बतौर एक इंसान हमारी मानसिक, शारीरिक हालात और व्यस्तता जो भी हो लेकिन हमारे पास सतत अभ्यास और कठोर श्रम के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। नाटकों का पूर्वाभ्यास और उसका प्रदर्शन तो परिणाम है, प्रक्रिया नहीं। एक कलाकार बनने की प्रक्रिया का रास्ता कठोर और नित्य अभ्यास की मांग करता है। इसमें किसी भी किंतु-परंतु के लिए कोई स्थान नहीं होता क्योंकि कला में कुछ भी छिपता नहीं बल्कि सब प्रदर्शित होता है। वैसे भी जबतक हम तकनीक नहीं सिखते और अपनी मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक क्षमता को निरंतर नहीं बढ़ाते तबतक हम कोई बेहतर कार्य सकते हैं; यह एक मुगालता ही है। हां, कभी-कभी बटेर का हाथ लग जाना, एक अलग बात है।
हम ना केवल अभ्यास कर रहे हैं बल्कि अन्य नाट्य समूहों के प्रस्तुतियों को देखकर उस पर सार्थक बातचीत और उसे समझने की चेष्टा भी कर रहे हैं। नीरा निन्दा या नीरा आलोचना से सराबोर इस समय मे यह एक बेहद ज़रूरी कार्य है। कुछ अभिनेताओं ने कल भी डायरी लिखी थी, जो आपके समक्ष बिना किसी काटछांट के उपस्थित है -
#एदीप राज - आज अभ्यास के बीच में सर तीन मुक्का मारने के बाद बोले कि आलस एक मानसिक चीज़ है उसे माईंड से दूर करो। जब मैंने माईंड से आलस दूर किया तो बहुत ही फ्रेश महसूस किया। तब मैने उसी वक़्त एक निर्णय लिया आज के बाद कभी भी माईंड में आलस नही आने दूगा।
सर ने आज एक नया व्यायाम करवाया जो कि मुझे थोड़ा बहुत ही समझ आया शरीर कण्ट्रोल। आज ऐसा लग रहा है कि हर रोज़ व्यायाम करें नही तो नहीं करें क्योंकि पूरा शरीर में दर्द हैं और कुछ भी करने का मन नही कर रहा हैं। आज मैं दिन भर रूम में जा कर लेटा रहा ।
#दिव्यांश ओझा - आज मुझे अभ्यास के टाइम कुछ अजीब लग रहा था। बहुत ही अच्छा लगा जब हमने उल्टा अपने बल पर हुआ बिना किसी का सहारा लिए । मुझे लगा कि अगर रोज मैं अपने बल पर, बिना सहारा के कुछ कुछ करने लगा तो आने वाले समय में मैं अपनी शरीर को परफेक्ट कर सकता हूँ। लोग शरीर से एक्टर नही होता उनकी सोच उनको एक्टर बनाता है । पर हर आदमी का सोच समान होता है और उस समान सोच से अलग निकल के सोचते है तो आप एक एक्टर है । एक्टर को अपनी एक्टिंग से ज्यादा अपने आप पर पर धयान देना चाहिए आप कहा टाइम बिताते हैं । क्या करते है ओर आप लोग से कैसे बात करते है । आपको ऐसे बात करना चाहिए ताकि आज जो मिले वो हमेशा मिलना ही चाहे ओर आपसे खुश रहे आप ज्यादा एक्टर और एक्टिंग के बारे में ही बात करे ।
#आकाश कुमार - शरीर को फ्लेक्सीब्ल बनाने की थोड़ी कोशिश किये। फिर भैया ने भैया ने भूमि पर एक इंग्लीश वाक्य लिखा था "Thinking artist : is not the followers" आर्टिस्ट का काम ही होता है आर्ट क्रियेट करना कुछ नया करना। सबसे बड़ी विशेष बात यह कि आप आर्टिस्ट और इंसान बन सकते हो बशर्ते कि यह तीन विशेषता हो - 1)सीखे 2)समझे 3)करे
