रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

अभिनेता की डायरी : भाग चार

प्रसिद्द फ़िल्म अभिनेता दिलीप कुमार एक अभिनेता और उसके सामाजिक दायित्वों के बारे में अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि "मेरा सदैव यह मानना रहा है कि अभिनेता को सामाजिक उत्तरदायित्व निभाते हुए समाज के प्रति समर्पित रहना चाहिए। एक अभिनेता, जो असंख्य लोगों का चहेता होता है, उसको समाज के प्रति अहसानमंद होना चाहिए, जिसने उसे उच्च और सम्माननीय दर्ज़ा दिया है।"
इस सामाजिक दायित्व के प्रति जागरूक बनाने के लिए भी एक कलाकार को कई अभ्यासों और ज्ञान के रास्तों से इसलिए गुज़रना पड़ता है कि पूंजी से संचालित दुनियावी सामाजिकता में एक इंसान को स्वार्थी, लोभी और स्वकेन्द्रित बनाने की पुरज़ोर कोशिश चलती रहती है। इसी प्रक्रिया के तहत एक कलाकार को ना केवल संवेदनशील बनना होता है वरन वैज्ञानिक चिंतन के साथ ही साथ अपने स्वार्थों के दायरे में पूरे ब्रह्मांड को समाहित करना पड़ता है। कुछ ऐसे ही प्रयास से आज का दिन शुरू होता है। जिसके बारे में अभिनेताओं की प्रतिक्रिया निम्न हैं –
#एदीप राज - आज पुरे बदन में दर्द था। सर आये कुछ बोले नही बल्कि हम सबको लेकर रंगशाला से बाहर चले गए। सड़क पर ले जाकर ठेले, खोमचे, दुकानवाले, रिक्शा-गाडीवाला आदि को दिखाकर बोले – “देखो लोग कैसे अपने काम में पुरी ईमानदारी से लगे हैं और ऐसा नहीं कि केवल आज बल्कि रोज़ तड़के सुबह से लेकर देर रात तक भिडे रहते हैं, तब जाकर यह लोग इस दुनियां में अपने रोज़गार से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, इनका काम अमूमन कभी रुकता नहीं है। इनका काम ही इनका आराम है। और एक हमलोग हैं कि दो-चार घंटा काम किए नहीं कि आराम खोजने लगते हैं।”
#निवास - रोज़ की तरह आज का दिन भी कुछ अलग हुआ। कई सारे अभ्यासों से गुज़रने के पश्चात आज यह एहसास कराया गया कि कलाकार को चिन्तनशील होना चाहिए और उसकी चिंता तार्किक होनी चाहिए ना कि विश्वास, मान्यताओं और अंधभक्ति से संचालित। एक कलाकार को सही और गलत की साफ़-साफ़ पहचान भी होना चाहिए।
#चुन्नू – अपना व्यक्तिगत रियाज़ करने के बाद आज अभ्यास में गया। आज क्लास के दौरान सड़क पर जो एहसास हुआ वो अद्भुत था कि कैसे मेहनतकश लोग रोज़ अपना काम पुरे मेहनत और इमानदारी से करते हैं। रंगशाला के बाहर जीतन जी, जिनके यहाँ से हम रंगकर्मियों की चाय आती है, से हमारी बातचीत करवाई गई। उनसे बात करके यह एहसास हुआ कि समय, ईमानदारी और मेहनत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
#संत रंजन : कलाकार को मेहनतकश होना चाहिए न कि आलस की पोटली। बिना मेहनत के कोई भी कलाकार अपनी के माध्यम जीवन-यापन नहीं कर सकता है। मेहनकश वर्ग के लिए हर दिन काम का दिन होता है वरना लक्ष्मी रूठ जाएगीं और कलात्मक नुकसान होगा ही। कलाकार को मेहनकश आवाम से मेहनत की सीख लेनी चाहिए। एक मेहनती व्यक्ति का सबसे बड़ा भरोसा अपनी मेहनत पर होता है और दुनियां मेहनतकश लोगों के द्वारा ही चलती है।
#प्रशांत कुमार : सर बाहर घूमने के दौरान बहुत सारी बाते बताएं। वो बोले कि “लोग कैसे अपना काम अपने समय पर और अपनी मेहनत से करते है और अपने जगह और समान को कितने साफ सुथरा और यथासंभव सजा कर रखते है। इसी तरह एक एक्टर को भी अपना समय का महत्व समझना चाहिए और उस समय को नही गंवाना चाहिए। उसके बाद विभिन्न खेलों के माध्यम से शरीर और दिमाग को एकसाथ करने की कोशिश किया गया।
