रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शनिवार, 11 जनवरी 2014

16 वें भारत रंग महोत्सव का पांचवां दिन

अमितेश कुमार का यह आलेख उनके ब्लॉग रंगविमर्श से साभार. अमितेश कुमार से amitesh0@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

भारंगम में पांचवा दिन विमर्श के नाम रहा.राग पटना की प्रस्तुति  जहाजी’, ‘विकास’, ‘आधुनिकता’, ‘लोकतंत्र’, ‘विस्थापन’ आदि विषयों पर संदर्भयुक्त बहस करती है और कन्नड प्रस्तुति ‘अग्निपथ’ महाभारत के कुछ स्त्री पात्रों की स्थिति की व्याख्या करता है.राजेश चन्द्रा लिखित और रणधीर निर्देशित ‘जहाजी’ डाक्युड्रामा शैली की प्रस्तुति है. आजादी के साठ सालों में विकास के दावों, उससे होने वाले विस्थापन और इससे कौन सर्वाधिक प्रभावित है उनकी स्थिति क्या है यह इस प्रस्तुति की थीम है.  प्रस्तुति  में थोड़ी सी भी चूक से प्रस्तुति नितांत ऊबाऊ हो सकती थी लेकिन कथ्य,परिकल्पनादृश्य बिंबोंअभिनेता और नाटक में शामिल गीतों के बेहतरीन संतुलन से यह प्रस्तुति एक उत्तेजक अनुभव में बदल गई. इसे एक राजनीतिक हस्तक्षेप की तरह भी देखा जा सकता है क्योंकि नाटक में बिना किसी आड़ के सत्ता, उसके पवित्र नारों एवं संस्थानों के जन विरोधी रवैये पर सवाल खड़ा किया गया है. ऐसे में दिल्ली में इस प्रस्तुति की अहमियत बढ़ जाती है.
यह नाटक विकास की आधुनिक और पश्चिमी अवधारणा की आलोचना करते हुए भारती शासन व्यवस्था के उस आधार की भी आलोचना करती है जिसने आजादी के बाद विकास के पश्चिमी माडल को अपनाया गया जिसमें विकास को किसी भी कीमत पर हासिल करना था जिसकी अनिवार्य परिणती हुई विस्थापन    और इसका दंश सबसे अधिक हाशिये के समुदायों अर्थात महिलाओं, आदिवासियों और दलितों को झेलना पड़ा. यह विस्थापन केवल एक जगह से उजड़ कर दूसरी जगह जाना नहीं था यह एक पर्यावास का उजड़ना था जिसके उजड़ते ही उस क्षेत्र की भाषा, संस्कृति, भोजन, इत्यादि भी उजड़ जाते हैं. और यहां से निकले लोग एक अमानवीय जिदंगी जीने को विवश होते हैं. प्रस्तुति में सभी स्थितियों, आंकड़ों और संदर्भों का एक नाटकी विन्यास है जिसमें दर्शक कुछ भयावह स्थितियों से परिचित होते हैं. प्रस्तुति आलोचनात्मक और विवरणात्मक रूख के साथ इस प्रक्रिया के सभी आयाम और बहसों को बिना किसी मूल्य निर्णय के सामने लाने की कोशिश करता है लेकिन उसकी पक्षधरता स्पष्ट है. प्रस्तुति उन जगहों पर भी जाती है जहां विस्थापन के घाव ताजा हैंवहां के निवासियों का हवाला भी  है इस प्रक्रिया में नाटक कुछ दोहरावों का शिकार भी होता है, जिसके संपादन कि आवश्यकता है.  दऊरा, पीढा, लाठी, लालटेन, ड्रम आदि सामग्री के इस्तेमाल और प्रकाश, ध्वनि के साथ परिकल्पित दृश्य भाषा अत्यंत प्रभावी है जो संस्कृतियों के उजड़ते चले जाने को दृश्यमान करती है. प्रस्तुति मुक्तिबोध की कविता और मार्क्स के वक्तव्य से शुरू होती है, जिसमें धूमिल, शमशेर, मुक्तिबोध, बशीर बद्र और ब्रेख्त भी आते हैं. निर्गुण के साथ साथ कंडीसा और हिरावल के गीत का च्छा इस्तेमाल है.  गैंग्स आफ वस्सेपुर का गीत ‘तार बिजली से पतले’ और ‘इक बगल में चांद के गीत का बहुत ही प्रासंगिक इस्तेमाल है. यह एक अलग तेवर वाली प्रस्तुति है और इसकी धमक को रंग जग में महसूस किया जाना चाहिये.  यह देखना रोचक है कि अभिनेता संवादों में आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं और उनकी पृष्ठभूमि में दृश्यों की  शृंखला उसे संदर्भ देती है. इस तरह दृश्य और संवाद की विरोधी छवियां से प्रस्तुति बनती है.  यह मंच पर एक शोध आलेख को पढ़ने जैसा है जिसमें अभिनेताओं का काम प्रभावित करता है.
वरिष्ठ निर्देशिका बी.जयश्री निर्देशित प्रस्तुति ‘अग्निपथ’ महाभारत के स्त्री पात्रों, अंबा, गांधारी, कुंती, माद्री और द्रौपदी के मन के भीतर के भावों को प्रदर्शित करता है. कन्नड की इस प्रस्तुति की दृश्य भाषा ग्राह्य है इसका कारण है गोंदोलिगा मेला शैली में रची गई इस प्रस्तुति की भाषा. जिसमें ताल, नृत्य, संगीत, गायन से प्रस्तुति की कथा आगे बढ़ती है. मुख्य गायक दो अन्य गायक वादकों के साथ कथाएआचन करता है. प्रस्तुति में अभिनेता दृश्य और दृश्यबंध का हिस्सा बनते रहते हैं कोरस और भूमिका के बीच भी उनकी आवाजाही है.  नातकिय आख्यान की तरलता को बनाए रखने में नाट्य संगीत  मदद करता है.  यक्षागान की कुछ युक्तियां भी प्रस्तुति में शमिल है. प्रस्तुति में इस तथ्य को खोजने का प्रयास किया गया है कि इन महिला पात्रों को हाशिए पर रखने की वज़ह से महाभारत में होने वाले विनाश के पूर्वानुमान  में विफ़लता मिली’. प्रस्तुति में ये पात्र अपनी स्थिति की को प्रश्नांकित करते हैं और पितृसत्तात्मक व्यवस्था से सवाल करते हैं. भीष्म जैसा उज्ज्वअल चरित्र भी इस दृष्टि से दोषी सिद्ध होता है. स्त्री होने की वज़ह से हुए अपने शोषण के लिये जिम्मेदार उस व्यवस्था को ये नकारती है और अपने स्वत्व को बचाने का निर्णय करती है. महाभारत की पात्रों की विमर्शात्मक व्याख्या होती रही है लेकिन यह प्रस्तुति इन सभी स्त्री पात्रों को एक साथ रखकर इनकी स्थिति को व्याख्यायित करती है. यह दोनों ही प्रस्तुतियां इस भारंगम की श्रेष्ठ प्रस्तुतियों में रहेंगी. 

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