रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यलय के छात्र शशि भूषण की डेंगू से मौत ♦ अविनाश

शशि। हम सब उन्‍हें इसी नाम से पुकारते थे। उस दिन एनएसडी कैंपस में उन्‍हें क्रिकेट खेलते देखा था। लड़के-लड़कियां चिल्‍ला रहे थे, अंकल। जबकि इसी बार उनका सलेक्‍शन हुआ था। फर्स्‍ट ईयर के किसी छात्र के लिए ये संबोधन भले ही एक मज़ाक़ हो, लेकिन इसके पीछे की हकीकत ये है कि राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिले से पहले शशिभूषण रंगमंच की दुनिया के लिए पुराने हो चले थे। पंद्रह सालों के अपने रंग इतिहास में ढोलक की बेशुमार थापों और मंच पर अपनी खिलखिलाती अदाओं से उन्‍होंने रंग दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ रखी थी। आज उनके बारे में इतनी औपचारिकता से लिखने का प्रसंग सिर्फ इतना है कि एक निहायत ही मामूली बीमारी और एक निहायत ही गंभीर लापरवाही ने शशिभूषण को हमसे छीन लिया है।
शशिभूषण की पूरी ट्रेनिंग अभियानों और आंदोलनों से जुड़ी रंग-प्रक्रियाओं के बीच हुई थी। जनसंस्‍कृति मंच की पटना ईकाई हिरावल के साथ उनका रंग सफर शुरू हुआ अनिल अंशुमन, जो सीपीआईएमएल के सांस्‍कृतिक कार्यकर्ता हैं, ने ही उन्‍हें नाटकों की पगडंडी दिखायी थी। लिहाजा वे आंदोलनी गीतों के साथ बहुत सहज थे। ऊंचे आलाप के साथ सुनाते थे, सृष्टिबीज का नाश न हो हर मौसम की तैयारी है, कल का गीत लिये होंठों पर आज लड़ाई जारी है। या फिरसमाजवाद बबुआ धीरे धीरे आयी और समय का पहिया चले रे साथी, समय का पहिया चले। थिएटर में धन-धान्‍य से भरे करियर के पीछे भागते हुए रंगकर्मियों पर उन्‍हें हमने कबीरी ठाठ से हंसते हुए देखा था, जबकि वे रंगीन कपड़े पहनने के शौकीन थे। झक लाल या बेहद काली कमीज़ पर गूगल्‍स लगा कर वे अपने अंदर की सादगी से बदला लेने की कोशिश करते थे।
ये किसी के लिए भी बताना मुश्किल हो सकता है कि थिएटर में उनकी ख़ासियत दरअसल क्‍या थी। वे अभिनेता थे, निर्देशक थे, साजिंदा थे – क्‍या थे? विशेषज्ञता को लेकर उदासीन हिंदी समाज के थिएटर में किसी के लिए इस तरह से सोचना कठिन है, फिर शशिभूषण कोई अलग रंग-शख्सियत तो थे नहीं! आपने उन्‍हें पिछले पंद्रह सालों में कहां-कहां नहीं देखा होगा? रंगमंच पर कोरस लीड करने से लेकर लंबे डग भर-भर कर संवाद बोलने तक वे एक अलहदा तरह के रंगकर्मी थे। अभी हाल में उन्‍होंने अपने निर्देशन में मिर्जा हादी रुस्‍वा के नॉविल उमराव जान अदा का पटना में मंचन किया था। पिछले साल एनएसडी से पासआउट हुए रंगकर्मी रंगकर्मी रणधीर ने जब इसी साल जून में पटना में शरण कुमार लिंबाले की आत्‍मकथा अक्‍करमाशी का पटना में मंचन किया, तो उसकी प्रकाश व्‍यवस्‍था शशिभूषण ने संभाली की थी। आज से दस साल पहले फणीश्‍वरनाथ रेणु की मशहूर कहानी रसप्रिया के कथा मंचन में उन्‍होंने पंचकौड़ी मिरदंगिया का बेमिसाल अभिनय किया था।