#अभिनव कश्यप – कल अभ्यास के दौरान पैर में मोच आने की वजह से चाहते हुए भी नहीं आ सका। इन अभ्यासों ए शामिल ना होने के कारण मेरा कितना बड़ा नुकसान हो रहा है वो केवल मैं ही जाता हूँ।
#आकाश कुमार – मैं और मेरे साथी अपने दर्द से परेशान थे कि भैया आज हमें बिना कुछ बोले बाहर ले गए और एहसास करवाया कि असली पीड़ा क्या होती है। कैसे लोग अपनी और अपनों की ज़िंदगी चलाने के लिए रोज़ सत्रह-सत्रह घंटा जीतोड़ मेहनत करते हैं। मुझे अपने और अपने दर्द पर हंसी आई। कितना नाजुक हो गए हैं हम! शुक्रिया भैया, जीवन के कटु सत्य से रूबरू करवाने के लिए।
फिर हमने तन-मन को आत्मसात करने के लिए एक खेल भी खेला। नाटक को अँग्रेजी मे प्ले कहते हैं और प्ले का अर्थ होता है खेलना और जब हम सच में खेल रहे होते हैं तब हमारा तन-मन सब एकाकार हो जाता है। एक अभिनेता को भी ऐसे ही अभिनय में एकाकार होकर डूबना चाहिए। भैया ने आज भी इस बात पर ज़ोर दिया कि निकटता सही, मेहनती और सकारात्मक लोगो के रखनी चाहिए जो आपकी आलोचना आपकी कमी को दूर करने के लिए करे, ना कि आपको ख़ारिज करने के लिए। बहुत सारे उदाहरणों से भैया ने यह भी समझाने की चेष्टा की कि हालांकि कलाकार भी आम इंसान ही होता है लेकिन एक कलाकार और आम इंसान के जीवन दृष्टि में बहुत फर्क होता है। एक आम इंसान मजबूरियों, अज्ञानता और विश्वासों आदि के सहारे जीवन यापन कर सकता है लेकिन एक कालाकार के लिए स्वतंत्रता सबसे बड़ी दौलत होती है, वो कभी भी किसी भी बंधन में बांधकर क्ला का सृजन नहीं करता। कलाकार तमाम प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक गुलामी से मुक्त होता है और ऐसा होने के लिए उसे खुद को ज्ञानी और गुणी बनाना पड़ता है।
#देवांश ओझा - आज के अभ्यास शारीरिक कम मानसिक ज़्यादा था। जिनके भीतर सपने देखने और अपने सपनों को पूरा करने का जूनून होता है उनके लिए आराम जैसी कोई चीज़ नहीं होती और इस कार्य में आंतरिक शक्ति का योगदान महत्वपूर्ण होता है। खुद को गहरे पानी में डुबाए बिना मोती को नहीं पाया जा सकता है। सपना आपका है तो उसे पूरा भी आपको ही करना है दुनियां का अन्य कोई भी चीज़ या इंसान मदद कर सकता है, आपके बदले आपका सपना पूरा नहीं कर सकता।
#सुशांत कुमार - आप चाहे जिस विधा में भी काम कर रहे है। आपको अपने काम के प्रति आत्मसमर्पण और कठोर श्रम का भाव होना चाहिए। जिस पल हमने यह कर लिया उस पल से आपको आपका काम कभी भी बोझ बल्कि जूनून बन जाएगा। आपका काम आपका जीवन साथी हो जाएगा और आप उसके बगैर चैन से नहीं पाएंगे। ऐसे भी सपने देखने मात्र से काम नहीं चलता बल्कि सपनों को जीना भी पड़ता है।
#सन्देश कुमार – आज मेहनतकश आवाम के असली मेहनत से रूबरू होने का दिन था। इनसे हमारा सामना रोज़ होता है लेकिन हम कभी गौर नहीं करते। आज जब गौर किया तो लगा कि इनके संघर्ष और पीड़ा के आगे हमारा तो कुछ है ही नहीं। और मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।
#राहुल सिन्हा – जब तक न सफ़ल हो, नींद, चैन को त्यागो तुम। संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम। यह हरिवंशराय बच्चन जी की कविता की कुछ ऊर्जावान पंक्तियां है। जो किसी भी टूटे हुए व्यक्ति को फिर से उर्जित कर देती है और वाक़ई में कितना यथार्थ है इन पंक्तियों में। जब हम किसी लक्ष्य की और बढ़ते है तो कितनी ही जटिल मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रास्ते मे भटकाव और रुकावटें भी आते हैं और हमलोग डर जाते हैं। ख़ुद से ही सवाल करने लगते हैं कि हमने ये रास्ता चुनकर ठीक तो किया हैं ना?