भैया हमेसा यह बात बार बार बोलते है की आप डिसिप्लिन मे रहना सीखे। डिसिप्लिन और कठोर श्रम से आप सपने पूरा कर सकते है और आप को देख कर आप के आस पास के लोग भी सीखेंगे । सपने हमेशा बड़े होने चाहिए। 1)goal जिसे हिन्दी मे लक्ष्य बोलते है ।
2) super goal मतलब लक्ष्य से भी ऊँचा जिसे पाना बहुत कठीन हो ।
#अभिनव कश्यप - अभ्यास के फायदे अब सुकून देता है और ताज़गी का एहसास होता है। सर ने आज सेल्फ डिपेंडेंट और सही दिशा में कठोर श्रम करने की प्रेरणा दी। क्योंकि कलाकारी के दुनियां में कोई शॉर्टकट होता ही नहीं। हमें ख़ुद को अपने भीतर तालाशन चाहिए, बाहर नहीं।
#सुशांत कुमार : एक एक्टर को अपने बॉडी पर पूरा संतुलन होना चाहिए। अगर आप एक एक्टर है और अपने बॉडी पे आपका संतुलन नही है तो आप सिर्फ डायलॉग बोल सकते है एक्टिंग नही कर सकते। आज के एक्सरसाइज से मैं अपने बॉडी संतुलन को जांच और परखा। अभी अपने बॉडी संतुलन पे बहुत काम करना है।
एक एक्टर की खासियत यह होती है कि वो किसी चीज को सीखता ,है समझता है और उसे करता है। आज मैंने यह सीख की कभी भी किसी का फॉलोवर मत बनिये। खुद को उस लायक बनाइये की लोग आपको फॉलो करें। काम ऐसा कि आपको बोलना ना पड़े बल्कि आपका काम बोले। आपके नाम से नही आपके काम से लोग आपको जाने।
#चंदन कुमार - आज हमलोगों ने दौड़ने के बाद वाक किए और वाक के साथ बीच-बीच में बैठ जाते, जम्प करते, लेट जाते, दौड़ने लगते, दौड़ते-दौड़ते अचानक से रुक जाते, तेज चलते -चलते स्लो चलने लगते। ये एक्सरसाइज़ माइंड और बॉडी एक साथ रियेक्ट करे उसके लिए है।जो कहीं न कहीं आपका IQ को देखता है।फिर हमलोगों ने ग्रुप एक्सरसाइज़ किए।जिसमें हमलोगों ने एक राउंड बनाकर पैर के बल बैठ कर और जम्प करके गोल-गोल घूमे।कंडीशन ये था कि आप को एक दूसरे के बीच की दुरी बनाएं रखनी है और सर्किल भी। इससे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर कितना विश्वास है ये पता चलता हैं।जो एक कलाकार के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
आज हमने एक प्ले देखा, जिसमे दो प्रेमी की विवशता को दर्शाता हैं कि कैसे वे अपनी दिल की बात एक दूसरे से नहीं कह पाते हैं।जो अक्सर देखा जाता है।
#अरुण : एक अभिनेता को शारीरिक और मानसिक संतुलन का ज्ञान होना चाहिए।क्योंकि जब एक अभिनेता मंच पर अभिनय करता है तो वो शरीर और मन के विपरीत काम करता है अर्थात अभिनय करते वक़्त जिस भी चरित्र को जीता है,वह उसके चरित्र के बिल्कुल विपरीत होता है साथ ही मंच तथा मंच परे की बाह्य परिस्थितयां भी कुछ अनुकूल तो कुछ प्रतिकूल होती है।ऐसी स्थिति में एक अभिनेता को अंदर और बाहर दोनों परिस्थितयों में एक संतुलित सामंजस्य बनाना पड़ता है।जो अभिनेता ऐसा ठीक ठीक कर पाते हैं,उनका अभिनय भी उतना ही अच्छा होता है।साथ ही एक अभिनेता को वास्तविक जीवन में भी सरल,दयालु ,निस्वार्थ एवं मिलनसार प्रविर्ती का होना चाहिए।यही जीवन की सामान्य स्थिति यानी कि केंद्र बिंदु है और जब आपको आपका केंद्र बिंदु पता हो तभी आप किसी चरित्र के साथ बराबर न्याय कर पाते हैं।