वे एनएसडी के ही एक पूर्व छात्र विजय कुमार के संभवत: ज़्यादा निकट थे। विजय कुमार की एकल प्रस्‍तुति हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं के शशिभूषण स्‍थायी ढोलकिया थे। शशिभूषण के हाथों से पड़ी ढोलक की मद्धिम से लेकर ऊंची थाप के साथ जुगलबंदी करते विजय कुमार के हर संवाद पर दर्शक विभोर होते रहे हैं। देश और विदेश में इसकी दो सौ से अधिक प्रस्‍तुतियां हो चुकी हैं। विजय कुमार जब 99 में रेणु के रंग लेकर पूरे देश का भ्रमण कर रहे थे, तो शशिभूषण उस भ्रमण दल के अभिन्‍न रंगकर्मी रहे।
ऐसे शशिभूषण को वक्‍त ने हमसे छीन लिया है। इस छीना-झपटी के कुछ संदेहास्‍पद पहलुओं पर भी बात करनी चाहिए। दीवाली के एक दिन बाद वे हमारे घर आये थे। पूरे दिन रहे। पढ़ते रहे। सोते रहे। वे गये और दो हफ्ते बाद जब फोन पर बातचीत हुई तो उन्‍होंने कहा कि नोएडा के अस्‍पताल में भर्ती हैं। जॉन्डिस हो गया था। अब ठीक हैं। कल छूट जाएंगे। दो दिनों के बाद संदेश मिला वे नहीं रहे। उनका ग़लत इलाज चल रहा था। वे डेंगू की चपेट में थे। प्‍लेटलेट्स अचानक रिड्यूस हो गया और वे संभल नहीं पाये। सवाल ये है कि उन्‍हें संभाल कौन रहा था। राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय एक मशहूर रंग प्रतिष्‍ठान है। उसका एक छात्र बीमार पड़ता है और नोएडा के एक मामूली अस्‍पताल में उसे इलाज के लिए भेजा जाता है। वे हफ्ते भर तक भर्ती रहते हैं और इस दौरान छात्र साथियों के अलावा विद्यालय प्रबंधन इस मसले को गंभीरता से लेता तक नहीं और हमसे हमारा एक दोस्‍त छीन लेता है।
राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए शशिभूषण भले एक छात्र रहे हों, हमारे लिए वो दोस्‍त थे। हम आपस में दिल साझा करते थे। ऐसे ही बारह साल पहले पटना के विद्याभूषण द्विवेदी की मृत्‍यु राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय में रंगअभ्‍यास के दौरान हो गयी थी। तब उनकी मेडिकल रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से स्‍कूल ने मना कर दिया था। इस बार भी शशिभूषण की मौत को लेकर विद्यालय गंभीर नहीं है। स्‍कूल शशिभूषण की बीमारी से हुई स्‍वाभाविक मौत मान रहा है, जबकि इलाज की पूरी संदेहास्‍पद प्रक्रिया की जांच होनी चाहिए। शव का पोस्‍टमार्टम होना चाहिए ताकि पता चल सके कि शशिभूषण की मौत किस बीमारी से हुई और उनको दवाओं के डोज़ किस बीमारी के दिये गये।
आज पटना में शशिभूषण का दाह संस्‍कार किया जाएगा। सुबह की फ्लाइट से उनके शव की रवानगी है। हम मांग करते हैं कि दाह संस्‍कार से पहले शशिभूषण के शव का पोस्‍टमार्टम कराया जाए और एक जांच कमेटी बैठायी जाए। अगर स्‍कूल ऐसा नहीं करता है, तो शशिभूषण के दोस्‍तों और उनके चाहने वालों को कड़ा रुख़ अख्तियार करना होगा। हम रंगमित्रों से अपील करते हैं कि इस मसले पर आज शाम छह बजे श्रीराम सेंटर, मंडी हाउस में बैठें और कुछ ठोस क़दम उठाने की बाबत बात करें।

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