रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

रंगमंच को आकार देकर विदा हुए सत्यदेव दुबे


प्रख्यात रंगकर्मी सत्यदेव दुबे ने लम्बी बीमारी के बाद रविवार (25 दिसम्बर ) की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 75 वर्ष के थे।

सत्यदेव की दिली ख्वाहिश एक अच्छा क्रिकेटर बनने की थी, लेकिन वह नाटककार बन गए। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 1936 में जन्मे दुबे क्रिकेट खिलाड़ी बनने का सपना दिल में संजोए मुंबई आ गए थे। लेकिन भारतीय रंगमंच के पितामह इब्राहीम अल्काजी के संपर्क में आने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई। बिलासपुर के छितानी मितानी दुबे परिवार का नाम प्रमुख दानदाता परिवारों में आज भी लिया जाता है। पंडित छितानी प्रसाद दुबे के 6 पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र गया प्रसाद दुबे के दो पुत्र हुए बड़ा पुत्र कोटेश्वर दुबे और छोटे पुत्र का नाम सत्यदेव दुबे था। सत्यदेव की प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर में हुई उसके बाद वे सागर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम ए किया। वे गोल्ड मेडिलिस्ट छात्र रहे। वहां से लौटकर श्री दुबे कुछ समय तक एसबीआर कालेज में प्राध्यापक भी रहे।

सत्यदेव दुबे विगत 50 वर्षों से मुंबई में रंगमंच के विभिन्न विधाओं से जुड़े रहे। उनकी पहचान रंगमंच को भारतीय स्वरूप देने में रही। उन्होंने भारतीय रंगमंच में उपनिवेशवादी तत्व को बाहर निकालने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस बात को लेकर वे विवादास्पद भी रहे और दृढ़ भी। उन्होंने धर्मवीर भारती द्वारा लिखित नाटक अंधायुग का 1962 में मंचन किया। हिन्दी और मराठी साहित्यकारों के नाटको को उन्होंने देश में स्थापित किया। गौरतलब है कि आजादी के बाद भारत में अंग्रेजी रंगमंच का बोलबाला था। श्री दुबे अंग्रेजीयन से निकलकर हिन्दुस्तानी शैली में नाटको का मंचन प्रारंभ किया।

स्व. सत्यदेव दुबे में नाटक के प्रति समर्पण, रचनात्मकता और जबा  देखते बनता था। उन्होंने गिरीश कर्नाड के पहले नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों का मंचन कर भारतीय रंगमंच को जीवंत कर दिया, लेकिन उन्हें प्रसिद्धि दिलाने वाला 'अंधा युग' था।

उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया और कुछ लघु और फीचर फिल्में भी बनाईं। दुबे ने उनकी कई फिल्मों कें संवाद और पटकथा भी लिखी। इनमें अंकुर (197।), निशांत (1975), भूमिका (1977), जुनून (1978), कलयुग (1980), आक्रोश (1980), विजेता (1982) और मंडी (1983) शामिल हैं। वे मुंबई में रंगमंच के गुरू के नाम से प्रख्यात थे। उन्होंने कई कलाकारों को अभिनय का प्रशिक्षण दिया। उनके निधन पर  बॉलीवुड को  गहरा अघात लगा। 

अभिनेत्री शबाना आजमी ने टि्वटर पर कहा कि महान रंगकर्मी सत्यदेव दुबे का करीब एक घंटे पहले निधन हो गया। यह कलाकारों के लिए बड़ा भयावह साल है। वह रंगमंच की महान हस्ती थे। अभिनेता अनुपम खेर ने कहा कि हिंदी रंगमंच की महान हस्ती सत्यदेव दुबे नहीं रहे। वह रंगमंच के प्रति अटूट निष्ठावान थे। फिल्मकार महेश भट्ट ने कहा कि रंगमंच की दुनिया की विभूति सत्यदेव दुबे का निधन हो गया। पुराने दिनों की याद ताजा हो गई है। अलविदा दुबेजी। निर्देशक केन घोष ने कहा कि सत्यदेव दुबे के निधन की खबर सुनकर दुख हुआ। उन्होंने इश्क विश्व के सभी कालाकारों के लिए अभिनय कार्यशाला आयोजित की थी। निर्माता विवेक वासवानी ने कहा कि मनोरंजनकर्ताओं के लिए खुशी मनाने का साल नहीं है यह। हम सभी को नुकसान पहुंचा है। अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी का कहना है कि बॉलीवुड में आने के लिए श्री दुबे ने ही उन्हें प्रेरित किया था। केन घोष ने कहा कि सत्यदेव दुबे के निधन के बारे में सुना दुख की बात है । वह सभी नए कलाकारों के साथ इश्क विश्क की एक अभिनय कार्यशाला का आयोजन किया। मधुर भंडारकर ने उन्हें एक शानदार रंगमंच अभिनेता और असाधारण पटकथा लेखक, निर्देशक  बताया। उन्होंने कहा कि श्री दुबे निधन उद्योग के लिए एक बड़ा नुकसान है।



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