जब हम इन जैसों सवालों से घिरने लगते है तो कहीं न कहीं हम अपनी कमजोरियों को छिपाने लगते हैं और भय की इस दलदल में धीरे-धीरे धंसने लगते हैं। मान लेते हैं कि ये काम हमसे नहीं हो पायेगा। जो बिल्कुल ग़लत है। कोई भी काम असम्भव नहीं होता है। बस ज़रूरत होती है तो उस काम के प्रति सच्ची लगन ,ईमानदारी, एकनिष्ठता और अपनी कमजोरियों को स्वीकार कर उसको सुधारने की। तो महोदय - -कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
#राकेश - आज रंगशाला की ओर बढ़ते हुए मैं खुद को कोसे जा रहा था। तीस मिनट लेट जो पहुँचा हूं। क्लास शुरू था, पहला सत्र तो खुद को कोसने में ही चल गया। चीजों को मैंने आज समझा ही नही लग रहा था जैसे बोहनी खराब हो गया है। पूरा मूड ख़राब हो गया है।
#चंदन रॉय – आज क्लासरूम से बाहर निकलकर अवलोकन पर कार्य हुआ। बाहर मैंने पाया कि सबसे पहले लोग अपनी-अपनी जगह की सफाई करते हैं फिर सामग्री को यथासंभव सजाते हैं। इसका तत्काल प्रभाव मुझपर यह हुआ कि वहां से वापस कमरे पर आते ही मैंने उसकी सफ़ाई की, जो कि बीस-पच्चीस दिन से नहीं हुआ था और सामान को उचित स्थान पर रखा।जगह साफ़-सुथरी हो तो अच्छा महसूस होता है। 
#अरुण कुमार - दुनिया हर रोज़ सजती है, हर रोज़ उजड़ने के लिए। ये दुनिया हर रोज़ उजड़ती है,फिर से सजने के लिए। और इसे बनाने में जिस वर्ग का हाथ होता है, उसे हम मेहनतकश वर्ग कहते है अर्थात अगर ये ना होते तो ये दुनिया इतनी ख़ूबसूरत न होती।
चाहे वो कोई भी पेशा क्यों न हो, इन्हें बनाये रखने में सबसे ज़्यादा इन्हीं का हाथ होता है। इनके बिना एक बेहतर समाज की कल्पना करना बेमानी होगी। ये जानते हैं कि मेहनत ही इनका वजूद है। इन्हें अच्छी तरह पता होता है कि लाइफ में कोई शॉर्टकट नही होता। यही वो चीज़ है जो इन्हें मेहनत करने के लिए हमेशा प्रेरित करता है। हम सभी कलाकारों को भी यह गांठ बांध लेनी चाहिए कि अगर आपको अपने पेशे में कुछ बेहतर करना है तो आप को इस "मेहनत" नामक शब्द को अपने दिलों दिमाग में बसाना होगा। क्योंकि यही वो कुंजी है जिससे दुनिया का कोई भी ताला खोला जा सकता है।
#सोनू कुमार - प्रोफेशनल बनना सब की बस में नहीं है, लेकिन ऐसा भी नहीं है। आज मैं कुछ ऐसे व्यक्तियों को देखा तो समझ में आया कि यार इन लोगों से बेहतर प्रोफेशनल व्यक्ति कोई हो ही नही सकता। उदाहरण के तौर पर आप ठेले वाले को देख लीजिए, चाय वाले को देख लीजिए। इन लोगों के अंदर झाँक के देखिए कभी बहुत सारी चीज़ें दिखेगी, जो एक प्रोफेशनल व्यक्तित्व को दर्शाता है।
#अनुज कुमार – Passion (जुनून) : ऐसा कोई  कामयाब व्यक्ति नही होगा जो इस शब्द से अनभिज्ञ हो, क्योंकि बिना जूनून के कोई भी लक्ष्य हाशिल किया ही नहीं जा सकता। अगर सपने बड़े हैं तो मेहनत भी बड़ा होना चाहिए। एक सामान्य मेहनतकश इंसान जब अपना जीवन चलाने के लिए सत्रह घंटे काम करता है तो उनको कितने घंटे काम करना चाहिए जो दुनियां पर राज करने का सपना पालते हैं?
#संत रंजन - कल मैंने अपने प्रशिक्षण सत्र में बहुत ही अहम बाते जानी। जो कुछ सवाल मेरे मन में हमेशा कौंधते रहते थे। उनके जवाब मुझे कुछ दिनों से लगातार यहां मिल रहे है। सबसे बड़ा सवाल जो कि मुझे खुद भी जानना था वो मेरे मित्र अरुण ने पूछी कि ये ख़ुशी और दुःख है क्या? सच में सच में इसका जवाब सुनके समझ के लगा की हां जिस चीज़ के लिए इतनी मशक़्क़त करनी पड़ती है वो हमारे भीतर ही भड़ी पड़ी है। एक और आखिरी बात जो मैं कभी नही भूल सकूँगा – खुशी हमारे भीतर है उसे बाहर तलाशने की ज़रूरत नहीं, एक कलाकार किसी को फौलोअर नहीं होता और एक कलात्मक दिमाग किसी भी सीमा में बांधकर नहीं रहता।

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