रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शनिवार, 5 जनवरी 2013

15वां भारत रंग महोत्सव का एक पूर्वालोकन : अमितेश कुमार


आम जन के पैसों से संचालित भारत रंग महोत्सव ( हिंदी ) नाम पर theatre utsav ( अंग्रेज़ी ) का कब्ज़ा हो चुका है. भारतीय रंग दर्शक एवं रंगकर्मियों के लिए माकूल मौसम से हटकर इसे विदेशियों के लिए माकूल मौसम में कब का शिफ्ट किया जा चुका है. यह भारत में कोहरे और ठण्ड का मौसम होता है, इस कडकती ठण्ड में कोहरे की मार से घंटो लेट चल रही रेल से यात्रा करके दूर दूर से आनेवाले नाट्य दलों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. वहीं हमारे विदेशी मेहमान के लिए यह बेहद माकूल मौसम है. हवाई यात्रा करके भारत में नाटक करना और यहाँ की गुलाबी मौसम का पुरज़ोर आनंद उठाना उनके लिए एक यादगार पिकनिक का अनुभव होता है. इस कडकती ठण्ड में रात-दिन एक करके काम करनेवाले मंच पार्श्व के मजदूरों की चिंता इस देश में कौन करता है ? नाटकों में तमाम तरह के उत्पीडन के खिलाफ़ बात करना और व्यावहारिक धरातल पर उसे मानने में ज़मीन आसमान का फर्क है. ज्ञातव्य हो कि मंच पार्श्व का सारा काम रात में निपटाया जाता है कुछ दैनिक वेतन के मजदूरों के सहारे. इस बीच अगर इनकी तवियत खराब होती है, इन्हें ठण्ड लगता है तो घर बैठाने खांसने के सिवा इनके पास कोई रास्ता नहीं होता. ये बातें हवा में नहीं कही जा रही है इससे पहले भारत रंग महोत्सव माफ करे, theatre utsav के दौरान ठण्ड लग जाने के कारण एक मजदूर की मौत सहित कई अन्य मौतें हो चुकी है, जिसपर किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया है. खैर, ओपनिवेशिक मानसिकता वाला ये महाभोज सबको मुबारक हो, खासकर हमारे विदेशी मेहमानों को. Welcome in India sir ji उम्मीद है इस साल भी कम ही सही पर कुछ बेहतरीन नाटक ( नाटक जैसा कुछ नहीं ) देखने को मिलेगा. इस महोत्सव का एक पूर्वालोकन कर रहें हैं युवा रंग चिन्तक अमितेश कुमार. - माडरेटर मंडली.

