- मोनिका मिश्र
हबीब तनवीर और मोनिका मिश्रा ने
अपने नौ कलाकारों की मदद से देहली के एक मोटर गैराज में नया थियेटर की बुनियाद
डाली। इसके पहले दोनों हिन्दुस्तानी थियेटर में काम क रते थे। 1964 में नया थियेटर एक
रजिस्टर्ड सोसायटी बना और 1972 में एक पेशेवर थियेटर कम्पनी। 1970 से तीन बरस तक लगातार हबीब तनवीर
छत्तीसगढ़ के लोक नाटक छत्तीसगढ़ी शैली और भाषा में लगातार पेश करते रहे, फिर 1973 नया थियेटर के लिए एक संग
एक मील साबित हुआ।
इस साल हबीब तनवीर ने रायपुर में एक
महीने का छत्तीसगढ़ी नाचा शिविर चलाया, जिसका नतीजा था नाटक गांव के नाव
ससुराल मोर नाव दामाद। इसके बाद आया चरणदास चोरं जो दिसम्बर 1974 में एक एकांकी नाटक के रूप
में छत्तीसगढ़ी भाषा में छत्तीसगढ़ी कलाकारों के माध्यम से अट्ठारह हजार दर्शकों के
सामने प्रस्तुत किया गया। यह इस नाटकी की शुरूआत थी।
देहली में इस पर फिर काम किया गया
और नाटक दो घण्टे का बन गया। इसी रूप में यह नाटक कम्पनी आडीटोरियम में मई 1975 में पेश किया गया, कमानी के फौरन बाद त्रिवेणी
थियेटर में इसके 12 शो
लगातार मंचित किये गये और बारह ही शो हरियाणा के विभिन्न शहरों में । यहां से इस नाटक
की यात्रा शुरू हुई। यह सारे हिन्दुस्तान में दिखाया गया।
बिलाखिर सन् 1982 में एडिनबरा अंतरराष्ट्रीय
नाटय उत्सव में इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई और इसे 52 अंतरराष्ट्रीय नाटकों में
फ्रेंच अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला । उसके बाद से नया थियेटर कई बरस तक लगातार
यूरोप के मुल्कों में अपने नाटक दिखाता रहा। जिन देशों की नया थियेटर ने यात्रा की
उनमें स्कॉटलैण्ड, इंग्लैण्ड, वेल्स और आयरलैण्ड के अलावा
हॉलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, युगोस्वालिया, स्वीडन, यूनान और सोवियत यूनियन
शामिल हैं।
कुछ प्रमुख नाटक नया थियेटर के
शतरंज
के मोहरे:1948, शांतिदूत कामगार: 1948, जालीदार पर्दे:1953, आगरा बाजार:1954, मिट्टी की गाड़ी:1978, मुद्राराक्षस:1968, कुत्सिया का चपरासी:1971, मोर नांव दामाद गांव के नाव
ससुराल:1973, चरणदास चोर:1974, शाजापुर की शांतिबाई:1978, बहादुर कलारिन:1978, सोन सागर:1983, नंदराजा मस्त है:1984, हिरमा की अमर कहानी:1985, जिन लाहौर नहीं देख्या:1990, कामदेव का अपना बसंत ऋतु का
सपना:1994, सड़क 1994, किस्सा ठलहाराम का:2001, वेणी संहार:2002, जहरीली हवा:2002, विसर्जन:2006
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