#संदेश कुमार - रोज की तरह आज भी मैं आठ 7:45 में रंगशाला पहुँचा, गर्मजोशी से दोस्तो के साथ एक्सरसाइज किये। आज बहुत कुछ नए चीजे सीखने को मिला जैसे goal दो प्रकार के होते है - goal और सुपर goal. एक अभिनेता को या हर इंसान को सुपर goal के सपना देखने चाहिए। सर ने समझाया कि जब कोई अर्टिएस्ट अपने goal का सपना देखता है और जब वो पूरा हो जाता है तो आपको लगने लगेगा कि मेरा सपना तो पूरा हो गया, उसके बाद आपके सीखने की काबिलियत मर जाएगी इसलिये एक artiest को सुपर goal जो कभी पूरा नही होता उस पर नजर होना चाहिये ताकि आप हर रोज कुछ नई चीजे सीखें। एक बात भैया और बताय की एक कलाकार के अंदर तीन बाते जो ये है 1 सीखने 2 समझने और 3 करने की जिज्ञाशा हमेशा होनी चाहिए मैं आज से ही ये तीनो बाते करने की कोशिश कर रहा हूँ
#संत रंजन : आज के क्लास से कुछ अर्जित ज्ञान :-
●कलाकार के लिए कुछ भी यूँ ही नहीं होता - इसके उदाहरण के रूप में अगर कोई कलाकार व्ययाम करता है वो उसके लिए सिर्फ़ एक व्ययाम मात्र नहीं होता जिससे शरीर हष्ट - पुष्ट हो जाये बस ! वरन् कलाकार के लिए तो हरेक व्ययाम का एक मतलब होना चाहिए जिससे कि वह अपनी कला को निखार सके ।
• कलाकार आखिर होता कौन है ? - एक कलाकार चिंतनशील हो सकता है किसी का अनुसरण करने वाला नहीं । उदाहरणार्थ कोई अभिनेता अमिताभ बच्चन से प्रभावित हो सकता है उनका अनुसरण करके उनके जैसा नहीं बन सकता ।
● एक कलाकार की मानसिकता - दुनियां में जो कुछ हो रहा है उन सबसे नकारात्मक चीज़ें निकालकर सकारात्मक चीजों को अपनाकर उससे अपनी कला को निखारकर लोगों के सम्मुख प्रदर्शित कर सकारात्मकता प्रदान करना ही एक कलाकार की मानसिकता होती है । वरना एक कलाकार और आम भोली - भाली मुर्ख जनता में क्या फ़र्क रह जाएगा ।
कलाकार की मानसिकता उस साधू की तरह होता है जो जिसे सिर्फ अपना बेड़ा पार लगाना , भव-सागर के पार जाना , मुक्ति प्राप्त करने की धुन इस क़दर सवार होती है उसे दुनियावी सुख-सुविधाएँ बेकार लगने लगती है ।
#सोनू : बिना परिश्रम किये हुए न तो आप किसी कार्य को हल कर सकते हैं और न ही किसी मंज़िल तक पहुंच सकते हैं | जो कि मैं कोई नई बात नहीं लिखा हूँ, आप सभी लोग इस कहावत से वाख़िफ हैं | ये मै इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि इस कहावत से मैं आज अच्छी तरह वाख़िफ हुआ | मैं कुछ दिनों से बहुत चिंतन में रह रहा हूँ, शायद एक अच्छे अभिनेता बनने के लिए , चीजों को समझने और नई चीजों की उपलक्ष्य मे होना चाहिए और इसके साथ सकारात्मक सोच भी होनी चाहिए, जो कि ये एक अच्छे अभिनेता होने का एहसास कराता है | हर दिन कुछ न कुछ अलग व्यायाम से पहचान हो रही है लेकिन पल्ले नही पड़ रही है , खैर अभी थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही पल्ले पड़ने में. बहरहाल आज का दिन शारीरिक से रूप दैनिय रहा |
