रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 21 नवंबर 2011

पंकज कपूर: नई पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत


सौम्या अपराजिता

जन्मदिन- 29 मई . जन्मस्थान- लुधियाना

छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक और कला फिल्मों से लेकर व्यावसायिक फिल्मों तक पंकज कपूर के अभिनय ने दर्शकों पर प्रभावी छाप छोड़ी है। वे नयी पीढ़ी के अभिनेता-अभिनेत्रियों के प्रेरणा स्रोत हैं। पंकज कपूर की अदायगी  छोटे पर्दे और बड़े पर्दे पर समान प्रभाव छोड़ती है। अभिनय के औपचारिक प्रशिक्षण के बाद पंकज कपूर ने हिन्दी फिल्मों की ओर रूख  किया।

लुधियाना में बचपन के खुशनुमा दिन बिताने के बाद पंकज कपूर ने दिल्ली से इंजीनियरिंग  की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रूख  किया।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंकज कपूर ने रंगमंच  पर अपनी अभिनय-प्रतिभा का प्रदर्शन करना प्रारंभ किया। लगभग  चार वर्षो तक वे रंगमंच  से जुड़े रहें। पंकज कपूर को हिन्दी फिल्मों में अभिनय का पहला मौका श्याम बेनेगल  की फिल्म आरोहण में मिला। आरोहण के तुरंत बाद वे गांधी में प्यारेलाल की भूमिका में दिखें। इन फिल्मों के बाद उन्होंने समानांतर सिनेमा का रूख  किया। मंडी,जाने भी दो यारो,मोहन  जोशी हाजिर हो,खंडहर और खामोश जैसी समानांतर फिल्मों में पंकज कपूर ने अभिनय की नयी परिभाषा गढ़ी। यह वह समय था जब समानांतर सिनेमा लोकप्रियता के ऊफान पर था। पंकज कपूर हिन्दी सिनेमा जगत  में आयी इस नयी क्रांति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। धीरे-धीरे पंकज ने छोटे पर्दे की ओर भी अपने कदम बढ़ाए। जल्द ही पंकज कपूर करमचंद जासूस के रूप में छोटे पर्दे के दर्शक से रू-ब-रू  हुए।  शीघ्र ही करमचंद जासूस की भूमिका में पंकज कपूर की लोकप्रियता आसमान छूने लगी। वे करमचंद जासूस के रूप में सभी दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हुएं।  इस दौरान हिन्दी फिल्मों में भी वे सक्रिय रहें। चमेली की शादी,एक रूका  हुआ फैसला,ये वो मंजिल तो नहीं जैसी क्लासिक  फिल्मों के साथ-साथ पंकज कपूर ने जलवा जैसी मसाला फिल्म में भी अपनी झलक दिखायी। नयी पीढ़ी के अभिनेताओं के साथ राख और रोजा में वे दर्शकों से रू-ब-रू  हुए।  रूपहले  पर्दे पर गंभीर भूमिकाएं और छोटे पर्दे पर हल्की-फुल्की भूमिकाओं में दर्शकों को रूलाने-हंसाने  वाले पंकज कपूर अभिनय-कला के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। नयी पीढ़ी के अभिनेताओं  ने तब अपने दांतों तले ऊंगली  दबा ली जब उन्होंने विशाल भारद्वाज निर्देशित मकबूल में अब्बा जी की भूमिका में पंकज कपूर का अभिनय देखा।

पंकज कपूर के निजी जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए,पर विवादों के साये से वे हमेशा दूर रहें। पहली पत्‍‌नी नीलिमा अजीम से तलाक और अभिनेत्री सुप्रिया  पाठक से विवाह को लेकर वे सुर्खियों में रहें,पर बिना किसी हंगामे के उन्होंने परिपक्वता के साथ निजी जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय को अपने प्रशंसकों के स्वीकार-योग्य बनाया।

हालांकि, नयी पीढ़ी के दर्शकों के बीच उनकी पहचान शाहिद कपूर के पिता के रूप में है,पर शाहिद स्वयं को खुशनसीब मानते हैं कि उन्हें अभिनय-कला में दक्ष पिता पंकज कपूर के सान्निध्य में अपनी अभिनय-प्रतिभा निखारने-संवारने का मौका मिला है।

पंकज कपूर की अभिनय-प्रतिभा उम्र और काल की सीमा से परे है। वे अभिनय की हर विधा के सक्षम कलाकार हैं। हास्य धारावाहिक हो या गंभीर फिल्में,रंगमंच हो या टेलीविजन कमर्शियल  पंकज कपूर की झलक-मात्र दर्शकों का ध्यानाकर्षण करती है। उम्मीद है,आने वाले कई वर्षो तक अभिनय-कला के प्रति समर्पित इस प्रतिभाशाली कलाकार की हिन्दी फिल्मों में उपस्थिति दर्शकों को यूं ही आकर्षित करती रहेगी ।

कैरियर की मुख्य फिल्में


वर्ष-फिल्म-चरित्र - 1982-आरोहण. 1982-गांधी-प्यारेलाल. 1983-मंडी-शांति  देवी के सहायक की भूमिका. 1983-जाने  भी दो यारो-तरनेजा. 1984-मोहन  जोशी हाजिर हो-मोहन जोशी. 1984-खंडहर-दीपू. 1985-खामोश-कुकू. 1985-ऐतबार -एडवोकेट झा. 1986-चमेली  की शादी-कल्लूमल. 1987-ये  वो मंजिल तो नहीं-रोहित. 1987-सुष्मन-. 1987-जलवा-अल्बर्ट पिंटो. 1988-मैं जिंदा हूँ-. 1989-राख-इंस्पेक्टर  पी के. 1989-कमला की मौत-सुधाकर पटेल. 1990-शडयांत्रा-सब इंस्पेक्टर तरबेज  मोहम्मद. 1991-एक  डॉक्टर की मौत-डॉक्टर दीपांकर  राय. 1992-रोजा-लियाकत. 1993-द बर्निग  सीजन-अशोक  सरकार. 1995-रामजाने-पन्नू. 1997-रूई का बोझ. 2003-मैं प्रेम की दीवानी हूँ-सत्यप्रकाश. 2003-मकबूल-जहाँगीर  खान. 2005-सहर-प्रोफेसर  तिवारी. 2005-दस-हिम्मत  मेहंदी. 2005- ब्लू  अम्ब्रेला-नंद किशोर  खत्री. 2007-धर्म-पंडित चतुर्वेदी. 2008-हल्ला बोल. निर्देशन - 2011 मौसम.

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