रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

रणवीर सिंह : जन्मदिन की बहुत्ते बधाई।

"महान सोच वाले व्यक्ति विचार के बारे में बात करते हैं, साधारण सोच वाले घटनाओं के बारे में, कमतर सोच के लोग व्यक्ति के बारे में बात करते हैं।" - एलेनॉर रूज़वेल्ड का यह विश्वप्रसिद्ध कथन है। मुझे यह कथन व्यक्तिगत रूप से बहुत पसंद है और जितना संभव हो सकता है इसका पालन करने की चेष्टा भी करता हूं। अमूमन मैं किन्हीं के बारे में कोई व्यक्तिगत टिप्पणी कम से कम फेसबुक पर तो नहीं ही करता हूं। बाक़ी इंसान हूं तो इंसानी दोष से पूरी तरह मुक्त होना संभव भी नहीं है लेकिन मूल मामला सोच का ही है। वैसे भी व्यक्ति की नहीं बल्कि प्रवृत्ति की बात करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो व्यक्ति बदल जाएगा लेकिन प्रवृत्ति जस की तस रहती है और अमूमन समाज में वही प्रवृत्ति चलती रहती है। यह ठीक वैसी बात ही है जैसे सत्ता बदलती है लेकिन आम इंसान की हालत अमूमन वैसी की वैसी ही रहती है। बस कुछ नहले दहले हो जाते हैं और कुछ दहले नहले बाक़ी जस का तस। 

इतनी भूमिका इसलिए बना रहा हूँ क्योंकि आज भारतीय रंगमंच के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में पोस्ट करने जा रहा हूं। वो पता नहीं कितने ही दशक से रंगमंच से जुड़े हैं और जब भी इनसे बात होती है तो वो हमेशा सही सलाह ही देते हैं, चाहे वो जीवन मूल्यों की बात हो, राजनीति की बात हो या फिर समाज की बात हो या रंगमंच की। भारतीय रंगमंच से जुडा जब कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ कहीं नहीं मिलता तो इनको फोन लगाया जाता है, या तो वो इनके पास होता है या फिर ये बता देते हैं कि फलां चीज़ कहां मिल सकती है।

रंगमंच को लेकर इनका साफ मानना है कि जब तक रंगमंच आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा नहीं होता तब तक इस पर बड़ी-बड़ी बातें केवल बातें ही होकर रह जाएगीं। रंगमंच को अपने आर्थिक संसाधन ख़ुद से पैदा करना चाहिए और इसके लिए जितने भी प्रयास हो, रंगकर्मिंयों द्वारा किए ही जाने चाहिए। ग्रांट और शौक़िया रंगमंच से रंगकर्म का बहुत ज़्यादा कुछ भला नहीं होने वाला। वैसे भी जो पेशा अपने (कुछ अपवादों को छोड़कर) कर्मठ से कर्मठ उम्मीदवारों को भरण-पोषण तक कर पाने तक की स्थिति में न हो, उससे किसी का भला क्या होगा? 

रंगमंच को एक व्यावसायिक और पेशेवर कला होना ही चाहिए और ऐसा करते हुए उसे अपने कलात्मकता का भी भरपूर ध्यान रखना चाहिए अर्थात ऐसा होते हुए उसे अपनी ज़िम्मेदारी और कलात्मकता से कोई समझौता करने की ख़ास ज़रूरत नहीं है। टिकट वाले दर्शक के साथ ही साथ निर्माताओं और मैनेजर्स की एक पूरी फ़ौज खड़ी करने की आवश्यकता है। यह काम वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध, तकनीति रूप से प्रशिक्षित कोई पेशेवर नाट्यदल ही कर सकता है और ऐसा प्रयत्न आज हर जगह होने की ज़रूरत है। वैसे भी बिना तकनीकी रूप से दक्ष, जन सरोकार के विचारों से लैश और पेशेवर नज़रिए के यह काम होना असंभव ही है। 

मैं यहां बात रणवीर सिंह (Ranbir Sinh) जी की कर रहा हूं, जिनका आज जन्मदिन है और जो उम्र के इस पड़ाव पर भी अपना ज़्यादातर वक़्त पढ़ने-लिखने में बिताते हैं। कई दशक के लंबे रंगयात्रा में इन्होंने अनगिनत नाटक खेले, देखे, मंचित किए, अनगिनत आयोजनों के भागीदार रहे, कई नाटक लिखे और कई नाटकों के अनुवाद/रूपांतरण किए, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेख लिखे और जब भी ज़रूरत होती है सबको ख़ूब सारा स्नेह, उचित और बहुमूल्य और व्यवहारिक सलाह ही देते हैं। वर्तमान में आप भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और आज आपका 92वां जन्मदिन हैं और आज भी अपने जीवन का ज़्यादातर वक़्त रचनात्मक काम में ही व्यतीत करते हैं।

पता नहीं नौजवान पीढ़ी आज इनके नाम और काम से परिचित भी है या नहीं, नहीं है तो होना ही चाहिए; यह एक पीढ़ी की ज़िम्मेदारी भी बनती है। ऐसे लोग भारतीय रंगमंच के जीवित घरोहरों में से एक हैं। आइए, इनकी दीर्घायु की कामना करते हुए इनके जन्मदिन की बधाई प्रेषित किया जाए। बधाई स्वीकार कीजिए सर, आप स्वस्थ्य रहें, कुशल, मंगल और रचनात्मक रहें। 
पुंज प्रकाश

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