#अनुज कुमार : आज फिर हमारा अभ्यास रोज की तरह जोश और जुनून के साथ शुरू हुआ पहले शरीरिक अभ्यास में हमें अपने बॉडी पे कंट्रोल का अभ्यास किया ,कहते है कि यदि आपका शरीर आपके बस में है तो आप कुछ भी कर सकते है।
अभ्यास के दूसरे सत्र में हमने जाना कि किसी भी कलाकार को चिन्तनशील होनी चाहिए क्योंकि जब आप चिंतन और मनन करने लगते है तो आप को समझ आने लगती है सही क्या है और ग़लत क्या है। सबसे ज्यादा अच्छी बात जाना ।
किसी भी कलाकार से पोसिटिव वब्रशन निकलनी चाहिए जब लोग आपको देखे तो उनका मिज़ाज खुश हो जाए आपको देखने मात्र से । तो आज मेरे अंदर कुछ बदलाव भी आया जो आप सभी को देखने को मिलेगा।
#राहुल सिन्हा - एक कलाकार के लिए ये समझना बेहद ही ज़रूरी है कि उसका दिमाग और शरीर एक साथ कैसे react करता है।जब हमारा इन दोनों पर नियंत्रण हो जाता है तो हमारे अभिनय में भी निखार आने लगता है। अब सवाल है कि इस पर नियंत्रण कैसे हो ? तो इसके लिए हमें सीखना ,समझना और करना पड़ता है। जब हम किसी चरित्र को जीते हैं तो उस चरित्र के अंदर की अनुभूतियों से ही हमारे शरीर में हरक़ते उत्पन्न होती है । जैसा अंदर महूसस करते हैं ठीक बाहर से भी वैसा ही दिखते हैं। शुरुआती दिनों में थोड़ी मुश्किल होती है समझने में। पर बराबर अभ्यास से धीरे-धीरे समझने लग जाते हैं। और अंत में, एक कलाकार को मिलनसार होना चाहिए।
#राकेश: रंगकर्मी; जब भी मैं इसे कहि लिखा हुआ देखता हूं तो मन में ख्याल आता है कि इसे इसके अर्थ के साथ क्यों नहीं लिखा जाता या फिर बोला जाता जिससे कि आम लोग आसान तरीके से समझ सकें। एक रंगकर्मी जो सोचता है, समझता है और फिर करता है। जिसमें न जात, होता है। न धर्म, न ऊँच, न नीच। जो खुद अपनी जमीन बनाता है उसपर झाड़ू लगाता है और हर वो काम खुद करता है जिसे समाज जानते हुए भी नकारती है। बहरहाल मैं रंगमंच या रंगकर्म के बारे में कुछ बोलने या लिखने लायक अभी नहीं बना हूं।
रंगशाला में आज कुछ नए एक्सरसाइज से हुई पूरे शरीर में किसी ज़ख्म के तरह टिस टीसाहट सा हो रहा है एक ऐसा ज़ख्म जो सफेद पट्टी के पिछे छिपा हुआ है और बहुत खूबसूरत लग रहा है।क्लास तो आज दस बजे तक ही हुआ है शायद भईया सब के चेहरे पर आ रहे थकान को भाप लिये हो। छुट्टी होने के बाद मेरा ध्यान कहि और होता है इसलिए मैं इस दर्द को दिन के 1:45 में महसूस कर रहा हूं खाना खाने के बाद इन बालू की बोरियों पर लेटा हुआ हूँ। धूप में शरीर से ठंडी हवाओं को गुज़रते हुए महसूस कर रहा हूँ। नीचे एक व्यक्ति क़मर भर पानी में हेल कर अपने मवेशियों के लिए घास काट कर दो बच्चीयों के तरफ फेक रहे है। सामने चौधरी जी खजूर के पेड़ से ताड़ी उतार रहे हैं ये किया लवनी के जगह पर ये प्लास्टिक के डिब्बे को लगा रहे है। मुझे उन बच्चीयों के लिए बुरा लग रहा है। लग रहा है जैसे कोई कहानी या कविता में लिखे लेखक के कल्पनाओ को देख रहा हूं। कौन कहता है कि दर्द अच्छे नही होते। मैं कहता हूं दर्द अच्छे होते है अगर दर्द न होता तो मैं यहाँ न बैठता अगर न बैठता तो इन चीज़ों को इतने करीब से न देखता। मन मे कुछ सवाल उठ रहे हैं। लेकिन इन सब से ध्यान हटाकर आज शाम होने वाले एक नाटक के बारे मे सोच रहा हूं। (तीसरी क़सम) मुझे इस नाटक का इंतजार बहुत दिनो से था।
