1910 मे मुंबई में फिल्म ‘द लाइफ ऑफ
क्राइस्ट’ के प्रर्दशन के दौरान दर्शकों की भीड़ में एक ऐसा
शख्स भी था जिसे फिल्म देखने के बाद अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया। लगभग दो महीने
के अंदर उसने शहर में प्रदर्शित सारी फिल्में देख डाली और निश्चय कर लिया वह फिल्म
निर्माण ही करेगा। यह शख्स और कोई नहीं भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के थे।
बावर्ची बना बॉलीवुड की पहली हिरोइन
भारतीय सिनेमा जगत की पहली फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ का निर्माण दादा साहब फाल्के (मूल नाम धुंडिराज गोविन्द फाल्के) ने फाल्के
फिल्म कंपनी के बैनर तले किया। फिल्म बनाने में उनकी मदद फोटोग्राफी उपकरण के डीलर
यशवंत नाडरकर्णी ने की थी। फिल्म में राजा हरिशचंद्र का किरदार दत्तात्रय दामोदर,
पुत्र रोहित का किरदार दादा फाल्के के बेटे भालचंद्र फाल्के जबकि
रानी तारामती का किरदार रेस्टोरेंट में बावर्ची के रूप में काम करने वाले व्यक्ति
अन्ना सालुंके निभाया था।
500 लोगों ने किया काम, 15000 रुपए में
बनी फिल्म
फिल्म के निर्माण के दौरान दादा फाल्के की पत्नी ने उनकी काफी सहायता की।
इस दौरान वह फिल्म में काम करने वाले लगभग 500 लोगों के लिये खुद
खाना बनाती थीं और उनके कपड़े धोती थीं। फिल्म के निर्माण में लगभग 15000 रुपए लगे जो उन दिनों काफी बड़ी रकम हुआ करती थी। फिल्म का प्रीमियर
ओलंपिया थियेटर में 21 अप्रैल 1913 को
हुआ जबकि यह फिल्म तीन मई 1913 में मुंबई के कोरनेशन सिनेमा
में प्रर्दशित की गई। लगभग 40 मिनट की इस फिल्म को दर्शकों
का अपार प्यार मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई।
भारत की पहली महिला अभिनेत्री और पहला डांस नंबर
फिल्म राजा हरिश्चंद्र की अपार सफलता के बाद दादा साहब फाल्के ने वर्ष 1913 में
‘मोहिनी भस्मासुर’ का निर्माण किया।
इसी फिल्म के जरिये कमला गोखले और उनकी मां दुर्गा गोखले जैसी अभिनेत्रियों को
भारतीय फिल्म जगत की पहली महिला अभिनेत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। इसी फिल्म
में पहला डांस नंबर भी फिल्माया गया था। कमला गोखले पर फिल्माए इस गीत को दादा
फाल्के ने नृत्य निर्देशित किया था।
हिट हुआ फाल्के का आइडिया, खुलने लगीं फिल्म कंपनियां
वर्ष 19।4 मे दादा फाल्के ने ‘राजा हरिश्रचंद्र’, ‘मोहिनी भस्मासुर’ और ‘सत्यवान सावित्री’ को लंदन
में प्रर्दशित किया। इसी वर्ष आर वैकैया और आरएस प्रकाश ने मद्रास में पहले स्थायी
सिनेमा हॉल गैटी का निर्माण किया। वर्ष 1917 में बाबू राव
पेंटर ने कोल्हापुर में महाराष्ट्र फिल्म कंपनी की स्थापना की वही जमशेदजी फरामजी
मदन (जे.एफ मदन) ने एलफिंस्टन बाईस्कोप के बैनर तले कोलकाता में पहली फीचर फिल्म
सत्यवादी राजा हरिश्रचंद्र का निर्माण किया।
बॉलीवुड का पहला डबल रोल, पहली सुपरहिट फिल्म
वर्ष 1917 मे प्रदर्शित दादा फाल्के की फिल्म ‘लंका दहन’ पहली फिल्म थी जिसमें किसी कलाकार ने
दोहरी भूमिका निभाई थी। अन्ना सांलुके ने इस फिल्म में राम और सीता का किरदार
निभाया था। इस फिल्म को भारतीय सिनेमा को पहली सुपरहिट फिल्म बनने का गौरव प्राप्त
है। मुंबई के एक सिनेमा हॉल में यह फिल्म 23 सप्ताह तक
लगातार दिखाई गयी थी। वर्ष 1918 में प्रर्दशित फिल्म कीचक
वधम दक्षिण भारत मे बनी पहली फिल्म थी।
जब फिल्मी पर्दा बन गया मंदिर
वर्ष 1919 में प्रदर्शित दादा फाल्के की फिल्म ‘कालिया मर्दन’ महत्वपूर्ण फिल्म मानी जाती है। इस
फिल्म में दादा फाल्के की पुत्री मंदाकिनी फाल्के ने कृष्णा का किरदार निभाया था।
लंका दहन और कालिया मर्दन के प्रर्दशन के दौरान श्रीराम और श्री कृष्ण जब पर्दे पर
अवतरित होते थे तो सारे दर्शक उन्हें दंडवत प्रणाम करने लगते। वर्ष 1920 मे आर्देशिर इरानी ने अपनी पहली मूक फिल्म नल दमयंती का निर्माण किया।
फिल्म में पेटनीस कूपर ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
शुरु हुआ कमर्शियल सक्सेस का दौर
1920 का दशक फिल्मों का निर्माण व्यवसायिक रूप से सफलता
प्राप्त करने के लिये होने लगा। वर्ष 1921 में प्रर्दशित
फिल्म भक्त विदुर कोहीनूर स्टूडियो के बैनर तले बनायी गयी एक सफल फिल्म थी। इसी
वर्ष 1921 में प्रदर्शित फिल्म ‘द
इंग्लैंड रिटर्न’ पहली सामाजिक हास्य फिल्म साबित हुयी।
फिल्म का निर्देशन धीरेन्द्र गांगुली ने किया था। इस वर्ष प्रर्दशित फिल्म ‘सुरेखा हरन’ से बतौर अभिनेता राजाराम वानकुदरे
शांताराम (व्ही शांताराम) ने अपने सिने करियर की शुरूआत की थी।
पहला स्टार, सेंसर बोर्ड की आपत्ति और पहला पोस्टर
वर्ष 1922 मे प्रर्दशित जेजे मदन निर्देशित फिल्म पति भक्ति को
टिकट खिड़की पर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। फिल्म की सफलता ने अभिनेता पेटनीस
कूपर स्टार बन गये। यह पहली फिल्म थी जहां सेसंर बोर्ड ने फिल्म पर अपनी आपत्ति
जताते हुए इस फिल्म के एक गाने को हटाने की मांग की थी। बाबू राव पेंटर निर्मित और
वर्ष 1923 में प्रदर्शित फिल्म सिंघद पहली फिल्म थी जिसमे
आर्टिफिशियल लाईट का इस्तेमाल किया गया था। इस फिल्म में व्ही शांताराम ने मुख्य
भूमिका निभाई थी। इसी वर्ष पहला सिनेमा पोस्टर बाबू राव पेंटर ने अपनी फिल्म ‘वत्सला हरन’ के लिये छपवाया था।
पहली महिला निर्देशक
वर्ष 1926 में प्रर्दशित फिल्म ‘बुलबुले’
परिस्तान पहली फिल्म थी जिसका निर्देशन महिला ने किया था। बेगम
फातिमा सुल्ताना इस फिल्म की निर्देशक थीं। फिल्म में जुबैदा, सुल्ताना और पुतली ने मुख्य भूमिका निभाई थीं। इसी वर्ष आर्देशिर इरानी ने
इंपेरियल फिल्म की स्थापना की। लाहौर में पंजाब फिल्म कॉरपोरेशन की स्थापना भी इसी
वर्ष की गयी।
और वो पहला देवदास...
