रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

सेपियन्स : मानव-जाति का संक्षिप्त इतिहास

कुछ पुस्तकें ऐसी होतीं हैं जो अपने तर्क से इंसान की देश, धर्म, समाज, विचार, राजनीति, समाज, सामाजिकता, आदि आदि की अब तक बनी समझ या नासमझी को झकझोर कर रख देतीं हैं बशर्ते सोचने-समझने की शक्ति ग़ुलाम, लाचार और मजबूर न हुई हो, यह एक ऐसी ही महत्वपूर्ण पुस्तक है। हालांकि इतिहास का ही विद्यार्थी हूं लेकिन फिर भी यह पुस्तक वैसी नहीं है कि जिसे एक झटके में पढ़कर समाप्त कर दिया जाए बल्कि यह पढ़ पढ़के समझने और समझ समझ के पढ़ने वाली पुस्तक है। यह इतिहास का मोटापा लिए वैसा ग्रंथ भी नहीं है जिसमें राजा-रानी की कहानी हो, कुछ दिन महीने साल हों, और कुछ कृत्य-कुकृत्य को रट लिया जाए और किसी परीक्षा में जैसा खाया वैसा निगल दिया जाए और काम बन जाए बल्कि यह इंसान की उत्पत्ति से लेकर अब तक की एक ऐसी महागाथा है जो विभिन्न काल में उसकी उपलब्धियां और उसकी व्यर्थता का पर्दाफाश करती है। इसीलिए इसे पढ़ने में कई महीने ख़र्च हुए और इसे और भी कई बार पढ़ना होगा। कुल मिलाकर बात यह कि इसे पढ़ लेने के बाद आप वही नहीं रहते जो हैं और अगर किसी भी प्रकार का कोई बदलाव नहीं होता तो फिर कोई कुछ नहीं कर सकता।

बाक़ी पुस्तक के किसी भी अंश को किसी भी प्रकार से पुनः प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है इसलिए केवल इतना ही कहूंगा कि इसे पढ़ा और सही अर्थों में समझा जाना चाहिए; हालांकि पढ़ने लिखने में विश्वास करनेवाले कितने लोग हैं यह भी जग ज़ाहिर है; फिर भी। मदन सोनी का हिंदी अनुवाद शानदार है और बाक़ी इसके लेखक युवाल नोआ हरारी के बारे में क्या कहना, वो फिलवक्त धरती पर सच्चे रूप में सबसे ज्ञानी इंसानों में से एक हैं। वो कहते हैं - "हमारे विश्वास चाहे जो भी हों, लेकिन मैं हम सभी को हमारी दुनिया के बुनियादी आख्यानों पर सवाल उठाने के लिए, अतीत की घटनाओं को वर्तमान के सरोकार से जोड़कर देखने के लिए और विवादास्पद मुद्दों से ना डरने के लिए प्रोत्साहित करता हूं।" इसलिए दुनियाभर के एक से एक परमज्ञानी स्वयंसिद्ध नेताओं, टीवी डीबेट, सोशल मीडिया के गुरिल्लावारों से वक़्त बचाकर ऐसी पुस्तकों में समय बीतने का उपक्रम ही समय का सही सद्योपयोग है। 

यह अलग से बताने की ज़रूरत नहीं है कि फ़िलहाल यह पुस्तक दुनियां का बेस्टसेलर किताब है और विश्वभर में कई भाषाओं में अनुवादित होकर ख़ूब पढ़ी जा रहीं हैं। यह किताब कई रूप में यानी लिखित, वाचिक (ऑडियोबुक) के रूप में उपलब्ध है, यूट्यूब पर तो हिंदी अंग्रेज़ी में फ्री ऑडियोबुक के रूप में भी उपस्थित है, देख-सुन-पढ़ लीजिए, अगर थोड़ा मन करे तो। यह एक बेहद ज़रूरी पुस्तक है - और अगर देख-सुन-पढ़ लिए हैं तो दूसरों को पढ़ाइए और न पढ़े हैं तो अवश्य ही पढ़िए। इसकी एक प्रति हमेशा घर में रखिए क्योंकि इसे पढ़-समझकर पीढियां तर जाएगीं। 

आज यह पुस्तक पढ़कर समाप्त हुआ अब इन्हीं के द्वारा लिखित दो और पुस्तक होमो डेयस और 21 वीं सदी के लिए 21 सबक की बारी है। मंगाया है, आ जाए तो पढ़ाई शुरू हो तबतक सार्त्र और दोस्त्रोवस्की अंकल है सिराहने साथ देने के लिए और बाक़ी जब घर में तथाकथित परम विश्वास की कृपादृष्टि पर रहकर "गो कोरोना गो" गाना है और भक्ति रस का स्वादवलोकन कारण ही नियति है तो कुछ सार्थक काम ही हो जाए, बाक़ी तो जो है वो तो है ही, लेकिन परम सत्य यह है कि असली ज्ञान ही आख़िरकार काम आएगा बाक़ी अज्ञानता और झूठ का चमकदार भ्रम चाहे कोई कितना ही बड़े से बड़ा फैला ले कोई, एक न एक दिन उस गुब्बारे की हवा निकल ही जानी है।

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