हम ना केवल अभ्यास कर रहे हैं बल्कि अन्य नाट्य समूहों के प्रस्तुतियों को देखकर उस पर सार्थक बातचीत और उसे समझने की चेष्टा भी कर रहे हैं। नीरा निन्दा या नीरा आलोचना से सराबोर इस समय मे यह एक बेहद ज़रूरी कार्य है। कुछ अभिनेताओं ने कल भी डायरी लिखी थी, जो आपके समक्ष बिना किसी काटछांट के उपस्थित है -
#एदीप राज - आज अभ्यास के बीच में सर तीन मुक्का मारने के बाद बोले कि आलस एक मानसिक चीज़ है उसे माईंड से दूर करो। जब मैंने माईंड से आलस दूर किया तो बहुत ही फ्रेश महसूस किया। तब मैने उसी वक़्त एक निर्णय लिया आज के बाद कभी भी माईंड में आलस नही आने दूगा।
सर ने आज एक नया व्यायाम करवाया जो कि मुझे थोड़ा बहुत ही समझ आया शरीर कण्ट्रोल। आज ऐसा लग रहा है कि हर रोज़ व्यायाम करें नही तो नहीं करें क्योंकि पूरा शरीर में दर्द हैं और कुछ भी करने का मन नही कर रहा हैं। आज मैं दिन भर रूम में जा कर लेटा रहा ।
#दिव्यांश ओझा - आज मुझे अभ्यास के टाइम कुछ अजीब लग रहा था। बहुत ही अच्छा लगा जब हमने उल्टा अपने बल पर हुआ बिना किसी का सहारा लिए । मुझे लगा कि अगर रोज मैं अपने बल पर, बिना सहारा के कुछ कुछ करने लगा तो आने वाले समय में मैं अपनी शरीर को परफेक्ट कर सकता हूँ। लोग शरीर से एक्टर नही होता उनकी सोच उनको एक्टर बनाता है । पर हर आदमी का सोच समान होता है और उस समान सोच से अलग निकल के सोचते है तो आप एक एक्टर है । एक्टर को अपनी एक्टिंग से ज्यादा अपने आप पर पर धयान देना चाहिए आप कहा टाइम बिताते हैं । क्या करते है ओर आप लोग से कैसे बात करते है । आपको ऐसे बात करना चाहिए ताकि आज जो मिले वो हमेशा मिलना ही चाहे ओर आपसे खुश रहे आप ज्यादा एक्टर और एक्टिंग के बारे में ही बात करे ।
#आकाश कुमार - शरीर को फ्लेक्सीब्ल बनाने की थोड़ी कोशिश किये। फिर भैया ने भैया ने भूमि पर एक इंग्लीश वाक्य लिखा था "Thinking artist : is not the followers" आर्टिस्ट का काम ही होता है आर्ट क्रियेट करना कुछ नया करना। सबसे बड़ी विशेष बात यह कि आप आर्टिस्ट और इंसान बन सकते हो बशर्ते कि यह तीन विशेषता हो - 1)सीखे 2)समझे 3)करे
भैया हमेसा यह बात बार बार बोलते है की आप डिसिप्लिन मे रहना सीखे। डिसिप्लिन और कठोर श्रम से आप सपने पूरा कर सकते है और आप को देख कर आप के आस पास के लोग भी सीखेंगे । सपने हमेशा बड़े होने चाहिए। 1)goal जिसे हिन्दी मे लक्ष्य बोलते है ।
2) super goal मतलब लक्ष्य से भी ऊँचा जिसे पाना बहुत कठीन हो ।
#अभिनव कश्यप - अभ्यास के फायदे अब सुकून देता है और ताज़गी का एहसास होता है। सर ने आज सेल्फ डिपेंडेंट और सही दिशा में कठोर श्रम करने की प्रेरणा दी। क्योंकि कलाकारी के दुनियां में कोई शॉर्टकट होता ही नहीं। हमें ख़ुद को अपने भीतर तालाशन चाहिए, बाहर नहीं।