लग गया है मजमा, टिकट बुकिंग शुरू हो गई है. दिल्ली में इस बार कड़ाके की ठंढ़ है और भारंगम को इसी महिने होना है. हर साल की तरह इस बार भी इस समय के चुनाव को लानत भेजते हुए दर्शक टिकट काउंटर की ओर रूख कर चुके हैं. कोई विकल्प नहीं है. भारंगम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कब्जे वाला उत्सव है और इसको उस कब्जे से निकालने के लिए कहीं कोई कसमसहाट नहीं है और यह मौसम निःसंदेह भारतीय रंगकर्मियों के लिए अनुकूल नहीं है और खासकर उन पार्श्वकर्मी मजदूरों के लिए जो दिन रात एक करके मेहनत कर रहें हैं. टीम आएगी प्रस्तुति करेगी और चली जाएगी लेकिन उनका काम चल रहा है, चलता रहेगा. खैर इस भारंगम में क्या खास है इसकी बात करते हैं.
भारंगम में इस बार दृश्य रूप से चार खंड है. सामान्य खंड के अलावा मंटो से जुड़ी नाट्य प्रस्तुतियों का एक खंड है. पारंपरिक नाट्य परंपरा से नाटककारों को अवगत कराने के लिए उनके मंचन का भी प्रावधान किया गया है, मंटो से जुड़ी प्रस्तुतियों का खंड है और चौथा है एलायड का जिसमें इंस्टालेशन और पर्फ़ामेंस पीस है. टिकट की दर पिछले वर्ष की ही है. लगभग अस्सी प्रस्तुतियां होंगी. मंडी हाउस के इर्द गिर्द के प्रेक्षागृह और रानावि परिसर गहमा गहमी से भरे रहेंगे दो सप्ताह तक.
उत्सव की शुरूआत इस बार पदातिक कोलकाता के हिंदी नाटक ‘आत्मकथा’ से हो रही है जिसका निर्देशन किया है विनय शर्मा ने और महेश एलकुंचवार नाटककार हैं. इस प्रस्तुति से कुलभूषण खरबंदा की वापसी कोलकता और हिंदी रंगमंच पर हुई है, दिल्ली भी उनके मंचीय दिनों का साक्षी रहा है इसलिए एक तरह से यह दिल्ली में भी वापसी है.
पारंपरिक नाट्यरूपों पर आधारित प्रस्तुतियों में ‘मायाबाजार’ एक अत्यंत सफ़ल प्रस्तुति है जिसका कई वर्षों से मंचन हो रहा है. इसकी प्रस्तुति भारत का सबसे पुराने रंगमंडल सुरभि करता है. प्रदर्शन में पर्दों के दृश्यबंध और चमत्कारिक ट्रिक्स जादुई प्रभाव छोड़ते हैं. तेलुगु भाषा का होते हुए भी  समझने में दिक्कत नहीं होती है. पारसी रंगमंच के आधुनिक फार्म से साक्षार  के लिये इसे अवश्य देखें. अन्य प्रदर्शनों में मराठी का ‘सांगीत मान अपमान’ और ‘मुट्ठा भर तंडुल’, प्रसिद्ध नौटंकी ‘भक्त पूरनमल’ और बंगाल का लोकप्रिय यात्रा रंगमंच की प्रस्तुति ‘आमी बिंग्सो शताब्दीर बिस’ हैं.
पहला दिन अग्रिम टिकट काउंटर का ये हाल राह. फोटो - नवनीत कुमार.
‘मंटो’ की यह जन्मशताब्दी है और इसका ध्यान रखते हुए मंटो से जुड़ी नाट्यप्रस्तुतियों को शामिल किया गया है. जिसमें पाकिस्तान से आई प्रस्तुति ‘मंटोरामा’ भी है. ‘दफ़ा २९२’ अनूप त्रिवेदी निर्देशित रानावि रंगमंडल की प्रस्तुति है और यह इस बार रंगमंडल की एक मात्र प्रस्तुति है.  महमूद फ़ारूकी और दानिश हुसैन की लोकप्रिय दास्तानगोई ‘मंटोइअयत’ भी इस बार भारंगम में शामिल है. इसके अलावा पंजाबी प्रस्तुति ‘इक सी मंटो’ और देवेंद्र राज अंकुर की प्रस्तुति ‘खोल दो और मोज़ेल’ भी है.
हिंदी की प्रस्तुतियों में दिनेश ठाकुर की प्रस्तुति ‘रंग बजरंग’ है. यह श्रद्धांजलि प्रस्तुति है, गौरतलब है कि दिनेश ठाकुर का निधन विगत वर्ष ही हुआ है. पिछली प्रस्तुति ‘समझौता’ से दर्शको को जीतने में सफ़ल प्रवीण  गुंजन  इस बार ‘जर्नी फ़ार फ़्रीडम’ ले कर आये हैं. राजेन्द्रनाथ निर्देशित प्रस्तुति ‘मोहनदास’ और अतुल कुमार निर्देशित ‘पिया बहुरूपिया’  देखे जाने योग्य प्रस्तुतियां हैं. दिल्ली के दर्शक इन प्रस्तुतियों से परिचित हैं. संजय उपाध्याय निर्देशित ‘गगन दमामा बाज्यो’, त्रिपुरारी शर्मा की ‘मे बी दिस समर’  यशपाल शर्मा अभिनित प्रस्तुति ‘यार बना बड्डी’, ‘तीसवीं शताब्दी’, दिनेश खन्ना की ‘प्रेम की भूतकथा’ और राकेश बेदी की ‘मसाज’ अन्य प्रस्तुतियां हैं.
डिप्लोमा प्रस्तुतियों में जीत राय हंसदा निर्देशित ‘फ़ेवीकोल’ और मुजम्मिल हयात भवानी निर्देशित ‘ए कंट्री विदाउट पोस्टअफ़िस’ को सराहना मिली थी, अब बड़े मंच पर इन प्रस्तुतियों की परीक्षा होगी.
वीणापाणी चावला की रामायण आधारित प्रस्तुति, गौरी रामनारायण की ‘सर्प सूत्र’ और कुसुम हैदर की ‘मेटामोर्फ़ोसिस’ में भी संभावना नजर आती है. वरिष्ठ निर्देशक प्रसन्ना ने मौलियर के नाटक ’द बोर्जुअस जेंटलमैन’ की प्रस्तुति ‘व्हाट क्रेजीनेस! व्हाई यउ बीहेव दिस वे?’ के नाम से रंगायन के लिए की है. इस नाटक को हबीब तनवीर ने भी किया था. बहारूल इस्लाम‘जुलियस सीजर’ और सत्यव्रत राउत ‘मत्ते एकलव्य’ के साथ शामिल हैं.  नांदीकार की प्रस्तुति ‘अंतो आदि अंतो’ एवं डां. सौमित्र चटर्जी निर्देशित ‘होमापाखी’ पर भी दर्शकों कॊ नजर रहेगी. जी.पी. देशपांडे के नाटक ‘सत्यशोधक’ को अतुल पेठे ने महाराष्ट्र में सफ़ाई कर्मचारियों के साथ मिल कर किया है यह प्रस्तुति भी भारंगम मे शामिल है.
इस बार भारंगम की सूची बहुत अधिक उत्साहवर्धक नहीं है और यह पिछले कुछ वर्षों से हो रहा है.कुछ निर्देशक लगातार मौका पाते रहते हैं ऐसा लगता है भारंगम में प्रस्तुति करने वाले निर्देशकों और रंगदलों का कोई पैनल बन गया है जिससे बाहर की प्रस्तुतियां शामिल नहीं होती.  भारंगम से दर्शक भी दूर हो रहें हैं, जैसा आज अग्रिम बुकिंग काउंटर पर दिखा जहां दर्शक कम ही पहूंचे थे. जो साल भर भारंगम की तैयारी के बाद जैसी अव्यवस्था रहती है वह इस बार भी है. नाटकों की सूची वाले पैंफ्लेट पर तारीख गलत प्रकाशित  हो गई है. तो जाइये नाटक चुनिए और देखिए, कुछ चौंकाने वाली प्रस्तुति हो सकता है आप को प्रभावित कर दे.

4 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लेख ...पुंज जी और अमितेश जी आपको मेरे द्वारा ली गयी फोटो को इस पेज पर जगह देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ....साथ ही इस साल भी कम ही सही पर सबकुछ (नाटक जैसा कुछ भी नहीं ) देखने को मिलेगा , एक बार पुनः युवा रंग चिन्तक को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शुभकामना ...

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