रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

हमें एक नई दुनिया का निर्माण करना है।




सभी मानव समाज अपने दैनिक जीवन में ‘विशिष्ट और अद्भुत’ (शानदार) होते हैं और विशेष क्षणों में कुछ न कुछ ‘अनोखा’ करते हैं। सामाजिक संगठन के रूप में भी वह अद्भुत होता है और विशिष्ट कार्यों को अंजाम देता है जैसे कि कोई भी एक व्यक्ति। हम सब इसे अच्छी तरह से जानते हैं।
यहाँ तक कि जो इसे नहीं जानते हैं, वे भी नाटकीय तरीके से मानवीय संबंधों को संरचित कर रहे होते हैं। स्थान का इस्तेमाल, शारीरिक भाव-भंगिमाएं, शब्दों का चयन और स्वरों की अदायगी, विचारों और भावनाओं का टकराव, वह सब कुछ जो हम रंगमंच पर प्रदर्शित करते हैं, अपने जीवन में कर रहे होते हैं। दरअसल, यह पूरी दुनिया एक रंगमंच हैं!

शादियां और मृत्यु संस्कार अपने आप में विशिष्ट होते हैं, लेकिन इसके साथ ही हमारी रोजाना की जिंदगी में होने वाले दूसरे अनुष्ठान भी उतने ही विशिष्ट होते हैं। जिसके बारे में हम सचेत नहीं होते हैं। जीवन के खास उत्सव और माहौल, विशेष परिस्थितियां भी। यहां तक कि सुबह की चाय, एक-दूसरे को किया जाने वाला अभिवादन, डरा हुआ प्यार और कुछ करने का तूफानी जुनून, या फिर कोई गंभीर राजनैतिक बैठक - सभी कुछ नाटक है।

दैनिक जीवन में घटनेवाली विशिष्ट घटनाओं के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाना ही कला का मुख्य कार्य है। जिसे एक कलाकार अपनी अपेक्षाओं के साथ रंगमंच या कहीं भी किसी भी मंच पर प्रदर्शित करता है। इस अर्थ में हम सभी कलाकार हैं। नाटक करते हुए हम स्पष्टता से उन चीजों को देख पाते हैं जो हम आम तौर पर देखते हुए भी नहीं देख पाते हैं। वह सभी कुछ जो हमसे संबंधित होता है, पर अनदेखा रहता है। नाटक के द्वारा हम रोजाना की जिंदगी के उसी अनदेखे को रंगमंच पर भरीपूरी रोशनी में उजागर करते हैं।

पिछले सितंबर में एक नाटकीय घटना ने हम सभी को झकझोर दिया। हम हैरान रह गये। हमने यह मान लिया था कि इस दुनिया में मौजूद युद्ध, नरसंहार, हत्या, उत्पीड़न और जंगलराज से दूर हम एक सुरक्षित दुनिया में जी रहे हैं। हम सभी सुरक्षित हैं अपने उन पैसों के साथ जिन्हें हमने भरोसेमंद बैंकों में जमा कर रखा है। लेकिन एक दिन शेयर बाजार में उन पैसों को सम्हालने वाले ईमानदार व्यापारियों ने हमें यह कह कर असुरक्षित कर दिया कि उन पैसों का अस्तित्व ही नहीं है। पैसा है भी और नहीं भी। दिलचस्प बात यह है कि इस फर्जी सिद्धांत को उन अर्थशास्त्रियों ने विकसित किया था जो कहीं से भी फर्जी नहीं थे, परंतु न ही विश्वसनीय और न ही सम्मानित। यह एक ऐसा बुरा नाटक था जिसमें कुछ लोग तो खूब जीते लेकिन अधिकांश लोगों को अपना सबकुछ गंवा देना पड़ा। अमीर देशों के कुछ राजनीतिज्ञों ने एक गुप्त बैठक कर इसका जादूई समाधान निकाला। और हम, उनके इस फैसले का शिकार हुए। अभी भी हो रहे हैं, अपनी तमाम अपेक्षाओं के साथ, हॉल की अंतिम पंक्ति की सीट पर बैठे किसी दर्शक की तरह।

बीस साल पहले मैंने रियो डी जेनेरो में ‘रेसिन्स फेद्रे’ नामक नाटक किया था। इसकी मंच सज्जा बहुत कमजोर थी। कुछ बांस थे और उसके आसपास जमीन पर गाय की खाल पड़ी हुई थी। प्रत्येक प्रस्तुति से पहले, मैं अपने अभिनेताओं को कहा करता था, हमनें जो सृजित किया है, वह दिन ब दिन खत्म हो रहा है। जिस दिन तुम इस बांस को लांघ कर आगे निकल जाओगे तुम्हें झूठ बोलने का कोई अधिकार नहीं होगा। क्योंकि रंगमंच एक छुपा हुआ सत्य है।

जब हम दिखावे से परे अपनी इस दुनिया पर नजर डालते हैं, तो सभी समाजों, आदिवासी समुदायों, जातियों और सामाजिक वर्गों में उत्पीड़न करने वालों और उनसे उत्पीड़ित होने वाले लोग दिखाई देते हैं। हम एक अन्यायपूर्ण और क्रूर दुनिया को देखते हैं। इसीलिए, हमें एक नई दुनिया का निर्माण करना है। और हम सब जानते हैं कि यह संभव है। लेकिन इस नई दुनिया को हमें स्वयं ही रचना होगा। अपने अभिनय से एक कलाकार की तरह। रंगमंच पर भी और अपने जीवन में भी।
यह विशिष्ट और अद्भुत अभिनय तभी शुरू होगा जब आप इसमें हिस्सा लेंगे और घर लौटने के बाद अपने दोस्तों के साथ अपना नाटक खुद रचेंगे और उसे देखेंगे। तभी आपको मालूम होगा कि अभी तक वह क्या कुछ था जो अनदेखा था। जिसे आप नहीं देख पाते थे। जो संभव है। रंगमंच सिर्फ एक गतिविधि नहीं है, यह जीवन को जीने का एक तरीका है।
हम सभी कलाकार हैं: एक नागरिक के रूप में हमें सिर्फ इस समाज में रहना ही नहीं है, बल्कि इसे बदलना भी हमारा ही काम है।

अंग्रेजी से अनुवाद: अश्विनी कुमार पंकज

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