#सुशांत कुमार : एक एक्टर को अपने बॉडी पर पूरा संतुलन होना चाहिए। अगर आप एक एक्टर है और अपने बॉडी पे आपका संतुलन नही है तो आप सिर्फ डायलॉग बोल सकते है एक्टिंग नही कर सकते। आज के एक्सरसाइज से मैं अपने बॉडी संतुलन को जांच और परखा। अभी अपने बॉडी संतुलन पे बहुत काम करना है।
एक एक्टर की खासियत यह होती है कि वो किसी चीज को सीखता ,है समझता है और उसे करता है। आज मैंने यह सीख की कभी भी किसी का फॉलोवर मत बनिये। खुद को उस लायक बनाइये की लोग आपको फॉलो करें। काम ऐसा कि आपको बोलना ना पड़े बल्कि आपका काम बोले। आपके नाम से नही आपके काम से लोग आपको जाने।
#चंदन कुमार - आज हमलोगों ने दौड़ने के बाद वाक किए और वाक के साथ बीच-बीच में बैठ जाते, जम्प करते, लेट जाते, दौड़ने लगते, दौड़ते-दौड़ते अचानक से रुक जाते, तेज चलते -चलते स्लो चलने लगते। ये एक्सरसाइज़ माइंड और बॉडी एक साथ रियेक्ट करे उसके लिए है।जो कहीं न कहीं आपका IQ को देखता है।फिर हमलोगों ने ग्रुप एक्सरसाइज़ किए।जिसमें हमलोगों ने एक राउंड बनाकर पैर के बल बैठ कर और जम्प करके गोल-गोल घूमे।कंडीशन ये था कि आप को एक दूसरे के बीच की दुरी बनाएं रखनी है और सर्किल भी। इससे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर कितना विश्वास है ये पता चलता हैं।जो एक कलाकार के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
आज हमने एक प्ले देखा, जिसमे दो प्रेमी की विवशता को दर्शाता हैं कि कैसे वे अपनी दिल की बात एक दूसरे से नहीं कह पाते हैं।जो अक्सर देखा जाता है।
#अरुण : एक अभिनेता को शारीरिक और मानसिक संतुलन का ज्ञान होना चाहिए।क्योंकि जब एक अभिनेता मंच पर अभिनय करता है तो वो शरीर और मन के विपरीत काम करता है अर्थात अभिनय करते वक़्त जिस भी चरित्र को जीता है,वह उसके चरित्र के बिल्कुल विपरीत होता है साथ ही मंच तथा मंच परे की बाह्य परिस्थितयां भी कुछ अनुकूल तो कुछ प्रतिकूल होती है।ऐसी स्थिति में एक अभिनेता को अंदर और बाहर दोनों परिस्थितयों में एक संतुलित सामंजस्य बनाना पड़ता है।जो अभिनेता ऐसा ठीक ठीक कर पाते हैं,उनका अभिनय भी उतना ही अच्छा होता है।साथ ही एक अभिनेता को वास्तविक जीवन में भी सरल,दयालु ,निस्वार्थ एवं मिलनसार प्रविर्ती का होना चाहिए।यही जीवन की सामान्य स्थिति यानी कि केंद्र बिंदु है और जब आपको आपका केंद्र बिंदु पता हो तभी आप किसी चरित्र के साथ बराबर न्याय कर पाते हैं।
