रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

द’ डिक्टेटर का समापन भाषण .... चार्ली चैप्लिन

चार्ली चैप्लिन ने लोगों को ऎसे दौर में हसना सिखाया जब दुनिया विश्वयुद्ध और फासीवाद के दौर में जी रही थी. द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म १९४० में बनी जिसमे चर्ली चैप्लिन ने हिटलर की भूमिका निभाते हुए एक भाषण दिया था. वह भाषण ऎसा लगता है मानों तब से दुनिया ठहरी हुई हो, बस चार्ली चैप्लिन हमारे बीच से गायब हो गये हों.
मुझे खेद है लेकिन मैं शासक नहीं बनना चाहता. ये मेरा काम नहीं है. किसी पर भी राज करना या किसी को भी जीतना नहीं चाहता. मैं तो किसी की मदद करना चाहूंगा- अगर हो सके तो- यहूदियों की, गैर यहूदियों की- काले लोगों की- गोरे लोगों की.
हम सब लोग एक दूसरे लोगों की मदद करना चाहते हैं. मानव होते ही ऎसे हैं. हम एक दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं- एक दूसरे की तकलीफों के साथ नहीं. हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते. इस संसार में सभी के लिये स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिये अन्न-जल जुटा सकती है.
“जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं. लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है- दुनिया में नफ़रत की दीवारें खडी कर दी हैं- लालच ने हमे ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फसा दिया है. हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है. हमने मशीने बनायी, मशीनों ने हमे बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी माँगें और बढ़ती चली गयीं. हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोडा है; हमारी चतुराई ने हमे कठोर और बेरहम बना दिया. हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं. हमे बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा जरूरत है, इन गुणों के बिना जीवन हिंसक हो जायेगा.
“हवाई जहाज और रेडियो हमें आपस में एक दूसरे के निकट लाये हैं. इन्हीं चीजों की प्रकृति आज चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है- इन्सान में अच्छई हो- चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है- पूरी दुनिया में भाईचारा हो, हम सबमे एकता हो. यहाँ तक कि इस समय भी मेरी आवाज़ पूरी दुनिया में लाखों करोणों लोगों तक पहुँच रही है- लाखों करोडों हताश पुरुष, स्त्रियाँ, और छोटे-छोटे बच्चे- उस तंत्र के शिकार लोग, जो आदमी को क्रूर और अत्याचारी बना देता है और निर्दोष इंसानों को सींखचों के पीछे डाल देता है; जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुँच रही है- मैं उनसे कहता हूँ- “निराश न हों’. जो मुसीबत हम पर आ पडी है, वह कुछ नहीं, लालच का गुज़र जाने वाला दौर है. इंसान की नफ़रत हमेशा नहीं रहेगी, तानाशाह मौत के हवाले होंगे और जो ताकत उन्होंने जनता से हथियायी है, जनता के पास वापिस पहुँच जायेगी और जब तक इंसान मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी खत्म नहीं होगी.
“सिपाहियों! अपने आपको इन वहशियों के हाथों में न पड़ने दो- ये आपसे घृणा करते हैं- आपको गुलाम बनाते हैं- जो आपकी जिंदगी के फैसले करते हैं- आपको बताते हैं कि आपको क्या करना चाहिये, क्या सोचना चाहिये और क्या महसूस करना चाहिये! जो आपसे मसक्कत करवाते हैं- आपको भूखा रखते हैं- आपके साथ मवेसियों का सा बरताव करते हैं और आपको तोपों के चारे की तरह इश्तेमाल करते हैं- अपने आपको इन अप्राकृतिक मनुष्यों, मशीनी मानवों के हाथों गुलाम मत बनने दो, जिनके दिमाग मशीनी हैं और जिनके दिल मशीनी हैं! आप मशीनें नहीं हैं! आप इंसान हैं! आपके दिल में मानवाता के प्यार का सगर हिलोरें ले रहा है. घृणा मत करो! सिर्फ़ वही घृणा करते हैं जिन्हें प्यार नहीं मिलता- प्यार न पाने वाले और अप्राकृतिक!!
“सिपाहियों! गुलामी के लिये मत लडो! आज़ादी के लिये लडो! सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में यह लिखा है कि ईश्वर का साम्राज्य मनुष्य के भीतर होता है- सिर्फ़ एक आदमी के भीतर नहीं, नही आदमियों के किसी समूह में ही अपितु सभी मनुष्यों में ईश्वर वास करता है! आप में! आप में, आप सब व्यक्तियों के पास ताकत है- मशीने बनाने की ताकत. खुशियाँ पैदा करने की ताकत! आप, आप लोगों में इस जीवन को शानदार रोमांचक गतिविधि में बदलने की ताकत है. तो- लोकतंत्र के नाम पर- आइये, हम ताकत का इस्तेमाल करें- आइये, हम सब एक हो जायें. आइये हम सब एक नयी दुनिया के लिये संघर्ष करें. एक ऎसी बेहतरीन दुनिया, जहाँ सभी व्यक्तियों को काम करने का मौका मिलेगा. इस नयी दुनिया में युवा वर्ग को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा मिलेगी.
“इन्हीं चीजों का वायदा करके वहशियों ने ताकत हथिया ली है. लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे उस वायदे को पूरा नहीं करते. वे कभी करेंगे भी नहीं! तानाशाह अपने आपको आज़ाद कर लेते हैं लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं. आइये- दुनिया को आज़ाद कराने के लिये लडें- राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ डालें- लालच को ख़्त्म कर डालें, नफ़रत को दफन करें और असहनशक्ति को कुचल दें. आइये हम तर्क की दुनिया के लिये संघर्ष करें- एक ऎसी दुनिया के लिये, जहाँ पर विज्ञान और प्रगति इन सबको खुशियों की तरफ ले जायेगी, लोकतंत्र के नाम पर आइए, हम एकजुट हो जायें!
हान्नाह! क्या आप मुझे सुन रही हैं?
आप जहाँ कहीं भी हैं, मेरी तरफ देखें! देखें, हन्नाह! बादल बढ़ रहे हैं! उनमे सूर्य झाँक रहा है! हम इस अंधेरे में से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं! हम एक नयी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं- अधिक दयालु दुनिया, जहाँ आदमी अपनी लालच से ऊपर उठ जायेगा, अपनी नफ़रत और अपनी पाशविकता को त्याग देगा. देखो हन्नाह! मनुष्य की आत्मा को पंख दे दिये गये हैं और अंततः ऎसा समय आ ही गया है जब वह आकाश में उड़ना शुरु कर रहा है. वह इंद्रधनुष में उड़ने जा रहा है. वह आशा के आलोक में उड़ रहा है. देखो हन्नाह! देखो!’

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