रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शनिवार, 30 अगस्त 2014

नाटक नटमेठिया के बारे में ---

नटमेठिया एक जीवनीपरक (Bio-graphical) नाटक है जिसके केन्द्र में हैं बिहार के लेखक, कवि, अभिनेता, निर्देशक, गायक, रंग-प्रशिक्षक भिखारी ठाकुर और भारतीय समाज की जटिल वर्गीय व जातीय बुनावट। भिखारी ठाकुर की संघर्षशील जीवनयात्रा का काल 1887 से 1971 रहा है यानि ब्रिटिश राज से लेकर आज़ाद भारत और भारत निर्माण तक का काल। यह वही काल है जिसमें दुनियां में क्रांतियों व विश्वयुद्धों का दौर चलता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचता है और भारत एक आज़ाद देश घोषित होता है। वैश्विक धरातल पर तेज़ी से घटित होता यह तमाम सामाजिक - राजनीतिक परिघटनाएं इस नाटक के विषय वस्तु को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं और कहीं-कहीं तो सीधे विषय-वस्तु ही बन जाती हैं। इस नाटक के केन्द्र में नाच जैसी इरोटिक और विशुद्ध मनोरंजन मात्र के रूप में लोकप्रिय विधा भी है जिसे परिष्कृत और कलात्मक बनाकर आज के आदमी का दुःख दर्द को अभिव्यक्त करने का माध्यम बनाकर प्रस्तुत करने की छटपटाहट भिखारी ठाकुर के अंदर साफ़-साफ़ महसूस किया जा सकता है, जिसमें एक तरफ़ सामाजिक संघर्ष है तो दूसरी तरफ़ है एक कलाकार का अपना अंतर्जगत। कहीं परम्परा का निर्वाह है तो कहीं उसके घुटन भरे ताने-बाने से निकलने की चटपटाहट भी।
यह नाटक नाट्यकला के प्रति पूर्णतः समर्पित भिखारी ठाकुर के जीवन, कला, नाट्यकर्म व लेखन के माध्यम से एक खास प्रकार का दलित व स्त्री विमर्श भी प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है। जिसमें उनके संघर्ष के साथ ही साथ भारतीय वर्ग-वर्ण व्यवस्था का सजीव, रोचक व क्रूर चित्रण भी सामने आता है।
समाज में व्याप्त कुरीतिओं के खिलाफ़ जब कोई कलाकार पारंपरिक कलात्मक व सामाजिक तौर-तरीकों, प्रतीकों (Traditional artistic & Social Styles-Symbols) का इस्तेमाल सुधारवादी चिंतन के लिए करता है तो उसे लोकप्रियता के साथ ही साथ कला और मानव समाज के विचारों के अंतरद्वन्द का भी सामना करना पड़ता है। इस द्वन्द के सृजनात्मक और सार्थक इस्तेमाल से ही तो कला और समाज दोनों में निखार आता है और मानवीय संवेदनाएं वर्जनाओं और कर्मकांडों से ऊपर उठकर और ज़्यादा मानवीय होने की दिशा में अग्रसर होतीं हैं।
तमाम वर्गों, वर्णों, जातियों, समुदायों में विभाजित, सामंती और उपभोक्तावादी मानसिकता से ग्रसित समाज में कला, कलाकार, वर्ग और समाज का संघर्ष युगों पुराना है। तिथियाँ बदली हैं, परिस्थितियां बदली हैं, स्वरुप बदला है, तरीका बदला है किन्तु यह संघर्ष आज भी समाप्त नहीं हुआ है। प्रस्तुत नाटक भिखारी ठाकुर के माध्यम से कला-कलाकार व समाज के बीच व्याप्त इसी द्वन्द व संघर्ष की भी एक व्यावहारिक गाथा प्रस्तुत करने का प्रयास है।
नाटक का नाम - नटमेठिया प्रस्तुति - रागा रंगमंडल, पटना निर्देशक - रंधीर कुमार नाटककार - पुंज प्रकाश प्रथम प्रदर्शन दिनांक - 8 एवं 9 जुलाई 2014 स्थान - कालिदास रंगालय, पटना, समय - संध्या 7 बजे। अभिनेता - सुनील बिहारी, मनीष महिवाल, अजीत कुमार, बुल्लू कुमार, आशुतोष, रवि महादेवन, उदय, रवि कौशिक, शिल्पा भारती, निखिल व आकाश। पार्श्व सहयोग - भूपेंद्र कुमार, मार्कंडेय पाण्डेय, गुंजन कुमार, विनय आदि। नटमेठिया संजीव के उपन्यास सूत्रधार, भिखारी ठाकुर रचनावली, कबीर के निर्गुण, रामचरितमानस व दलित कविताओं को आधार बनाकर लिखा गया है। 

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