भारतभूषण तिवारी
सभी मनुष्य समाज
अपने रोज़मर्रा के जीवन में 'दर्शनीय' होते हैं और विशेष अवसरों पर 'दृश्य' उत्पन्न करते हैं.
सामाजिक संगठन के स्वरुप के तौर पर वे 'दर्शनीय' होते हैं और ऐसे 'दृश्य' उत्पन्न करते हैं, जैसा आप देखने आये हैं.
मशहूर ब्राजीलियन
नाटककार और रंगकर्मी ऑगस्टो बोआल ने गत 27 मार्च को विश्व
रंगमंच दिवस पर अपनी मातृभाषा पुर्तगाली में दिए गए संदेश की शुरुआत इन शब्दों से
की थी. बोआल पिछले पचास सालों से रंगमंचीय अभिव्यक्ति के विविध स्वरूपों को आकार
देने में रत रहे हैं. इन सारे स्वरूपों ने पॉलिटिक्स,प्रक्टिस और पोएटिक्स के मेल से एक सधी हुई और एकीकृत
नाटकीय स्थापना खड़ी करने की कोशिश की है. रंगमंच को 'मंच' से उतारकर जनता के
बीच ले जाने, उसे लोकप्रिय और पुनः प्रासंगिक बनाने में उनके
योगदान को कोई नकार नहीं सकता.
रियो दे जनिरो की
मज़दूर बस्तियों में पले-बढ़े बोआल ने अपने इर्द-गिर्द दमन और उत्पीड़न का साम्राज्य
देखा. इन सबके बीच उन्होंने पंद्रह बरस की उम्र से नाटक लिखना शुरू किया जो शोषण
के खिलाफ़ एक किशोर अभिव्यिक्त थी. पचास के दशक में बोआल रासायनिक इंजीनियरिंग की
पढ़ाई करने अमेरिका पहुँचे. वहाँ कोलंबिया यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के साथ-साथ
नाट्य-कला विभाग में भी दाखिला ले लिया. यहीं उन्होंने रूसी नाट्य-निर्देशक
कोन्स्तन्तिन स्तानिस्लाव्स्की के यथार्थवादी सिद्धांतों का व्यावहारिक प्रयोग
देखा और उस से प्रभावित हुए बिना न रह सके. 'पॉलिटिकल थिएटर' से यह उनका पहला परिचय था.
ब्राज़ील लौटकर वे
साओ पाउलो की छोटी-सी संस्था अरेना थिएटर से जुड़े. यहाँ काम करते हुए वे
आंदोलनात्मक-प्रचारात्मक (एजिट्प्रॉप) नाटकों को दूर-दराज के देहातों तक ले गए.
इसी दौर में उन्होंने एक अनोखी नाट्य-विधा तैयार की, जिसे 'न्यूज़ पेपर थिएटर' कहा गया. इसमें
बोआल और उनके साथी गाँवों, कारखानों, मोहल्लों में जाते और लोगों को अखबार में छपे मुद्दों पर
बहस करने और उनका नाटकीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते.
एक बार ब्राजील के
किसी गाँव में किसानों के बीच वे अपने साथियों के साथ ऐसा ही एजिट्प्रॉप नाटक कर
रहे थे. उस नाटक के अंत में नायक कहता है, “ अपनी भूमि को बचाने
के लिए हमें अपना खून बहाना पडेगा”. और किसानों के वेश
में सारे अभिनेता बंदूकें लिए, गाते हुए यही बात
दोहराते हैं. इस से अभिभूत होकर एक किसान उनके पास आया और कहने लगा “ चलो बंदूकें लेकर लड़ते हैं उन भूस्वामियों से जिन्होंने
हमारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रखा है. हमें खून बहाना है”. नाटक मंडली ने कहा कि ये बंदूकें असली नहीं हैं. किसान ने
जवाब दिया “ कोई बात नहीं, बंदूकें हमारे पास
काफी हैं, तुम लड़ाई में साथ चलो”. तो नाटक मंडली ने
बताया कि हम सचमुच के किसान नहीं बल्कि कलाकार हैं. तो किसान बोला, “ सचमुच के कलाकार जब खून बहाने की बात करते हैं तो वे अपना
नहीं बल्कि सचमुच के किसानों का का खून बहाने की बात करते हैं”. कट्टर पॉलिटिकल थिएटर की निरर्थकता बोआल के लिए उसी क्षण
शफ्फाक़ हो गयी. चे ग्वेरा का कथन कि “एकजुटता का अर्थ एक
जैसे खतरे भी उठाना है” उनके रंग-सिद्धांत
का ज़रूरी हस्सा बन गया.
उपदेशात्मक नाटकों
से परे जाते हुए उन्होंने कई प्रयोग किये. रंगमंच को और ज़्यादा सहभागी बनाने के
उनके शुरूआती प्रयासों में नाटक किसी निर्णायक मोड़ पर आकर रोक दिया जाता. अभिनेता
दर्शकों से कहते कि नाटक यहाँ खत्म होता है क्योंकि हमें नहीं पता आगे कैसे बढ़ना
है.
