रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

भारत रंग महोत्सव’ : दृश्य खुल रहे हैं

१४वें भारत रंग महोत्सव के दूसरे दिन का लेखाजोखा प्रस्तुत कर रहें हैं युवा रंगकर्मी एवं पत्रकार दिलीप गुप्ता 

१४वें भारत रंग महोत्सव(भारंगम) का नांदी पाठ संपन्न हो चुका है और दृश्य खुल गए हैं, यानी महोत्सव के लिए चुने गए दस नाट्य प्रदर्शन स्थलों पर देश विदेश के नाटकों के मंचन शुरू हो गए हैं. भारंगम के दूसरे दिन से ही नाट्यप्रेमियों की चाल और उत्सुकता के भाव में तेज़ी स्पष्ट नज़र आ रही है. और ये तेज़ी आने वाले दिनों में बढ़ेगी ही, ऐसी उम्मीद की जा सकती है. भारंगम के दूसरे दिन कुल ६ नाटकों का मंचन हुआ, जिसमें प्रयोगधर्मी युवा रंग निर्देशक मोहित ताकलकर नोबल पुरस्कार विजेता जोसे सरामागो के उपन्यास द एलिफेन्ट्स जर्नी” पर आधारित नाटक गजब कहानी” के साथ उपस्थित थे. वहीँ इसके अलावा पोलिश नाटक ग्रोटोवस्की- एन अटेम्प टू रीट्रीट के साथ निर्देशक तोमास रोडोविज़ व फरीद बज्मी मार्शल आर्ट, ग्रामीण और लोक कलाओं, नृत्य तथा संगीत से भरपूर अपने नाटक नैन नचैया के साथ  आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. दूसरी अन्य प्रस्तुतियों में संगीता शर्मा निर्देशित गति मूलक प्रस्तुति विसर्जन” और चंद्रादासन निर्देशित मलयालम नाटक लंका लक्ष्मी  थीं.

सबसे पहले बात करते हैं मोहित तकलकर के नाटक गजब कहानी की. नोबल पुरस्कार विजेता पुर्तगाली लेखक जोसे द सूसा सरामागो के उपन्यास द एलिफेन्ट्स जर्नी पर आधारित नाटक गजब कहानी का प्रस्तुति आलेख तैयार किया है प्रदीप वैद्य ने. ये नाटक एक हाथी के भारत से लिस्बन और लिस्बन से वियेना तक की यात्रा को कहानी का आधार बनाते हुए, वर्ग संघर्ष और धर्मान्धता की पड़ताल बड़ी संजीदगी के साथ करता है.

कथावाचन शैली में मंचित इस नाटक की  कहानी मात्र इतनी भर है कि एक हाथी अपने महावत के साथ गोवा से एक लंबी समुद्र यात्रा तय करके लिस्बन पहुँचता है और फिर वहाँ से उसको वहाँ के राजा द्वारा आस्ट्रिया के आर्क ड्यूक को भेंट स्वरुप वियेना भेजा जाता है. इस यात्रा को हाथी अपने महावत के साथ पैदल, इटली तक जहाज़ से फिर ऐलेप्स की पर्वत शृंखला को पार करता हुआ वियेना पहुँचता है. इस यात्रा के दौरान हम कई सामाजिक और सांस्कृतिक सवालों से रूबरू होते हैं, जो देखें तो प्रत्यक्ष रूप से हाथी सोलोमन और महावत शुभ्रो से जुड़े हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि ये सवाल उस सम्प्रेषण की दुनिया से निकलकर  हमारे सामने खड़े हो जाते है. समय काल और परिवेश के साथ भारत में ‘गणेश’ के नाम से जाना जाने वाला हाथी ‘सोलोमन’ और फिर ‘सुलेमान’ के नाम से नामित होता है और महावत शुभ्रो ‘शुभ्रो’ से ‘फ्रिट्ज’ तक की यात्रा करता है. इस प्रकरण में आई तमाम घटनाएं नए नए अर्थों के साथ नए आयाम  खोलती है, चाहे वो नाम के पीछे होने वाली झड़प हो या अपने धर्म को सर्वोत्कृष्ट साबित करने को आतुर धार्मिक तनाव तक पहुँचने वाली कोशिशें हो, या फिर बार बार हाथी और महावत के नाम को बदलने के नाम पर वर्ग का तुष्टिकरण हो, या फिर हाथी के मरने के कुछ ही दिनों बाद धीरे धीरे उसे विस्मृत करने का प्रसंग  हो.