1928 में प्रदर्शित शरत चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास देवदास
पर पहली बार फिल्म देवदास का निर्माण किया गया। फन्नी बरूआ, तारकबाला
और निहारबाला और मिस पारूल इस फिल्म में मुख्य भूमिका मे थे। फिल्म का निर्देशन
नरेश मित्रा ने किया था। इसी वर्ष पृथ्वीराज कपूर ने अपने सिने करियर की शुरूआत
मुंबई में इंपीरियल फिल्म कंपनी से की। इसी वर्ष प्रर्दशित फिल्म ‘विश्वमोहिनी’ ऐसी फिल्म थी जिसमे किसी अभिनेत्री ने
तिहरी भूमिका की। गौहर ने इस फिल्म में तिहरी भूमिका की थी।
गौहर का जादू, तस्वीर वाली माचिस हुई हिट
उस दौर की चर्चित अभिनेत्री गौहर इतनी अधिक चर्चित हुईं कि उनकी तस्वीर जब
माचिस की एक डिब्बी पर छपने लगी तब लोग वही माचिस खरीदने लगे और उनकी तस्वीर काटकर
अपनी कमीज की उपर वाली जेब में रखने लगे। ऐसा लोग इसलिए करते थे कि गौहर की तस्वीर
उनके सीने से लगी रहे। वहीं अभिनेत्री जुबैदा एक राज परिवार से आयी थीं। उनकी
खूबसूरती लोग देखते नहीं थकते थे। यही वजह की कि जब बोलती फिल्म ‘आलम
आरा’ की तैयारी होने लगी तो आर्देशिर ईरानी ने उन्हें अपनी
फिल्म में अभिनय का अवसर दिया।
और जब बोल पड़ी फिल्में...
14 मार्च 1931 को भारतीय सिनेमा जगत की
पहली सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ पदर्शित
हुई। चालीस हजार रूपए में बनी आर्देशिर इरानी निर्मित इस फिल्म का प्रदर्शन
सर्वप्रथम मुबंई के मैजेस्टिक सिनेमा में किया गया। पृथ्वीराज कपूर, जहांआरा और जुबैदा जैसे सितारों से सजी इस फिल्म में 7 गाने थे। पहले संगीतकार फिरोज साह मिस्त्री के निर्देशन में वजीद मोहम्मद
खान की आवाज में पहला गाना दे दे खुदा के नाम पर रिकॉर्ड किया गया। मदन थियेटर के
बैनर तले जेजे मदन निर्देशित दूसरी सवाक फिल्म ‘शीरी फरहाद’
30 मई 1931 को प्रर्दशित हुयी। इस फिल्म में
कुल 18 गीत थे।
पहली सिल्वर जुबली
मराठी फिल्म श्याम सुंदर(1932) ने सबसे पहले सिल्वर जुबली मनायी
थी। दादा साहब तोरणे निर्मित और भालजे पेडरकर निर्देशित इस फिल्म ने मुंबई के
वेस्ट इंड सिनेमा में 27 सप्ताह दिखाई गयी। मदन थियेटर के
बैनर तले बनी फिल्म इंदौरसभा (1932) में सर्वाधिक 71 गाने थे। इसी साल प्रदर्शित न्यू थियेटर की फिल्म मोहब्बत के आंसू से
कुंदन लाल सहगल ने बतौर अभिनेता कदम रखा।
बॉलीवुड का सबसे लंबा किस
साल 1933 में प्रदर्शित अंग्रेजी फिल्म ‘कर्म’
में देविका रानी ने हिमांशु राय के साथ लगभग चार मिनट तक लिप टू लिप
दृश्य देकर उस वक्त तहलका मचा दिया। ये आज भी बॉलीवुड का सबसे लंवा किसिंग सीन
माना जाता है। इसी वर्ष मुंबई में पहला एयर कंडीशन सिनेमा हाल रीगल और वाडिया
मूवीटोन कंपनी की स्थापना की गयी। इसी साल प्रदर्शित फिल्म यहूदी की लड़की से सचिन
देव बर्मन ने पार्श्र्वगायक और पंकज मल्लिक ने संगीतकार के रूप में अपनी पारी शुरू
की।
हिन्दी फिल्मों की पहली ड्रीम गर्ल
देविका रानी के साथ शादी के बाद हिमांशु राय ने साल 1934 में
बॉम्बे टॉकीज बैनर की स्थापना की। इस बैनर तले बनी पहली फिल्म ‘जवानी की हवा’ में देविका रानी ने मुख्य भूमिका
निभाई थी। हिन्दी फिल्मों की पहली स्वप्न सुंदरी ड्रीम गर्ल देविका रानी को कहा
जाता है।
बॉलीवुड का पहला फ्लैशबैक
पीसीबरूआ और जमुना अभिनीत वर्ष 1934 में प्रदर्शित फिल्म ‘रुपलेखा’ में पहला फलैशबैक फिल्माया गया। इसी साल
आर्देशिर ईरानी ने पहली अंग्रेजी फिल्म ‘नूरजहां’ का निर्माण किया। देवकी बोस के निर्देशन में बनी बंगला फिल्म ‘सीता’ को वेनिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया। पहली
कन्नड़ फिल्म सती सुलोचना भी इसी वर्ष प्रदर्शित हुई। इसी साल मोतीलाल ने शहर का
जादू और चंद्रमोहन ने अमृत मंथन से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था।
शुरू हुआ पार्श्वगायन
नितिन बोस के निर्देशन में साल 1935 में प्रदर्शित फिल्म ‘धूपछांव’ से हिंदी फिल्मों में पार्शगायन की शुरूआत
हुई। मैं खुश होना चाहूं गाना पारूल घोष, सुप्रभा सरकार और
हरिमति की आवाज में फिल्माया गया। इसी साल तलाशे हक से नरगिस की मां जद्दन बाई और ‘जवानी की हवा’ से सरस्वती देवी को संयुक्त रूप से
पहली महिला संगीतकार बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
बॉलीवुड की पहली गोल्डन जुबली
प्रभात फिल्म्स के बैनर तले दामले और फतेह लाल अभिनीत वर्ष 1936 में
आयी ‘संत तुकाराम’ ने बॉक्स ऑफिस पर
पहली गोल्डन जुबली मनायी। वेनिस फिल्म फेस्टिबल में बेस्ट फिल्म का पुरस्कार जीतने
वाली यह पहली भारतीय फिल्म थी। वर्ष 1937 में आर्देशिर इरानी
ने पहली रंगीन फिल्म ‘किसान कन्या’ और
वर्ष 1938 में दूसरी रंगीन फिल्म ‘मदर
इंडिया’ बनायी जिसने टिकट खिड़की पर लगभग 32 सप्ताह चलने का रिकॉर्ड बनाया।
दादा साहेब फाल्के की आखिरी फिल्म
वर्ष 1937 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगावतरण’
दादा फाल्के के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। वर्ष 1938
में आर्देशिर ईरानी इंडियन मोशन फिल्म्स प्रोड्यूसर एसोसिएशन की