#संदेश कुमार - रोज की तरह आज भी मैं आठ 7:45 में रंगशाला पहुँचा, गर्मजोशी से दोस्तो के साथ एक्सरसाइज किये। आज बहुत कुछ नए चीजे सीखने को मिला जैसे goal दो प्रकार के होते है - goal और सुपर goal. एक अभिनेता को या हर इंसान को सुपर goal के सपना देखने चाहिए। सर ने समझाया कि जब कोई अर्टिएस्ट अपने goal का सपना देखता है और जब वो पूरा हो जाता है तो आपको लगने लगेगा कि मेरा सपना तो पूरा हो गया, उसके बाद आपके सीखने की काबिलियत मर जाएगी इसलिये एक artiest को सुपर goal जो कभी पूरा नही होता उस पर नजर होना चाहिये ताकि आप हर रोज कुछ नई चीजे सीखें। एक बात भैया और बताय की एक कलाकार के अंदर तीन बाते जो ये है 1 सीखने 2 समझने और 3 करने की जिज्ञाशा हमेशा होनी चाहिए मैं आज से ही ये तीनो बाते करने की कोशिश कर रहा हूँ
#संत रंजन : आज के क्लास से कुछ अर्जित ज्ञान :-
●कलाकार के लिए कुछ भी यूँ ही नहीं होता - इसके उदाहरण के रूप में अगर कोई कलाकार व्ययाम करता है वो उसके लिए सिर्फ़ एक व्ययाम मात्र नहीं होता जिससे शरीर हष्ट - पुष्ट हो जाये बस ! वरन् कलाकार के लिए तो हरेक व्ययाम का एक मतलब होना चाहिए जिससे कि वह अपनी कला को निखार सके ।
• कलाकार आखिर होता कौन है ? - एक कलाकार चिंतनशील हो सकता है किसी का अनुसरण करने वाला नहीं । उदाहरणार्थ कोई अभिनेता अमिताभ बच्चन से प्रभावित हो सकता है उनका अनुसरण करके उनके जैसा नहीं बन सकता ।
● एक कलाकार की मानसिकता - दुनियां में जो कुछ हो रहा है उन सबसे नकारात्मक चीज़ें निकालकर सकारात्मक चीजों को अपनाकर उससे अपनी कला को निखारकर लोगों के सम्मुख प्रदर्शित कर सकारात्मकता प्रदान करना ही एक कलाकार की मानसिकता होती है । वरना एक कलाकार और आम भोली - भाली मुर्ख जनता में क्या फ़र्क रह जाएगा ।
कलाकार की मानसिकता उस साधू की तरह होता है जो जिसे सिर्फ अपना बेड़ा पार लगाना , भव-सागर के पार जाना , मुक्ति प्राप्त करने की धुन इस क़दर सवार होती है उसे दुनियावी सुख-सुविधाएँ बेकार लगने लगती है ।
#सोनू : बिना परिश्रम किये हुए न तो आप किसी कार्य को हल कर सकते हैं और न ही किसी मंज़िल तक पहुंच सकते हैं | जो कि मैं कोई नई बात नहीं लिखा हूँ, आप सभी लोग इस कहावत से वाख़िफ हैं | ये मै इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि इस कहावत से मैं आज अच्छी तरह वाख़िफ हुआ | मैं कुछ दिनों से बहुत चिंतन में रह रहा हूँ, शायद एक अच्छे अभिनेता बनने के लिए , चीजों को समझने और नई चीजों की उपलक्ष्य मे होना चाहिए और इसके साथ सकारात्मक सोच भी होनी चाहिए, जो कि ये एक अच्छे अभिनेता होने का एहसास कराता है | हर दिन कुछ न कुछ अलग व्यायाम से पहचान हो रही है लेकिन पल्ले नही पड़ रही है , खैर अभी थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही पल्ले पड़ने में. बहरहाल आज का दिन शारीरिक से रूप दैनिय रहा |
#अनुज कुमार : आज फिर हमारा अभ्यास रोज की तरह जोश और जुनून के साथ शुरू हुआ पहले शरीरिक अभ्यास में हमें अपने बॉडी पे कंट्रोल का अभ्यास किया ,कहते है कि यदि आपका शरीर आपके बस में है तो आप कुछ भी कर सकते है।
अभ्यास के दूसरे सत्र में हमने जाना कि किसी भी कलाकार को चिन्तनशील होनी चाहिए क्योंकि जब आप चिंतन और मनन करने लगते है तो आप को समझ आने लगती है सही क्या है और ग़लत क्या है। सबसे ज्यादा अच्छी बात जाना ।