दर्शकों से सुझाव
लिए जाते, उन पर बहसे होतीं और सुझाए गए समाधानों से नाटक आगे
बढ़ाया जाता. इसी तरह के एक नाटक के दौरान एक महिला के सुझाए हुए समाधान को अभिनेता
समझ नहीं पा रहे थे. बहुत कोशिशों के बाद भी उनके अपेक्षित हाव-भाव न ला सकने से
वह महिला इतनी नाराज़ हुई कि खुद मंच पर आकर समझाने लगी. बोआल के लिए यह 'दर्शक-अभिनेता' या 'स्पेक्ट-ऐक्टर' के जन्म का क्षण
था.
'स्पेक्ट-ऐक्टर' की अवधारणा उनके बाद के प्रयोगों में प्रभावी तौर पर मौजूद
रही. फोरम थिएटर, इन्विज़िबल थिएटर, इमेज थिएटर जैसे कई अभिनव नाट्य-प्रकार उन्होंने विकसित
किये. कई सालों में विकसित किये गए इन नाट्य-प्रकारों के समुच्चय से बनी पद्धति को
उन्होंने 'थिएटर ऑफ़ दि अप्रेस्ड' नाम दिया.
बर्तोल्त ब्रेष्ठ
और ब्राजील के मार्क्सवादी शिक्षाशास्त्री पाउलो फ्रेरी के विचारों से गहरे
प्रभावित इस नाट्य-पद्धति ने कालांतर में एक विश्वव्यापी थिएटर मूवमेंट का रूप ले
लिया. 1974 में 'थिएटर ऑफ़ दि
अपेस्ड' के नाम से ही प्रकाशित अपनी पहली सैद्धांतिक कृति में
बोआल मुख्यधारा के रंगमंच को शासक-वर्ग द्वारा नियंत्रण बनाए रखने का माध्यम बताते
हैं, जिसका उद्देश्य दशर्कों को भुलावे में रखना है. साथ
ही वे यह भी दर्शाते हैं कि नाट्य कलाएँ किस तरह हथियार बन सकती हैं, दर्शक को अभिनेता और मज़लूम को इन्क़लाबी बना सकती हैं.
ब्राजील में सेना
के सत्ता हथियाने के बाद बोआल ने अपने नाटकों और गीतों द्वारा इसका सख्त विरोध
किया. इस निर्भीकता का खामियाज़ा भी उन्हें भुगतना पड़ा. सैनिक शासन ने उन्हें
महीनों जेल में रखा और कई तरह से प्रताड़ित किया. इसके बाद काफी सालों तक
अर्जेंटीना, पेरू, पुर्तगाल और फ्रांस
में उन्होंने निर्वासित जीवन बिताया. 1986 में सैनिक शासन
ख़त्म होने पर ही बोआल ब्राजील लौटे. वे हर जगह पर अपने नाट्य-सिद्धांतों, तरीकों को माँजते रहे, युवा अभिनेताओं, निर्दशकों को प्रशिक्षण देते रहे और जनता के बीच काम करते
रहे.
बोआल द्वारा विकसित
एक और नाट्य-प्रकार 'रेनबो ऑफ़ डिज़ायर' नाटकों की चिकित्सकीय क्षमता को उद्घाटित करता है. इसमें
आंतरिक उत्पीड़न के स्वरूपों पर ध्यान देकर उसे दूर करने की पद्धतियां बताई गई हैं.
नब्बे के दशक में बोआल रियो दे जनिरो की नगर पालिका परिषद के सदस्य भी रहे.
जन-सहभागिता के नाट्य-तरीकों को यहाँ अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने नागरी
कानूनों के निधार्रण के लिए इस्तेमाल किया और इसे 'लेजिस्लेटिव थिएटर' नाम दिया.
बोआल के यहाँ वह
स्थिति, जिसमें किसी व्यक्ति पर ऐसा एकतरफा संवाद थोपा जाए
जहाँ उसे पलट कर जवाब देने का मौका न मिले, उत्पीड़न है. उनका
सारा उद्यम एक पायदान नीचे खड़े लोगों को अभिव्यक्ति के औज़ार मुहैया कराकर उन्हें
शक्तिहीनता की स्थिति से बाहर निकालने का रहा है. कुंठा और हताशा को वे सृजनात्मक
दखल और अंततः सामाजिक और नागरी दखल की दिशा में मोड़ते हैं. विश्व रंगमंच दिवस पर
दिए गए संदेश के अंत में बोआल कहते हैं- हम सब अभिनेता हैं, नागरिक होने का अर्थ केवल समाज में रहना नहीं बल्कि उसे
बदलना है.
अपने एक हालिया
इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, " मेरा एक ही सपना
है. वो यह कि मैं उम्र भर सपने देखता रहूँ. मेरा सिर्फ यही सपना है. मैं सपने
देखते रहना चाहता हूँ. देख पाऊँ तो मैं पुरुषों और स्त्रियों के बीच, कालों और गोरों के बीच एकजटुता, देशों के बीच एकजटुता, और एक 'एथोस' तैयार करने की
एकजटुता का सपना देखता हूँ."
अपनी मृत्यु से एक
दिन पहले यानि मई दिवस पर मजदूरों के साथ एक सांध्य-प्रदर्शन में शरीक हुए ऑगस्टो
बोआल के जीवन में यही एकजटुता या सॉलिडैरिटी आखिरी साँस तक देखी गई.
रविवार से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें