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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

विख्यात हिंदी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का निधन

शुक्रवार, 28 अक्तूबर, 2011 को 12:२८
मशहूर व्यंग्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीलाल शुक्ल का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्होंने आज लखनऊ के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 86 वर्ष के श्री लाल शुक्ला को देश के वरिष्ठ और विशिष्ठ साहित्यकारों में गिना जाता रहा है। उन्हें उनके प्रसिद्ध उपन्यास रागदरबारी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुस्तक का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है श्रीलाल शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में सन् 1925 में हुआ था तथा उनकी प्रारम्भिक और उच्च शिक्षा भी उत्तर प्रदेश में ही हुई। श्री शुक्ल काफी समय से बीमार चल रहे थे। शुक्ल को साल 2008 में को पद्मभूषण पुरस्कार नवाजा गया था। उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता है। व्यंग्य पर इतनी अच्छी पकड़ हर किसी के बस की बात नहीं है। उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर दोपहर ढाई बजे होगा। 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने 1949 में राज्य सिविल सेवा में अपनी नौकरी शुरू की और 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश ग्रहण किया था। शुक्ल का पहला उपन्यास 1957 में 'सूनी घाटी का सूरज 'छपा था और उनका पहला व्यंग्य संग्रह 'अंगद का पांव' 1958 में छपा था। महज 34 वर्ष की उम्र में ही इस उपन्यास ने उन्हें हिन्दी साहित्य में अमर बना दिया। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 मे पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है। वह अकादमी का पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के सबसे कम उम्र के लेखक हैं। राग दरबारी का अनुवाद अंग्रेजी के अलवा 15 भारतीय भाषाओं में हो चुका है।
रचनायें उपन्यास: सूनी घाटी का सूरजअज्ञातवासरागदरबारीआदमी का ज़हरसीमाएँ टूटती हैं मकानपहला पड़ावविश्रामपुर का सन्तअंगद का पाँवयहाँ से वहाँउमरावनगर में कुछ दिन कहानी संग्रह: यह घर मेरा नहीं हैसुरक्षा तथा अन्य कहानियांइस उम्र में व्यंग्य संग्रह: अंगद का पांवयहां से वहांमेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायेंउमरावनगर में कुछ दिनकुछ जमीन पर कुछ हवा मेंआओ बैठ लें कुछ देर आलोचना: अज्ञेय: कुछ राग और कुछ रंग विनिबन्ध: भगवती चरण वर्माअमृतलाल नागर बाल साहित्य: बढबर सिंह और उसके साथी

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