रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

भिखारी ठाकुर नाच क़ी परम्परा के आधुनिक अनुसंधानकर्ता हैं |


परवेज़ अख्तर 

परवेज़ अख्तर 

प्राक-संस्कृत रंगमंच के अवसान के बाद, उत्तर बिहार में प्रचलित लोक नाट्य-शैली 'नाच' (कीर्तनिया/बिदापद नाच) की परम्परा के समकालीन रचनाकार थे भिखारी ठाकुर | वैष्णव भक्ति-आन्दोलन के दौरान न सिर्फ विपुल साहित्य रचे गए, बल्कि नृत्य-संगीत प्रधान 'नाच' अथवा 'नाट्य' का भी विकास हुआ ! 12वीं-13वीं शताब्दी में, संस्कृत रंगमंच का प्रभाव काफी कम हो गया और उसी दौर में मिथिला क्षेत्र में ज्योतिरेश्वर, उमापति उपाधयाय जैसे कई संस्कृत साहित्य के विद्वानों ने कृष्ण-आधारित सांगीतक की रचना की | इसी से प्रभावित होकर, असम में 'अंकिया भाओना' और बंगाल में 'जात्रा' जैसी शैलियों का विकास हुआ, यह तथ्य है | इन नाट्य-रूपों में कृष्ण या वैष्णव कथाओं को प्रमुखता दी गयी | इनमें पुरुष कलाकार ही, स्त्री पात्र की भूमिका करते थे |

बाद में; बिहार में कीर्तनिया/बिदापद नाच, एक दूसरेरूप में 'नाच' के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसके आधुनिक रचनाकार भिखारी ठाकुर थे | इसलिए उस नाट्य-परम्परा को, यदि समकालीन संवेदना के साथ रंगकर्मी आगे बढ़ाते हैं, तो यह स्वागतयोग्य है |

असम के शंकर देव ने ब्रज-भूमि की यात्रा के क्रम में मिथिला क्षेत्र के नाट्य-रूप 'कीर्तनिया' से प्रभावित होकर ही, 'पारिजात हरण' या 'रुक्मिणी हरण' जैसे नाटक लिखे और वहां 'अंकिया-भाओना' शैली का विकास हुआ | 'जात्रा' पर उसके प्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता है | 

वह दौर (बारहवीं-तेरहवीं सदी) सांगीतक का दौर था और बिहार, असम, बंगाल, मध्य-देश सहित, सुदूर कर्णाटक में प्राक-संस्कृत सांगीतक क़ी रचना होरही थी | 'नाचा' भी उसी दौर में विकसित हुआ | कालांतर में, उत्तर बिहार में 'कीर्तनिया' और बाद में 'बिदापत नाच' की परंपरा को 'नाच' कहा गया और भिखारी ठाकुर नाच क़ी परम्परा के आधुनिक अनुसंधानकर्ता हैं | इस प्रकार भिखारी ठाकुर ज्योतिरेश्वर ठाकुर, उमा पति उपाध्याय क़ी परम्परा के रचनाकार थे |

परवेज़ अख्तर : पटना , बिहार के चर्चित रंग निर्देशक हैं , उनसे parvez29akhtar@rediffmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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