रंगमंच की अन्तर्निहित शक्तियों पर दृढ़ता से विश्वास करने वाले मोहित तकलकर अपनी इस  मंचीय प्रस्तुति में दृश्य संयोजन के लिए  सेट, लाइट और मंच सामग्रियों का बड़ा ही सांकेतिक और बिम्बात्मक प्रयोग करते हैं, जो कथ्य को पर्याप्त  मजबूती प्रदान करता है. मोहित प्रस्तुति के दौरान ही नहीं बल्कि प्रस्तुति के अंतिम दृश्य  में भी प्रभाव छोड़ते है. नाटक के अंत में खाली मंच पर एक ऐसा शुन्य सृजित करते हैं जो नाटक के बाद भी काफी लंबे समय तक कायम रहता है. मोहित अपनी रचनात्मक भूख से नयी संभावनाओं को खोलते जा रहे है. आने वाले समय में उनसे उम्मीद बढती ही जायेगी.

सामयिक पोलिश रंगमंच पर केंद्रित भारंगम में तीन पोलिश नाटकों का चयन किया गया है, जिसमे महोत्सव के दूसरे दिन पोलैंड के कोरिया थिएटर एसोसिएशन का नाटक ग्रोटोवस्की- एन अटेम्प टू रीट्रीट” का मंचन किया गया. इस नाटक का निर्देशन तोमास रोडोविज़ ने किया था. ग्रोटोवस्की के सिद्धांतों एवं कार्यपद्धति पर आधारित इस नाटक को छह  अभिनेताओं के समूह ने प्रस्तुत किया. ग्रोटोवस्की की कार्य शैली को जिस सहजता के साथ मंच पर उकेरा गया है वह लाजवाब था.

भोपाल की मशहूर नाट्य संस्था रंग विदूषक इस बार भी अपने चिर परिचित अंदाज़ में फरीद बज्मी निर्देशित नाटक नैन नचैया के साथ उपस्थित थी. एक्रोबैटिक्स, मार्शल आर्ट्स, ग्रामीण और लोक कलाओं, नृत्य तथा संगीत से पिरोया ये नाटक तिरुमलनाथ एयुलनाथ के संस्कृत प्रहसन कुहुना भैक्शव पर आधारित था. इसका नाट्य आलेख सतीश दवे ने तैयार किया है. कहानी का वही पुराना ढांचा, वही मनोरंजक तत्त्व, कॉमिक पंचेज का बार बार दुहराव इस प्रस्तुति को शिथिल बनाने के प्रमुख कारण हैं. इस प्रस्तुति को एक अच्छी प्रस्तुति बनाया जा सकता था  यदि  इसमें प्रयुक्त लोक तत्वों को और  अभिनेताओं के क्रिया व्यापारों के दुहरावों  को  अतिरेक में बहने से बचा लिया जाता. लोक में अन्तर्निहित कला सूत्रों को एक नयी रंग भाषा देने के बजाय हम क्यूँ उसके दोहराव भर से अपने को संतुष्ट कर ले रहे हैं, यह सचमुच एक बड़ी और गहरी चिंता का विषय है/होना चाहिए.

भारंगम की अन्य प्रस्तुतियों में संगीता शर्मा भी टैगोर के नाटक विसर्जन में अपने को दोहराते हुए ही दिखी. हालाँकि बाकी की दो अन्य प्रस्तुतियों को सराहनीय कहा जा सकता है. जिसमे श्री सी. एन. श्रीकंठन नायर द्वारा रचित रामायण नाटकत्रय का दूसरा नाटक लंकलक्ष्मी का मंचन, जिसका निर्देशन चंद्रदासन ने किया था  और एनएसडी से इसी साल पास आउट छात्रा सहाना पी. निर्देशित नाटक जन्नत महल जिसको एनएसडी डिप्लोमा प्रस्तुति के अंतर्गत मंचित किया जा चुका है. फकीर मोहम्मद कतपुडी की लघु कहानी पर आधारित इस नाटक का नाट्य आलेख आसिफ अली का था.     

दिलीप गुप्ता संपर्क : 9873075824 एवं dilipgupta12@gmail.com. आलेख जन सन्देश टाइम में प्रकाशित .

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