स्थापना कर अध्यक्ष बने। वर्ष 1938 प्रदर्शित फिल्म ‘बहादुर किसान’ से भगवान दादा के बतौर निर्देशक,
ग्रामोफोन सिंगर से जोहरा बाई अंबाला वाली ने पार्श्र्वगायिका अपने
करियर की शुरूआत की। इसी वर्ष पहली मलायलम फिल्म बालान रिलीज हुयी।
मीना कुमारी, प्रदीप और नूरजहां की शुरूआत
वर्ष 1939 में एसएस वासन ने मद्रास में जैमनी स्टूडियो की स्थापना
की। इसी साल प्रदर्शित पंजाबी फिल्म ‘गुल ए बकावली’ से मल्लिका तरन्नुम नूरजहां ने पार्श्व गायिका और लेदरफेस से बतौर बाल
कलाकार मीना कुमारी ने अपने करियर की शुरूआत की। इसी वर्ष ‘कंगन’
से कवि प्रदीप ने बतौर गीतकार अपने करियर का आगाज किया।
पहली देशभक्ति फिल्म
निर्देशक ज्ञान मुखर्जी की 1940 में प्रदर्शित फिल्म ‘बंधन’ संभवत पहली फिल्म थी, जिसमें
देश प्रेम की भावना को रूपहले परदे पर दिखाया गया था। कवि प्रदीप रचित चल चल रे
नौजवान के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया। इसी
वर्ष प्रदर्शित फिल्म प्रेम नगर से संगीत सम्राट नौशाद ने अपने करियर का आगाज
किया। इसी दशक में क्षेत्रीय भाषाओं में भी बड़ी संख्या में फिल्में बनने लगीं।
चालीस का दशक रहा खास
दिलीप, राज, देवानंद की त्रिमूर्ति तथा लता,
रफी, मुकेश, किशोर,
आशा और कई महान पार्श्वगायकों के उदय के अलावा आर.के.फिल्म्स,
नवकेतन, राजश्री समेत कई प्रोडक्शन हाउस के
आने के साथ ही चालीस के दशक में भारतीय सिनेमा के साथ नया आयाम जुड़ा। यही वह दौर
था जब उत्तम कुमार और एनटीरामाराव जैसे महानायक, सदी के
खलनायक प्राण, जुबली स्टार राजेंद्र कुमार, ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी, बेपनाह हुस्न की मल्लिका
मधुबाला और नरगिस ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। इस दौर में उभरे गुरूदत्त,
के.आसिफ., कमाल अमरोही, चेतन
आंनद जैसे फिल्मकार और शंकर-जयकिशन, सचिन देव बर्मन, खय्याम, शैलेन्द्र, हसरत
जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी जैसे गीतकारों ने भारतीय सिनेमा
को अपनी कला से समृद्ध किया।
जब पर्दे पर हीरोइन नहाते नजर आई
वर्ष 1941 में केदार शर्मा के निर्देशन मे बनी ‘चित्रलेखा’ प्रदर्शित हुयी। भगवती चरण वर्मा के
उपन्यास चित्रलेखा पर बनी इस फिल्म में मेहताब पर फिल्माया स्नान दृश्य काफी
चर्चित हुआ था। भारत भूषण की यह पहली फिल्म थी। वर्ष 1963 में
केदार शर्मा ने इस फिल्म की रीमेक बनाई जिसमें मीनाकुमारी ने चित्रलेखा की भूमिका
निभाई थी।
रफी और लता के सुरों का आगाज
आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने पहली बार 1942 में
पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गायिका जीनत बेगम के साथ युगल गीत सोनिये नी हीरिए
नी गाया। इसी वर्ष स्वर साम्राज्ञी लता मंगेश्कर ने किटी हसाल के लिये अपना पहला
गाना गाया और फिल्म पहली मंगलगौर में अभिनय भी किया।
196 हफ्ते चली ‘किस्मत’, लता ने देखी 50 बार
वर्ष 1943 में प्रर्दशित अशोक कुमार अभिनीत बॉम्बे टॉकीज की फिल्म
किस्मत ने कोलकाता के रॉक्सी थियेटर सिनेमा हॉल में लगतार 196 सप्ताह तक चलने का रिकॉर्ड बनाया। कहा जाता है कि फिल्म में कवि प्रदीप का
लिखा गीत आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ए दुनिया वालो
हिंदुस्तान हमारा है जैसे ही बजा सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गये और गाने
की समाप्ति तक ताली बजाते रहे। फिल्म की समाप्ति के बाद इसे दोबारा दिखाया गया।
फिल्म को लेकर एक अनोखी बात यह है कि स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने इसे लगभग 50
बार देखा। फिल्म मे कॉमेडी किंग महमूद ने भी अभिनय किया था।
जब महात्मा गांधी ने देखी फिल्म
वर्ष 1942 में वी शांताराम ने मुंबई में राजकमल फिल्म स्टूडियो की
स्थापना की और इसके बैनर तले वर्ष 1943 में पहली डायमंड
जुबली फिल्म शकुंतला का निर्माण किया। इसी वर्ष प्रर्दशित महबूब खान की फिल्म
तकदीर से नरगिस ने, डांसिग क्वीन कुक्कू ने अरब का सितारा से
फिल्म इंडस्ट्री मे कदम रखा। इसी वर्ष आयी रामराज्य एकमात्र फिल्म थी जिसे
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। इसी वर्ष शशिधर मुखर्जी ने फिल्मिस्तान
स्टूडियो की स्थापना की।
ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार की एंट्री और फाल्के की विदाई
अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को फिल्मों में लाने का श्रेय देविका रानी को
जाता है। अमय चक्रवर्ती के निर्देशन में बनी दिलीप कुमार की पहली फिल्म वर्ष 1944 में
प्रर्दशित हुयी। वर्ष 1944 में प्रदर्शित रतन में अपने
संगीतबद्ध गीत अंखिया मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना की कामयाबी के बाद नौशाद
25000 रुपये पारश्रमिक लेने लगे। इसी वर्ष सिनेमा जगत के जनक
दादा साहब फाल्के ने 16 फरवरी को इस दुनिया को अलविदा कह
दिया।
ऐसे हुई देवानंद-गुरुदत्त की दोस्ती
वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म हम एक हैं से देवानंद ने बतौर
अभिनेता और गुरूदत्त ने बतौर कोरियोग्राफर अपने करियर की शुरूआत की। ऐसा कहा जाता
है कि फिल्म निर्माण के दौरान एक धोबी की दुकान पर कमीज की लेनदेन को लेकर दोनों
की दोस्ती हुयी थी।
कांस फिल्म फेस्टिवल में भारतीय फिल्म
1946 में प्रदर्शित फिल्मीस्तान की फिल्म एट डेज से हिंदी
फिल्मो में बतौर संगीतकार एस डी बर्मन और भक्त प्रहलाद से गीता दत्त ने
पार्श्र्वगायिका के रूप में अपनी शुरूआत की। चेतन आनंद निर्देशित पहली फिल्म नीचा
नगर से कामिनी कौशल ने बतौर अभिनेत्री अपनी शुरूआत की। यह पहली भारतीय फिल्म थी
जिसे कांस फिल्म फेस्टिवल मे पुरस्कार मिला था।
राजकपूर, किशोर कुमार और प्राण की एंट्री
वर्ष 1947 में प्रदर्शित फिल्म ‘नीलकमल’
से बतौर मुख्य अभिनेता राजकपूर ने अपने सिने करियर की शुरूआत की।
इसी वर्ष फिल्म ‘दर्द’ से बतौर गीतकार
शकील बदायूंनी ने अपने सिने करियर की शुरूआत की थी। इस फिल्म में उनका रचित गीत
अफसाना लिख रही हूं आज भी बेहद लोकप्रिय है। पारिवारिक फिल्मों के निर्माण में
महारत करने वाली प्रोडक्शन कंपनी राजश्री प्रोडक्शन की स्थापना ताराचंद बड़जात्या
ने इसी साल की थी। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म ‘जिद्दी’ से बतौर पार्श्र्व गायक किशोर कुमार और
हिंदी फिल्मों में बतौर खलनायक प्राण ने अपने करियर की शुरूआत की थी।
आरके फिल्म्स का आगाज
वर्ष 1948 में राजकपूर ने महज 24 वर्ष की
उम्र में आरके फिल्मस की स्थापना की और पहली फिल्म आग का निर्माण किया। इसी वर्ष
प्रदर्शित एसएस वासन की फिल्म ‘चंद्रलेखा’ पहली फिल्म थी जिसे भारत की सभी भाषाओं में सबटाइटल्स के साथ रिलीज किया
गया था। इस फिल्म का तलवार युद्ध आज भी सबसे लंबा फाइट सीन माना जाता है।
जब दिलीप-राजकपूर आए साथ
वर्ष 1949 में प्रदर्शित महबूब खान की प्रेम त्रिकोण पर बनी फिल्म
‘अंदाज’ में दिलीप कुमार और राजकपूर ने
पहली और आखिरी बार एक साथ काम किया था। नरगिस इस फिल्म का तीसरा कोण थीं। इसी वर्ष
प्रदर्शित कमाल अमरोही की फिल्म ‘महल’ से
हिंदी फिल्मों में हॉरर और सस्पेंस ने अपनी जगह बनाई। अशोक कुमार अभिनीत इस फिल्म
की जबरदस्त कामयाबी ने नायिका मधुबाला और आयेगा आने वाला गीत से गायिका लता
मंगेशकर को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। इस वर्ष देवानंद ने अपने भाई
चेतन आंनद के साथ मिलकर नवकेतन फिल्म्स की स्थापना की। वर्ष 1949 में रूपहले पर्दे पर आई राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’
भारतीय सिनेमा जगत की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। इसी वर्ष
प्रदर्शित फिल्म करवट बीआj चोपड़ा ने फिल्म निर्माण के
क्षेत्र में कदम रखा था।
पहली ए सर्टीफिकेट फिल्म
वर्ष 1950 मे देवानंद ने नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले अपनी पहली
फिल्म अफसर का निर्माण किया। इसी वर्ष प्रदर्शित आकाश चित्रा की फिल्म हंसते आंसू
पहली हिंदी फीचर फिल्म थी जिसे ए र्सटिफिकेट दिया गया। इसी वर्ष शोभना समर्थ ने
अपनी दो पुत्री नूतन और तनुजा को लेकर ‘हमारी बेटी’ बनायी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि नूतन पहली मिस इंडिया है जिसने
फिल्मों में अभिनय किया।
सेंसरशिप और फिल्म पत्रकारिता की शुरूआत
1951 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स की स्थापना हुई।
इसी साल गुरुदत्त ने फिल्म ‘बाजी’ से
अपने डायरेक्शन करियर की शुरूआत की। फिल्म पत्रिका स्क्रीन भी इसी साल पहली बार
छापी गई। 1952 में पहली बार इंटरनेशनल इंडियन फिल्म फेस्टिवल
आयोजित किया गया। इसी साल बिमल रॉय ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला और फिल्मफेयर
मैगजीन का प्रकाशन शुरू हुआ। इस साल सोहराब मोदी की झांसी की रानी, रित्विक घटक की नागरिक और आर. कृष्णन की पराशक्ति प्रमुख फिल्में रहीं।
1953 में आई सोहराब मोदी की फिल्म ‘झांसी
की रानी’ पहली फिल्म थी जो कलर में शूट की गई और अंग्रेजी और
हिंदी में एक साथ रिलीज की गई। इसी साल रिलीज हुई बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ को कांस फिल्म समारोह में सोशल
प्रोग्रेस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इस साल से सेंसरशिप के नियमों में भी
बदलाव होने लगे। इसी साल से फिल्मफेयर अवॉर्ड्स का वितरण भी शुरू किया गया। इस साल
राजकपूर की फिल्म ‘आह’ भी रिलीज हुई।
सोवियत संघ में छाया बॉलीवुड
साल 1954 में पीके आत्रे की फिल्म ‘श्यामची
आई’(1953) को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल से नवाजा गया। इसी साल
सोवियत संघ में भारतीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया जहां राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’ बड़ी हिट साबित हुई। इसी साल ख्वाजा अब्बास
अहमद की फिल्म ‘मुन्ना’ रिलीज हुई जो
बिना गानों की दूसरी फिल्म थी।
भारतीय सिनेमा की पहली ट्रायलॉजी
सत्यजीत रे की ‘पाथेर पांचाली’ भारतीय फिल्म इतिहास
