रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

रविवार, 27 नवंबर 2011

दूसरी दुनिया के निर्माण की वकालत करता है रंगमंच

विद्याभूषण द्विवेदी 
रविशंकर कुमार


आज विद्या भूषण का १५वां पुण्यतिथि है... यानि आज पन्द्रह साल हो गये विद्या भूषण को हमारे बीच से गये हुये ...आज के ही दिन १९९६ में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में उनकी मौत हो गई थी...मात्र ३० साल की उम्र में... ! मगर आज भी वे हमारी यादों में ज़िन्दा हैं... दोस्तो...किसी इन्सान को याद करने के दो कारण होते है......एक व्यक्तिगत और दूसरा सामाजिक .... व्यक्तिगत कारणों पर तो धीरे धीरे धूल जम जाती है...मगर समाजिक कारणों से हम उसे हमेशा याद करते हैं.... आज विद्या भूषण को याद करने का मेरे पास व्यक्तिगत कारण भी है और सामाजिक भी... लेकिन मैं उन्हें सामाजिक कारणों से याद करना चाहूंगा... और वो भी रंगमंच के परिदृश्य में- विद्या भूषण पटना रंगमंच के उन युवा रंगकर्मियों में से थे...जो रंगमंच को व्यापक अर्थों में देखते थे... जिनके पास देश समाज और इतिहास की गहरी समझ थी... और जो लगातार सीखते रहने और कुछ नया करने की कोशिश में लगे रहते थे.... उनके लिये थियेटर सिर्फ़ स्टेज और उसके पर्दे , ग्रीन रूम तक ही सीमित नहीं था... बल्कि हमारे रोजमर्रा की ज़िन्दगी का एक हिस्सा था...उनका कहना था कि रंगमंच सिर्फ़ स्टेज पर ही दूसरी दुनिया का निर्माण नहीं करता...बल्कि उससे बाहर हमारे समाज की विसंगतियों को भी दूर कर , एक दूसरी दुनिया के निर्माण की वकालत करता है... रंगमंच का असली काम तब शुरु होता है ..जब दर्शक नाटक देख कर वापस अपनी दुनिया में आता है...और नाटक में कही गई बातों ...दिखाये गये चित्रों पर मंथन शुरु करता है....! विद्या भूषण कहते थे कि थियेटर को हमारे जीवन के दुख –दर्द...हंसी –खुशी की ही कहानी कहनी होगी...उसी में उसकी सार्थकता है...मगर आज की कितनी नाट्य प्रस्तुतियां इस मानक पर खरा उतरती हैं...? आज जब कि पूरे हिन्दुस्तान के रंगमंच को आम आदमी के रोजमर्रे के जीवन की कहानी से काटकर उसे सिर्फ़ चौधिया देने वाली रौशनी, रंगों और डिज़ाईन के जज़ीरों में जकड़ कर उसकी हत्या की जा रही है...मुझे विद्या भूषण याद आ रहे हैं... ! आज हिन्दुस्तान का हर समझदार रंगकर्मी नाटकों से जायब होते कथ्य और हावी होते रूप को लेकर चिंतित है... इस बात को लेकर प्रसिद्ध रंगकर्मी परवेज़ अख्तर ने भी अपनी चिन्ता ज़ाहिर की है...! दरअसल रंगकर्म में अभी एक ऐसी पीढि सामने आई है...जिसके पास न तो अपने समाज की समझ है...ना ही लोक जीवन की और ना ही जिनके पास इतिहास बोध ही है... आज भी उनकी समझ में ये बात नहीं आई है कि कला है क्या...? वो कला को जीवन के प्रसंगों से काट कर देखते हैं... वो मनोरंजन को भी गलत तरीके से परिभाषित करते हैं.... ! हमने यही सीखा ...हमारे गुरुओं ने हमें यही सीखाया कि कला का काम सत्य की खोज है... हम तमाम कलाओं में उस सच की तलाश करते हैं... जो हमारे समाज को आगे ले जाये... उस दुनिया की ओर जो सहज और सरल हो....! विद्या भूषण ने अपने नाटकों अपने आलेखों और अपने वक्तव्यों के जरिये यही काम किया था... ! एक ऐसे समझदार समाजिक सरोकार वाले रंगकर्मी का हमारे बीच से असमय चला जाना बहुत दुखद है...!

 NSD में अभ्यास के समय संतुलन खो जाने के कारण वो ज़मीन पर गिर गये...उसके बाद कभी उठे ही नहीं... उनके स्पाईनल कोड के पास की नस दब गई...और पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया...और कुछ दिनों के ईलाज के बाद अस्पताल में ही उनका दुखद अंत हो गया... !


रविशंकर कुमार . पटना रंगमंच के प्रेरणा नामक नाट्य दल से लंबे समय तक जुडाव. कई सार्थक नाटकों में अभिनय तथा निर्देशन. पठन - पाठन में विशेष रुचि. वर्तमान में मुंबई में निवास. उनसे ravishankar1510@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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