रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 28 जनवरी 2013

भिखारी ठाकुर के गाँव-परिवार का वर्तमान हाल : पुष्पराज

कुतुबपुर से लौटकर पुष्पराज 

आदरणीय भिखारी ठाकुर जी, पिछली बार 8 साल पहले कुतुबपुर में जो कुछ दिखा था, आज दृश्य काफी कुछ बदला-बदला दिख रहा है। नेता, ठेकेदार और कॉरपोरेट सेक्टर के पांव आपके गांव में जमने लगे हैं तो मानिए कि विकास हो रहा है। सोन, गंगा और सरयू नदी से घिरा टापू गांव कुतुबपुर अब भी मानचित्र से जुड़ेगा। कुतुबपुर तक पहुंचने के पहुंच पथ किस तरह निर्मित हों, कुतुबपुर तक पहुंचने के लिए रेलमार्ग किस तरह सुगम हो सकता है, यह सब आप तक पहुंचने वाले तय करेंगे। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह पिछले साल किसी सभा में आपके बारे में आधे घंटे भोजपुरी में संवाद करते रहे। जाने माने रंगकर्मी पुंजप्रकाश बीते साल राष्ट्रीय नाटय़ विद्यालय के संगी-साथी रंगकर्मियों के साथ रात भर कुतुबपुर के अंधकार से युद्ध रचते रहे। कुतुबपुर का अंधकार आपको जानने वाले और आपका नाम लेकर गर्व महसूस करने वाले उस बड़े जनसमूह के हिस्से का अंधकार है, जो अंधकार को किसी भी सभ्य समाज का कलंक मानते हैं। रौशनी से सराबोर अंधकार से हमने संवाद करने की कोशिश की। आपको चाहने वालों को इतना जानकर अच्छा लगेगा कि आपके गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है, जिसमें 500 बच्चे पढ़ते हैं। हाई स्कूल की शिक्षा के लिए गांव के बच्चे नाव से चिरांव या बबुरा बाजार के हाइस्कूल में पढ़ने जाते हैं। गांव में एक अतिरिक्त स्वास्थ्य उपकेन्द्र का भवन दिख रहा है। 2 साल पूर्व 50 लाख की लागत से निर्मित इस अस्पताल की छत चू रही है। 12 बेड के इस अस्पताल में डॉक्टर, नर्स नियुक्त हैं या नहीं, किसी ने कभी देखा नहीं। एक कंपाउडर जी हैं, जो कभी-कभी अस्पताल का ताला खोल देते हैं। यहां इलाज या दवा की सुविधा कभी उपलब्ध नहीं हुई। बीमारों के इलाज की बजाय अस्पताल को इलाज की दरकार हो तो आप क्या कहेंगे? आपके गांव के मुखिया जी कौन हैं ? 8-10 जन जो पास हैं, सब एक सुर से कह रहे हैं, शंकर के मेहरारु हैं। मुखिया पति को सब जान रहे हैं, जनाना मुखिया का नाम जानें या अनजाने रहें तो क्या फर्क पड़ता है। सोन नदी का बालू आपके इलाके के गरीब मेहनतकशों का पेट भर रहा है। बावजूद गरीबों का पलायन जारी है। मजदूर गठरी बांधकर रोज पूरब की तरफ भाग रहे हैं। स्त्रियां अभी भी सौहर के पीठ धरे रुदाली गा रही हैं -˜पिया गैलन परदेशिया गे सजनी। आपके पड़ोसी गांव के युवा कलाकार मंगलमूर्ति ने बड़े शान-शौकत से माटी की लुगदियों को मूरत रूप दिया है। मूरत तब सजीव हो जाती है, जब कलाकार मूरत के भीतर अपनी सूरत देखने लगता है। जिस माटी से आप बने थे, उसी माटी से बने मूर्तिकार ने आपकी मुखाकृति से मुस्कुराहट बिखेरकर हमें मुस्कुराने की अदा सिखलाई है। कला कभी मरती नहीं है  वह कई रूपों में अपना आकार बदलती रहती है। हम कला के मूलभूत सिद्धांत को अपनी पीढ़ी के साथ एकाकार होता देखकर आपकी अमरता से साक्षात्कार कर रहे हैं। जिस माटी घर में आपका जन्म हुआ था और जिस संकरे माटी घर में आपने जिन्दगी की अंतिम सांसे ली थी, वह माटी घर अब भी धरती पर साबूत खड़ा है। आपके पोते राजेन्द्र ठाकुर आपके परिवार की गरीबी और बदहाली का विलाप कर रहे हैं। मैंने आपका बहाना बताकर उन्हें रोने से मना किया है। आप अपनी गरीबी पर कभी नहीं रो पाये तो आपके वंशज गरीबी को अभिशाप क्यों मानें ? आपके परपोते रवि ठाकुर बीए में पढ़ रहे हैं। परपोती पूजा, इंटर में पढ़ रही है। एक घर में चार चूल्हे जल रहे हैं। आपके पोते दिनकर ठाकुर का पांव किस तरह कट गया। किस तरह उनका नाच छूट गया। दिनकर ठाकुर की असमय मौत से उनका छौरा सुशील टूअर हो गया है। सुशील ठाकुर हिन्दी से एमए कर रहे हैं पर पढ़ाई से ज्यादा नौकरी के लिए परेशान हैं। आपके घर में राजेन्द्र ठाकुर के साथ हिन्दी के महान साहित्यकार नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय की तस्वीरें देखकर मन मुदित हो गया। मैंने आपके परपोते सुशील से कहा है कि भिखारी ठाकुर का परपोता हिन्दी का शिक्षक बने तो हिन्दी जगत में आपके वंश का नाम तो चलेगा। एक बंधु ने कहा-आपको पद्मश्री क्यों नहीं मिला ? आपके घर-परिवार के लोगों को बहुत कुछ नहीं मालूम कि आपके हिस्से क्या मिला, क्या नहीं मिला। राजेन्द्र ठाकुर अपनी कविता को गाकर सुना रहे हैं- केहु कहत बा राय बहादुर, केहु कहत बा शेक्सपीयर, केहु कहत बा कवि भिखारी, घर कुतुबपुर दीपक, नैखी ऐसन पदवी जोग/मलिक जी, मलिक जी कहत बा लोग। आपको पद्मश्री नहीं मिलने के सवाल पर मनोज श्रीवास्तव ने किन्ही कवि के बोल सुनाये- पद्मश्री की लूट है, लूट सके जो लूट। अपनी तो सरकार से लिंक गयी है छूट। क्या पद्मश्री सम्मान के लिए आपका सरकार से लिंक जुड़ना जरूरी है। ब्रिटिश सरकार ने भला कहिये-राय बहादुर का सम्मान देकर आपका क्या उद्धार कर दिया कि पद्मश्री ना मिलने से आपकी चमक में क्या कमी आ गयी ? आपके इलाके के सांसद कभी बिहार के वजीरे आला होते थे। आपके नाम का ढोल बजाकर उन महोदय ने जनता को बहुत दिनों तक ढोल बजाकर इस्तेमाल किया। आपके गांव-जवार के लोगों को कुतुबपुर और गंगा के मुहाने पर लटके 12 गांवों के विस्थापन का भय बहुत अधिक आतंकित कर रहा है। एक आदमी अपनी मौत से कितना अधिक डरता है। यहां 50 हजार लोगों की जिन्दगी के सामूहिक जल समाधि का मामला कितना भयावह है। आप चाहें तो किसी सोमवार रोज कुतुबपुर को बचाने का नाटक लेकर˜जनता के दरबार में मुख्यमंत्री के समक्ष अणो मार्ग में तसरीफ रखें। संभव है एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री के लिए जनता के नाटय़ सम्राट का सामना करना अमर्यादित आन लगे। थोड़ा इंतजार कर लीजिये। कुतुबपुर का संदेशा सुनकर जनता के मुख्यमंत्री, भिखारी ठाकुर के दरबार में हाजिर होने आपके गांव प्रकट हो सकते हैं। मैं कुतुबपुर से उम्मीद लेकर लौटा हूं। जनता के मुख्यमंत्री जनता के हक में उम्मीद का आशीष मांगने जरूर आपके दर पर खड़े होंगे। देखते रहिए, कुतुबपुर को हर हाल में बचा लिया जायेगा। आपका माटी घर गरीबों के नाटय़ सम्राट के तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जायेगा। हे नाटय़ सम्राट, आप गरीब-मेहनतकशों की जिन्दगी के हृदय सम्राट हैं। वह शासक दुनिया का सबसे सफलतम सम्राट साबित होगा जो आपकी चरणों में अपना ताज अर्पित कर दे।

पुष्पराज – प्रसिद्द पुस्तक नांदीग्राम डायरी के लेखक प्रतिबद्द पत्रकार, यायावर लेखक एवं जनचेतना से जुड़े कवि. आलेख सहारा समय से साभार.


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