की पहली ट्रायलॉजी (तीन फिल्मों का समूह) थी जिसमें एक गरीब ब्राम्हण लड़के अपु की
कहानी थी। ये फिल्म 1955 में रिलीज हुई। वी शांताराम की झनक
झनक पायल बाजे भी इसी साल रिलीज हुई जो पूरी तरह भारतीय तकनीशियनों द्वारा बनाई गई
पहली टेक्नीकलर फिल्म थी। इस साल राजकपूर की फिल्म श्री 420 इस
साल रिलीज हुई। इसके अलावा ‘मि एंड मिसेज 55’, ‘मुनीमजी’ और दिलीप कुमार स्टारर ‘देवदास’ भी साल 1955 की खास
फिल्में मानी जाती हैं। साल 1956 में देवानंद की ‘सीआईडी’ और ‘फंटूश’ कामयाब फिल्में साबित हुईं। राजकपूर और नर्गिस की हिट जोड़ी की भी इस साल
एक फिल्म आई। फिल्म का नाम था ‘चोरी-चोरी’।
जब आई मदर इंडिया, प्यासा और नया दौर
साल 1957 हिंदी सिनेमा के लिए बेहद खास रहा। इस साल महबूब खान की
फिल्म मदर इंडिया रिलीज हुई जो उस दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म तो थी
ही साथ ही ऑस्कर के लिए फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटगरी में नॉमीनेट होने वाली पहली
भारतीय फिल्म बनी। इसी साल दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला स्टारर फिल्म ‘नया दौर’ भी रिलीज हुई जो क्लासिक मानी गई। साल 1957
में एक और फिल्म रिलीज हुई जो बॉलीवुड के लिए मील का पत्थर साबित
हुई। फिल्म थी गुरुदत्त की ‘प्यासा’ जो
न सिर्फ क्लासिक मानी गई बल्कि इसे टाइम मैग्जीन ने विश्व की 100 सबसे बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया है। इसके अलावा इस साल की ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘पेइंग गेस्ट’ जैसी फिल्में भी लाजवाब थीं। साल 1958 में ‘मधुमती’, चलती का नाम गाड़ी, यहूदी,
फागुन, हावड़ा ब्रिज और दिल्ली का ठग जैसी
फिल्में काफी चर्चा में रही वहीं अनाड़ी, पैगाम, नवरंग, धूल के फूल जैसी फिल्में 1959 की खास फिल्में रहीं।
मुगल-ए-आजम जैसी कोई नहीं
साल 1960 में रिलीज हुई ऐतिहासिक फिल्म ‘मुगले
आजम’, इस फिल्म में लीड रोल में थे दिलीप कुमार और मधुबाला।
के आसिफ निर्देशित इस फिल्म को बनने में 10 सालों का वक्त
लगा था। ये फिल्म अब भी बॉलीवुड की सबसे मशहूर और बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी
जाती है। फिल्म को 2004 में रंगीन कर पेश किया गया। इसी साल
बरसात की रात, कोहीनूर, चौदवी का चांद,
जिस देश में गंगा बहती है, दिल अपना और प्रीत
पराई जैसी फिल्मों ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की।
रोमांटिक फिल्मों का स्वर्णिम काल
भारतीय सिनेमा जगत में 1961-1970 के दशक को जहां एक ओर
रोमांटिक फिल्मों के स्वर्णिम काल के रूप मे याद किया जायेगा, वहीं दूसरी ओर इसे हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, जुबली कुमार उर्फ
राजेन्द्र कुमार, .हीमैन धमेंद्र और जंपिक जैक जितेंद्र के
इंडस्ट्री में आगमन का दशक भी कहा जायेगा।
राष्ट्रपति ने कहा बनाओ भोजपुरी फिल्म
वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘जंगली’
से शम्मी कपूर चाहे कोई मुझे जंगली कहे गीत गाकर याहू स्टार बने वही
बतौर अभिनेत्री सायरा बानू की यह पहली फिल्म थी। वर्ष 1962 में
गुरूदत्त की कालजयी ‘साहब बीबी और गुलाम’ प्रदर्शित हुयी। वर्ष 1963 में प्रदर्शित विमल राय
की फिल्म ‘बंदिनी’ के लिये गुलजार ने
पहला गीत मेरा गोरा अंग लेई ले लिखा। इसी साल देश के प्रथम राष्ट्रपति
डा.राजेन्द्र प्रसाद की गुजारिश पर प्रसिद्ध फिल्म निर्माता विश्वनाथ शाहाबादी ने
पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ैबो’ का निर्माण किया।
हसरत की प्रेमिका का खत बन गया गीत
वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘संगम’
इस दशक की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्म थी। राजकपूर निर्मित यह पहली कलर
फिल्म थी साथ ही पहली बार किसी फिल्म को यूरोप में फिल्माया गया था। फिल्म से
जुड़ा रोचक तथ्य है कि गीतकार हसरत जयपुरी अपने युवावस्था में राधा नामक एक युवती
से प्रेम किया करते थे और उन्होंने एक कविता लिखी थी जिसके बोल.ये मेरा प्रेम पत्र
पढ़कर तुम नाराज नही होना..लिखा। अलबत्ता वह इस पत्र को राधा को नहीं दे सके लेकिन
उनका खत गाने के रूप मे इस फिल्म में फिल्माया गया।
बॉलीवुड की पहली मल्टीस्टारर और जुबली कुमार
वर्ष 1965 मे प्रदर्शित बीआर चोपड़ा निर्मित और यश चोपड़ा
निर्देशित ‘वक्त’ को पहली मल्टीस्टारर
फिल्म कहा जाता है। वर्ष 1965 में देवानंद ने अपनी पहली कलर
फिल्म गाईड का निर्माण किया। वर्ष 1966 में राजेश खन्ना ने
अपने करियर की शुरूआत चेतन आंनद की फिल्म ‘आखिरी खत’ से की। वर्ष 1963 से 1966 तक
राजेंद्र कुमार की लगातार छह फिल्में मेरे महबूब, जिन्दगी,
संगम, आई मिलन की बेला, आरजू
और सूरज ने सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली या गोल्डन जुबली मनायी। इसी को देखते हुये
उनके प्रशंसको ने उनका नाम जुबली कुमार रख दिया था।
प्रधानमंत्री से मिली फिल्म प्रेरणा
वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की समाप्ति के बाद
तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश में किसान और जवान की महत्वपूर्ण
भूमिका को देखते हुये जय जवान जय किसान का नारा दिया और मनोज कुमार से इसपर फिल्म
बनाने की पेशकश की। वर्ष 1967 में मनोज कुमार ने इसपर अपनी
पहली निर्देशित फिल्म ‘उपकार’ बनायी।
जितेंद्र यूं बने जंपिंग जैक
फिल्म ‘फर्ज’ में मस्त बहारों का मैं आशिक पर
डांस कर जितेंद्र जंपिग जैक कहलाये। इसी वर्ष प्रदर्शित फिल्म ‘ज्वैल थीफ’ में भारतीय सिनेमा के फोर्थ पिलर अशोक कुमार
ने नेगेटिव किरदार निभाकार दर्शकों को चौका दिया। इसी वर्ष सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार नरगिस को रात और दिन के लिये दिया गया।
तीन सितारों का साल और पहला फाल्के अवॉर्ड
वर्ष 1968 में सिनेमा जगत के इतिहास की सबसे लोकप्रिय हास्य फिल्म
पड़ोसन में महमूद ने निगेटिव किरदार निभाकर दर्शकों को अचरज में डाल दिया। वर्ष 1969
में प्रदर्शित ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म ‘सात
हिंदुस्तानी’ से सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने रूपहले
पर्दे पर एंट्री की थी। वहीं इसी वर्ष बिहारी बाबू शत्रुध्न सिंहा ने भी ‘साजन’ में पहली बार एक छोटी भूमिका निभायी थी। वहीं
शक्ति सामंत की फिल्म ‘आराधना’ से
राजेश खन्ना के रूप में फिल्म इंडस्ट्री को अपना पहला सुपरस्टार मिला। इसी वर्ष
भारतीय सिनेमा जगत की पहली ड्रीम गर्ल कही जाने वाली देविका रानी को पहला दादा
साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ।
राजकपूर की फ्लॉप फिल्म बन गई क्सासिक
वर्ष 1970 में राजकपूर ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का निर्माण किया। बेहतरीन स्टोरी
लाईन और राजकपूर समेत कई सितारों के होने के बावजूद यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी
तरह नकार दी गयी। यह अलग बात है कि बाद में इसे कालजयी फिल्म का दर्जा प्राप्त
हुआ। भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह दूसरी सर्वाधिक लंबी फिल्म है। यह फिल्म चार
घंटा 14 मिनट है। सबसे लंबी फिल्म एलोसी कारगिल है जो चार
घंटा 25 मिनट की है।
14 साल में बनी पाकीजा!
वर्ष 1972 में चित्रलेखा जैसी सुंदर मीना कुमारी की 14 वर्षों में बनी पाकीजा प्रदर्शित हुई। लोग कहने लगे कमाल अमरोही दूसरी
मुगले आजम बना रहे हैं। मीना कुमार की लाजवाब अदाकारी वाली इस फिल्म में राजकुमार
के बोल गये संवाद आपके पैर देखे बहुत हसीन हैं जमीन पर मत रखियेगा मैले हो जाएंगे
बहुत लोकप्रिय हुए।
मुंबई। वर्ष 1973 में प्रकाश मेहरा की
फिल्म ‘जंजीर’ की अभूतपूर्व सफलता ने
अमिताभ को उनकी पहली सुपरहिट फिल्म का दीदार कराया। इसी साल शो मैन राजकपूर की
टीनेज प्रेमकथा पर बनी ‘बॉबी’ आई। साल 1973
में ही आमिर खान ने बाल कलाकार के रूप में ‘यादों
की बारात’ से अभिनय जीवन की शुरूआत की। वहीं ‘दाग’ से किंग ऑफ रोमांस यश चोपड़ा निर्देशक से
निर्माता भी बन गए।
संजीव कुमार के नौ किरदार और शबाना को नेशनल अवॉर्ड
साल 1974 में ‘नया दिन नई रात’ में संजीव कुमार ने नौ अलग-अलग किरदार निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर
दिया। इसी साल रजनीगंधा से गोलमाल करने वाले अमोल पालेकर, जरीना
बहाव, देश परदेस से टीना मुनीम, कुंआरा
बाप से राजेश रौशन ने संगीतकार, अंकुर से शबाना आजमी और इसी
फिल्म से श्याम बेनेगल ने निर्देशक के रूप मे शुरूआत की। शबाना को इस फिल्म के
लिये राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
जब आई ‘शोले’ की ‘आंधी’
और बहा भक्ति रस!
वर्ष 1975 में भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास की महान शाहकार शोले
रिलीज हुई। गब्बर सिंह की दहाड़, जयशवीरू की दोस्ती, हेमा मालिनी की चुलबुली अदा, संजीव कुमार का संजीदा
अभिनय, पंचम दा के महबूबा महबूबा जैसे फड़कते संगीत ने फिल्म
को सदा के लिये अमर बना दिया। शोले मुंबई के मिनर्वा टॉकीज मे लगातार पांच साल
दिखाई गयी थी। तीन करोड़ के बजट मे बनी पहली 70 एमएम फिल्म
ने 15 करोड़ रूपये का शानदार व्यापार किया। इसी वर्ष डायमंड
जुबली मनाने वाली ब्लॉकबस्टर धार्मिक फिल्म जय संतोषी मां और संजीव कुमार-सुचित्रा
सेन की विवादस्पद फिल्म आंधी प्रदर्शित हुयी।
अफगानिस्तान में शूट हुई पहली फिल्म
साल 1975 में दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक रजनीकांत ने तमिल
फिल्म अपूर्वा रागरंगल से, रवि चोपड़ा ने जमीर से निर्देशक,
वहीं नसीरउदीन शाह ने निशांत, स्मिता पटिल ने
चरणदास चोर से अभिनय के क्षेत्र मे कदम रखा। फिरोज खान धर्मत्मा की शूटिंग के लिये
अफगानिस्तान के खूबसरत लोंकेशनो पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फिल्म का वहां
फिल्मांकन नहीं किया गया था।
मिथुन को मिला पहली फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड
वर्ष 1976 में राजकुमार कोहली ने मल्टीस्टारर फिल्म नागिन का
