रंगमंच से जुड़े पाकिस्तान के अनवर जाफरी द्वारा निर्देशित नाटक 'इंसा का इंतजार' को 14वें रंगमंच महोत्सव में दर्शकों ने खूब पसंद किया। उन्होंने जागरण संवाददाता से पाकिस्तान में रंगमंच की स्थितियों को लेकर शिप्रा सुमन से बातचीत की।
भारत रंग महोत्सव में अनवर जाफरी |
भारत में आकर कैसा महसूस कर रहे हैं?
मेरा हर नाटक मेरे दिल के बेहद करीब होता है। नाटक के निर्देशन में संजीदगी की जरूरत होती है। खासकर जब वह इंसानी मूल्यों पर आधारित हो। भारत में रंगमंच के लिए स्थितियां काफी बेहतर हैं। यहां के लोग नाटकों की अच्छी तरह समीक्षा करते हैं।
पाकिस्तान में रंगमंच के विकास के प्रति लोगों का कैसा रूझान है?
पाकिस्तान में प्रतिभा की तो कमी नहीं है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में कलाकारों की प्रतिभा विकसित नहीं हो पा रही है। एक्सपोजर की कमी व सरकार की ओर से अकादमिक सुविधाओं के अभाव ने रंगमंच को प्रभावित किया है। भारत में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा जैसे संस्थानों की मदद से कलाकारों को फायदा होता है। पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। हालांकि इधर कुछ वर्षो में युवाओं की पहल से वहां रंगमंच कुछ हद तक बेहतर हुआ है।
आधुनिक व पारंपरिक नाटकों में क्या फर्क महसूस करते हैं?
रंगमंच से जुड़ा हर कलाकार अपने किरदार को पूरी शिद्दत के साथ जीता है। आधुनिक व पारंपरिक दोनों नाटकों में इंसानी मूल्य व मानवीय संबंध प्रमुख होते हैं। उनके प्रस्तुतीकरण व शैली में थोड़ा ही फर्क होता है।
नाटक का सफल मंचन क्या उसकी भाषा पर निर्भर करता है?
नाटक के भाव व उसमें दिखाए जाने वाले किरदार को समझने के लिए दर्शकों को भाषा पर निर्भर नहीं होना पड़ता। कई बार मूक नाटकों को भी उम्मीद से अधिक वाहवाही मिलती है। दर्शक सिर्फ नाटक के मर्म को समझना चाहते हैं।
दिल्ली में क्या पसंद है?
दिल्ली में काफी कुछ देखने लायक है, लेकिन मुझे सबसे अधिक कुतुबमीनार पसंद है। वह भारतीय स्थापत्य की अद्भुत मिसाल है। मैं जब भी यहां आता हूं, कुतुबमीनार जरूर देखता हूं। दिल्ली की मिठाइयां मुझे बहुत पसंद हैं।
जागरण से साभार
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