रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

अभिनेता का रंगमंच


परवेज़ अख्तर
रंगमंच अभिनेता का माध्यम है; किंतु दुर्भाग्यवश रंगमंच में अभिनेता की अलग पहचान नहीं बन पायी। इस पहचान के बिना रंगमंच की पहचान भी संभव नहीं है। एकल अभिनयपूरी तरह अभिनेता का रंगमंच है। यह एक अभिनेता को उसके द्वारा अर्जित अनुभव, कार्यदक्षता और कल्पनाशीलता के प्रदर्शन का स्वतंत्र अवसर उपलब्ध करता है और उसे उसकी जादुई शक्ति के साथ रंगमंच पर प्रतिष्ठापित भी करता है। एकल नाट्य (या एकल अभिनय) किसी भी स्तर पर सामूहिकता का निषेध नहीं करता; बल्कि यह सामुदायिक जीवन का अंग है, क्योंकि यह व्यापक दर्शक समुदाय को संबोधित होता है।

ऊपरी तौर पर ‘एकल अभिनयभले ही सरल लगता हो; किंतु वास्तव में, यह समूह-अभिनयसे ज्यादा जटिल है और कल्पनाशीलता तथा नाट्य-कौशल में सिद्धहस्त अभिनेता की मांग करता है। समूह अभिनय में, जहां अनेक अभिनेताओं की क्रिया-प्रतिक्रिया के संघर्ष से नाट्य प्रभाव की सृष्टि होती है; वहीं एकल अभिनय में, अभिनेता के भीतर यह नाट्य-व्यापार घटित होता है, जो उसकी शारीरिक क्रिया द्वारा मंच पर साकार होता है। एकल अभिनय, मूल-धारा के समूह अभिनय के विरुद्ध नहीं है; बल्कि यह उसे संपुष्ट करता है, बल प्रदान करता है। सबसे अधिक यह रंगमंच की अनिवार्य ईकाई अभिनेता को विशेष पहचान देता है, उसके प्रति दर्शकों की आस्था को शक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार यह रंगमंच के नायक अभिनेताको पुनर्स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है।

बांग्ला रंगमंच में, एकल अभिनय की परंपरा काफी वर्षों से है और तृप्ति मित्र, सांवली मित्र के प्रयोग का भारतीय रंगमंच में उच्च-मूल्यांकन किया जाता है। बाउल एक तरह का एकल नाट्य ही है। महान बांग्ला अभिनेता शांति गोपाल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर चर्चित लेनिन’, ‘कार्ल मार्क्स’, ‘सुभाष चंद्र’, ‘राममोहन रॉयआदि पर मंचित जात्रा; एक हद तक, उनका एकल अभिनय ही था। इधर कुछ वर्षों से; हिंदी, कन्नड़, मराठी और अन्य भारतीय भाषाओं में एकल अभिनय के अनेक अभिनव प्रयोग किये गये हैं। पटना में नटमंडपद्वारा इस सिलसिले को पिछले कुछ वर्षों से गंभीरता से आगे बढ़ाया गया है। बिहार के अन्य कतिपय रंगकर्मियों द्वारा भी एकल अभिनय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं।

रंगमंच के लिए किसी नाट्य प्रयोग की प्रासंगिकता, उसके द्वारा संपूर्ण नाट्य प्रभाव की सृष्टि और नाट्यकला का आस्वाद करा पाने की उसकी क्षमता में अंतर्निहित है। इसलिए, एकल अभिनय एक सामान्य नाट्य मंचन जैसा ही है, जिसमें एक-अकेले अभिनेता के अतिरिक्त, किसी दूसरे अभिनेता की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती और इसकी सफलता भी इसी में है कि दर्शक को किसी भी क्षण किसी अन्य अभिनेता के न होने का अहसास न हो।

एकल अभिनय को, रंगमंच के एक फॉर्मअथवा शैली के रूप में दर्शकों की स्वीकृति भी मिल रही है और यह रंगमंच के हित में है।

 परवेज़ अख़्तर
 वरिष्‍ठ रंग निर्देशक। बिहार रंगमंच को राष्‍ट्रीय पहचान दिलाने वालों में रहे। इप्‍टा से लंबे समय तक जुड़ाव और संगठन में सरकारी हस्‍तक्षेप के चलते इप्‍टा से अलग हुए। इन दिनों नटमंडप में। नटमंडप ने पटना में रूफ थिएटर को नया आयाम दिया है।उनसे parvez29akhtar@rediffmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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