रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 23 जनवरी 2012

रंगमंच के विकास हेतु सरकार पहल करे. सीमा विश्वास


भारत रंग महोत्सव में सीमा विश्वास रविन्द्रनाथ टैगोर की कहानी स्त्रिरेर पत्र पर आधारित अपनी एकल प्रस्तुति के साथ उपस्थित थीं. एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में सीमा विश्वास भारतीये रंगमंच और सिनेमा का एक जाना पहचाना नाम है. पेश है जागरण संवाददाता शिप्रा सुमन से सीमा विश्वास की बातचीत के कुछ अंश. यह आलेख दैनिक जागरण से साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.
रंग महोत्सव में टैगोर की स्त्री का पत्र के किरदार को जीने व निर्देशन का कैसा अनुभव रहा?
रविन्द्र नाथ टैगोर की लघु कथाओं को दर्शक बेहद पसंद करते हैं। दर्शकों को पूरी तरह से आत्मसात करने के लिए इसका हिन्दी में रूपांतरण किया। निर्देशन के दौरान आज के युवाओं से सीखने को भी मिला। मंच पर अभिनय के दौरान दर्शकों की प्रतिक्रिया स्वरूप निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर अच्छा लगता है।
शुरुआती दिनों में थिएटर का अनुभव कैसा था?
मैं प्रकृति से बहुत शर्मीली हूं। एन एस डी में थिएटर के गुण सीखते हुए मैंने काफी कुछ पाया। मुझे यहां परिवार की तरह प्यार मिला जिससे आज भी यहां आकर ऐसा महसूस करती हूं जैसे अपने घर में हूं। अभिनय की बारीकियों को सीखने के दौरान 1996 में मुझे फिल्म बैंडिंड क्वीन का ऑफर आया। शर्मीली होने के बाद भी मैंने शेखर कपूर की फिल्म में फूलन देवी का बोल्ड किरदार निभाया।
फिल्म विवादों में घिर गई। आपको कैसा लगा?
समाज की सच्चाई से जुड़े विषयों को लेकर बनने वाली फिल्मों के साथ अक्सर ऐसा होता है। लेकिन मुझे इस बात का अफसोस नहीं कि किसी खास वर्ग की प्रतिक्रिया रही। गांव व कस्बे की महिलाओं ने मुझे मेरे अभिनय के लिए शाबासी दी। मेरे दर्शकों का प्यार ही मेरे लिए सबकुछ है। मैंने अपने आपको एक अभिनेत्री साबित करने के लिए ही मैंने खामोशी फिल्म में बेजुबान मां का किरदार निभाया।
थिएटर व रंगमंच से जुड़े कलाकारों का भविष्य कितना उज्ज्वल है?
हमारे देश के छोटे कस्बों व गांवों की थिएटर प्रतिभा के विकास के लिए सरकार को पहल करने की आवश्यकता है। थिएटर को ग्लैमर से जोड़ने पर ही लोगों का इसे देखने के प्रति रुझान बढ़ेगा। जिस प्रकार खेलों के लिए जगह-जगह प्रशिक्षण केंद्र होते हैं खास कर क्रिकेट के लिए, ठीक इसीतरह से कला केंद्रों की जरूरत भी हर छोटे शहर में है।
आपकी दिल्ली से जुड़ी यादें क्या हैं?
आसाम से दिल्ली आने के बाद यहीं की होकर रह गई। मुंबई जाने का मौका मिला। फिर भी यहां तो आना जाना लगा ही रहता है। दिल्ली की सर्दी व यहां के छोले कुलछे बहुत याद आते हैं। बस से सफर करने के कारण मुझे बसों के नम्बर भी आज तक याद हैं। 350, 501 नम्बर की डीटीसी बसों से ज्यादा सफर करती थी।
आजकल टेलीविजन के शो काफी पापुलर हैं। क्या आप टीवी के शो करना चाहती हैं?
टीवी सीरियल के किरदार के लिए मुझे कई ऑफर आते हैं। कॉमेडी रोल करने की चाह है। अगर किसी हल्की फुल्की कॉमेडी के रोल का ऑफर आया तो जरूर करूंगी। सास बहू के किरदार से वैसे भी दर्शक ऊब चुके हैं।
आपकी फिल्में हमेशा विवाद के घेरे में आती हैं। वाटर हो या बैंडेंट क्वीन, आपको बुरा नहीं लगता?
मुझे फिल्म के किरदार व उसकी कहानी प्रभावित करती है न कि बैनर व स्टारकास्ट। कुछ खास ग्रुप के लोग बिना फिल्मों को देखे बवाल मचाते हैं। लेकिन इससे आम दर्शकों का कोई इत्तेफाक नहीं होता। वे हमेशा अच्छी फिल्मों व किरदारों की तारीफ करते हैं। दर्शक हमेशा समझदार होते हैं।

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