निर्माण किया। इसी साल कालीचरण से दूसरे शो मैन सुभाष घई निर्देशक, श्रीदेवी ने तमिल फिल्म मुंदरू मुदिची, घासीराम
कोतवाल से ओमपुरी, मृगया से डिस्को डांसर मिथुन चक्रवर्ती ने
अभिनय जीवन का आगाज किया। मृगया के लिये मिथुन को र्सवश्रेष्ठ अभिनेता का
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। अमिताभ-रेखा की पहली फिल्म दो अंजाने इसी साल
प्रदर्शित हुयी।
सत्यजीत रे की पहली हिंदी फिल्म
वर्ष 1977 में मनमोहन देसाई ने एमकेडी बैनर की स्थापना कर अमर
अकबर ऐंथोनी का निर्माण किया। अनु मल्लिक ने हंटरवाली से बतौर संगीतकार, दीप्ति नवल ने जालियावाला बाग से अपनी शुरूआत की वहीं सत्यजीत रे अपनी
पहली हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी का निर्माण किया। इसी वर्ष पहली भोजपुरी कलर
फिल्म और पहली सिल्वर जुबली फिल्म दंगल प्रदर्शित हुई।
साउथ सुपरस्टार्स का उदय
वर्ष 1978 में राज कपूर ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म सत्यम शिवम
सुंदरम का निर्माण किया हालांकि कालजायी मानी जाने वाली यह फिल्म टिकट खिड़की पर
बुरी तरह नकार दी गयी थी। वर्ष 1979 मे तेलगु फिल्मों के
महानायक चिरंजीवी, जया प्रदा, अलका
याज्ञनिक और अनिल कपूर ने शुरूआत की। वर्ष 1980 में मलयालम
फिल्मों के महानायक मोहन लाल ने मंजिल विरिजा पोकाल से अभिनय यात्रा शुरू की।
जब उदित नारायण ने गाया रफी के साथ गाना
वर्ष 1980 में उदित नारायण ने उन्नीस बीस से पार्श्वगायक के रुप
में अपने करियर की शुरूआत की। दिलचस्प बात है कि फिल्म उन्नीस बीस में उन्हें अपने
आदर्श मोहम्मद रफी के साथ गाने का मौका मिला। इसी वर्ष गोविन्द निहलानी ने आक्रोश
से फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कदम रखा।
मल्टीस्टारर फिल्मों का आया जमाना
1981 में मल्टीस्टारर फिल्म क्रांति रिलीज हुई जिसमें दिलीप
कुमार, मनोज कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, परवीन बाबी और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे
भारीभरकम स्टार कास्ट थी। इसी साल अमिताभ बच्चन-जीनत अमान स्टारर फिल्म लावारिस भी
रिलीज हुई। इस साल फिल्म एक दूजे के लिए में रति अग्निहोत्री पहली बार हिंदी फिल्म
में नजर आईं। एक और मल्टीस्टारर फिल्म नसीब के अलावा अमिताभ की सुपरहिट फिल्में
याराना और कालिया भी इसी साल रिलीज हुईं। फिल्म रॉकी से संजय दत्त ने बॉलीवुड में
एंट्री की।
महात्मा गांधी का साल
साल 1982 में गुलजार के डायरेक्शन में बनी फिल्म अंगूर में
जुड़वा भाईयों के दो जोड़ों की कहनी दिखाई गई जिसमें संजीव कुमार लीड रोल में थे।
इस साल संजय की विधाता, मिथुन की सुपरहिट फिल्म डिस्को डांसर,
अमिताभ की नमक हलाल, राज बब्बर-सलमा आगा की
निकाह, शबाना आजमी की अर्थ जैसी बड़ी फिल्में रिलीज हुईं।
इसी साल मल्टीस्टारर फिल्म राजपूत भी रिलीज हुई जिसमें धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, हेमा
मालिनि, टीना मुनीम लीड रोल में थे। इसी साल हॉलीवुड और
बॉलीवुड के सहयोग से बनी बेन किंग्सले की फिल्म गांधी भी रिलीज हुई।
आ गया बॉलीवुड का ढाई किलो का हाथ
1983 में सनी देओल जैसे सितारों की एंट्री हुई। सनी की बेताब
सुरपहिट साबित हुई। श्रीदेवी-जितेंद्र स्टारर फिल्म हिम्मतवाला भी इसी साल रिलीज
हुई जिसका हाल ही में साजिद खान ने रिमेक बनाया था। इसी साल रिलीज हुई श्रीदेवी और
कमल हसल स्टारर फिल्म सदमा श्रीदेवी के करियर में मील का पत्थर साबित हुई और
उन्हें एक अदाकारा के रुप में पहचान मिली। जैकी श्रॉफ की भी फिल्म हीरो से इस साल
बॉलीवुड में एंट्री हुई। अमिताभ की कुली भी 1983 की
ब्लॉकबस्टर फिल्मों में शामिल थी।
चला जितेंद्र-श्रीदेवी का जादू
जितेंद्र और श्रीदेवी की जोड़ी उस दौर में काफी हिट हुई। 1984 में
आई इनकी फिल्म तोहफा भी कामयाब रही और इनकी फिल्म मकसद, अक्लमंद
भी हिट हुई। इस साल अनुपम खेर फिल्म सारांश में नजर आए। उन्होंने 23 साल की उम्र में 60 साल के बुजर्ग का किरदार निभाया
जिसे क्रिटिक्स के साथ दर्शकों ने भी पंसद किया।
मंदाकिनी का हिट हॉट सीन
1985 में राजकूपर राम तेरी गंगा मैली लेकर आए जिसमें फिल्म
की लीड हीरोइन मंदाकिनी ने झरने में नहाते हुए कंट्रोवर्शियल सीन दिया। इस सीन की
वजह से काफी विवाद हुआ लेकिन ये फिल्म बॉक्सऑफिस पर हिट रही। इस साल रिलीज हुई
फिल्म प्यार झुकता नहीं, मर्द, सागर,
मेरी जंग, अर्जुन ने भी अच्छा बिजनेस किया।
‘ऐ वतन तेरे लिए....’
1986 में सुभाष घई की फिल्म कर्मा को जबरदस्त कामयाबी मिली।
फिल्म में दिलीप कुमार, जैकी श्रॉफ, श्रीदेवी,
अनिल कपूर लीड रोल में थे। फिल्म का गाना ऐ वतन तेरे लिए आज भी
बेहतरीन देशभक्ति गानों में से एक माना जाता है। इस साल श्रीदेवी की नागिन भी हिट
रही जिसका बाद में सीक्वेल बनाया गया।
जब अनिल कपूर गायब हो गए
1987 में शेखर कपूर एक अलग फिल्म मि. इंडिया लेकर आए जिसमें
श्रीदेवी और अनिल कपूर लीड रोल में थे। 1987 और 1988 में कोई अवॉर्ड सेरेमनी नहीं हुई थी लेकिन हाल ही में श्रीदेवी को मि.
