रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

बुधवार, 23 नवंबर 2011

किसे कहतें हैं राग


मैं संगीत का जानकर नहीं हूँ . हाँ जानने की ललक ज़रूर है, साथ ही थोडा बहुत गा बजा लेता हूँ . अगर यहाँ कुछ गलत लिखा है तो कृपया उसे ठीक करें - पुंज प्रकाश 


राग एक संस्कृत शब्द है. जिसकी उत्पत्ति रंज धातु से हुई है, जिसका अर्थ है रंगना. कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों की वह सुन्दर रचना जो कानों को अच्छी लगे राग कहलाती है। भारतीय संगीत में एक लय जिसपर कृति आधारित होती है। राग सुरों के आरोहण और अवतरण का ऐसा नियम है जिससे संगीत की रचना की जाती है। पाश्चात्य संगीत में "improvisation" इसी प्रकार की पद्धति है। किसी राग विशेष को विभिन्न तरह से गा-बजा कर उसके लक्षण दिखाये जाते है, जैसे आलाप कर के या कोई बंदिश या गीत उस राग विशेष के स्वरों के अनुशासन में रहकर गा के आदि। रागों का विभाजन मूलरूप से थाट से किया जाता है। हिन्दुस्तानी पद्धति में ३२ थाट हैं, किन्तु उनमें से केवल १० का प्रयोग होता है। कर्नाटिक पद्धति में ७२ थाट माने जाते हैं।

अभिनव राग-मंजरी में राग की परिभाषा इस प्रकार दी गई है
योऽयं ध्वनि-विशेषस्तु स्वर-वर्ण-विभूषित:। रंजको जनचित्तानां स राग कथितो बुधै:।।
अर्थात् स्वर और वर्ण से विभूषित ध्वनि, जो मनुष्यों का मनोरंजन करे, राग कहलाता है।
लक्षण
राग का मूल रूप हिन्दुस्तानी संगीत के 'बिलावल ठाट' को मन गया है । इसके अंतर्गत सुर 'शुद्ध' और 'कोमल' दो भागों में विभक्त हैं । प्राचीन काल में राग के दस लक्षण माने जाते थे, जिनके नाम हैं ग्रह, अंश, न्यास, अपन्यास, षाडवत्व, ओडवत्व, अल्पत्व, बहुत्व, मन्द और तार। इनमें से कुछ लक्षण आज भी परिवर्तित रूप में प्रयोग किये जाते हैं। आधुनिक समय में राग के निम्नलिखित लक्षण माने जाते हैं
ऊपर यह बताया गया है कि वह रचना जो कानों को अच्छी लगे, राग कहलाती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि राग का प्रथम लक्षण या विशेषता है कि प्रत्येक राग में रंजकता अवश्य होना चाहिए।
राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम का राग नहीं होता है।
प्रत्येक राग को किसी न किसी ठाट से उत्पन्न माना गया है। जैसे राग भूपाली को कल्याण ठाट से और राग बागेश्वरी को काफ़ी ठाट से उत्पन्न माना गया है।
किसी भी राग में षडज अर्थात् सा कभी वर्जित नहीं होता, क्योंकि यह सप्तक का आधार स्वर होता है।
प्रत्येक राग में  और  में से कम से कम एक स्वर अवश्य रहना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं होते। अगर किसी राग में  के साथ शुद्ध  भी वर्जित है, तो उसमें तीव्र  अवश्य रहता है। भूपाली राग में म वर्जित है तो मालकोश में , किन्तु कोई राग ऐसा नहीं है जिसमें  और  दोनों एक साथ वर्ज्य होते हों।
प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-साम्वादी, पकड़, समय आदि आवश्यक हैं।
राग में किसी स्वर के दोनों रूप एक साथ एक दूसरे के बाद प्रयोग नहीं किये जाने चाहिए। उदाहरणार्थ कोमल रे और शुद्ध रे अथवा कोमल  और शुद्ध  दोनों किसी राग में एक साथ नहीं आने चाहिए। यह अवश्य ही सम्भव है कि आरोह में शुद्ध प्रयोग किया जाए और अवरोह में कोमल, जैसे खमाज राग के आरोह में शुद्धि नि और अवरोह में कोमल नि प्रयोग किया जाता है।

हिन्दुस्तानी संगीत के प्रमुख रागों की सूची


राग और ऋतू
भारतीय मान्यताओं के अनुसार राग के गायन के ऋतु निर्धारित है । सही समय पर गाया जाने वला राग अधिक प्रभावी होता है । राग और उनकी ऋतु इस प्रकार है
भैराव शिशिर ऋतू में, हिंडोल बसंत ऋतू में, दीपक ग्रीष्म ऋतू में, मेघ वर्षा ऋतू में, मल्कान शरद ऋतू में, श्री - हेमंत ऋतू में.

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