बिहारशरीफ में स्थित
जिले का इकलौता रंगमंच नालंदा नाट्य संघ 57 बसंत देख चुका है। अपनी
स्थापना वर्ष 1955 से लेकर आज तक इसने एक हजार से अधिक रंग
कर्मी पैदा किया पर प्रतिभा के समुचित पोषण, उपयोग एवं
प्रदर्शन के मौके के अभाव में इन्हें उचित मुकाम पाने से रोक दिया। कलाकारों को
उचित मंच प्रदान करने के सरकारी प्रयास तो निराशाजनक रहा ही स्थानीय दर्शकों एवं
श्रोताओं की गीत-संगीत एवं नाटक के प्रति घटती रुचि नाट्य संघ के कलाकारों के लिए
दुर्भाग्यपूर्ण रहे। नाट्य संघ के कलाकारों जो सम्मान मिलना चाहिए वो नहीं मिला।
सिर्फ कुछ घंटों की सराहना और दर्शक दीर्घा में बैठे कमजोर हथेलियों की तालियों को
छोड़ कुछ हासिल न हो सका। नाट्य संघ के कलाकार आज भी जिले तथा जिले से बाहर के
सरकारी आयोजनों के मंच को रंगीन बनाते हैं। पर इनके अनुभव दुखद हैं।
अस्तित्व पर संकट श्री नालंदा नाट्य
संघ का उपेक्षित होना जैसी इसकी नियति में शामिल है। इसके अस्तित्व पर संकट के
काले बादल मंडरा रहे हैं। संघ का इतिहास देश की आजादी के इतिहास से मात्र 8 साल
की कमतरी रखता है पर आज तक इसे एक अदद भवन भी नसीब नहीं हो सका।
नाट्य संघ का
कार्यालय व रिहर्सल मंच जिला परिषद के झोपड़ीनुमा कमरे में चल रहा है जो कभी छोटी
गेज रेलवे लाइन की कचहरी स्टेशन हुआ करती थी। अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए नाट्य
संघ जिला परिषद से मुकदमा लड़ रहा है।
सिनेमा में भी किये
काम नाट्य संघ के उपज
कलाकार स्व. अर्जुन शर्मा,
अमर बेताव, विजय कृष्ण एवं संजय कुमार डिस्को
ने कई हिन्दी सीरियल एवं सिनेमा में काम किये। विजय कुमार डिस्को ने बताया कि सपने
हिन्दुस्तान के तथा फरेब जैसे सीरियल में गुफी पेंटल के साथ काम करने का मौका
मिला। कुछ कलाकार हिन्दी एवं भोजपुरी सिनेमा में किस्मत आजमा रहे हैं। डेढ़ साल
पहले ये कलाकार हैंड ओवर लघु सिनेमा में अभिनव किये थे।
कहते हैं अध्यक्ष नाट्य संघ के अध्यक्ष
अनिल कुमार कहते हैं कि जिला प्रशासन का असहयोगात्मक रवैया कलाकारों के हौसले का
मस्त करता है। कई आयोजनों पर मंच को रंगीन बनाने के एवज सहयोग राशि का भुगतान नहीं
कराया जा सका। वाहन किराये तक नहीं दिये गये। वर्तमान में इस क्लब में 40 सदस्य
हैं। सदस्यता शुल्क की राशि से इसके खर्च उठाये जाते हैं।
विवश हैं कलाकार कोरियो ग्राफर सह
नाट्य संघ के उपसचिव संजय कुमार डिस्को कहते हैं कि रोजी-रोटी की समस्या दूर करने
के लिए कलाकारों को अन्य कार्यो में व्यस्त रहने की विवशता है। स्वाभाविक है रुचि
घटी है।
एक श्रद्धांजलि नाट्य संघ के
संस्थापक स्व.राजेन्द्र प्रसाद मात्र तीसरी तक की पढ़ाई की थी। ये नाटककार थे।
गीतकार भी थे। हर वर्ष दशहरा में इनकी लिखी नाटक का मंचन होता था। साम्प्रदायिक
सौहार्द पर लिखी नाटक राम-रहीम की स्मृति आज भी लोगों के जेहन में है। राजेन्द्र
प्रसाद करीब 78
वर्ष की उम्र में वर्ष 2004 में दुनिया को
अलविदा कहा। इन्होंने कई राज्य गीत व नालंदा को लक्ष्य करते हुए गीतों की रचना की।
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