इंडिया और नागिन में काम करने के लिए विशेष फिल्मफेयर पुरुस्कार दिया गया। 2012
में बोनी कपूर ने मि. इंडिया के सीक्वेल की घोषणा की थी।
आमिर की धमाकेदार एंट्री
1988 में आमिर खान और जूही चावला स्टारर फिल्म कयामत से
कयामत तक कमाल कर दिया। फिल्म में आमिर-जूही की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद
किया। इस लव स्टोरी ने इस साल 25 साल पूरे कर लिए हैं। अपनी
पहली ही फिल्म से आमिर सुपरस्टार बन गए। इस साल रिलीज हुईं अनिल कपूर की तेजाब और
अमिताभ की शहंशाह भी खास रहीं।
बॉलीवुड को मिला सुपरस्टार सलमान
1989 ने दिया बॉलीवुड को एक और सुपरस्टार। इस साल रिलीज हुई
सलमान खान की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’।
सलमान की ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इस साल रिलीज हुई फिल्म चांदनी, त्रिदेव, रामलखन, चालबाज भी
हिट रहीं। फिल्म परिंदा में अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के बोल्ड सीन काफी चर्चा
में रहे।
अमिताभ का घटता जादू
साल 1990 में भी कई सुपरहिट फिल्में रिलीज हुईं। इस साल आमिर की
दिल, सनी की घायल, भट्ट कैंप की आशिकी
जैसी फिल्मों ने कमाल कर दिया। सनी ने घायल के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर जीता
तो आशिकी का म्यूजिक सुपरहिट रहा। इस दौर में अमिताभ का जादू कम होने लगा था। इस
साल रिलीज हुई उनकी फिल्में आज का अर्जुन और अग्निपथ ने ठीक-ठाक बिजनेस किया।
32 साल बाद दिलीप-राजकुमार आए साथ
वर्ष 199। में प्रदर्शित सौदागर से दिलीप कुमार और राजकुमार का 32
साल बाद आमना सामना हुआ। इस फिल्म में राजकुमार के बोले जबरदस्त
संवाद “दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता
है तो अफसाने बन जाते है, मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास
लिखे जाते है” आज भी सिने प्रेमियों के दिमाग मे गूजंता रहता
है ।इसी फिल्म से मनीषा कोईराला और विवेक मुशरान इलू इलू करते नजर आए। वर्ष 199। में अमिताभ किमी काटकर के साथ हम में जुम्मा चुम्मा करते नजर आये। इस
साल बॉलीवुड को फूल और कांटे से अजय देवगन के रुप में एक और स्टार मिला। साल 199। में ही खिलाड़ी कुमार अक्षय ने फिल्मों में एंट्री की।
किंगखान और रहमान का आगाज, रे को ऑस्कर
साल 1992 में राजकंवर निर्देशित पहली फिल्म दीवाना से शाहरूख ने
आगाज किया तो भारतीय सिनेमा ने उन्हें इतना प्यार किया कि वह बॉलीवुड के किंग खान
बन गये। इसी साल छोटे नवाब सैफ अली खान ने परपंरा से, सुनील
शेट्टी ने बलवान से अपनी शुरूआत की। इसी साल ए.आर.रहमान ने रोजा से अपनी संगीतमय
यात्रा शुरू की। इसी साल भारतीय सिनेमा के एक स्वर्णिम अध्याय उस समय जुड़ गाया जब
महान फिल्मकार सत्यजीत रे को आस्कर सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1992
में दिव्या भारती और काजोल ने अपने करियर की शुरुआत की। ‘बेटा’ इस वर्ष की सबसे कामयाब फिल्म थी।
बॉलीवुड के 100 साल: याद है पहली महिला संगीतकार?
बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि अपने देश की पहली महिला संगीतकार कौन
थीं? सिनेमा के 100 साल पूरे होने के अवसर
पर इतने समारोह हुए। लेकिन इस महिला संगीतकार को याद भी नहीं किया गया। दिल्ली
दूरदर्शन के पूर्व निदेशक और संगीत विशेषज्ञ शरद दत्त ने सरस्वती देवी नाम की इस
पहली महिला संगीतकार की तरफ लोगों का ध्यान दिलाया है। यह साल सरस्वती देवी के जन्मशती
का साल भी है।
दत्त ने बताया कि पारसी परिवार में 1912 में मुंबई में जन्मीं
सरस्वती देवी का मूल नाम खुर्शीद मिनोचर होमजी था। पारसी परिवार में उनका इतना
विरोध हुआ कि हिमांशु राय ने उनका नाम बदलकर सरस्वती देवी रख दिया था। उन्होंने 1936
में पहली बार जीवन नैया फिल्म में संगीत दिया था। सरस्वती देवी ने
चंद्रप्रभा और अपनी दो बहनों के साथ मिलकर आर्केस्टा ग्रुप भी बनाया था और वह
होमीजी सिस्टर्स के नाम से जानी जाती थीं।
दत्त का कहना है कि वैसे तो नरगिस की मां जेद्दन बाई ने भी पहली बार बतौर
महिला संगीतकार के रुप में फिल्मों में संगीत दिया था। पर बाद में उन्होंने यह काम
छोड़ दिया। सरस्वती देवी तो बकायदा पेशेवर संगीतकार के रुप में बनी रहीं। सरस्वती
देवी ने करीब 20 फिल्मों में संगीत दिया था। 10 अगस्त
1980 को सरस्वती देवी का निधन हो गया था। उन्हें एक तरह से
विस्मृत कर दिया गया। वह और उनकी बहन चंद्रप्रभा भी अविवाहित ही रहीं। चंद्रप्रभा
ने तो फिल्मों में भी काम किया।
लखनऊ के मॉरिस कॉलेज से संगीत की विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद सरस्वती
देवी ने 1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस जो अब ऑल इंडिया
रेडियो कहलाता है से संगीत के कुछ कार्यक्रम देना शुरु किया था। वह ऑर्गन बजाती
थीं और उनकी बहनें सितार, दिलरुब और पैडोलिग्न बजाती थीं।
बॉम्बे टॉकीज के हिमांशु राय ने सरस्वती देवी और उनकी बहन चंद्रप्रभा को अपनी
कंपनी के संगीत विभाग की कमान संभालने को कहा।
जब बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म जवानी की हवा का प्रदर्शन हुआ तो पारसी
पंडाल कौशिक ने जोरदार विरोध किया और इम्पीरियल सिनेमा के सामने प्रदर्शन भी हुए
और जुलूस भी निकले। इस फिल्म के कई शो पुलिस की निगरानी में हुए। इससे सरस्वती
देवी का सिक्का जम गया। सरस्वती देवी ने अछूत कन्या में भी संगीत दिया था। इसके
अलावा बंधन, नया संसार, प्रार्थना, भक्त रैदास, पृथ्वी वल्लभ, खानदानी,
नकली हीरा, उषा हरण जैसी फिल्मों में संगीत
दिए।
IBN7 से साभार.
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