रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

कोरोना में रंग-प्रशिक्षण संस्थान का क्या है प्लान?

व्यावसायिक या सरकार के सहयोग से विभिन्न नाट्य विद्यालय, महाविद्यालय या निजी (?) संस्थान अलग-अलग अवधि का शिक्षण-प्रशिक्षण कोर्स चलते हैं और जैसा भी संभव है बेहतर से बेहतर प्रशिक्षण देने का प्रयत्न करते हैं। कोई स्कॉलरशिप देते हैं तो कोई फीस लेते हैं, कुछ बिना किसी ख़ास लेन-देन के भी चलते हैं। फ़िलहाल कोरोना काल चल रहा है तो एक साल वाले स्कूल में आधे साल क्लास हुआ, फिर कोरोना संकट आया और उन्हें अपने-अपने घर भेज दिया - अब? उनका क्या होगा, सुनने में आ रहा है कि उन्हें पासआउट मान लिया गया! आश्चर्य है, ऐसी डिग्री उनके किस काम आएगी जहां कोर्स ही कम्प्लीट न हुआ? 

वो स्कूल अब नए एडमिशन की तैयारी में हैं, उनके पास क्या कोई प्लान है कि अगर यह कोरोना संकट दूर नहीं हुआ वो अपने विद्यार्थियों को आगे कैसे पढाएगें। घर बैठाकर डिग्री बांट देने से क्या होगा? ऑनलाइन थियेटर क्या कोई भी पढ़ाई पूर्णरूपेण कम्प्लीट हो ही नहीं सकती यह बात एकदम सही है, है कोई गाइडलाइन या प्लान ऑफ एक्शन सरकार या स्कूल प्रशासन की तरफ़ से। अगर नहीं है तो किस बिना पर यह नया एडमिशन ओपन किया जा रहा है और पुराने को पासआउट समझ लेने का भ्रम बनाया जा रहा है?

अगर इस विषम परिस्थिति में कोई प्लान ऑफ एक्शन है तो उसे साफ-साफ लोगों तक पहुंचाना चाहिए, किसी भी माध्यम से। आज के समय में सब सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, वहीं इस सूचना को डाल दें और अगर कोई तगड़ा प्लान नहीं है तो छात्रों का एडमिशन लेने और अपने पुराने छात्रों का कोर्स कम्प्लीट किए बिना पासआउट करने का कोई अर्थ ही नहीं है, बल्कि यह समय, ऊर्जा और धन (सरकारी या निजी) की बर्बादी के साथ ही साथ भविष्य से खिलवाड़ ही होगा। इससे तो बेहतर यह होगा कि इन स्कूलों पर ख़र्च होनेवाले बजट को स्थिति सामान्य होने तक उन कलाकारों के हित में इस्तेमाल किया जाए, जो बेहद आर्थिक तंगी के दौर से गुज़र रहे हैं। वैसे ज़्यादातर कलाकार तंगहाल ही हैं। 

वर्तमान दौर में हाथ धोते रहना अच्छा है लेकिन इस चक्कर में बहुत सी बातों से हाथ धो लेना, अच्छा तो नहीं ही माना जाएगा। बाक़ी आपकी अपनी इच्छा, अपना विश्वास।

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