रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

थियेटर ने ही मुझे जिन्दा रखा - हिबा शाह


हीबा शाह, देश की जानीमानी रंगकर्मी और अभिनेत्री हैं. जानेमाने अभिनेता और निर्देशक नसरूद्दीन शाह की बेटी हीबा, फिल्मों और टीवी सीरियल्स में काम करने के बजाए थिएटर करना ज्यादा पंसंद करती हैं. पटना में आयोजित एक नाटय समारोह में भाग लेने के लिए हीबा पहली बार बिहार आईं. पेश है हीबा शाह से विकास कुमार की बातचीत के कुछ मुख्य अंश:
सवाल: आपने और आपकी टीम ने पहली बार बिहार में कोई नाटक प्रस्तूत किया है. कैसा अनुभव रहा? बिहारी दर्शकों के बारे में क्या कहेंगी?
जी हां (हंसते हुए)….! मैं पहली बार बिहार आई हूं  लेकिन जल्दी ही दूसरी प्रस्तूतियों के साथ बिहार आना चाहूंगी. वैसे इन दो दिनों में ज्यादा लोगों से रूबरू होने का तो मौका नहीं मिला  लेकिन जितने लोगों से भी मिली हूं उसके आधार पर यह कह सकती हूं कि बिहार के लोग बहुत सीधे हैं और यहां के नाटय प्रेमी दर्शक अच्छे काम को बहुत सराहते हैं. नाटक शुरू होने से पहले हॉल में जिस तरह से शोर हो रहा था उससे मुझे थोड़ा-थोड़ा डर भी लग रहा था कि न जाने क्या होगा लेकिन जैसे ही नाटक शुरु हुआ, पूरा का पूरा हॉल अपने-आप शांत हो गया. सबसे बड़ी बात, प्रस्तूति के दौरान किसी का मोबाईल नहीं बजा. इस सब से पता चलता है कि यहां के दर्शकों को नाट्क की अच्छी समझ है. हमे बहुत अच्छा लगा जब प्ले खत्म होते ही पूरे प्रेक्षागृह के लोग खड़े हो कर तालियां पीटे जा रहे थे. दिल से कह रही हूं बहुत अच्छे दर्शक हैं बिहार के.
सवाल: एक जगह मैं पढ़ रहा था कि आप टीवी सिरियल्स नहीं करना चाहतीं. इसकी कोई खास वजह?
देखिए….. मैंने कुछ टीवी सिरियल्स में काम किया  है. टीवी में पैसा बहुत है लेकिन वहां मेरे महीने के पच्चीस दिन लग जाएंगे. फिर मैं थियेटर से दूर हो जाउंगी. मेरे पास रिहल्सल के लिए वक्त ही नहीं बचेगा और मैं थियेटर करना छोड़ नहीं सकती. मुझे यह सबसे ज्यादा पंसद है. थियेटर करते हुए अगर कुछ हो सकता है तो मुझे एतराज नहीं है लेकिन थियेटर से दूर होकर कुछ करना हो तो वो मैं नहीं कर सकती. जब मेरे पास बिल्कुल काम नहीं था तब थियेटर ने ही मुझे जिलाया, जिन्दा रखा. मुझे नहीं पता कि अगर मैं थियेटर नहीं करती तो क्या कर रही होती.
सवाल: थियेटर से लगाव कहां से शुरु हुआ और कैसे?
मैं बचपन से थियेटर देखती थी. अच्छा लगता था. घर पे लोगों को हंसाने के लिए कुछ-कुछ करती रहती थी. जब मैं छठी में थी तब से मैंने थियेटर में एक्टीव रोल लेना शुरु किया. इसके बाद एन.एस.डी. गई और आज यहां हूं.
सवाल: अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि थियेटर अब ज्यादा दिनों तक नहीं बचेगा. यहां बहुत दिक्कते हैं, बगैर-बगैर. आप का क्या मानना है इस बारे में?
जवाब: देखिए…..यहां टीवी और फिल्मों से पैसा तो कम हैं हीं. ये कोई छुपी हुई बात नहीं है. लेकिन अगर हमलोग या आप मीडिया वाले इसी का रोना रोते रहेंगे तो इससे कुछ नहीं होगा. यहां कफी उत्साहित और अच्छे एक्टर हैं, नाटक को पंसंद करने वाले दर्शक हैं तो भला क्यों खत्म हो जाएगा, थिएटर. मैं आपको “मोटली थियेटर ग्रूप” की बात बताती हूं. 1979 में जब यह ग्रूप शुरु हुआ था तो ये लोग मुम्बई के  “कर्णाटक संघ” में अपनी प्रस्तूति किया करते थे. यह जगह बिल्कुल गली में है. जहां जाने के क्रम में लोग अक्सर खो जाते थे. ऐसी जगह पे प्रस्तूति करने का एक ही कारण था कि इनके पास भी उस वक्त पैसे नहीं थे. चार या पांच लोग दर्शक हुआ करते थे लेकिन नाटक होता था. जो नाटक करने को लेकर जुनूनी होगा वो करेंगे  ही और कर भी रहे हैं.
सवाल: कुछ लोग कहते हैं कि थिएटर के दर्शक कम हो रहे हैं. आपको क्या लगता है?
जवाब: ऐसा बिल्कुल नहीं है. अगर हम अपने काम पे मेहनत करें, बेहतर नाटक ले कर आएं तो, दर्शक आज भी हैं. बेहतर काम करने की जरुरत है. दर्शक कहीं नहीं गए हैं. देश में ऐसे अनेकों थिएटर ग्रूप हैं जिनकी प्रस्तूति को देखने के लिए भीड़ लगती है और फिर वहां हाउसफुल का बोर्ड भी लगाना पड़ाता है.
सवाल: एकल नाटक में स्टेज पर केवल एक या दो कलाकार दिखते हैं. एक कलाकार पूरे नाटक में अलग-अलग रोल करता है तो क्या इससे थिएटर में से सामुदायिकता खत्म नहीं हो जाएगी.
जवाब: नाटक में सामुदायिकता हमेशा रहेगी. जहां तक एकल नाटक की बात है तो मैं यह साफ कर देना चाहूंगी कि जब एक कलाकाल स्टेज पर अभिनय कर रहा होता है तो उस वक्त भी उसके साथ लाईट मैंन होता है, म्यूजिक देने वाले होते है. नाटक के निर्देशक होते हैं. स्टेज पर अभिनय कर रहा कलाकार केवल अभिनय कर रहा होता है. बाकी काफी चीजें तो दूसरे ही कर रहे होते हैं. एकल नाटक, थिएटर का एक महत्वपूर्ण अंग है. इससे किसी तरह का कोई खतरा-वतरा नही है.
युवा पत्रकार एवं छायाकार विकास कुमार तहलका से संबद्ध हैं। आलेख बिहार खोज खबर से साभार.

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