किसी भी कलाकार से पोसिटिव वब्रशन निकलनी चाहिए जब लोग आपको देखे तो उनका मिज़ाज खुश हो जाए आपको देखने मात्र से । तो आज मेरे अंदर कुछ बदलाव भी आया जो आप सभी को देखने को मिलेगा।
#राहुल सिन्हा - एक कलाकार के लिए ये समझना बेहद ही ज़रूरी है कि उसका दिमाग और शरीर एक साथ कैसे react करता है।जब हमारा इन दोनों पर नियंत्रण हो जाता है तो हमारे अभिनय में भी निखार आने लगता है। अब सवाल है कि इस पर नियंत्रण कैसे हो ? तो इसके लिए हमें सीखना ,समझना और करना पड़ता है। जब हम किसी चरित्र को जीते हैं तो उस चरित्र के अंदर की अनुभूतियों से ही हमारे शरीर में हरक़ते उत्पन्न होती है । जैसा अंदर महूसस करते हैं ठीक बाहर से भी वैसा ही दिखते हैं। शुरुआती दिनों में थोड़ी मुश्किल होती है समझने में। पर बराबर अभ्यास से धीरे-धीरे समझने लग जाते हैं। और अंत में, एक कलाकार को मिलनसार होना चाहिए।
#राकेश: रंगकर्मी; जब भी मैं इसे कहि लिखा हुआ देखता हूं तो मन में ख्याल आता है कि इसे इसके अर्थ के साथ क्यों नहीं लिखा जाता या फिर बोला जाता जिससे कि आम लोग आसान तरीके से समझ सकें। एक रंगकर्मी जो सोचता है, समझता है और फिर करता है। जिसमें न जात, होता है। न धर्म, न ऊँच, न नीच। जो खुद अपनी जमीन बनाता है उसपर झाड़ू लगाता है और हर वो काम खुद करता है जिसे समाज जानते हुए भी नकारती है। बहरहाल मैं रंगमंच या रंगकर्म के बारे में कुछ बोलने या लिखने लायक अभी नहीं बना हूं।
रंगशाला में आज कुछ नए एक्सरसाइज से हुई पूरे शरीर में किसी ज़ख्म के तरह टिस टीसाहट सा हो रहा है एक ऐसा ज़ख्म जो सफेद पट्टी के पिछे छिपा हुआ है और बहुत खूबसूरत लग रहा है।क्लास तो आज दस बजे तक ही हुआ है शायद भईया सब के चेहरे पर आ रहे थकान को भाप लिये हो। छुट्टी होने के बाद मेरा ध्यान कहि और होता है इसलिए मैं इस दर्द को दिन के 1:45 में महसूस कर रहा हूं खाना खाने के बाद इन बालू की बोरियों पर लेटा हुआ हूँ। धूप में शरीर से ठंडी हवाओं को गुज़रते हुए महसूस कर रहा हूँ। नीचे एक व्यक्ति क़मर भर पानी में हेल कर अपने मवेशियों के लिए घास काट कर दो बच्चीयों के तरफ फेक रहे है। सामने चौधरी जी खजूर के पेड़ से ताड़ी उतार रहे हैं ये किया लवनी के जगह पर ये प्लास्टिक के डिब्बे को लगा रहे है। मुझे उन बच्चीयों के लिए बुरा लग रहा है। लग रहा है जैसे कोई कहानी या कविता में लिखे लेखक के कल्पनाओ को देख रहा हूं। कौन कहता है कि दर्द अच्छे नही होते। मैं कहता हूं दर्द अच्छे होते है अगर दर्द न होता तो मैं यहाँ न बैठता अगर न बैठता तो इन चीज़ों को इतने करीब से न देखता। मन मे कुछ सवाल उठ रहे हैं। लेकिन इन सब से ध्यान हटाकर आज शाम होने वाले एक नाटक के बारे मे सोच रहा हूं। (तीसरी क़सम) मुझे इस नाटक का इंतजार बहुत दिनो से था।
सच कहते हैं अभिनेता की व्यक्तिगत जिंदगी नहीं रह पाती है, वह सार्वजनिक हो जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति