रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

रविवार, 6 नवंबर 2011

आदमी नामा - नज़ीर अकबराबादी


दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वह भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

मस्जिद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्‍वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही चुराते हैं उनकी जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी

यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी को उतारे है आदमी
चिल्‍ला को पुकारे आदमी को है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

अशराफ़ और कमीने से शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्‍छा भी आदमी कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

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