'मां' को चुना। 'मां' एक मजदूर स्त्री निलोवना की कहानी है जो और अन्य मजदूर माताओं से अलग नहीं है। कारखानों में एक मजदूर मां अपनी ताकत से ज्यादा काम करती है, फिर घरों में पिसी जाती है।पीयक्कड़ उपद्रवियों द्वारा सताई जाती है। नाटक में कहानी उस वक्त मोड़ लेती है जब उसका बेटा पावेल बस्ती की नारकीय जिंदगी के तौर-तरीकों से अपने को अलग कर लेता है और क्रांतिकारी बन जाता है। मां उसके पक्ष में खड़ी होती है।उसके साथ-साथ आगे बढती है।
नाटक में निलोवना का रास्ता उस आम मजदूर का रास्ता है जो क्रांति में शामिल होने आता है। दर्शक निलोवना की दुनिया को उसकी आंखों से देखता है और घटनाओं का मूल्यांकन उसके मापदंडों के आधार पर करता है। 
इस उपन्यास का नाटकीय रूपांतरण रमेंद्र और राजकुमार ने किया। डायरेक्शन की कमान रमेंद्र चक्रवर्ती के हाथों में थी। नाटक का मंचन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में किया गया। म्यूजिक अंजना घोषाल का था जो नाटक में दर्शकों बांधे रखता हैं। गोथिक संगीत को अंजना घोषाल इस में नाटक प्रयोग किया है। मां के रूप में सोनी सिंह, एमी धनकर की ऐक्टिंग दिल को छूने लायक है। वहीं, वैभव भटनागर, आंद्रे, पंकज चौबे, शिशिर, त्रिशाला, अली, विवक्षा, पूजा, नितिन सिंह नेगी, सौरव और गौरव ने भी उम्दा ऐक्टिंग की है। इस नाटक का मंचन 8 मार्च को विमिंस डे पर भी किया गया था। 
नवभारतटाइम्स.कॉम से साभार.

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